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डायबिटीज पेशंट के लिए अच्छी खबर, Ozempic दवा को भारत में मंजूरी मिली

ओज़ेम्पिक का इंजेक्शन तीन डोज़ में मिलेगा. 0.25Mg, 0.5Mg और 1Mg. डायबिटीज़ के किस मरीज़ को कितनी डोज़ का इंजेक्शन लेना होगा, ये डॉक्टर तक करेंगे. इसे सिर्फ हफ्ते में एक बार ही लेना होगा.

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ओज़ेम्पिक को डेनमार्क की दवा कंपनी ‘नोवो नॉर्डिस्क’ बनाती है

ओज़ेम्पिक के चर्चे दुनियाभर में हैं. आपने भी सोशल मीडिया पर इसके बारे में खूब सुना होगा. वैसे तो ये डायबिटीज़ की दवा है, पर इसका इस्तेमाल ओबेसिटी यानी मोटापा कम करने के लिए भी किया जाता है.

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दुनियाभर के सेलेब्रिटीज़ इस दवा का इस्तेमाल करके अपना वज़न घटा चुके हैं. हॉलीवुड के कई सेलेब्स ने इस पर खुलकर बात भी की है. पब्लिकली बताया कि उन्होंने ओज़ेम्पिक से वेट लॉस किया है. जैसे ओपरा विनफ्रे और एमी शूमर. लिस्ट बहुत लंबी है. वैसे तो बॉलीवुड में भी ओज़ेम्पिक का बोल-बाला है, पर यहां कोई खुलकर कुबूलता नहीं है.

ओज़ेम्पिक अब तक भारत में नहीं बिकती थी. लेकिन 26 सितंबर 2025 को CDSCO ने ओज़ेम्पिक को भारत में इस्तेमाल के लिए मंज़ूरी दे दी है.

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CDSCO यानी Central Drugs Standard Control Organisation. ये भारत में दवाओं को जांचने और मंज़ूरी देने वाली संस्था है. एक बार ये किसी दवा को ‘ओके’ कर दे, तो वो मार्केट में मिलने लगती है.

ओज़ेम्पिक को अभी डायबिटीज़ की दवा के तौर पर ही मंज़ूरी मिली है. मोटापे की दवा के तौर पर नहीं. इसे डाइट और एक्सरसाइज़ के साथ-साथ लिया जा सकता है. यानी अगर डायबिटीज़ के मरीज़ हैं. तो सिर्फ ओज़ेम्पिक का इंजेक्शन लेने से काम नहीं चलेगा. साथ में एक्सरसाइज़ भी करनी पड़ेगी और डाइट भी सुधारनी होगी.

ओज़ेम्पिक का इंजेक्शन तीन डोज़ में मिलेगा. 0.25Mg, 0.5Mg और 1Mg. डायबिटीज़ के किस मरीज़ को कितनी डोज़ का इंजेक्शन लेना होगा, ये डॉक्टर तय करेंगे. इसे सिर्फ हफ्ते में एक बार ही लिया जाएगा. ये इंजेक्शन देश में कितने तक का मिलेगा, ये अभी तक साफ़ नहीं है. 

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नोवो नॉर्डिस्क इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर विक्रांत श्रोत्रिया

ओज़ेम्पिक को डेनमार्क की दवा कंपनी ‘नोवो नॉर्डिस्क’ बनाती है. इंडिया टुडे से एक्सक्लूसिव बातचीत में नोवो नॉर्डिस्क इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर विक्रांत श्रोत्रिया ने कहा कि कंपनी भारत में ओज़ेम्पिक लॉन्च करने को तैयार है. इससे देश में टाइप-2 डायबिटीज़ के मरीज़ों को फायदा पहुंचेगा. क्लीनिकल ट्रायल्स में देखा गया है कि ओज़ेम्पिक से वज़न भी कम होता है. साथ ही, दिल और किडनी से जुड़े रिस्क घटते हैं. यानी इसे लेने से मरीज़ को कई फायदे पहुंचते हैं.

बिज़नेस टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 72.5 लाख से ज़्यादा लोग ओज़ेम्पिक लेते हैं. इसे सबसे पहले साल 2017 में अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानी FDA ने टाइप-2 डायबिटीज़ के लिए मंज़ूरी दी थी. 

ओज़ेम्पिक कैसे काम करती है? ये डायबिटीज और ओबेसिटी को कंट्रोल करने में इतनी असरदार क्यों हैं? ये हमने पूछा पीएसआरआई हॉस्पिटल के एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबेटोलॉजी डिपार्टमेंट में सीनियर कंसल्टेंट, डॉक्टर हिमिका चावला से.

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डॉ. हिमिका चावला, सीनियर कंसल्टेंट, एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबेटोलॉजी, पीएसआरआई हॉस्पिटल

डॉक्टर हिमिका कहती हैं कि ओज़ेम्पिक एक ब्रांड का नाम है. जो दवा है, उसे सेमाग्लूटाइड कहते हैं. ये GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट दवाओं के ग्रुप में आती है. GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट वो दवाएं होती हैं, जो टाइप-2 डायबिटीज़ के इलाज में काम आती हैं. ये दवाएं GLP-1 नाम के हॉर्मोन की नकल उतारती हैं. GLP-1 यानी ग्लूकागन-लाइक पेप्टाइड-1 हॉर्मोन. ये एक इनक्रेटिन हॉर्मोन है. इनक्रेटिन हॉर्मोन, पाचन से जुड़ा हॉर्मोन है. खाना खाने के बाद, ये खून में शुगर का लेवल कंट्रोल करने में मदद करता है. दो मेन इनक्रेटिन हॉर्मोन होते हैं. पहला, GLP-1 और दूसरा GIP.

GLP-1 हॉर्मोन छोटी आंत और दिमाग के पीछे से निकलता है. ये सिर्फ ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल करने में मदद नहीं करता, बल्कि पेट को भरा हुआ महसूस कराता है. क्रेविंग्स कम होती हैं. इससे व्यक्ति कम खाता है और वेट लॉस में मदद मिलती है. ऐसा देखा गया है कि इसे लेने के बाद खाने का इनटेक एक-तिहाई तक कम हो जाता है.

देखिए, हमारे शरीर में एक अंग है, पैंक्रियाज़. ये पेट के पीछे और रीढ़ की हड्डी के पास होता है. पैनक्रियाज़ इंसुलिन नाम का हॉर्मोन बनाता है. इंसुलिन का काम है, ब्लड शुगर को कंट्रोल करना. अब टाइप-2 डायबिटीज़ के मरीज़ों में या तो इंसुलिन पर्याप्त मात्रा में नहीं बनता. या फिर शरीर के सेल्स इंसुलिन का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते. नतीजा? ब्लड शुगर लेवल बढ़ा रहता है. सेमाग्लूटाइड, पैंक्रियाज़ को ब्लड शुगर बढ़ने पर, इंसुलिन बनाने के लिए उत्तेजित करता है. ये असर ग्लूकोज़-डिपेंडेंट होता है, यानी लो ब्लड शुगर होने पर इंसुलिन हॉर्मोन नहीं बढ़ता.

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ओज़ेम्पिक को अभी डायबिटीज़ की दवा के तौर पर मंज़ूरी मिली है, मोटापे की दवा के तौर पर नहीं (फोटो: Freepik)

इसके अलावा, शरीर में ग्लूकागन नाम का हॉर्मोन होता है. ये लिवर को ग्लूकोज़ रिलीज़ करने का सिग्नल देता है और ब्लड शुगर बढ़ाता है. लेकिन, सेमाग्लूटाइड ग्लूकागन का लेवल भी घटाती है. इससे ब्लड शुगर कंट्रोल में रहती है. भूख कम लगती है. पेट लंबे समय तक भरा हुआ महसूस होता है और वज़न घटाने में मदद मिलती है.

हमारे शरीर में नैचुरली जो GLP-1 बनता है, वो खाना खाने के बाद, कुछ ही मिनटों तक काम करता है. ज़्यादा से ज़्यादा आधा घंटा. पर जब इसी GLP-1 से जुड़ी दवाएं बनाई जाती हैं. जिन्हें GLP-1 एनालॉग्स या GLP-1 रिसेप्टर एगोनिस्ट कहते हैं. तो ये लगातार असर करती हैं. जैसे सेमाग्लूटाइड. ये GLP-1 हॉर्मोन की नकल उतारती हैं. इससे शरीर को लगता है, जैसे असली GLP-1 हॉर्मोन रिलीज़ हो रहा है.

ऐसा करके ये दवाएं डायबिटीज़ के मरीज़ों में दिनभर ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रखती हैं. खासकर खाने के बाद. वहीं जो मोटापे से परेशान हैं, उनमें ये दिमाग को सिग्नल भेजती हैं कि अभी भूख नहीं लग रही. इससे व्यक्ति अपने खाने पर कंट्रोल रखता है. ज़्यादा नहीं खाता. ये दवा शरीर की अंदरूनी सूजन घटाने में मदद करती हैं.

एक चीज़ और. जब भी ओज़ेम्पिक इंडिया में बिकना शुरू होगी, उसे बिना डॉक्टर के पर्चे के नहीं खरीदा जा सकेगा. क्योंकि, इसके साइड इफेक्ट्स भी देखे गए हैं. जैसे उबकाई-उल्टी, दस्त, कब्ज़, ब्लोटिंग और पेट दर्द. अगर इंजेक्शन का ज़्यादा डोज़ ले लिया जाए, तो गॉल ब्लैडर यानी पित्त की थैली में पथरी हो सकती है. पैंक्रियाटाइटिस यानी पैनक्रियाज़ में सूजन आ सकती है. कुछ शोधों में देखा गया है कि इससे आंखों की रोशनी भी जा सकती है. लेकिन ऐसा होना बहुत रेयर है. इसलिए डॉक्टर के कहे बिना ओज़ेम्पिक या इसके जैसी और दवाओं को हरगिज़ नहीं लेना चाहिए.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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