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बिस्किट, नमकीन जैसे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड को कैसे पहचानें? जानलेवा बीमारी होने का खतरा

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड प्रोडक्ट्स पर अक्सर 'लो फैट','नो शुगर' जैसी चीज़ें लिखी होती हैं. लेकिन जब आप इनग्रीडिएंट लिस्ट देखेंगे, तो हकीकत खुल जाएगी.

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इस तस्वीर में दिख रही हर चीज़ अल्ट्रा-प्रोसेस्ड है (फोटो: Freepik)

रोज़ सुबह चाय के साथ आपको बिस्किट चाहिए. चिप्स, नमकीन खाए बिना आपका दिन शुरू नहीं होता. रात में सीरीज़ बिंज वॉच करते हुए आपको भूख लग जाती है और आप दो मिनट में इंस्टेंट नूडल्स बना लेते हैं.

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ये सब जो आप खा रहे हैं, उन्हें कहते हैं अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स. ये दोस्त की शक्ल में आपके सबसे बड़े दुश्मन हैं. बिस्किट, नमकीन, ब्रेड, चिप्स, कैंडी, चॉकलेट, पैकेज्ड सूप, सीरियल्स, चिकन नगेट्स, हॉटडॉग, फ्राइज़, रेडी टू ईट फूड, सॉफ्ट ड्रिंक्स, चॉकलेट मिल्क, पैक्ड लस्सी, पिज़्ज़ा, बर्गर, नूडल्स ये सारी ही चीज़ें अल्ट्रा प्रोसेस्ड होती हैं.

दी लैंसेट जर्नल में छपी स्टडी के मुताबिक, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड चीज़ें खाने से 12 बीमारियों का रिस्क बढ़ जाता है.

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अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स को बनाते समय उनमें केमिकली कई बदलाव किए जाते हैं (फोटो: Freepik)

कौन सी हैं ये बीमारियां, बताते हैं. लेकिन, उससे पहले आप ये 5 चीज़ें नोट कर लीजिए. ये हैं अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड की पहचान.

पहली पहचान 

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड पैकेट या डिब्बों में मिलते हैं. सीधे फैक्ट्री से आते हैं. वहां इंडस्ट्रियल टेक्नीक का इस्तेमाल करके इनमें कई सारे बदलाव किए जाते हैं. अब क्योंकि ये फैक्ट्री में बनते हैं. इसलिए ये नेचुरल नहीं होते.

दूसरी पहचान

इन्हें देखनेभर से अंदाज़ा नहीं लगता, कि उनका मेन इंग्रीडीएंट क्या है. यानी वो किस चीज़ से बनी है.

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तीसरी पहचान

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की इनग्रीडिएंट लिस्ट बहुत लंबी होती है. 10-15 नंबर तक. इसमें ज़्यादातर ऐसे नाम होते हैं, जिन्हें आम व्यक्ति पढ़कर समझ नहीं पाता.

चौथी पहचान

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड प्रोडक्ट्स पर अक्सर 'लो फैट','नो शुगर' जैसी चीज़ें लिखी होती हैं. पर जब आप इनग्रीडिएंट लिस्ट देखेंगे, तो हकीकत खुल जाएगी. वहां आपको INS 211, पाम ऑयल, आर्टिफिशियल स्वीटनर, सुक्रालोज़ और नेचर आइडेंटिकल फ्लेवर्स जैसे शब्द दिखेंगे. इन शब्दों का एक ही मतलब है- नुकसानदेह.

पांचवीं पहचान

इन्हें खाने के थोड़ी ही देर बाद फिर भूख लग जाएगी. अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की लत बड़ी जल्दी लगती है.

एक बात तो साफ़ है, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स हेल्दी नहीं होते. न तो इनमें फाइबर होता है. न विटामिन्स. न ही मिनरल्स. यानी पोषक तत्व ‘ज़ीरो’.

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जैसे ही आप अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाना शुरू करेंगे, सबसे पहले आपका वज़न बढ़ेगा (फोटो: Freepik)

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स में ढेर सारी कैलोरीज़ होती हैं. वसा यानी फैट, नमक खूब होती है. इनमें हाई-फ्रुक्टोज़ कॉर्न सिरप डाला जाता है. ये एक तरह का स्वीटनर है. स्वाद देने के लिए. इनमें हाइड्रोजेनेटड ऑयल्स होते हैं. यानी ऐसे तेल जिनमें केमिकली बदलाव किए जाते हैं, ताकि प्रोडक्ट लंबा चले. अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड में आर्टिफिशियल रंग और प्रिज़रवेटिव्स भी भर-भरकर डाले जाते हैं ताकि वो लुभावने लगें और जल्दी ख़राब न हों. ये सारी ही चीज़ें सेहत के लिए नुकसानदेह होती हैं.

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स बनाते समय उनमें कई तरह के बदलाव किए जाते हैं. उन्हें धोया जाता है. एयरटाइट कंटेनर्स में भरकर तेज़ आंच पर उबाला जाता है. फिर उन्हें ठंडा किया जाता है. इसके बाद डिब्बों और पैकेट्स में पैक कर के बेचा जाता है.

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाने से किन बीमारियों का ख़तरा बढ़ता है? इस सवाल के जवाब के लिए हमने बात की Ultra-Processed Foods And Human Health पर दी लैंसेट की सीरीज़ के को-ऑथर और Nutrition Advocacy for Public Interest नाम के थिंक टैंक के कन्वीनर डॉक्टर अरुण गुप्ता से.

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डॉ. अरुण गुप्ता, को-ऑथर, अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स एंड ह्यूमन हेल्थ सीरीज़, दी लैंसेट

डॉक्टर अरुण बताते हैं कि ज़्यादातर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स को हेल्दी कहकर बेचा जाता है. जैसे लस्सी को ही ले लीजिए. कहने को तो लस्सी हेल्दी है. पर अगर ये आपको पैक्ड मिल रही है. तो समझ जाइए, वो नुकसानदेह है. 180 ml पैक्ड लस्सी में करीब 25 ग्राम चीनी होती है.

जो लोग अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड खाते हैं. वो बाकियों की तुलना में रोज़ कम से कम 500 कैलोरीज़ ज़्यादा खाते हैं.

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड चीज़ें खाने से टाइप-2 डायबिटीज़ का रिस्क 25% तक बढ़ जाता है. डिप्रेशन का रिस्क 23%, मोटापे का 21% और दूसरी बीमारियों से मरने का रिस्क 18% तक बढ़ जाता है. कार्डियोवस्कुलर डिज़ीज़ यानी दिल और खून की नलियों से जुड़ी बीमारियां और उनसे जान जाने का ख़तरा 18% तक बढ़ जाता है.

पर क्यों? देखिए,अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स में फाइबर, विटामिन्स और मिनरल्स जैसे ज़रूरी पोषक तत्व नहीं होते. उल्टा फैट और शुगर भर-भरकर डाले जाते हैं. इनसे मोटापा बढ़ता है. मोटापे से डायबिटीज़ का रिस्क बढ़ता है.

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स में सोडियम का खूब इस्तेमाल होता है. ज़्यादा नमक की वजह से ब्लड प्रेशर हाई रहता है. हाई बीपी यानी दिल की बीमारियों का ख़तरा. ज़्यादा सोडियम की वजह से किडनियों को भी नुकसान पहुंचता है.

साल 2006 से 2019 के बीच देश में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स की बिक्री करीब 40 गुना बढ़ी है. इस दौरान भारत में मोटापा भी लगभग दोगुना हो गया है.  

आज हाल ये है कि हर 4 में से 1 व्यक्ति ओबीज़ है. हर 10 में से 1 व्यक्ति को डायबिटीज़ है. हर 7 में से 1 व्यक्ति प्री-डायबिटिक है. यानी डायबिटीज़ होने की दहलीज़ पर खड़ा है. और हर 3 में 1 व्यक्ति की तोंद निकली हुई है.

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अगर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स खाते हैं, तो इन्हें खाना कम कर दें (फोटो: Freepik)

अब इस मुसीबत से निपटा कैसे जाए? डॉक्टर अरुण कुछ सुझाव देते हैं.

पहला सुझाव

स्कूल और हॉस्पिटल जैसी जगहों पर अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड को बैन किया जाए.

दूसरा सुझाव

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स के विज्ञापनों पर रोक लगे. वो स्पॉन्सरशिप और सेलेब्रिटी एन्डॉर्समेंट जैसी चीज़ें न कर सकें. ‘एक पे एक फ्री’ जैसे ऑफर्स बैन हों. इससे ऐसे प्रोडक्ट्स की बिक्री बढ़ती है.

तीसरा सुझाव

पैकेट पर साफ़-साफ़ U+ लिखा हो. जिससे पता चल सके कि उस प्रोडक्ट को बहुत ज़्यादा प्रोसेस किया गया है.

चौथा सुझाव

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स के इस्तेमाल पर और ज़्यादा स्टडी हो. इनकी खपत पर सरकार नज़र रखे.

पांचवां सुझाव

जब कमेटी अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स पर पॉलिसी बनाए, तो उनमें सिर्फ एक्सपर्ट और पॉलिसी मेकर्स हों. कंपनियों के लोग शामिल न हों.

एक सुझाव लोगों एक लिए भी है. अगर आप अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स नहीं खाते. तो बहुत बढ़िया. लेकिन अगर खाते हैं. तो अभी से इसमें कटौती कीजिए. ताकि भारत एक स्वस्थ देश बन सके.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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