आपको कोविड वैक्सीन याद है? ये आपकी बांह पर लगाई गई थी. कई और भी इंजेक्शन आपको बांह पर लगे होंगे. अब याद कीजिए, कुछ इंजेक्शन आपको कमर पर लगे होंगे.
कोई वैक्सीन शरीर के किस हिस्से पर लगेगी, ये कैसे तय होता है?
वैक्सीन शरीर के किस हिस्से पर लगाई जाएंगी, ये कई चीज़ों पर निर्भर करता है. जैसे बीमारी क्या है. वैक्सीन किस तरह की है और वैक्सीन लगने के बाद कैसा इम्यून रिस्पॉन्स चाहिए. यानी शरीर की इम्यूनिटी कैसे रिएक्ट करेगी.

जिन लोगों को डायबिटीज़ है, वो इंसुलिन का इंजेक्शन लेते हैं. ये कभी पेट पर लगाया जाता है तो कभी जांघ पर. कुछ वैक्सीन स्प्रे के रूप में भी बिकती हैं. इन्हें नाक के ज़रिए लिया जाता है.
अलग-अलग वैक्सीन शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर लगाई जाती हैं. लेकिन ऐसा क्यों? कौन सी वैक्सीन कहां लगाई जाएंगी, ये कैसे तय होता है? वैक्सीन सही हिस्से में लगना इतना ज़रूरी क्यों है, ये हमने पूछा सी.के. बिड़ला हॉस्पिटल में डिपार्टमेंट ऑफ रेस्पिरेटरी मेडिसिन के डायरेक्टर और पल्मोनोलॉजिस्ट डॉक्टर विकास मित्तल से.

डॉक्टर विकास कहते हैं कि वैक्सीन कई तरह से लगाई जा सकती है. ये आपके शरीर के किस हिस्से पर लगाई जाएंगी, ये कई चीज़ों पर निर्भर करता है. जैसे बीमारी क्या है. वैक्सीन किस तरह की है और वैक्सीन लगने के बाद कैसा इम्यून रिस्पॉन्स चाहिए. यानी शरीर की इम्यूनिटी कैसे रिएक्ट करेगी.
जैसे कुछ वैक्सीन्स जांघ के आगे वाले हिस्से में मौजूद मांसपेशी पर लगती हैं. इन मांसपेशियों को क्वाड्रिसेप (Quadriceps Muscles) कहते हैं. कुछ हाथ में मौजूद डेल्टॉइड मांसपेशी (Deltoid Muscles) पर लगती हैं. ये मांसपेशी कंधे के बिल्कुल पास होती है. इन जगहों पर लगने वाले इंजेक्शंस को इंट्रामस्कुलर इंजेक्शन (Intramuscular Injection) कहा जाता है. इसे वैक्सीन देने का सबसे प्रभावी और सुरक्षित तरीका माना जाता है. दरअसल, जब यहां पर वैक्सीन लगती है, तो वो तेज़ी से खून में एब्ज़ॉर्व हो जाती है. मिल जाती है. इससे शरीर की इम्यूनिटी भी जल्दी रिएक्ट करती है. टिटनेस का इंजेक्शन और कोविड-19 की वैक्सीन, इंट्रामस्कुलर इंजेक्शन के रूप में इन्हीं हिस्सों पर लगती हैं.

कुछ वैक्सीन जांघ और पेट पर लगती हैं. स्किन के नीचे मौजूद फैट की परत में. यहां लगने वाले इंजेक्शंस को सबक्यूटेनियस इंजेक्शन (Subcutaneous Injection) कहा जाता है. इन इंजेक्शन में मौजूद दवा शरीर में एब्ज़ॉर्व होने में थोड़ा समय लेती है, क्योंकि फैट की परत में ये धीरे-धीरे एब्ज़ॉर्व होती है. इससे दवा का असर लंबे समय तक बना रहता है. MMR यानी मम्प्स, मीज़ल्स, रुबेला और येलो फीवर की वैक्सीन को सबक्यूटेनियस इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है. इस इंजेक्शन को लगाने पर कम दर्द होता है.
कुछ ओरल वैक्सीन्स भी होती हैं. जैसे पोलिया की दवा. जिसकी कुछ ड्रॉप मुंह में डाली जाती हैं. ये गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट यानी पेट और आंतों के ज़रिए शरीर में एब्ज़ॉर्व होती हैं. ओरल वैक्सीन पाचन तंत्र से जुड़ी बीमारियों के लिए ज़्यादा असरदार होती हैं. इन्हें लेना बहुत आसान होता है. इन्हें देने के लिए ख़ास ट्रेनिंग देने की ज़रुरत नहीं पड़ती.
कुछ वैक्सीन्स नाक के ज़रिए स्प्रे के रूप में ली जाती हैं. जैसे कोविड-19 और इंफ्लूएंज़ा की वैक्सीन. ये नेज़ल स्प्रे के रूप में भी मौजूद हैं. ये इम्यून सिस्टम को जल्दी और प्रभावी तरीके से उत्तेजित करती हैं. नाक के स्प्रे यानी नेज़ल स्प्रे के रूप में दी जाने वाली वैक्सीन सीधे सांस के रास्ते शरीर में पहुंचती हैं. ये रेस्पिरेटरी सिस्टम को वायरस से लड़ने के लिए खास तौर पर तैयार करती हैं. रेस्पिरेटरी सिस्टम यानी वो अंग, जो सांस लेने और छोड़ने में मदद करते हैं. नेज़ल स्प्रे लेने में कोई दर्द नहीं होता. इसे बहुत आसानी से लिया जा सकता है.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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