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एक ही मूवी या शो बार-बार देखने का मन क्यों करता है?

हमारे दिमाग को प्रिडिक्टिबिलटी पसंद है यानी हमें पता हो कि आगे क्या होने वाला है. इससे दिमाग रिलैक्स होता है और एंग्ज़ायटी भी कम होती है.

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आपकी फेवरेट सीरीज़ या मूवी कौन-सी है?

ऑफिस में दिन बुरा बीता. घर आए. खाना खाने बैठे और टीवी पर लगा लिया FRIENDS!

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पार्टनर से झगड़ा हो गया. मन एकदम उदास है. टीवी देखने का मन नहीं है. FRIENDS लगा लेते हैं, थोड़ा अच्छा लगेगा.

बोर हो रहे हैं. चलो कोई फ़िल्म या सीरीज़ देखते हैं. घंटों चूज़ करने के बाद आखिर क्या देखा. वही हज़ारों बार देखा जा चुका FRIENDS!

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FRIENDS
FRIENDS एक अमेरिकन टीवी सीरीज़ है 

हो सकता है, आपकी ज़िंदगी में FRIENDS की जगह Harry Potter, The Office, Young Sheldon, Mein Hoon Na, DDLJ या कोई और शो या फ़िल्म हो.

आप उसे सैकड़ों बार देख चुके हैं. हर सीन, हर डायलॉग रटा है. फिर भी बार-बार देखने का मन करता है. देखकर अच्छा लगता है. सेफ़ महसूस होता है इसलिए इसे कहते हैं ‘कम्फर्ट वॉचिंग’.  

पर हम ऐसा करते क्यों है? इसके पीछे क्या साइकोलॉजी है. ये जानेंगे आज. डॉक्टर से समझेंगे कि एक ही शो या मूवी को बार-बार देखकर अच्छा क्यों लगता है. कौन लोग ऐसा ज़्यादा करते हैं. कब इस पर ध्यान देना ज़रूरी हो जाता है और इस लूप से बाहर कैसे निकलें. 

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बार-बार एक ही फ़िल्म/सीरीज़ क्यों देखते हैं?

ये हमें बताया धरा घुंटला ने. 

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धरा घुंटला, साइकोलॉजिस्ट, सुजय हॉस्पिटल

कुछ शो या फिल्में हम बार-बार देखते हैं. जैसे फ्रेंड्स, द ऑफिस, DDLJ और हैरी पॉटर. इनके सारे डायलॉग्स याद होने के बाद भी हम इन्हें देखते हैं. किसी शो या फिल्म को बार-बार देखने से आराम मिलता है. नई चीज़ें अनिश्चित होती हैं, लेकिन पुरानी कहानी जानी-पहचानी होती है. किरदार, सीन, जोक्स सब कुछ हम जानते हैं. हमारे दिमाग को प्रेडिक्टिबिलटी पसंद है, यानी हमें पता हो कि आगे क्या होने वाला है. इससे दिमाग रिलैक्स होता है और एंग्ज़ायटी भी कम होती है. ये एक तरह का इमोशनल सेफ्टी ज़ोन बन जाता है. जैसे हमें पुराने दोस्तों के साथ समय बिताना अच्छा लगता है. हम उनके रिएक्शंस, आदतें और पर्सनैलिटी जानते हैं. वैसे ही पुराने शो हमें सुरक्षित महसूस कराते हैं. जब ज़िंदगी में स्ट्रेस या अनिश्चितता ज़्यादा होती है. तब हम इन्हें और ज़्यादा देखते हैं क्योंकि इससे आराम मिलता है.

रीवॉचिंग के पीछे क्या साइकोलॉजी है?

रीवॉचिंग के पीछे दो वजहें हैं- कंट्रोल और कनेक्शन. कंट्रोल क्योंकि हमें उस फिल्म या शो के बारे में सब पता है. जब ज़िंदगी में स्ट्रेस होता है, तो कुछ चीज़ें हमारे बस में नहीं होतीं. लेकिन उस वक्त यही शो हमें अच्छा महसूस कराता है. अब बात कनेक्शन की. हम उन किरदारों से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं. वो शो या फिल्म हमारी ज़िंदगी के किसी अच्छे वक्त की याद दिलाती है. जैसे हमारा बचपन, कॉलेज के दिन या परिवार के साथ बिताया हुआ अच्छा वक्त. किसी शो या फिल्म को बार-बार देखने पर अच्छी पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं. अपनेपन की भावना आती है. इससे हमें पॉज़िटिव महसूस होता है.

कौन लोग ऐसा ज़्यादा करते हैं?

लगभग सभी कभी-न-कभी रीवॉचिंग करते हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसा थोड़ा ज़्यादा करते हैं. खासकर जिन्हें एंग्ज़ायटी होती है या जो बदलाव से डरते हैं. शांत (इंट्रोवर्ट) या ज़्यादा स्ट्रेस में रहने वाले लोग रीवॉचिंग करके अपना मूड सुधारते हैं. ये इमोशनली भी आपको अच्छा महसूस कराता है.

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लगभग सभी कभी-न-कभी रीवॉचिंग करते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसा थोड़ा ज़्यादा करते हैं (फोटो:Envato)

इस लूप से बाहर कैसे निकलें?

अगर आपको लग रहा है कि आप बार-बार वही शो देख रहे हैं. आप कुछ नया नहीं देख पा रहे, तब छोटे लेवल पर शुरुआत करें. नया शो किसी दोस्त या फैमिली मेंबर के साथ देखें, इससे झिझक कम होगी. छोटे और फनी शोज़ से शुरुआत करिए. लंबे शो बाद में देख सकते हैं. कोई ऐसी एक्टिविटी करिए, जिससे एंग्ज़ायटी कम करने में मदद मिले. जैसे टहलना, म्यूज़िक सुनना या जर्नलिंग करना. आप किसी प्रोफेशनल की मदद भी ले सकते हैं.

अगर आप रीवॉचिंग स्ट्रेस या इमोशंस से बचने के लिए कर रहे हैं, तो इसे पहचानना ज़रूरी है. अगर ये पैटर्न आपको परेशान कर रहा है, तो किसी मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल से मिलें.

कोई शो या मूवी बार-बार देखना गलत नहीं है. पर उन्हें आप क्यों देख रहे हैं, वो समझना ज़रूरी है. क्या ये सिर्फ कंफर्ट के लिए है या रिएलिटी से बचने के लिए. अगर कंफर्ट के लिए है, तब तो कोई दिक्कत नहीं है. पर अगर रिएलिटी से बचने के लिए है, तो अपने इमोशंस शेयर करना, किसी प्रोफेशनल की मदद लेना ज़रूरी है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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