आमिर खान की फिल्म ‘सितारे ज़मीन पर’ आज सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है. इसे आरएस प्रसन्ना ने डायरेक्ट किया है. फिल्म की कहानी ‘डाउन सिंड्रोम’ से पीड़ित 10 बच्चों और उनके बास्केटबॉल कोच के इर्द-गिर्द घूमती है. इसे ‘तारे ज़मीन पर’ फिल्म का स्पिरिचुअल सीक्वल कहा जा रहा है. देखिए, ‘तारे ज़मीन पर’ मूवी में डिस्लेक्सिया से पीड़ित एक बच्चे की कहानी दिखाई गई थी. ये एक लर्निंग डिसेबिलिटी है, जिसमें किसी को पढ़ने, लिखने और शब्दों को समझने में दिक्कत होती है. वहीं, अब ‘सितारे ज़मीन पर’ फिल्म में डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों की कहानी को दिखाया गया है.
'सितारे ज़मीन पर' में जिन बच्चों के कोच बने आमिर, उन्हें कौन-सी जन्मजात कंडीशन है, ये होती कैसे है?
आमिर खान की फिल्म 'सितारे ज़मीन पर' आज रिलीज़ हो गई है. फिल्म की कहानी ‘डाउन सिंड्रोम’ से पीड़ित 10 बच्चों और उनके बास्केटबॉल कोच के इर्द-गिर्द घूमती है. पर डाउन सिंड्रोम आखिर होता क्या है?
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मगर डाउन सिंड्रोम होता क्या है? इसके बारे में हमें सबकुछ बताया मैरिंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद में क्लीनिकल डायरेक्टर डॉक्टर कुणाल बहरानी ने.

डॉक्टर कुणाल बताते हैं कि डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक डिसऑर्डर है. ये उन लोगों को होता है, जिनमें एक्स्ट्रा क्रोमोज़ोम होते हैं. देखिए, सेल हमारे शरीर का बेसिक यूनिट है. हर व्यक्ति के सेल्स में 46 क्रोमज़ोम होते हैं. इनमें से 23 क्रोमोज़ोम मां से मिलते हैं और 23 पिता से आते हैं. ये जोड़ियों में होते हैं. मगर डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में एक एक्स्ट्रा क्रोमोज़ोम होता है. यानी उनके सेल्स में 46 नहीं, बल्कि 47 क्रोमोज़ोम होते हैं.
डाउन सिंड्रोम किसी भी बच्चे को हो सकता है. इसका माता-पिता या प्रेग्नेंसी में आई किसी कॉम्प्लिकेशन से कोई लेना-देना नहीं होता. अक्सर इसके होने का कोई साफ कारण नहीं होता. मगर स्टडीज़ में देखा गया है कि अगर मां की उम्र 35 साल से ज़्यादा है और पिता की उम्र 40 साल से ज़्यादा है. तब बच्चे को डाउन सिंड्रोम या कोई दूसरी जेनेटिक कंडीशन होने का खतरा बढ़ जाता है.
डाउन सिंड्रोम होने पर बच्चे में कुछ लक्षण दिखाई देते हैं. जैसे उनका सिर और नाक चपटी होती है. जीभ मोटी और बाहर की ओर होती है. गर्दन, हाथ, पैर और कान छोटे होते हैं. आंखों की बनावट ऊपर की तरफ होती है. मांसपेशियां कमज़ोर होती हैं और हाइट भी कम होती है.

बच्चे के बड़े होने पर कुछ और लक्षण भी दिख सकते हैं. जैसे कान में बार-बार इंफेक्शन होना. सुनने में परेशानी आना. नज़र कमज़ोर हो जाना. बार-बार बीमार पड़ना या कोई इंफेक्शन होना. दांतों से जुड़ी दिक्कतें होना और दिल से जुड़ी कोई जन्मजात बीमारी होना.
जिन बच्चों को डाउन सिंड्रोम होता है उनका IQ 50 से भी कम होता है. समय के साथ ये और कम होता जाता है. साथ ही, ऐसे बच्चे बहुत ज़िद्दी होते हैं. वो बार-बार गुस्सा करते हैं. उन्हें किसी काम में ध्यान लगाने में बड़ी परेशानी आती है. वो किसी एक चीज़ या आदत पर ज़रूरत से ज़्यादा ध्यान देते हैं, या बार-बार वही एक काम करते रहते हैं.
डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों को चलने, बैठने और कुछ सीखने-समझने में भी बहुत दिक्कत आती है. इसलिए उन्हें अपना पहला कदम चलने, पहला शब्द बोलने, खुद से खाना खाने और टॉयलेट इस्तेमाल करने में काफी टाइम लग जाता है.
किसी बच्चे को डाउन सिंड्रोम है या नहीं. इसका पता जन्म से पहले और बाद में लगाया जा सकता है. इसके लिए प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ स्क्रीनिंग और डायग्नोस्टिक टेस्ट किए जाते हैं. वहीं, बच्चे के पैदा होने के बाद डॉक्टर बच्चे के शारीरिक लक्षणों को देखकर शक कर सकते हैं, और कंफर्म करने के लिए कैरियोटाइप टेस्ट कर सकते हैं. इससे पता चल जाता है कि बच्चे के सेल्स में एक्स्ट्रा क्रोमोज़ोम है या नहीं.
जहां तक बात इलाज की है, तो डाउन सिंड्रोम को पूरी तरह ठीक नहीं किया जा सकता. हालांकि इसके लक्षणों को कम ज़रूर किया जा सकता है. इसके लिए बच्चे को अलग-अलग थेरेपी दी जाती हैं. जैसे फिज़िकल थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी और स्पीच थेरेपी वगैरह.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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