आपको पता है, इंसान का दिल जिंदगीभर में लगभग 250 करोड़ बार धड़कता है. लेकिन दिल तभी सिर्फ ठीक से काम कर पाता है. जब आप चलते-फिरते रहते हैं.
दिल को करोड़ों बार धड़काना है तो ये काम जरूर कर लें
जैसे-जैसे आप एक्सरसाइज़ करते हैं, दिल की बीमारियों का रिस्क घटने लगता है. हफ्ते में 150 मिनट मॉडरेट इंटेंसिटी एक्सरसाइज़ करने पर दिल की बीमारियों का रिस्क सबसे कम होता है.


देखिए, आपका दिल कार के इंजन की तरह है. अगर कार महीनों तक पार्किंग में ऐसे ही खड़ी रहेगी तो क्या होगा? उस पर धूल जम जाएगी. इंजन ऑइल जम जाएगा. इंजन कमज़ोर हो जाएगा. वहीं, अगर आप कार को पार्किंग से निकालकर चलाते रहेंगे. भले ही दूर नहीं, आसपास ही. तब गाड़ी का इंजन ख़राब नहीं होगा. गाड़ी स्मूद चलेगी. कोई दिक्कत नहीं आएगी. जिस दिन आपको लॉन्ग ड्राइव पर जाना होगा, आपकी गाड़ी बढ़िया चलेगी, बिना किसी दिक्कत के.
यही फॉर्मूला लागू होता है आपके दिल पर. दिल भी कार के इंजन की तरह ही काम करता है. मूवमेंट, चलना-फिरना, एक्सरसाइज़ दिल के लिए इंजन ऑयल की तरह हैं. बिना इनके दिल लंबा चल नहीं पाएगा.
आजकल हम लोगों की लाइफस्टाइल बहुत सुस्त हो गई है. घंटों ऑफिस में कंप्यूटर स्क्रीन के सामने बैठे रहते हैं. ट्रैफिक में फंसे रहते हैं. घर आए तो टीवी या मोबाइल लेकर बैठ जाते हैं. ये सारी आदतें हमारे दिल को कमज़ोर बना रही हैं. उसको नुकसान पहुंचा रही हैं. लेकिन आपके लिए एक गुड न्यूज़ है. 'मूवमेंट इज़ मेडिसिन'. यानी चलना-फिरना. एक्सरसाइज़ करना ही दिल की दवा है.
रोज़ एक्टिविटी करने से ब्लड प्रेशर कम होता है. कोलेस्ट्रॉल सुधरता है. शुगर कंट्रोल में रहती है. स्ट्रेस कम होता है. यहां तक कि दिल की बीमारियां तक कंट्रोल हो सकती हैं.
बिना खर्चा, बिना साइड इफ़ेक्ट. पर कैसे? आज यही जानेंगे. समझेंगे, एक्सरसाइज़ कैसे आपके दिल को हार्ट अटैक और बीमारियों के खतरे से बचाती है. दिल को सेहतमंद रखने के लिए कौन-सी एक्सरसाइज़ करनी चाहिए. अगर एक्सरसाइज़ करने का टाइम नहीं है तो क्या करें. इन सारे सवालों के जवाब दिए तीन डॉक्टर्स ने.
डॉक्टर विकास मिश्रा, प्रोफेसर एंड कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट, एनएससीबी मेडिकल कॉलेज एंड सर जेजे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, मुंबई.
डॉक्टर जावेद अली खान, सीनियर कंसल्टेंट, कार्डियोलॉजिस्ट, रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल्स, रायपुर.
डॉक्टर आनंद अग्रवाल, पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर, कार्डियोलॉजी, जेएलएन मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, अजमेर.

घंटों बैठे रहने से दिल को क्या नुकसान पहुंचता है?
जैसे सिगरेट पीने से दिल की बीमारियां होती हैं. वैसे ही घंटों बैठे रहने से दिल की बीमारियां होती हैं. डायबिटीज़ से भी दिल की बीमारियां होती हैं.
घंटों बैठे रहने और सुस्त लाइफस्टाइल से डायबिटीज़ का रिस्क बढ़ जाता है. मोटापा बढ़ता है. कुछ तरह के कैंसर का रिस्क भी बढ़ता है. ब्लड प्रेशर बढ़ने का जोखिम रहता है. लंबे वक्त तक बैठे रहने से दिल की बीमारियों के रिस्क फैक्टर और मज़बूत हो जाते हैं. इसलिए कहा जा रहा है कि Sitting Is The New Smoking.
स्टडीज़ में देखा गया है कि अगर कोई व्यक्ति 6-8 घंटे से ज़्यादा बैठा रहता है, तो दिल की बीमारियां होने की दर भी बढ़ जाती है. इसलिए हर आधे घंटे में चलते-फिरते रहना चाहिए. थोड़ा चलने के बाद फिर आकर बैठ जाइए. इससे दिल की बीमारियों का रिस्क काफी कम हो जाता है. वहीं अगर आप 8 घंटे से ज़्यादा बैठे रहते हैं और उसके बाद एक्सरसाइज़ कर रहे हैं. तो 8 घंटे बैठने से जिन बीमारियों का रिस्क बढ़ा है, वो कम नहीं होता. इसलिए स्टडीज़ कहती हैं कि हर आधे घंटे बाद थोड़ा चलना-फिरना बहुत ज़रूरी है.
दिल को सेहतमंद रखने के लिए कौन-सी एक्सरसाइज़ करें?
एक्सरसाइज़ करना सेहत के लिए बेहद ज़रूरी है. ऐसी एक्सरसाइज़ जिसमें पूरे शरीर की मूवमेंट होती है. जैसे चलना, जॉगिंग और रनिंग वगैरह. एरोबिक एक्सरसाइज़ करनी चाहिए. वेट लिफ्टिंग, पुशअप जैसी एक्सरसाइज़ करने से बचें. देखा गया है कि इनसे ब्लड प्रेशर काफी ज़्यादा बढ़ जाता है. आप डांसिंग, जॉगिंग, ब्रिस्क वॉकिंग और साइकलिंग वगैरह करें.
ACC AHA की सिफारिश है कि रोज़ 40-45 मिनट एक्सरसाइज़ करनी चाहिए. हफ्ते में जितने ज़्यादा दिन इन्हें कर सकते हैं, ज़रूर करें. अगर सातों दिन कर सकते हैं, तो बहुत अच्छा है. अगर सातों दिन संभव न हो, तो कम से कम 4-6 दिन एक्सरसाइज़ करें. लेकिन एक्सरसाइज़ करना है बहुत ज़रूरी.
क्या एक्सरसाइज़ से ब्लड प्रेशर कंट्रोल हो सकता है?
- हां, एक्सरसाइज़ करने से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या कम होती है.
- सिस्टोलिक बीपी (ऊपर वाला) लगभग 8-10 mmHg तक कम हो सकता है.
- डायस्टोलिक बीपी (नीचे वाला) लगभग 5-8 mmHg तक कम होता है.
- खासकर एरोबिक एक्सरसाइज़ जैसे चलना, ब्रिस्क वॉकिंग, साइकिल चलाना, तैरना.
- इन सबसे लंबे समय में ब्लड प्रेशर कम करने में मदद मिलती है.
- रेगुलर एक्सरसाइज़ करने से बीपी लगभग 8-10 mmHg तक घटाया जा सकता है.

एक्सरसाइज़ से दिल की सेहत कैसे सुधरती है?
अगर लाइफस्टाइल सुस्त है, तो दिल की बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है. जैसे-जैसे आप एक्सरसाइज़ करते हैं, ये रिस्क घटने लगता है. हफ्ते में 150 मिनट मॉडरेट इंटेंसिटी एक्सरसाइज़ करने पर दिल की बीमारियों का रिस्क सबसे कम होता है. लेकिन जब बहुत ज़्यादा हाई-इंटेंसिटी एक्सरसाइज़ की जाती हैं. तब दिल की बीमारियों या अचानक हार्ट अटैक आने का रिस्क धीरे-धीरे बढ़ने लगता है.
ऐसा होने की कई वजहें हैं. मॉडरेट इंटेंसिटी एक्सरसाइज़ कई चीज़ों को कंट्रोल करती हैं. जैसे ये ब्लड प्रेशर घटाती हैं, मोटापा कम करती हैं. ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रखती हैं. ये दिल की सेहत सुधारती है.
घर के काम करते हैं तो एक्सरसाइज़ की ज़रूरत नहीं?
जो एक्सरसाइज़ रिकमेंड की जाती हैं, जैसे टहलना, जॉगिंग करना या तैरना वगैरह. ये कैलकुलेटेड होती हैं यानी पता रहता है कि आपने 40-45 मिनट वॉक की है. घर का काम एक्सरसाइज़ तो है, पर उसे कैलकुलेट नहीं किया जा सकता. घर के काम भी जल्दी-जल्दी नहीं होते. एक्सरसाइज़ को लेकर रिकमेंडेशन में स्लो वॉकिंग शामिल नहीं है (यानी धीरे-धीरे चलना). ब्रिस्क वॉकिंग करनी चाहिए यानी तेज़ कदमों से चलना. आपकी स्पीड धीमी नहीं तेज़ होनी चाहिए. घर का काम आराम-आराम से होता है. वो ब्रिस्क वॉकिंग नहीं होती.
घर के काम से हुई एक्सरसाइज़ को कैलकुलेट नहीं कर सकते, न ही वो पर्याप्त होती है. इसलिए आपको अपने लिए वक्त निकालना है. अगर बाहर वॉक पर नहीं जा सकते, तो घर पर ट्रेडमिल ले आइए. जितनी देर चल सकते हैं, उस पर चलिए. पूरे दिन में जब भी वक्त मिले, तब करिए. आप ध्यान लगा सकते हैं और योग भी कर सकते हैं. ध्यान रखिए, सिर्फ घर का काम करना पर्याप्त नहीं होता.
एक्सरसाइज़ से कोलेस्ट्रॉल कम हो सकता है?
कोलेस्ट्रॉल हार्ट अटैक का एक बड़ा कारण माना जाता है. शरीर में कई तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैं. इनमें गुड कोलेस्ट्रॉल होता है, जिसे HDL कहते हैं. माना गया है कि एक्सरसाइज़ करने से 5-7% HDL बढ़ता है. ये अच्छा कोलेस्ट्रॉल नसों को साफ करता है. ये नसों में जमा खराब कोलेस्ट्रॉल को साफ करने का काम करता है. एक्सरसाइज़ करने से गुड कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है. अभी तक जो दवाएं हैं, उसमें HDL बढ़ाने वाली दवाएं उतनी असरदार नहीं हैं. इसलिए एक्सरसाइज़ ही सबसे बेस्ट है
दूसरा, टोटल कोलेस्ट्रॉल और LDL कोलेस्ट्रॉल होता है. ये बैड कोलेस्ट्रॉल होता है. अगर ये नसों में जम जाए, तो ब्लॉकेज हो सकता है. ऐसा देखा गया है कि एक्सरसाइज़ करने से ये कोलेस्ट्रॉल 5-10% कम हो जाता है. इसलिए एरोबिक एक्सरसाइज़ करना, जैसे तेज़ चलना, स्विमिंग, साइकलिंग या टेनिस वगैरह खेलना ज़रूरी है. इन सबसे ये कोलेस्ट्रॉल कम हो जाता है.
तीसरा, ट्राइग्लिसराइड नाम का कोलेस्ट्रॉल होता है. एक्सरसाइज़ करने से इस कोलेस्ट्रॉल पर बहुत ज़्यादा असर पड़ता है. कुछ स्टडीज़ में देखा गया है कि एक्सरसाइज़ करने से ये कोलेस्ट्रॉल 10-20% तक कम हो सकता है. इसलिए एक्सरसाइज़ से हर तरह के कोलेस्ट्रॉल पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है.
ज़रूरी ये है कि कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए एक्सरसाइज़ प्रभावी रूप से करें. हर हफ्ते 150 मिनट मॉडरेट इंटेंसिटी एक्टिविटी करें. तेज़ कदमों से चलें या फिर जॉगिंग, साइकलिंग, स्विमिंग करें. आप मॉडरेट एक्टिविटी वाला कोई गेम खेल सकते हैं. ये सब करना बहुत ज़रूरी है. हम लोग घर के अंदर भी चलते-फिरते हैं. घर की इस एक्टिविटी के अलावा एक्सरसाइज़ करने की कोशिश करें. अगर एक्सरसाइज़ करने का समय नहीं मिलता, तो घर के कमरे में ही हर घंटे 5 मिनट तेज़ कदमों से चलें. तब एक्सरसाइज़ का कोटा पूरा हो सकता है, खासकर बुजु़र्गों में इसने अच्छा काम किया है. घर के बरामदे या कमरे में ही तेज़ चलने से एक एक्सरसाइज़ बढ़ जाती है.

एक्सरसाइज़ से ब्लड शुगर कंट्रोल की जा सकती है?
हां, रेगुलर एक्सरसाइज़ करने से ब्लड शुगर कम होती है. डाइट में सुधार के बाद, शुगर कंट्रोल करने का पहला स्टेप एक्सरसाइज़ ही माना जाता है. शुगर कम करने के लिए दवाइयां देने से पहले एक्सरसाइज़ करने को कहा जाता है. एक्सरसाइज़ कई तरीकों से शुगर कम करने में मदद करती है. जैसे रोज़ एक्सरसाइज़ करने से इंसुलिन सेंसेटिविटी बढ़ती है. खून में मौजूद ग्लूकोज़ सेल्स के अंदर एब्ज़ॉर्व हो जाता है.
इसी तरह, मोटापा कम होता है. पैरों के मसल्स में कुछ एंज़ाइम मौजूद होते हैं, जैसे प्रोटीन लाइपेस. ये शुगर और फैट सेल्स को तोड़ते हैं और शुगर को सेल्स के अंदर पुश करते हैं. इससे ब्लड शुगर लेवल निश्चित तौर पर घटता है. साथ ही, ये डायबिटीज़ की अलग-अलग जटिलताओं को कम करने में मदद करता है.
एक्सरसाइज़ के लिए वक़्त नहीं, फिर क्या करें?
- एक्सरसाइज़ करना हर किसी के लिए ज़रूरी है.
- रोज़ 40-45 मिनट एक्सरसाइज़ करनी चाहिए, लेकिन ये सिर्फ सलाह है.
- अगर आपके पास कम समय है, तो 15, 20 या 25 मिनट जितनी हो सके, उतनी देर करें.
- अगर आप जिम या पार्क में जा सकते हैं, वॉकिंग-जॉगिंग कर सकते हैं, तो ये बहुत अच्छा है.
- अगर बाहर नहीं जा सकते, तो घर पर ट्रेडमिल ले लीजिए और उस पर दौड़िए.
- ये एक्सरसाइज़ करने का आसान तरीका है.
- तरह-तरह के पार्क बने हुए हैं, जहां आप टहल सकते हैं.
- आप जिम जा सकते हैं या घर पर ट्रेडमिल ला सकते हैं.
- पर ये जान लीजिए कि एक्सरसाइज़ का कोई विकल्प नहीं है.
- बैठे-बैठे एक्सरसाइज़ नहीं की जा सकती.
- लंबे समय तक बैठे रहना अपने आप में एक बड़ा रिस्क फैक्टर है.
- मोटापा भी एक बड़ा रिस्क फैक्टर है.
- हाइपरटेंशन और डायबिटीज़ जैसी बीमारियों को कंट्रोल करने का सबसे सस्ता, सुंदर और टिकाऊ उपाय है रेगुलर वॉक और एक्सरसाइज़.
दिल के मरीज़ एक्सरसाइज़ कर सकते हैं?
हार्ट अटैक के बाद बहुत से मरीज़ बिस्तर पकड़ लेते हैं. हार्ट अटैक आने की वजह से सालों तक काम करना बंद कर देते हैं. ये सोचते हैं कि अब उन्हें कोई एक्टिविटी नहीं करनी चाहिए. पर ये सिर्फ मिथक है. असल में हार्ट अटैक के बाद भी मरीज़ एक्सरसाइज़ कर सकते हैं और करनी चाहिए. बस एक्सरसाइज़ की शुरुआत धीरे-धीरे करनी होती है. हार्ट अटैक आने के बाद शुरुआती 15 दिन हल्का रेस्ट करें. फिर एक-दो हफ्तों बाद धीरे-धीरे एक्टिविटी बढ़ाएं. 2 से 6 महीने में ज़्यादातर मरीज़ नॉर्मल एक्टिविटी तक पहंच सकते हैं, बशर्ते हार्ट में कोई और बड़ी दिक़्क़त न हो. कितनी एक्सरसाइज़ करनी है, ये हर मरीज़ के दिल की स्थिति पर निर्भर करता है.
अगर दिल नॉर्मल काम कर रहा है, तो मरीज़ अपनी रोज़मर्रा की एक्टिविटी और नॉर्मल एक्सरसाइज़ कर सकते हैं. लेकिन अगर दिल बहुत कमज़ोर हो गया है, तो फिर बहुत ज़्यादा हेवी एक्सरसाइज़ नहीं कर सकते. एक्सरसाइज़ बहुत लिमिट में करानी पड़ती है. अगर किसी की दो-तीन नसों में ब्लॉकेज थे. एक ब्लॉकेज खोल दिया गया, बाकी दो नसों में अभी भी है. तो उस मरीज़ को एक्सरसाइज़ लिमिट करने के लिए कहा जाता है. ये डॉक्टर तय करते हैं कि हार्ट अटैक के बाद व्यक्ति कितनी एक्सरसाइज़ कर सकता है. ऐसा वो दिल के काम करने की क्षमता और बाकी नसों की ब्लॉकेज देखने के बाद करते हैं. अगर हार्ट अटैक के बाद किसी का दिल बराबर काम करने लग गया है. तब वो लोग अपनी नॉर्मल एक्टिविटी शुरू कर सकते हैं. एक्सरसाइज़ भी नॉर्मली कर सकते हैं.

एक्सरसाइज़ करते हुए किन बातों का ध्यान रखें?
एक्सरसाइज़ ज़रूरी है, लेकिन उससे पहले कुछ और चीज़ों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है. जैसे कौन-सी एक्सरसाइज़ की जा रही है, इसे कौन कर रहा है और किस माहौल में कर रहा है. यानी एक्सरसाइज़ करने वाला एरोबिक्स, वेट ट्रेनिंग या रजिस्टिव एक्सरसाइज़ कर रहा है. एक्सरसाइज़ करने वाले को पहले से दिल की बीमारी है या नहीं है. उसका माहौल कैसा है यानी बहुत गर्मी है, तापमान हाई है, बहुत पसीना निकल रहा है या मरीज़ के आसपास ट्रेनर है या नहीं. इन फैक्टर्स का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है.
जिम में हार्ट अटैक ज़्यादातर उन्हीं को आता है, जिन्हें पहले से या पैदायशी कोई दिल की बीमारी है. जैसे हाइपरट्रॉफिक कार्डियोमायोपैथी. इसमें दिल की परत काफी मोटी होती है. अगर दिल की नसों में कोई गड़बड़ी है, तो एक्सरसाइज़ करने से उस पर दबाव पड़ सकता है. अगर किसी के परिवार में दिल की बीमारियों या डायबिटीज़ की हिस्ट्री है. तो ऐसे मरीज़ों को एक्सरसाइज़ करते हुए बहुत सतर्क रहना चाहिए. उन्हें बहुत हाई इंटेंसिटी एक्सरसाइज़ करने से बचना चाहिए. मॉडरेट इंटेंसिटी एक्सरसाइज़ 150 मिनट प्रति हफ्ते के हिसाब से करनी चाहिए. बहुत इंटेंसिव एक्सरसाइज़ से बीमारियों का रिस्क धीरे-धीरे बढ़ता रहता है.
एक्सरसाइज़ हमेशा ट्रेनर की देखरेख में ही करें, चाहे वो रोज़ वाली एक्सरसाइज़ हो या कोई इंटेंसिटी वाली. एक्सरसाइज़ वाली जगह वेंटिलेटेड होनी चाहिए. अगर एक्सरसाइज़ करते हुए सीने में दर्द हो. सीने या जबड़े में कोई दिक्कत लगे. बहुत ज़्यादा पसीना निकल रहा हो. चक्कर आ रहे हों, तो तुरंत एक्सरसाइज़ रोक दें और आराम करें.
एक्सरसाइज़ से दिल की बीमारी ठीक हो सकती है?
एक्सरसाइज़ बचाव और इलाज, दोनों जगह काम करता है. सबसे ज़रूरी है बचाव ताकि बीमारी हो ही न. इसके लिए एक्सरसाइज़ की ज़्यादा अहमियत है. दूसरा, अगर किसी को दिल की कोई बीमारी हो चुकी है. तो वो एक्सरसाइज़ करने से रिवर्स नहीं होगी. एक्सरसाइज़ सिर्फ आपको सपोर्ट करती है. अगर किसी को दिल की कोई बीमारी होती है. तो वो डॉक्टर को दिखाकर दवा ले सकता है. एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्टी या बाईपास करा सकता है.
दिल की बीमारी होने पर दवा लेना ज़रूरी है. बाकी सारी चीज़ें सपोर्टिव हैं. इन सपोर्टिव चीज़ों में एक्सरसाइज़ भी आती है. खाना-पीना और लाइफस्टाइल सुधारना भी आता है. ये सारी चीज़ें या तो दिल की बीमारी दोबारा नहीं होने देंगी, या उनमें कुछ मदद करेंगी. लेकिन जिन्हें दिल की बीमारी हो चुकी है या स्टेंट, बाईपास सर्जरी हुई है. हार्ट अटैक हो चुका है. तब उनके लिए दवाइयां लेना सबसे ज़रूरी है. साथ ही, एक्सरसाइज़ करना, मोटापा कम करना, टहलना, खाने-पीने में बदलाव और सिगरेट न पीना भी ज़रूरी है.
दिल की सेहत सुधारने की बेहतरीन टिप्स
अगर किसी तरह की लत है, तो वो छोड़नी पड़ेगी. सिगरेट पीने से दिल की बीमारियों का खतरा 50% तक बढ़ जाता है. सिगरेट या तंबाकू की लत है, तो उसे तुरंत छोड़ दें. ज़्यादा मात्रा में शराब पीने से दिल कमज़ोर हो जाता है. इससे एल्कोहॉलिक कार्डियोमायोपैथी नाम की बीमारी हो सकती है. कभी-कभी ज़्यादा शराब लेने के बाद हॉलीडे हार्ट सिंड्रोम भी होता है. इसमें हार्टबीट अचानक तेज़ हो जाती है. तो पहली टिप यही है कि लत छोड़ दें.
दूसरी टिप- फिज़िकल एक्टिविटी करना ज़रूरी है. रोज़ थोड़ी देर चलें. आज की युवा पीढ़ी चलने-फिरने में यकीन नहीं करती. साइकिल चलाना तो बहुत दूर की बात है. युवा थोड़ी दूर चलने के लिए भी गाड़ी का सहारा लेते हैं. अगर आप बुज़ुर्ग हैं, तो योग, मेडिटेशन या हल्की-फुल्की एक्सरसाइज़ घर पर कर सकते हैं.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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