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स्मॉग, प्रदूषण से फेफड़ों का ऐसा हाल, कहीं हमेशा के लिए हो ना जाएग अस्थमा?

हमारे देश में हर साल 17 लाख जानें सिर्फ वायु प्रदूषण की वजह से जाती हैं. जो बच जाते हैं, वो अस्थमा से जूझते हैं.

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सांस से जुड़ी कोई दिक्कत लगातार बनी हुई हो, तो इसे नज़रअंदाज़ न करें (फोटो: Freepik)

आजकल देश के कई हिस्सों ने स्मॉग और प्रदूषण की चादर ओढ़ी हुई है. कुछ फ़ीट दूर देखना मुश्किल है. AQI 400 पार जा रहा है. हवा इतनी ख़राब है कि लोगों का खांस-खांसकर बुरा हाल है. सांस लेना मुहाल है.

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द लैंसेट की एक स्टडी के मुताबिक, हमारे देश में हर साल 17 लाख जानें सिर्फ वायु प्रदूषण की वजह से जाती हैं. जो बच जाते हैं, वो अस्थमा से जूझते रहते हैं.

द ग्लोबल अस्थमा रिपोर्ट 2022 के मुताबिक, भारत में करीब साढ़े 3 करोड़ लोगों को अस्थमा है. ऐसे लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है. यही नहीं, जिन लोगों को ज़िंदगी में कभी अस्थमा नहीं था, प्रदूषण की वजह से उन्हें भी अस्थमा हो जाता है. मगर क्यों? यही समझेंगे डॉक्टर से. जानेंगे कि लंबे वक्त तक प्रदूषण में रहने से अस्थमा क्यों हो जाता है. प्रदूषण से फेफड़ों को क्या नुकसान पहुंचता है. सर्दियों के मौसम में स्मॉग और प्रदूषण से कौन-सी हेल्थ प्रॉब्लम्स बढ़ जाती हैं. और, अपने फेफड़ों को प्रदूषण से कैसे बचाएं. 

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क्या स्मॉग, प्रदूषण से अस्थमा हो सकता है?

ये हमें बताया डॉक्टर पुनीत खन्ना ने. 

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डॉ. पुनीत खन्ना, हेड एंड कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी, मणिपाल हॉस्पिटल, नई दिल्ली

जैसे ही एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) ख़राब होता है, फेफड़ों में बलगम की मात्रा बढ़ने लगती है. धूल, मिट्टी और वाहनों से होने वाले प्रदूषण के महीन कण सांस के ज़रिए शरीर में जाते हैं. ठंडी हवा के साथ इन कणों की मात्रा बढ़ जाती है. इन महीन कणों के बढ़ने और ठंडी हवा के चलते ज़्यादा बलगम बनने लगता है. ये बलगम फेफड़ों में जमने लगता है. इस वजह से सांस लेना दूभर हो जाता है. इसी को प्रदूषण से होने वाला दमा कहते हैं.

स्मॉग, प्रदूषण से फेफड़ों को क्या नुकसान पहुंचता है?

लगातार प्रदूषण में रहने से फेफड़े धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगते हैं. लंग फंक्शन टेस्ट में पता चलता है कि मरीज़ के लिए सांस अंदर खींचना मुश्किल हो गया है. अस्थमा के मरीज़ पूरी तरह खुलकर सांस नहीं ले पाते. फेफड़ों में बलगम जमा होना शुरू हो जाता है, जिसे निकालना बहुत मुश्किल होता है. इस वजह से शरीर में ऑक्सीज़न की कमी हो सकती है. कई बार बलगम के साथ खून आने लगता है. कुछ लोगों को निमोनिया भी हो जाता है. खासकर बुज़ुर्गों में, जिन्हें अस्थमा की समस्या लंबे वक़्त से है.

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प्रदूषण की वजह से गले में दर्द और खराश भी रहने लगती है (फोटो: Freepik)

सर्दियों के मौसम में स्मॉग, प्रदूषण का सेहत पर असर

स्मॉग (धुंध) और प्रदूषण बढ़ते ही अस्थमा के साथ कई और बीमारियां भी बढ़ने लगती हैं. खासकर जिन लोगों को डायबिटीज़, दिल की बीमारी, न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हैं, या जिनकी उम्र ज़्यादा है. ऐसे लोगों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. शरीर में कमज़ोरी और थकान महसूस होती है. आंखों में जलन होने लगती है. सिरदर्द की शिकायत बढ़ जाती है. कई लोगों को ठीक से नींद नहीं आती. लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का ख़तरा भी बढ़ जाता है.

बचाव और इलाज

बाहर निकलते समय N95 मास्क लगाएं. अगर मास्क नहीं है, तो मुंह पर रूमाल बांध लें. खासकर सुबह के समय, जब ट्रैफिक ज़्यादा होता है. शाम के वक़्त, जब धूल-मिट्टी और ठंड बढ़ जाती है. तब मास्क लगाने से आप खुद को काफी हद तक बचा सकते हैं. 

साथ ही, अपनी दवाएं टाइम पर लें. अस्थमा के मरीज़ डॉक्टर से ज़रूर मिलें. फेफड़े हेल्दी हैं या नहीं, ये देखकर डॉक्टर दवा बदलेंगे. इसके अलावा, शुगर, बीपी और दिल के मरीज़ों को अपनी दवाएं लगातार लेनी चाहिए.

इस मौसम में एक्सरसाइज़ करना न छोड़ें. एक्सरसाइज़ करने से फेफड़ों के काम करने की क्षमता बढ़ती है. लेकिन, एक्सरसाइज घर या जिम में करें. बाहर निकलने से बचें.  साथ ही, एक हेल्दी डाइट लें ताकि शरीर के सेल्स हेल्दी रहें और आप बीमारियों से बचे रहें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

वीडियो: सेहत: कैंसर की किस स्टेज तक पूरी तरह इलाज किया जा सकता है?

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