दांतों का पीलापन. बहुत ही आम समस्या. कुछ लोग इससे निपटने के लिए एक घरेलू नुस्ख़ा अपनाते हैं. सरसों के तेल में थोड़ा-सा नमक डालकर दांतों पर रगड़ते हैं. लेकिन ये कोई परमानेंट सॉल्यूशन तो है नहीं. कई लोगों के दांत दिन में दो बार ब्रश करने के बाद भी पीले दिखते हैं. ऐसा क्यों होता है? ये समझेंगे. साथ ही बात होगी 'टीथ व्हाइटनिंग' पर. आजकल इसके बड़े चर्चे हैं!
दांत पीले हैं तो उन्हें चमकाने का कारगर नुस्खा जान लें
दांत कई वजहों से पीले हो जाते हैं. इनमें सबसे प्रमुख वजह तंबाकू और सिगरेट है.
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लोग सफ़ेद और चमकते दांतों के लिए 'टीथ व्हाइटनिंग' करवा रहे हैं. ये क्या है और इसे कैसे किया जाता है. डॉक्टर साहब से जानेंगे. ये भी जानेंगे कि क्या टूथ व्हाइटनिंग से दांतों को कोई नुकसान पहुंचता है. सफ़ेद दांतों के लिए रोज़ क्या टिप्स फॉलो करें और टूथपेस्ट ख़रीदते समय किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है.
दांत पीले क्यों पड़ जाते हैं?
ये हमें बताया डॉक्टर उज्जवल गुलाटी ने.

दांतों के पीले पड़ने या उनका रंग बदलने के कई कारण होते हैं. सबसे अहम कारण तंबाकू और सिगरेट है. ये दांतों पर दाग छोड़ते हैं. चाय, कॉफी और रेड वाइन जैसी चीज़ों से भी दांतों का रंग बदल जाता है. कई बार दांतों की नियमित सफाई न करने से प्लाक (दांतों की सतह पर चिपचिपी परत) जम जाता है. ये प्लाक धीरे-धीरे दांतों को पीला कर देता है.
इसके अलावा, उम्र बढ़ने के साथ-साथ दांतों की बाहरी परत ‘इनेमल’ पतली हो जाती है. इस वजह से अंदर की पीली परत ‘डेंटीन’ दिखाई देने लगती है. कुछ दवाइयां खाने और फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा से भी दांत पीले हो जाते हैं.

क्या है 'टीथ व्हाइटनिंग'?
टीथ व्हाइटनिंग एक कॉस्मेटिक प्रक्रिया है. इसका काम दांतों के रंग को हल्का और सफ़ेद बनाना है. टीथ व्हाइटनिंग में दांतों पर एक खास जेल लगाया जाता है. ये जेल एक ब्लीचिंग एजेंट होता है. इसमें हाइड्रोजन पेरोक्साइड और कार्बामाइड पेरोक्साइड होता है. ये जेल दांतों की सतह पर जमे दाग-धब्बों को तोड़ता है और उन्हें सफ़ेद करता है.
टीथ व्हाइटनिंग की प्रक्रिया दो तरीकों से की जाती है. पहला, डेंटिस्ट के क्लीनिक में प्रोफेशनल तरीके से. दूसरा, घर पर किट के ज़रिए. इस प्रक्रिया का असर कुछ महीनों तक रहता है. हालांकि परिणामों को बनाए रखने के लिए सावधानी बरतनी पड़ती है. अगर डॉक्टर की क्लीनिक में प्रोफेशनल तरीके से टीथ व्हाइटनिंग की जाए. तो साइड इफेक्ट्स या दूसरी परेशानियां होने का चांस कम रहता है.

क्या टीथ व्हाइटनिंग से दांतों को कोई नुकसान पहुंचता है?
आमतौर पर टीथ व्हाइटनिंग सुरक्षित मानी जाती है. हालांकि इससे कुछ मामूली समस्याएं भी हो सकती हैं. व्हाइटनिंग प्रक्रिया के बाद कई लोगों को दांतों में थोड़ी देर के लिए सेंसेटिविटी महसूस हो सकती है. खासकर तब, जब वो कुछ ठंडा या गर्म खाते हैं. अगर व्हाइटनिंग जेल मसूड़ों पर लग जाए, तब मसूड़े में भी जलन हो सकती है.
लंबे समय तक या ज़्यादा व्हाइटनिंग कराने से दांतों की बाहरी परत ‘इनेमल’ कमज़ोर हो सकती है. इससे दांत भी कमज़ोर हो सकते हैं. लिहाज़ा टीथ व्हाइटनिंग हमेशा किसी प्रोफेशनल की देख-रेख में या निर्देशों के अनुसार ही कराएं. ताकि दांतों को किसी भी गंभीर नुकसान से बचाया जा सके.

सफ़ेद दांतों के लिए टिप्स!
अपने दांतों को रोज़ दिन में कम से कम दो बार अच्छे टूथपेस्ट और ब्रश से साफ करें. ब्रश करने के बाद फ्लॉस करें ताकि दांतों के बीच के कण साफ हो जाएं. चाय, कॉफी जैसी चीज़ों को पीने के बाद पानी पिएं या कुल्ला करें. तंबाकू और सिगरेट से परहेज़ करें. ये दांतों को पीला करते हैं और नुकसान पहुंचाते हैं. कई बार इनकी वजह से कैंसर भी हो जाता है. साथ ही, चीनी कम करें. ऐसी चीज़ें न खाएं जो दांतों पर चिपकें. छह महीने या एक साल में डेंटिस्ट से अपनी जांच ज़रूर कराएं.

टूथपेस्ट ख़रीदते समय किन बातों का ध्यान रखें?
टूथपेस्ट खरीदते समय कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है. आपके टूथपेस्ट में दो तरह के पदार्थ ज़रूर होने चाहिए. पहला, डेंटल फाइसिस. ये बारीक कण हैं जो पॉलिशिंग के काम आते हैं. साथ ही, दांतों पर जमा प्लाक को हटाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं. दूसरा फ्लोराइड है. इंडियन डेंटल असोसिएशन या अमेरिकन डेंटल असोसिशन ने फ्लोराइड की जो मात्रा टूथपेस्ट में बताई है, वो उसमें होनी चाहिए. फ्लोराइड दांतों की बाहरी परत इनेमल को मज़बूत करता है और कैविटी होने से बचाता है. कुछ टूथपेस्ट में दवा भी मिलाई जाती है. ये दवा मसूड़े ठीक रखने, दांतों को सफ़ेद करने या सेंसेटिविटी कम करने में मददगार हो सकती है. लेकिन, दवा वाला टूथपेस्ट अपने डेंटिस्ट की सलाह के बाद ही इस्तेमाल करें. अपने आप कभी भी मेडिकेटेड टूथपेस्ट का इस्तेमाल न करें. वरना काफ़ी नुकसान हो सकता है
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से जरूर पूछें. ‘दी लल्लनटॉप ’आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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