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यूपी के इस बुलडोजर एक्शन ने SC की 'आत्मा झकझोर' दी, पीड़ितों को 10-10 लाख रुपये देने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. उन्होंने कहा कि ऐसे मामले हमारी आत्मा को झकझोर देते हैं. जिस तरह से घरों को तोड़ा गया है कोर्ट ने उस पर आपत्ति जताई है.

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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को बुलडोजर एक्शन पर कड़ी फटकार लगाई है. (तस्वीर:PTI)

सुप्रीम कोर्ट ने एक बुलडोजर एक्शन को लेकर प्रयागराज विकास प्राधिकरण को कड़ी फटकार लगाई है. साथ ही उसकी कार्रवाई को ‘असंवैधानिक’ बताया है. कोर्ट ने 6 लोगों के घर तोड़े जाने को ‘अमानवीय’ और ‘अवैध’ भी बताया है. इसके साथ ही कोर्ट ने प्राधिकरण को इन सभी लोगों को 10-10 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश दिया है.

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‘ऐसे मामले हमारी आत्मा को झकझोर देते हैं’

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस ओका और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, “ऐसे मामले हमारी आत्मा को झकझोर देते हैं.” 

जिस तरह से घरों को तोड़ा गया है कोर्ट ने उस पर भी आपत्ति जताई है. बेंच ने कहा,

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“प्रशासन, खासकर विकास प्राधिकरण को यह याद रखना चाहिए कि राइट टू शेल्टर भी संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न अंग है. तोड़फोड़ की अवैध प्रक्रिया याचिकाकर्ता के संविधान अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है. इसे ध्यान में रखते हुए हम प्रयागराज विकास प्राधिकरण को सभी याचिकाकर्ताओं को 10-10 लाख रुपये देने का निर्देश देते हैं.”

कोर्ट ने कहा कि घर को तोड़ने की ये मनमानी प्रक्रिया नागरिक अधिकारों का असंवेदनशील तरीके से हनन भी है.

इससे पहले, 24 मार्च 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अपील करने वालों को अपने घर दोबारा बनाने की इजाजत देने पर विचार किया था. कोर्ट में 1 अप्रैल को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि उनके पास घर दोबारा बनाने के लिए पैसे नहीं हैं और वे मुआवजा चाहते हैं.

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भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने इस मांग का विरोध किया और कहा कि प्रभावित लोगों के पास रहने के लिए दूसरी जगह है. लेकिन कोर्ट ने इस दलील को नहीं माना.

जस्टिस ओका ने कहा कि मुआवजा देना ही अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराने का तरीका है.

यह भी पढ़ें:'ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं', अब सुप्रीम कोर्ट में इलाहबाद हाईकोर्ट की इस टिप्पणी पर होगी सुनवाई

याचिकाकर्ताओं की दलील

दरअसल, वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद, दो विधवा महिलाओं और एक अन्य व्यक्ति ने अपना घर अवैध तरीके से तोड़े का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनकी तरफ से सीनियर एडवोकेट अभिमन्यु भंडारी, वकील रूह-ए-हिना दुआ, अतिफ सुहरावर्दी और सैयद मेहदी इमाम पैरवी कर रहे थे.

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अधिकारियों ने देर रात नोटिस जारी करने के अगले दिन ही उनके घर तोड़ दिए. इससे उन्हें विरोध करने का मौका नहीं मिल पाया. वकीलों ने दावा किया कि सरकार ने जमीन को गलत तरीके से गैंगस्टर अतीक अहमद से जोड़ा था, जिसकी अप्रैल 2023 में हत्या हो गई थी.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे घुसपैठिए नहीं थे, बल्कि किरायेदार थे, जिन्होंने अपनी जमीन को फ्रीहोल्ड में बदलने की अर्जी दी थी. उनका कहना है कि हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को बिना उन्हें जवाब देने का मौका दिए 15 सितंबर, 2020 के एक पत्र के आधार पर खारिज कर दिया.

यह मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंचा था जहां कोर्ट ने निर्माण को अवैध बताते हुए याचिका खारिज कर दी थी. कोर्ट ने कहा कि यह मामला प्रयागराज के एक नजूल प्लॉट का है. इसे 1906 में लीज़ पर दिया गया था जोकि 1996 में खत्म हो गई थी. इसके अलावा फ्रीहोल्ड की अर्जियां 2015 और 2019 में खारिज हो चुकी थीं.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने यूपी सरकार के बुलडोजर एक्शन का बचाव करते हुए कहा कि पहला नोटिस 8 दिसंबर 2020 को दिया गया था और इसके बाद जनवरी 2021 और मार्च 2021 में भी नोटिस दिए गए थे.

उन्होंने कहा, "इसलिए ये नहीं कह सकते कि उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई. बहुत सारी जमीनें जिनकी लीज़ खत्म हो चुकी है वे अवैध रूप से कब्जे में हैं या उनके फ्रीहोल्ड की अर्जी खारिज हो चुकी है.”

लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि सरकार को निष्पक्ष रहना चाहिए और लोगों को अपील करने के लिए पर्याप्त समय देना चाहिए. जस्टिस ओका ने कहा था, "6 मार्च को नोटिस दिया और 7 मार्च को घर तोड़ दिया. अब हम उन्हें दोबारा बनाने की इजाजत देंगे."

जस्टिस ओका ने कहा था कि नोटिस चिपकाकर दिए गए थे, जो कानून की मान्य प्रक्रिया नहीं है. केवल आखिरी नोटिस रजिस्टर्ड डाक से दिया गया था.

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