कोई भी उस इंसान को याद नहीं रखता जो सेकेंड आया हो. सिर्फ उस इंसान को ही याद रहता है, कि वो सेकेंड आया था.ये बात कही थी रॉबर्ट विलियम ‘बॉबी’ अंसर ने. अमेरिका के एक कार रेसर. हालांकि ‘बॉबी’ के इस कोट के इतने अपवाद हैं कि इससे असहमत होने का मन करता है. लेकिन एक एक्टर था, जिसने अगर ये कोट सुना होता तो ज़रूर कहता-

एक्टर का नाम- विनोद मेहरा. हिंदी फिल्मों का ऐसा ‘सेकेंड लीड एक्टर’ जिसकी ज़िंदगी में ढेरों सेकेंड, थर्ड और फोर्थ आए.
विनोद मेहरा, जिनका पीछा इस नंबर दो ने मृत्यु के दौरान तक नहीं छोड़ा और दूसरे हार्ट अटैक ने उनकी जान ले ली. कहा गया कि डायरेक्टर के तौर पर उन्हें दूसरी पारी रास नहीं आई.
चलिए, 13 फरवरी, 1945 को जन्मे विनोद मेहरा के बड्डे पर जानते हैं उनसे जुड़े दो इंट्रेस्टिंग किस्से और उनकी ज़िंदगी के बारे में और भी बहुत कुछ.
# 1) जब राजेश खन्ना उनको हराकर सुपरस्टार बन गए-
विनोद मेहरा अपनी फैमली के दूसरे ऐसे शख्स बने जिसने फिल्म इंडस्ट्री जॉइन की. उनसे पहले उनकी बहन शारदा मेहरा फिल्मों में आई थीं.
कैसा अजब इत्तेफाक था कि एक चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर विनोद मेहरा की दूसरी फिल्म का नाम ‘शारदा’(1957) था. हालांकि ये मूवी पहले रिलीज़ हो गई थी, फिर जाकर वो मूवी रिलीज़ हुई जो उन्होंने इससे पहले साइन की थी. नाम था – ‘रागिनी’ (1958). इसलिए ही, कई जगह आप पढ़ेंगे कि ‘रागिनी’ उनकी डेब्यू मूवी थी.

‘रागिनी’ नाम के साथ भी कम बड़ा इत्तेफाक नहीं जुड़ा. इस एक इत्तेफाक के लिए स्टोरी को थोड़ा फ़ास्ट फॉरवर्ड करते हैं, और बात करते हैं साल 2014 की. इस साल एक मूवी आई थी. ‘रागिनी एमएमएस 2’. इस फिल्म की लीड एक्ट्रेस थीं, सनी लियोनी. इत्तेफाक उनसे नहीं जुड़ा.
इत्तेफाक ये है कि सोनिया मेहरा, जो विनोद मेहरा की लड़की हैं, इसमें तानिया कपूर बनीं थीं. 2007 में ‘विक्टोरिया नं. 203’ से अपना करियर शुरू करने वाली सोनिया की ये अब तक की लास्ट मूवी है. ‘रागिनी...’ के बाद वो आज तक कभी बड़े पर्दे पर नहीं दिखीं हैं. ये बात भी बहुत दुखद है कि जब सोनिया सिर्फ 10 महीने की थीं, तभी उनके पिता विनोद उनको और ये दुनिया, दोनों को छोड़कर चले गए. तारीख थी 30 अक्टूबर, 1990.
हां तो, वापस आते हैं विनोद मेहरा की स्टोरी पर. तो कुछ फिल्मों में चाइल्ड आर्टिस्ट का रोल कर चुकने के बाद लगभग 11 साल तक वो बड़े पर्दे से गायब रहे. इस दौरान वो एक कंपनी में मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव के रूप में काम करते थे और एक्टिंग करने की उनकी कोई योजना नहीं थी. अगर रूप के. शौरी ने उन्हें 'गेलॉर्डस' नाम के रेस्तरां में नहीं देखा होता, तो वो दोबारा कभी एक्टिंग में नहीं आते.
यूं 1971 में उनकी पहली मूवी आई. ‘एक थी रीटा’. उनके अपोज़िट में थीं तनुजा. डायरेक्टर रूप के. शौरी की ये मूवी, उनकी ही 1945 की एक मूवी ‘एक थी लड़की’ की रीमेक थी. ‘एक थी लड़की’ सुपरहिट रही थी लेकिन डायरेक्टर रूप की उस सक्सेस को दोबारा कैश कराने की कोशिश असफल रही और ‘एक थी रीटा’ आई-गई हो गई. विनोद मेहरा को बहरहाल काम मिलना जारी रहा.

इसी साल उनकी एक और मूवी आई ‘लाल पत्थर’. ये मूवी हिट तो हुई, लेकिन इस मूवी ने विनोद मेहरा के करियर को टाइपकास्ट सा कर दिया था. उनको ‘सेकेंड लीड एक्टर’ के रोल दिए जाने लगे. क्यूंकि इस मूवी में मेन लीड में राजकुमार, हेमा मालिनी और राखी थे. यूं शायद वो इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के पहले दीपक तिजोरी बन गए थे.
1960 और 1971 के बीच में, यानी चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में उनकी अंतिम फिल्म ‘अंगुलिमाल’ और लीड एक्टर के रूप में उनकी पहली फिल्म ’एक थी रीटा’ के बीच में, भी उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी ज़िंदगी में बहुत प्रभाव डाला. एक लॉस्ट ऑपरट्यूनिटी.
साल 1965 की बात है. यूनाइटेड प्रोड्यूसर और फिल्मफेयर ने मिलकर एक टैलेंट सर्च प्रोग्राम ऑर्गनाइज़ किया. ऑल इंडिया लेवल के इस टैलेंट हंट प्रोग्राम में कुल दस हज़ार से ज़्यादा लोगों ने भाग लिया था. इस टैलेंट हंट प्रोग्राम को बिमल रॉय, बीआर चोपड़ा, नासिर हुसैन, जीपी सिप्पी, ओम प्रकाश मेहरा और शक्ति सामंत जैसे उस वक्त के दिग्गज डायरेक्टर्स जज कर रहे थे. ये इवेंट कितना बड़ा था, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस टैलेंट हंट में जो कोई भी जीतता, उसे इन सभी डायरेक्टर्स की एक-एक फिल्म के अलावा 12 फिल्मों का कॉन्ट्रैक्ट मिलना था.
लास्ट राउंड में 8 लोग सेलेक्ट हुए थे. इन आठ लोगों में सुभाष घई, धीरज कुमार, राजेश खन्ना और विनोद मेहरा जैसे लोग थे. जिन्होंने आगे जाकर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाई.

जब इस कंपटीशन का फाइनल रिज़ल्ट आया, तो पता चला कि विनोद मेहरा सिर्फ एक पॉइंट से राजेश खन्ना से हार गए थे. गौतम चिंतामणि, अपनी किताब 'डार्क स्टार- द लोनलीनेस ऑफ बीइंग राजेश खन्ना' में विनोद मेहरा के बारे में लिखते हैं-
अब केवल अनुमान ही लगाए जा सकते हैं कि दो एक्स्ट्रा पॉइंट्स इस आकर्षक सौम्य एक्टर के भाग्य को कैसे बदल सकते थे. एक्टर जिनके व्यक्तित्व में ऐसी कोई शूं शां नहीं थी, जैसी राजेश खन्ना ने अपने व्यक्तित्व से उपजाई थी.इंट्रेस्टिंग बात ये लगती है कि बाद में जिस एक्टर के व्यक्तित्व में विनोद मेहरा के मैनरिज्म और राजेश खन्ना का ‘शूं शां’ दिखा, उसका नाम विनोद खन्ना था.
# 2) क्या ‘गुरुदेव’ ने उनकी जान ले ली थी?
विनोद मेहरा ने कुल तीन शादियां कीं. पहली शादी अरेंज मैरिज थी. मीना ब्रोका से. लेट सेवंटीज़ में हुई इस शादी के बाद दोनों मुंबई के एक अपार्टमेंट में रहने लगे. शादी को ज़्यादा समय नहीं हुआ कि विनोद मेहरा को पहला हार्ट अटैक आ गया. इस अटैक से उनकी ज़िंदगी बड़ी मुश्किल से बचाई जा सकी. लेकिन इस दौरान वो बिंदिया गोस्वामी के करीब आने लगे. बिंदिया से ये नज़दीकी, मीना से दूरी का कारण बनी. वो मीना को तलाक दिए बिना बिंदिया से चोरी-चुपके मिलने लगे. और कई सालों तक ये राज़ भी दुनिया की नज़रों से छुपा रहा कि बिंदिया और विनोद ने तो कई साल पहले ही शादी भी कर ली.
लेकिन जब खबर बाहर आई तो विनोद की शादीशुदा ज़िंदगी में भूचाल आ गया. मीना के भाई भी विनोद को धमकाने लगे थे. एक दौर ऐसा भी आया था जब बिंदिया और विनोद एक होटल से दूसरे होटल भटकते रहे, ताकि मीना की फैमिली को उनके रिश्ते का पता न चले. दिक्कत ये भी थी कि बिंदिया के परिवार को भी ये रिश्ता पसंद न था.

हालांकि बाद में मीना ब्रोका ने तलाक के लिए अर्जी डाल दी थी और विनोद-मीना का तलाक हो भी गया था. लेकिन बिंदिया और विनोद की शादी भी चार साल से ज़्यादा नहीं चल पाई और बिंदिया ने विनोद को छोड़कर 1985 में जेपी दत्ता से शादी कर ली. बिंदिया ने एक इंटरव्यू में बताया-
मैं अब भी विनोद की बहन (शारदा दीदी) के संपर्क में हूं. वो मुझे बहुत पसंद करती हैं. मेरे बच्चों को खूब आशीर्वाद देती हैं. जितने भी लोगों से मैं मिली, उनमें से विनोद कुछ बेहतरीन लोगों में से एक थे. एक महान आत्मा. लेकिन मेरा मुकाम, मेरी मंज़िल जेपी सा’ब और मेरी दो बेटियां निधि और सिद्धि थीं.इसके बाद उनकी शादी किरण के साथ हुई. यूं ये कहा जा सकता है कि विनोद मेहरा ने तीन शादियां कीं. लेकिन अगर यासिर उस्मान की किताब, ’रेखा- द अनटोल्ड स्टोरी’ को प्राइमरी सोर्स माना जाए, तो उन्होंने एक शादी और की थी. इस किताब के अनुसार-
विनोद ही वो इकलौते शख्स थे, जिन्होंने रेखा को उसके पूरे कलेवर में समझा और प्यार किया. मगर दोनों के एक होने में एक दिक्कत थी. विनोद की मां. उन्हें रेखा के मीडिया को दिए बोल्ड बयान पसंद नहीं थे. उसकी इमेज पसंद नहीं थी.
इन सबके बावजूद रेखा 'मम्मी जी' को मनाने के लिए ट्राई करती रहीं. इसी दौरान खबर आई कि रेखा ने काक्रोच मारने वाला जहर खा लिया है. क्योंकि विनोद शादी के लिए राजी नहीं हो रहे थे. कुछ दिनों बाद दोनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. सफाई दी गई कि रेखा ने जहर नहीं खाया. उनके खाने में काक्रोच था. जिसके चलते फूड प्वाइजनिंग हो गई. इसके कुछ महीनों बाद दोनों की कलकत्ता में शादी हो गई. मगर मम्मी जी तब भी नहीं मानीं. उन्होंने अपने फ्लैट के दरवाजे से रेखा को दौड़ा दिया. कुछ दिनों में ये रिश्ता भी टूट गया. रेखा और विन विन का रिश्ता. रेखा विनोद को विन विन नाम से पुकारती थीं.

सिर्फ यासिर की किताब में ही नहीं, इस रेखा और विनोद के रिश्ते का ज़िक्र विनोद की करीबी रहीं तबस्सुम भी अपने एक शो ‘तब्बसुम टॉकीज़’ में करती हैं. हालांकि वो शादी वाली बात से इनकार करती हैं-
दोनों (विनोद-रेखा) एक दूसरे के बहुत करीब आ गए. एक दूसरे को पसंद करने लगे. मुहब्बत हो गई. दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन अफ़सोस ये शादी नहीं हो पाई.हालांकि इस पूरी घटना के पक्ष में रेखा का कभी कोई बयान नहीं आया, लेकिन उन्होंने इस सारी बातों का खंडन भी कई सालों तक नहीं किया. काफी बाद में, 2004 में जाकर, रेखा ने ‘अ रेंडेवू विद सिमी ग्रेवाल’ शो के एक एपिसोड में बताया कि विनोद और मैं एक दूसरे के ‘वेल विशर’ भर थे. एक ‘अच्छे दोस्त’ भर थे, और कुछ नहीं.
लेकिन जैसा हमने ऊपर बताया उनकी तीसरी ऑफिशियल शादी हुई किरण से. ये 1988 की बात है. इसी दौरान उन्होंने डायरेक्शन में हाथ आजमाने की कोशिश की. ‘गुरुदेव’ निर्देशक के तौर पर उनकी पहली फिल्म थी. ‘गुरुदेव’ में उन्होंने ऋषि कपूर, अनिल कपूर, श्रीदेवी, कादर खान और डैनी डेन्जोंगपा जैसे उस वक्त के सुपरस्टार्स को कास्ट किया था. विनोद इस फिल्म के निर्माता भी थे. लेकिन प्रड्यूसर-डायरेक्टर के तौर पर ये उनकी एकमात्र फिल्म बनकर रह गई. क्यूंकि किरण से शादी हुए अभी 2 साल भी नहीं हुए थे कि उनको दूसरा हार्ट अटैक आया और वो अपनी बीवी और दो बच्चों, सोनिया मेहरा, रोहन मेहरा, को छोड़कर गुज़र गए. तब तक उनकी मूवी ‘गुरुदेव’ पूरी भी नहीं हुई थी. इसे बाद में उनकी पत्नी ने पूरा किया. राज सिप्पी के साथ मिलकर. और इस मूवी के पूरा होते ही वो केन्या चली गईं, जहां उनका मायका और फैमिली बिज़नस था.

वैसे उस वक्त ये कहा गया कि विनोद की मौत के 3 साल बाद 1993 में आई ‘गुरुदेव’, उनके सेकेंड हार्ट अटैक का कारण बनी. क्यूंकि अव्वल तो इसके एक्टर्स सुपरस्टार्स हो चुके थे, इसलिए डेट्स और सेट में लेट आने के चलते इसके निर्माण ने देर होती चली गई और साथ ही मूवी काफी ओवर बजट भी चली गई थी. और जैसा शैलेंद्र के लिए ‘तीसरी कसम’ को लेकर, गुरुदत्त के लिए ‘कागज़ के फूल’ को लेकर और राजकपूर के लिए ‘मेरा नाम जोकर’ को लेकर कहा जाता है, वैसा ही ‘गुरुदेव’ को लेकर विनोद के लिए कहा जाने लगा, कि इस मूवी ने उनकी जान ले ली. तब वो सिर्फ 45 साल के थे.
उनकी एक्ट की हुई कई फ़िल्में भी उनकी मृत्यु के बाद आई थी. जैसे 'पत्थर के फूल', 'इंसानियत' वगैरह.
# सौ से ज़्यादा फिल्मों में काम कर चुके विनोद मेहरा की राजेश खन्ना के साथ सबसे बेहतरीन मूवी अमर प्रेम कही जाती है.
# विनोद की बिंदिया गोस्वामी के साथ कई मूवीज़ आईं. लेकिन इनमें से 'खुद्दार' सबसे ज़्यादा पसंद की गई थी.
# विनोद और रेखा की मूवी 'घर' दर्शकों के साथ साथ समीक्षकों को भी पसंद आई. उसी मूवी का एक खूबसूरत गीत आपकी नज़र. आपकी आंखों में कुछ महके हुए से ख्वाब हैं-
वीडियो देखें:
जब पैरासाइट इतनी फेमस भी नहीं हुई थी, तभी शाहरुख खान ने इसका रिव्यू कर दिया था-