आपने बाज़ार में बिकने वाली कई खाने की चीज़ों पर ‘No Palm Oil’ या ‘Palm Oil Free’ जैसे लेबल देखे होंगे. ये लेबल इसलिए लगाए जाते हैं, ताकि खरीदने वाले को पता रहे कि उस प्रोडक्ट में पाम ऑयल नहीं है. आमतौर पर, पाम ऑयल यानी ताड़ के तेल को सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता. इसलिए जिस भी प्रोडक्ट पर ‘No Palm Oil’ या ‘Palm Oil Fee’ जैसे लेबल होते हैं, लोग उसे हेल्दी समझ लेते हैं. लेकिन, The Indian Food and Beverage Association (IFBA) के मुताबिक, ये लेबल भ्रामक हैं. इन्हें सिर्फ मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके पीछे कोई साइंटिफिक प्रूफ नहीं है.
जिस Palm Oil से सब डराते हैं, उसका सच आज जान लें
खाने की कई चीज़ों पर No Palm Oil जैसे लेबल होते हैं. ये बताने के लिए कि इसमें 'अनहेल्दी' पाम ऑयल नहीं है. लेकिन The Indian Food and Beverage Association के मुताबिक, ये लेबल भ्रामक हैं. इन्हें सिर्फ मार्केटिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके पीछे कोई साइंटिफिक प्रूफ नहीं है.
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IFBA ने 8 जुलाई को एक स्टेटमेंट जारी किया था. इसमें कहा गया, “भारत के लोग 19वीं सदी से पाम ऑयल का इस्तेमाल कर रहे हैं. हेल्दी और बैलेंस्ट डाइट में इसकी अपनी एक भूमिका है. पाम ऑयल किफायती है. ये जल्दी ख़राब नहीं होता. कई ग्लोबल ब्रांड्स भी पाम ऑयल का इस्तेमाल करते हैं. ‘No Palm Oil’ या ‘Palm Oil Fee’ जैसे लेबल देखकर लोग प्रभावित हो जाते हैं. खाने-पीने के लिए क्या हेल्दी है और क्या नहीं, इसका फैसला वैज्ञानिक प्रमाण देखकर करें, न कि सोशल मीडिया ट्रेंड देखकर.”
हमारे देश में पाम ऑयल का खूब इस्तेमाल होता है. आप बाज़ार से जो चिप्स ख़रीदकर लाते हैं, उसमें पाम ऑयल होता है. कई रेस्टोरेंट्स पाम ऑयल में खाना बनाते हैं. यहां तक कि मेकअप के सामान में भी पाम ऑयल होता है. तो आज बात होगी पाम ऑयल पर. डॉक्टर से जानेंगे, पाम ऑयल क्या होता है. ये खाने की किन चीज़ों में पाया जाता है. पाम ऑयल सेहत के लिए नुकसानदेह क्यों माना जाता है. जब कई देशों में ये बैन है, तो भारत में क्यों नहीं. और कितनी मात्रा में पाम ऑयल लिया जा सकता है.
पाम ऑयल क्या होता है?
ये हमें बताया डॉक्टर अमित मिगलानी ने.

पाम ऑयल यानी ताड़ का तेल. ये ताड़ के फलों से निकाला जाता है. ताड़ के पेड़, खजूर के पेड़ों जितने लंबे होते हैं. ताड़ के फलों और बीजों को पीसकर जो तेल निकाला जाता है, उसे पाम ऑयल या ताड़ का तेल कहते हैं. जब ये तेल कच्चा होता है, तो इसका रंग लाल या नारंगी होता है. इसमें बीटा-कैरोटीन बहुत ज़्यादा होता है. मगर जब इसे रिफाइन किया जाता है. यानी करीब 200 डिग्री तापमान पर गर्म किया जाता है. तब ये तेल पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट) हो जाता है.
पाम ऑयल किन चीज़ों में पाया जाता है?
घर में जो खाना बनता है, उसमें ज़्यादातर वनस्पति घी का इस्तेमाल होता है. लेकिन फास्ट फूड चेन्स में पाम ऑयल का काफी इस्तेमाल होता है. दरअसल, पाम ऑयल थोड़ा सस्ता पड़ता है. इसलिए चाऊमीन, फ्रेंच फ्राइज़ और दूसरे फास्ट फूड आइटम ज़्यादातर पाम ऑयल में ही बनाए जाते हैं. इसके अलावा, प्रोसेस्ड फूड जैसे बिस्कुट और चॉकलेट में भी पाम ऑयल डाला जाता है. खाने के अलावा, डिटर्जेंट, शैंपू और लिपस्टिक बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है.
पाम ऑयल सेहत के लिए नुकसानदेह क्यों है?
पाम ऑयल का ज़्यादा इस्तेमाल सेहत के लिए हानिकारक है. इसमें करीब 50% सैचुरेटेड फैट होता है. इसका ज़्यादा इस्तेमाल खून में LDL यानी बैड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ा सकता है. जो दिल और शरीर की दूसरी नलियों (वेसल्स) में जमा हो जाता है और उन्हें नुकसान पहुंचाता है. जब कच्चे पाम ऑयल को करीब 200 डिग्री पर रिफाइन किया जाता है तब उसमें कुछ कैंसर पैदा करने वाले केमिकल बन सकते हैं. ये शरीर के लिए बहुत ख़तरनाक हैं. पाम ऑयल में कैलोरी भी बहुत ज़्यादा होती है. इसका ज़्यादा इस्तेमाल मोटापा और डायबिटीज़ की वजह बन सकता है.

विदेश में पाम ऑयल बैन है, भारत में क्यों नहीं?
कई देशों में पाम ऑयल बैन है, लेकिन भारत में अभी ऐसा नहीं है. विदेशों में पाम ऑयल बैन होने की दो बड़ी वजहें हैं. पहली, पाम ऑयल का ज़्यादा सेवन सेहत के लिए अच्छा नहीं है. इससे कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ यानी दिल की बीमारियां हो सकती हैं. दूसरी, पर्यावरण के लिहाज़ से भी पाम ऑयल हानिकारक है. इसके लिए बहुत सारे पेड़ों को काटना पड़ता है. इन दो वजहों से कुछ देशों में पाम ऑयल बैन है.
लेकिन अभी भारत में ऐसा कोई बैन नहीं है. इसकी एक बड़ी वजह है पाम ऑयल की सस्ती कीमत. इसे इस्तेमाल करना सस्ता पड़ता है और प्रोडक्ट की कीमत कम हो जाती है. मगर भारत सरकार को इस बारे में ज़रूर सोचना चाहिए और सख्त कदम उठाने चाहिए.
कितनी मात्रा में पाम ऑयल आप ले सकते हैं?
अंदाज़न देखें तो रोज़ 5 से 10 ml पाम ऑयल सेहत के लिए ठीक है. अगर इससे ज़्यादा मात्रा में इसे खाया जाए, तो ये हानिकारक हो सकता है. अगर कच्चा पाम ऑयल मिल जाए, जिसमें बीटा कैरोटीन ज़्यादा होता है, तो वो इस्तेमाल करें. जब पाम ऑयल ज़्यादा रिफाइन किया जाता है, तो उसमें बीटा कैरोटीन का स्तर करीब 90% तक कम हो जाता है. इसलिए, पाम ऑयल का इस्तेमाल कम से कम करें. अगर करना ही पड़े, तो कच्चे पाम ऑयल का इस्तेमाल करें.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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