आपने कई फिल्मों में देखा होगा. एक इंसान गुस्से में है. ऑडियंस को भी उसका गुस्सा जायज़ लग रहा है. लेकिन, जिस इंसान पर वो गुस्सा है. वो बात समझने के बजाय कहता है, ‘ओवररिएक्ट मत करो.’
पहले गुस्सा, फिर उस गुस्से से इंकार...कहीं पार्टनर आपको गैसलाइट तो नहीं कर रहा?
गैसलाइटिंग में एक इंसान दूसरे इंसान को हमेशा अपने लपेटे में लिए रहता है. उसको इतना कंफ्यूज़ कर देता है कि उसे सच-झूठ में फर्क ही समझ नहीं आता. वो खुद पर डाउट करने लगता है. हर चीज़ के लिए खुद को कसूरवार मानने लगता है. उसके लिए उसका कोई अस्तित्व ही नहीं रहता.


फिल्म के दूसरे सीन में गुस्सा करने वाला वही इंसान दुखी है. रो रहा है. रोते हुए कहता है, 'तुमने मुझ पर चिल्लाया क्यों? सबके सामने इतनी बदतमीज़ी से बात क्यों की?'
सामने से जवाब आता है, 'मैंने ऐसा कब किया? ये सब तुम्हारे दिमाग में है. मैं भला तुम पर गुस्सा कर सकता हूं?'
वैसे ऐसा सिर्फ फिल्मों में नहीं होता. हो सकता है, आपने ये सब अपने सामने हकीक़त में होते हुए देखा हो या आपके साथ ऐसा हुआ हो. इसे ‘गैसलाइटिंग’ कहते हैं. सोशल मीडिया पर इस शब्द का खूब इस्तेमाल होता है.
गैसलाइटिंग को लल्लनटॉप भाषा में समझें तो इसमें एक इंसान दूसरे इंसान को हमेशा अपने लपेटे में लिए रहता है. उसको इतना कंफ्यूज़ कर देता है कि उसे सच-झूठ में फर्क ही समझ नहीं आता. वो खुद पर डाउट करने लगता है. हर चीज़ के लिए खुद को कसूरवार मानने लगता है. उसके लिए उसका कोई अस्तित्व ही नहीं रहता.
अगर आपको या आपके किसी जानकार को गैसलाइट किया जा रहा है, तो जान लीजिए कि इसका मेंटल हेल्थ पर बहुत बुरा असर पड़ता है. कितना और क्या असर? ये एक्सपर्ट से जानेंगे. लेकिन पहले बेसिक्स क्लियर कर लीजिए.
गैसलाइटिंग क्या होती है?
ये हमें बताया साइकोलॉजिस्ट दीक्षा पार्थसारथी ने.

गैसलाइटिंग एक तरह का मानसिक शोषण (साइकोलॉजिकल एब्यूस) है. इसमें एक इंसान दूसरे इंसान को इस तरह मैनिपुलेट करता है कि पीड़ित अपनी ही सोच, भावनाओं, नज़रिये और यादों पर शक करने लगता है. उसे लगता है कि जो वो सोच रहा है, महसूस कर रहा है या याद कर रहा है, वो सब गलत है. जैसे अगर कोई पति अपनी पत्नी को गैसलाइट कर रहा है और उसकी पत्नी कहे, ‘आपने मुझसे गुस्से में बात की थी, मुझे अच्छा नहीं लगा’.
तब मैनिपुलेट करने वाला पति इस बात से सीधा इंकार कर देता है. वो कह सकता है, ‘ऐसा तो हुआ ही नहीं था. तुम ज़्यादा सोचती हो, इसलिए तुम्हें ऐसा लगा होगा.’
जब बार-बार किसी की बातों को झुठलाया जाता है, उसे गलत ठहराया जाता है. तब धीरे-धीरे वो व्यक्ति खुद पर भरोसा खोने लगता है. उसे लगता है कि शायद सच में वही गलत है. उसका आत्मविश्वास टूट जाता है. वो कन्फ्यूज़ में रहने लगता है और मानसिक रूप से बहुत कमज़ोर हो जाता है.
विक्टिम गैसलाइटिंग के लक्षण कैसे पहचानें?
- आत्मविश्वास कम हो जाना.
- खुद पर ही शक करना, ये समझना कि 'शायद मैं ही ओवररिएक्ट कर रहा हूं'.
- बिना गलती के भी बार-बार माफ़ी मांगना.
- हमेशा ये डर बना रहना कि कहीं कुछ बोलकर सामने वाले को नाराज़ न कर दें.

गैसलाइटिंग से विक्टिम के मेंटल हेल्थ पर क्या असर पड़ता है?
अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक गैसलाइटिंग का शिकार हो, तो उसे कई मानसिक दिक्कतें हो सकती हैं. जैसे एंग्ज़ायटी, डिप्रेशन, खुद को नुकसान पहुंचाने का मन करना, या सिगरेट-शराब जैसी चीज़ों की लत लग जाना. बहुत लंबे समय तक गैसलाइटिंग झेलने पर कुछ लोग PTSD (पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) का शिकार भी हो सकते है. इसमें पुराने ट्रॉमा या मैनिपुलेशन से जुड़ी यादें बार-बार दिमाग में आती हैं, जिससे आगे के रिश्तों पर बुरा असर पड़ता है. ऐसे लोगों का कॉन्फिडेंस बहुत कम हो जाता है. वो अपनी ही पहचान (आइडेंटिटी) को लेकर कन्फ्यूज़ रहने लगता है.
गैसलाइटिंग से कैसे डील करें?
सबसे पहले ये पहचानें कि आपके साथ गैसलाइटिंग हो रही है या नहीं. अगर हो रही है, तो देखें कि इसे कौन कर रहा है और इसका आप पर क्या असर पड़ रहा है. इसके बाद सबूत इकट्ठा करें. अगर बार-बार आपकी बातों या भावनाओं को झुठलाया जा रहा है, तो छोटी-छोटी चीज़ें नोट करें या रिकॉर्ड करें. इससे आप साबित कर सकेंगे कि आप सही हैं और दूसरा इंसान आपको मैनिपुलेट कर रहा है.
तीसरा कदम- सीमाएं (बाउंड्रीज़) तय करें. जो व्यक्ति आपको गैसलाइट कर रहा है, उससे दूरी बनाएं. थोड़ी दूरी बनाकर जब आप सिचुएशन को बाहर से देखेंगे, तो चीज़ें ज़्यादा साफ़ नज़र आएंगी.
गैसलाइटर्स आमतौर पर पीड़ित को उसके भरोसेमंद लोगों से दूर कर देते हैं. इसलिए, ऐसे लोगों से बात करें जो सच में आपका भला चाहते हैं. जो आपसे प्यार करते हैं और जिन पर आप भरोसा कर सकते हैं. साथ ही, किसी प्रोफेशनल या थेरेपिस्ट की मदद लें, जो आपको इन समस्याओं से बाहर निकाल सके.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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