स्किन गोरा करने की चाह. इस चाह में कई बार लोग ऐसे प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने लगते हैं, जो उनकी स्किन के लिए सेफ नहीं हैं. मार्केट में ऐसी कई क्रीम्स आती हैं, जो स्किन को लाइट बनाने का दावा करती हैं. इनका खूब बढ़-चढ़कर प्रचार भी होता है. लेकिन, कोई क्रीम स्किन को गोरा कैसे कर सकती है. क्या इन क्रीम्स को लगाने का कोई साइफ इफेक्ट भी है. और, सबसे ज़रूरी सवाल… स्किन को उसका रंग मिलता कैसे है. ये सब हमने पूछा डॉक्टर चांदनी जैन गुप्ता से.
स्किन को उसका रंग कैसे मिलता है?डॉ. चांदनी जैन गुप्ता, डर्मेटोलॉजिस्ट, एलांटिस हेल्थकेयर, नई दिल्ली
हमारे शरीर में मेलानोसाइट्स नाम के सेल्स होते हैं. इन मेलानोसाइट्स में मेलेनिन नाम का पिगमेंट (रंग देने वाला तत्व) बनता है. ये मेलेनिन मेलानोसोम (मेलानोसोम एक प्रकार का कोशिकीय अंग है) में इकट्ठा होता है. यानी एक सेल में मेलानोसोम होता है, जिसमें मेलेनिन पाया जाता है. जिस व्यक्ति में ज़्यादा मेलेनिन बनता है, उसकी स्किन का रंग गहरा होता है. वहीं जिस व्यक्ति में कम मेलेनिन बनता है, उसकी स्किन लाइट (हल्के रंग की) होती है. स्किन का रंग कुछ और वजहों पर भी निर्भर करता है. कुछ लोगों में मेलानोसोम की संख्या ज़्यादा होती है. वहीं कुछ लोगों में मेलानोसोम की संख्या कम होती है. अगर संख्या ज़्यादा है तो स्किन गहरी होगी और अगर संख्या कम है तो स्किन हल्के रंग की होगी. स्किन का रंग तय करने के लिए एक स्केल भी बनाया गया है. इसे फिट्ज़पैक्ट्रिक स्किन टाइप स्केल कहते हैं. ये स्किन के रंग को 6 टाइप में बांटता है. इसी के आधार पर, डॉक्टर्स अलग-अलग स्किन कलर्स में अंतर कर पाते हैं.
क्या नेचुरल तरीकों से स्किन में निखार लाया जा सकता है?
- एलोवरा या रेड एलोवेरा से स्किन में निखार आ सकता है
- इनमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जिससे स्किन के रंग में निखार आ सकता है
स्किन लाइटनिंग क्रीम्स को 3 महीने से ज़्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए (Credit: Getty Images)
स्किन लाइट करने वाली क्रीम्स कैसे काम करती हैं?
पहले ये जानना ज़रूरी है कि स्किन लाइटनिंग क्रीम में कौन-से तत्व होते हैं. इनमें ऐसे कई तत्व होते हैं, जिनसे स्किन हल्के रंग की हो जाती है. जैसे हाइड्रोक्विनोन, आर्बुटिन और लिकोरिस एक्सट्रैक्ट. हर क्रीम में अलग-अलग तत्व होते हैं, इसलिए ये जानना ज़रूरी है कि आपकी क्रीम में क्या मिला है. जिस प्राकृतिक प्रक्रिया से स्किन को उसका रंग मिलता है, उसमें एक ज़रूरी एंजाइम होता है, जिसे टायरोसिनेज़ कहते हैं. ज़्यादातर क्रीम इसी टायरोसिनेज़ को रोकने का काम करती हैं. इससे पिगमेंट (मेलेनिन) कम पैदा होता है. या फिर जब मेलानोसोम (जिसमें मेलेनिन होता है) एक सेल से दूसरे सेल में जाते हैं तो कुछ क्रीम इस ट्रांसफर की प्रक्रिया को रोक देती हैं. इससे मेलेनिन कम बनता है. हर क्रीम अलग तरीके से काम करती है. इनके काम करने का कोई एक तरीका नहीं है.
इन क्रीम्स को इस्तेमाल करने के साइड इफ़ेक्ट?
इन क्रीम्स के कुछ फायदे हैं और कुछ नुकसान भी. जैसे स्किन थिनिंग हो सकती है (स्किन का पतला होना). ज़्यादा इस्तेमाल से स्किन डार्क होने का ख़तरा रहता है. लाइटनिंग क्रीम को 3 महीने से ज़्यादा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. अगर लाइटनिंग क्रीम को 3 महीने से ज़्यादा इस्तेमाल किया जाए, तो साइड इफ़ेक्ट्स हो सकते हैं. स्किन पर चकत्ते पड़ सकते हैं, एलर्जी हो सकती है. हाइड्रोक्विनोन के अधिक इस्तेमाल से ओक्रोनोसिस हो सकता है, जिसमें स्किन डार्क पड़ जाती है. स्किन फोटोसेंसिटिव हो सकती है, यानी सूरज की रोशनी से गंभीर एलर्जी होने का चांस होता है.
देखिए, हम सबकी स्किन का रंग अलग-अलग होता है. ये कुदरती है. आपकी कोशिश होनी चाहिए स्किन को हेल्दी रखना. उसका रंग बदलना नहीं. सोशल मीडिया और अलग-अलग कंपनी के दावों से प्रभावित होकर ऐसा कोई प्रोडक्ट इस्तेमाल न करें, जो आपका स्किन का रंग बदलने का दावा करता है. ये बहुत नुकसानदेह है. आपका नेचुरल कम्पेक्शन जैसा है, उसे अपनाइए.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
वीडियो: सेहतः गोरे होने के लिए स्किन ब्राइटनिंग क्रीम्स लगा रहे? पहले डॉक्टर की ये बातें सुन लें