
एक्सीडेंट के बाद रिज़ॉर्ट से वापस जाती पल्लवी, ज़रीना और दिव्या.
स्टारपावर और परफॉरमेंसेज़ 'वकील साब' में शराबी वकील का रोल किया है सुपरस्टार पवन कल्याण ने. पवन कल्याण मास हीरो हैं. एक्शन-डायलॉगबाज़ी और स्वैग झाड़ना उनका फोर्टे है. कैरेक्टर यहां भी लार्जर दैन लाइफ है. मगर इस फिल्म में उन्हें थोड़ा अंडप्ले करते हुए पाया जा सकता है, जो कि आकर्षक लगता है. पल्लवी का रोल किया है निवेदिता थॉमस ने. ज़रीना के किरदार में हैं अंजली. और दिव्या का कैरेक्टर प्ले किया है अनन्या नागल्ला ने. तीनों ही लड़कियों का काम फिल्म में अप टु द मार्क है. यानी उन किरदारों को जितनी विश्वसनीय बनाया जा सकता था, बनाया गया है. इमोशनल सीन्स में हालांकि निवेदिता इंप्रेस करती हैं. प्रकाश राज सत्य देव के विरोधी वकील नंदा के रोल में हैं. प्रकाश राज से आप जो उम्मीद करते हैं, वो आपको यहां मिलता है. मगर दिक्कत ये है कि हम उनसे उम्मीद से ज़्यादा करने की उम्मीद करते हैं. इसे शिकायत नहीं कॉम्प्लीमेंट की तरह लिया जाना चाहिए.
फिल्म में तीन लड़के भी हैं. 'पिंक' में जो रोल विजय वर्मा ने किया था, वो आपका ध्यान खींचता है. मगर यहां इन लड़कों को वैसे कोई खास सीन या मौके नहीं दिए गए हैं, जहां वो परफॉर्म कर सकें. 'वकील साब' में मुकेश ऋषि और श्रुति हासन गेस्ट अपीयरेंस में नज़र आते हैं. श्रुति वाला किरदार फिल्म की कहानी में जोड़-घटाव करता है. फिल्म के मूड को थोड़ा रिफ्रेश भी करता है. मगर मुकेश ऋषि सिर्फ दो-तीन सीन्स में देखने को मिलते हैं.

तमाम पावरफुल लोगो के खिलाफ जाकर उन लड़कियों का केस लड़ते सत्य देव उर्फ वकील साब.
फिल्म की अच्छी बातें # 'वकील साब' सबसे अच्छी चीज़ ये करती है कि वो फिल्म के कोर्टरूम वाले हिस्सों को ओरिजिनल फिल्म से ज़्यादा अलग करने की कोशिश नहीं करती. डायलॉग्स में भी भाषा के अलावा कुछ खास बदलाव नज़र नहीं आता. जो कि फिल्म और उसे देखने वाली जनता दोनों के लिए फायदेमंद चीज़ है. जो बात 'पिंक' कहती है, उसे इंडिया के हर व्यक्ति को उसकी समझ आने वाली भाषा में सुनना चाहिए. क्योंकि वो बहुत प्रासंगिक और ज़रूरी बात है.
# स्टार वर्शिपिंग वाली साउथ इंडियन इंडस्ट्री में पवन कल्याण के लेवल का स्टार भी मीनिंगफुल फिल्में और किरदार कर रहा है. इस फिल्म में पवन कल्याण ब्रांड ऑफ फिल्मों की तरह एक्शन और स्वैग भी है और मजबूत मैसेज भी.
# फिल्म की लंबाई और पेस दोनों में थोड़ी बेहतरी की गुंजाइश थी. मगर इसका कॉम्पनसेशन हमें सत्यदेव की बैकस्टोरी के तौर पर मिल जाता है. सो नो कंप्लेंट्स.
# दिलचस्प बात ये है कि बॉलीवुड स्टार्स किसी भी तरह का पॉलिटिकल या सोशल इशू अपनी फिल्म में उठाने से बचते हैं. मगर साउथ इंडियन फिल्मों में ना-ना करते हुए भी काफी कुछ कह दिया जाता है. जैसे इस फिल्म में भी लोगों की जमीन खाली कराकर सड़क बनाने की बात होती है. उसका विरोध होता है. निचले आर्थिक वर्ग के लोगों के लिए आवाज़ उठाई जाती है. इसलिए ये फिल्म रीमेक होते हुए भी ओरिजिनल फिल्म की लीक पर नहीं चलती. नई लगती है.

रिज़ॉर्ट में एक्सीडेंट का शिकार हुए तीनों लड़के.
फिल्म की बुरी बातें # फिल्म 'वकील साब' की बुरी बात ये है कि ये ये दो हिस्सो में बंटी हुई है. पहले हिस्से में हमें वकील साहब के बारे में तकरीबन सबकुछ बता दिया जाता है. दूसरे हिस्से में फिल्म मेन पॉइंट पर पहुंचती है. मगर इससे फिल्म बोरिंग या अझेल नहीं होती है.
# पिछले दिनों सलमान खान की फिल्म 'भारत' रिलीज़ हुई थी. उस फिल्म को एक एवरेज फिल्म मानकर छोड़ा गया. मगर फिल्म में 70 साल के आदमी को गुंडों को पीटते हुए देखना आज भी उतना एंबैरेसिंग लगता है. वैसा ही कुछ माहौल आपको 'वकील साब' में देखने को मिलता है. मगर 'वकील साब' के पास भरपूर क्वॉलिटी कॉन्टेंट है, इसलिए इस चीज़ को बड़े आराम से इग्नोर किया जा सकता है.

सत्य देव के विरोधी वकील नंदा के रोल में प्रकाश राज.
इस फिल्म को देखने का ओवरऑल एक्सपीरियंस क्या रहा? 'वकील साब' एक मजबूत कोर्ट रूम ड्रामा है, जिसमें किसी मसाला फिल्म जितना मज़ा है. आपको भाषण नहीं दिया जाता. बातचीत और समझ आने वाली भाषा में एक गंभीर बात कही जाती है. फिल्म खत्म होने के बाद आप एक पॉज़िटिव फील के साथ बाहर निकलते हैं. एंटरटेन करने के साथ 'वकील साब' एज्यूकेट भी करती है. एक फिल्म से आपको इससे ज़्यादा क्या चाहिए. अगर इससे ज़्यादा कुछ ढूंढ रहे हैं, तो साहब 'वकील साब' आपके लिए नहीं है.