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किडनी ख़राब होने पर ट्रांसप्लांट बेहतर या डायलिसिस? डॉक्टर ने बताया

मरीज़ का डायलिसिस होगा या ट्रांसप्लांट. ये वो खुद से तय नहीं करता. मरीज़ की स्थिति देखने के बाद डॉक्टर ही इस पर आखिरी फैसला लेता है.

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किडनी ट्रांसप्लांट एक बार होता है, वहीं डायलिसिस बार-बार

किडनी की गंभीर बीमारी के मरीज़ अक्सर दोराहे पर खड़े होते हैं. उनके पास दो ऑप्शन होते हैं. या तो वो डायलिसिस कराएं या फिर किडनी ट्रांसप्लांट. डायलिसिस हर हफ्ते किया जाता है. वहीं ट्रांसप्लांट सिर्फ एक बार होता है, लेकिन इसे एक बार कराना भी बड़ा मुश्किल है. क्यों? क्योंकि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए एक डोनर की ज़रूरत होती है. एक ऐसे व्यक्ति की, जो हमेशा के लिए अपनी किडनी आपको दे दे. वो आपका सही मैच भी हो. वरना शरीर किडनी को स्वीकार नहीं करेगा.

अब मरीज़ का डायलिसिस होगा या ट्रांसप्लांट. ये वो खुद से तय नहीं करता. इस पर आखिरी फैसला डॉक्टर ही लेता है. वो ही तय करता है कि मरीज़ के लिए क्या बेहतर है. लेकिन, ये नौबत आती ही क्यों है. ये आती है क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ की वजह से. 

क्या है क्रोनिक किडनी डिज़ीज़?

ये हमें बताया डॉक्टर सुमन लता ने. 

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डॉ. सुमन लता, हेड, नेफ्रोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट, मणिपाल हॉस्पिटल, नई दिल्ली

जब किडनी के काम करने की क्षमता 3 महीने से ज़्यादा समय तक कम बनी रहती है, तो इसे क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ (CKD) कहा जाता है. ये एक इररिवर्सिबल बीमारी है यानी इसे पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता. हालांकि दवाओं, समय पर जांच और इलाज से इसके बढ़ने की रफ्तार धीमी की जा सकती है. क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ की 5 स्टेज होती हैं. जब किडनी के काम करने की क्षमता 15 ml/min से कम हो जाती है, तब डायलिसिस की ज़रूरत पड़ती है.

क्रोनिक किडनी डिज़ीज़ को साइलेंट किलर कहा जाता है क्योंकि इसके शुरुआती लक्षण पता नहीं चलते. जब तक मरीज़ डॉक्टर के पास जाता है, तब तक बीमारी बढ़ चुकी होती है. ऐसे में फिर उसे डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ती है. 

किडनी ठीक तरह काम न करे तो क्या होता है?

किडनी का एक बहुत ज़रूरी काम शरीर की गंदगी को फिल्टर करना है. जैसे यूरिया और क्रिएटिन. जब किडनी के काम करने की क्षमता बहुत कम हो जाती है, तब वो इन्हें फिल्टर नहीं कर पाती. ऐसे में यूरिया, क्रिएटिन और फॉस्फोरस जैसे टॉक्सिंस (गंदगी) शरीर में जमा होने लगते हैं. वॉटर रिटेंशन भी होने लगता है (शरीर में पानी रुकना). इससे शरीर में सूजन आ जाती है. यूरिन कम हो जाता है. स्किन में खुजली होती है. ये सभी एडवांस किडनी फ़ेलियर के लक्षण हैं. आपके मेडिकल टेस्ट में भी काफी गड़बड़ी देखी जाती है. अगर किडनी का फंक्शन 15 ml/min से भी कम हो जाए, तो इसे एंड-स्टेज किडनी डिज़ीज़ (ESKD) कहा जाता है. इस स्टेज पर मरीज़ को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ती है.

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किडनी ठीक से काम न करे, तो डायलिसिस या ट्रांसप्लांट कराने की नौबत आ सकती है

किडनी डायलिसिस क्या होता है?

जब किडनी फिल्टर करने का काम नहीं कर पाती, तो इसे मशीन से किया जाता है, जिसे डायलिसिस कहते हैं. डायलिसिस के लिए शरीर में खून के आने-जाने का एक खास रास्ता बनाया जाता है, ताकि मशीन खून की सफाई कर सके. इसके लिए या तो एवी फिस्टुला बनाई जाती है (नस और धमनी को जोड़ना), या फिर नस में कैथेटर डाला जाता है ताकि ब्लड फ्लो आसानी से हो सके. इस रास्ते के ज़रिए खून मशीन तक जाता है, जहां वो साफ होता है और फिर शरीर में वापस लौट आता है. यानी जो काम किडनी करती है, वही काम अब डायलिसिस मशीन करती है. 

डायलिसिस कराने के लिए हफ्ते में 2 से 3 बार अस्पताल जाना पड़ता है. हर डायलिसिस सेशन लगभग 4 घंटे का होता है. इस तरीके से हीमोडायलिसिस किया जाता है. पेरिटोनियल डायलिसिस नाम का डायलिसिस भी होता है. इसे घर पर किया जा सकता है. इसमें पेट की अंदरूनी झिल्ली (पेरिटोनियम) फिल्टर का काम करती है. इसमें पेट में एक खास फ्लूइड डाला जाता है. डायलिसिस के दोनों तरीके बराबर हैं. दोनों के अपने-अपने फायदे हैं. पेरिटोनियल डायलिसिस घर पर किया जा सकता है, जबकि हीमोडायलिसिस के लिए अस्पताल जाना पड़ता है.

किडनी ट्रांसप्लांट और किडनी डायलिसिस में क्या बेहतर है?

किडनी ट्रांसप्लांट कराना डायलिसिस से बेहतर है. अगर ट्रांसप्लांट किया जाता है और किडनी ठीक से काम करती है, तो सर्वाइवल रेट डायलिसिस से बेहतर होता है. ट्रांसप्लांट के बाद आप अपनी ज़िंदगी नॉर्मल तरीके से जी सकते हैं, जैसी किडनी फ़ेलियर से पहले जी रहे थे. ट्रांसप्लांट वाकई ज़िंदगी को बदल सकता है. ट्रांसप्लांट कराने के लिए आपको एक हेल्दी और सुटेबल डोनर चाहिए. आपकी मेडिकल कंडिशन देखने के बाद ही डॉक्टर तय करते हैं कि आप ट्रांसप्लांट सर्जरी के लिए तैयार हैं या नहीं. अगर आप फिट हैं और आपके पास एक हेल्दी डोनर है, तो ट्रांसप्लांट डायलिसिस से बेहतर होता है.

बीमारी चाहे जो भी हो, इलाज से बेहतर है बचाव. कोशिश ये रहनी चाहिए कि किडनी ख़राब होने की नौबत आए ही न. लिहाज़ा अगर आपको शुगर है तो शुगर लेवल कंट्रोल में रखिए. ब्लड प्रेशर की कोई दिक्कत है तो बीपी कंट्रोल करें. पेनकिलर्स कम से कम लें, क्योंकि पेनकिलर का ज़्यादा इस्तेमाल किडनी ख़राब कर सकता है. पानी खूब पिएं. और अगर पथरी है तो उसका इलाज कराएं. अगर बार-बार यूरिन इंफेक्शन हो रहा है तो डॉक्टर से ज़रूर मिलें.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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