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सर्जिकल स्ट्राइक पर पूर्व ISI चीफ के बयान से पाकिस्तान में बवाल

भारत-पाकिस्तान के दो टॉप जासूसों के मिल-बैठने से सामने आया है ये.

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पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के पूर्व चीफ असद दुर्रानी की लिखी एक किताब पर वहां हंगामा मचा हुआ है. जांच बैठ गई है. दुर्रानी ने ये किताब RAW प्रमुख रह चुके ए एस दुलत और भारतीय पत्रकार आदित्य सिन्हा के साथ मिलकर लिखी है. उनके ऊपर पाकिस्तान से जुड़े सीक्रेट्स खोलने का आरोप लग रहा है. इस किताब में दुर्रानी ने सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में भी बात की है (सांकेतिक फोटो: इंडियन आर्मी)
किताब पढ़ रहा हूं. वही जिस पर बवाल मचा है. भारत में कम, पाकिस्तान में ज्यादा. पहले जरूरी ब्योरे.
किताब- द स्पाई क्रॉनिकल्स- RAW ISI ऐंड द इल्यूसन ऑफ पीस राइटर- ए. एस. दुलत, असद दुर्रानी और आदित्य सिन्हा पब्लिशर- हार्पर कॉलिन्स कीमत- 799 रुपये (हार्ड बाउंड एडिशन)
सबसे पहले किताबों ने ही सिखाया था. सदा सच बोलो. इसलिए सच बोलता हूं. अभी पूरी नहीं पढ़ी है. मगर रोज इससे जुड़ी इतनी खबरें आ रही थीं कि सब्र न रहा. इसलिए जितनी पढ़ी, उतनी के ही किस्से ले आया. उन्हें पढ़ने से पहले कुछ बुनियादी बातें जान लें. 'कश्मीर: द वायपेयी ईयर्स' ठीक किताब है.
'कश्मीर: द वायपेयी ईयर्स' ठीक किताब है. ऐसा इसलिए कि इसे लिखने के लिए बस लाइब्रेरी दर लाइब्रेरी की खाक भर नहीं छानी गई. या कि बस इंटरनेट नहीं खोदा गया. दुलत ने RAW और IB, और फिर PMO के अपने फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस से लिखी है ये किताब.

1. दुलत की ये दूसरी किताब है. पिछली किताब थी कश्मीर- वाजपेयी ईयर्स. बोरिंग नहीं थी. कई जगह आप पेंसिल से मार्क करेंगे. और कश्मीर के बारे में काफी भरम दूर होंगे. बस इतना समझ लीजिए. उसके भी को-राइटर इस किताब की तरह आदित्य थे. आदित्य पेशे से पत्रकार हैं. गंभीर किस्म के.
2. ए एस दुलत हमारी विदेश में सक्रिय गुप्तचर एजेंसी RAW (रिसर्च एंड ऐनालिसिस विंग) के मुखिया रहे. 1999 से 2000 के बीच. उसके बाद अटल सरकार में PMO के लिए काम किया. 2004 के बाद से ट्रैक टू डिप्लोमसी में सक्रिय हैं. ये ट्रैक टू क्या है. जब किसी भी झगड़े के मुख्य खिलाड़ी, जैसे भारत और पाकिस्तान, प्रचार करके बात न करें. कि PM मिल रहे हैं. या फिर सेक्रेटरी मिल रहे हैं. इसके बजाय पूर्व जनरल, प्रफेसर और दूसरे लोग मिलें. न्यूट्रल जगहों पर. बात को आगे बढ़ाएं. और जब कुछ मसलों पर सहमति बन जाए, तब नेताओं और अधिकारियों को औपचारिक तौर पर शामिल करें. ऐसी डिप्लोमसी में सरकारें भी परोक्ष रूप से शामिल रहती हैं. ताकि बातचीत की एक खिड़की हर बुरी हालत में भी खुली रहे.
ये किताब
ये किताब बरसों की मेहनत का फल है. दुलत और दुर्रानी, दोनों अपने-अपने मुल्क में तो साथ मिल नहीं सकते थे. सो वो बाहर के देशों में मिलते. आदित्य भी साथ होते थे. कभी इस्तांबुल, कभी थाइलैंड, कभी नेपाल (फोटो: ट्विटर)

3. किताब के दूसरे राइटर हैं जनरल असद दुर्रानी. उन्होंने 1990 से 1992 के बीच पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ( इंटर सर्विसेस इंटेलिजेंस) को हेड किया. उसके बाद वे भी कभी सरकार को सलाह देते, कभी पर्चा (अकेडमिक रिसर्च पेपर) लिखते. अब उन्होंने दुलत के साथ मिलकर ये किताब लिखी.
4. किताब क्या है, दो पूर्व जासूसों के बीच एक लंबी बातचीत है. जो कई बरसों तक चली. कई जगहों पर. ट्रैक टू डिप्लोमेसी मीटिंग्स के दौरान. पत्रकार आदित्य सिन्हा की मौजूदगी में. बातचीत हर विषय पर है और बहुत फ्री फ्लो किस्म की है. हां, बस वहीं ऐहतियात है, जहां अपने मुल्क से जुड़े संवेदनशील राज़ उजागर नहीं किए जा सकते. इस सावधानी के बावजूद किताब दो स्तरों पर उम्दा दिख रही है. पहला, मेरे जैसे आम पाठकों को बहुत कुछ पता चलता है कि दोनों देशों के बीच पर्दे के पीछे क्या हो रहा है, ये जानने में. दूसरा, कई सीक्रेट भी न-न करते हुए आउट होते हैं.
5. दुलत की भारत में आलोचना हो रही है. हल्की-फुल्की अकादमिक किस्म की. कि वे इस बातचीत में दब्बू से दिखे. कई ने ये भी कहा कि ये दुलत की स्टाइल थी. दुर्रानी से ज्यादा से ज्यादा निकलवाने की. दुर्रानी की पाकिस्तान में छीछालेदर हो रही है. आर्मी ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी बिठा दी है. उनके देश छोड़कर जाने पर पाबंदी लगा दी गई है.
ये इस किताब के लॉन्चिंग के समय की तस्वीर है. तस्वीर में जो लोग नजर आ रहे हैं, उनके खिलाफ हमारे यहां भी सोशल मीडिया पर भरा-पूरा कैंपेन चला. ये जताया गया कि ये सब पाकिस्तानी जासूस की किताब का प्रचार कर रहे हैं. कि दुलत ने भी साथ मिलकर किताब लिखी है, ये बात मक्कारी से छुपा ली गई (फोटो: हार्पर कॉलिन्स)
ये इस किताब के लॉन्चिंग के समय की तस्वीर है. तस्वीर में जो लोग नजर आ रहे हैं, उनके खिलाफ हमारे यहां भी सोशल मीडिया पर भरा-पूरा कैंपेन चला. ये जताया गया कि ये सब पाकिस्तानी जासूस की किताब का प्रचार कर रहे हैं. कि दुलत ने भी साथ मिलकर किताब लिखी है, ये बात मक्कारी से छुपा ली गई (फोटो: हार्पर कॉलिन्स)

आप दोनों के करियर पर गौर करेंगे, तो पाएंगे. हैं दोनों जासूस. मगर पार्ट टाइम. दुर्रानी फौज में अफसर थे. करियर के आखिरी दौर में मिलिटरी इंटेलिजेंस में पहुंचे और फिर वहां से ISI. दुलत IPS थे. लंबे वक्त तक इंटेलिजेंस ब्यूरो में रहे. मगर टॉप पर पहुंचे विदेश में इंटेलिजेंस का काम कर रही एजेंसी RAW के स्ट्रक्चर में. बाद में PMO में भी सेवाएं दीं. शायद इसी खासियत की वजह से दोनों खुलकर बात कर पाए. जो दशकों जासूस रहते हैं, जैसे डोभाल, वे इस तरह घुल-मिल नहीं पाते. उन्हें ट्रस्ट का संकट रहता है. ऐसा इन दो जासूसों ने अपनी किताब में भी कहा. अब जानिए वो बातें, जो याद रह गईं. उन्हें और फिर मुझे.
1. जनरल दुर्रानी की कलम से, भूमिका लिखने के दौरान-
मैं पैदाइशी भारतीय हूं. तब कोई पाकिस्तानी था ही नहीं. हम शेखूपुरा में रहते थे ,जो पाकिस्तान के हिस्से आया. हालांकि पाकिस्तान बनते वक्त हम दिल्ली में थे. रिश्तेदारों के पास. ट्रेन में बैठ घर लौटे. सही-सलामत. ताज्जुब होता है आज सोचकर. बंटवारे की मेरी पहली याद- मटका. हम घर से स्कूल जाते. रास्ते में बाजार आता. उसमें एक दुकान. जिसका हिंदू मालिक बाहर मटका रखता. ताकि आने-जाने वाले पानी पी सकें. मगर अब वो नहीं था. मालिक बदल गया. मटका हट गया. फिर हम मटका की जगह मुक्के की बात करने लगे. 1950 के दशक की शुरुआत थी. किसी बात पर भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव हुआ. और हमारे प्रधानमंत्री लियाकत अली खान ने एक रैली में मुक्का लहराया. भारत को डराने के लिए. और ये लियाकत का मुक्का एक सिंबल बन गया. और उसके बाद से मुक्का ताने हैं दोनों मुल्क.
2. ट्रैक टू डिप्लोमसी के दौरान दुलत की इस्लामाबाद विजिट. दुर्रानी की कार से ब्लैक लेवल निकली और दुलत के कमरे पर बैठकी जमी. और तब जनरल दुर्रानी ने कहा. कैसी होंगी चीजें जब दोनों देशों के बीच एक समझदारी हो. जंग और पलटवार के बारे में भी. मान लीजिए, मुंबई आतंकी हमलों जैसा कुछ होता है. तो हमें पता होगा कि भारत को पलटवार करना होगा. और इसे मैनेज किया जा सकता है. कि जैसे नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक की, वैसा कुछ हो. सीमित लक्ष्य हासिल किए जाएं और शोर थम जाए.
दुलत को ये बात बहुत रोचक लगी. एक पाकिस्तानी जासूस बता रहा है. कैसे सर्जिकल स्ट्राइक जैसी चीज स्क्रिप्ट की जाए और पाकिस्तान को इसके बारे में पता भी रहे.
3. पड़ोसी के चौकीदार का शुक्रिया दुर्रानी तब पाक सेना में कर्नल थे. उनकी पोस्टिंग आई. वेस्ट जर्मनी में. डिफेंस अताशी के तौर पर. बैकग्राउंड चेक हुई. जांच करने वाले दुर्रानी की ससुराल लाहौर भी पहुंचे. घर पर ताला लटका था. पड़ोसी के चौकीदार से पूछा. कैसे लोग हैं ये. उसने जवाब दिया. अच्छे लोग हैं. और मुझे तैनाती मिल गई. और इसी तैनाती के दौरान पहली बार मैं भारतीयों से मिला.
ये नवंबर 2008 में हुए मुंबई हमलों के दौरान की एक तस्वीर है. ये छत्रपति शिवाजी टर्मिनल है. प्लेटफॉर्म पर खून बिखरा पड़ा है. जहां किसी भी वक्त खचाखच भीड़ होती है, वो स्टेशन वीराना पड़ा है. यात्रियों के बैग छितरे पड़े हैं. इसी दिन पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने ताज होटल समेत मुंबई की कई जगहों पर हमला किया था (फोटो: रॉयटर्स)
ये नवंबर 2008 में हुए मुंबई हमलों के दौरान की एक तस्वीर है. ये छत्रपति शिवाजी टर्मिनल है. प्लेटफॉर्म पर खून बिखरा पड़ा है. जहां किसी भी वक्त खचाखच भीड़ होती है, वो स्टेशन वीराना पड़ा है. यात्रियों के बैग छितरे पड़े हैं. इसी दिन पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने ताज होटल समेत मुंबई की कई जगहों पर हमला किया था (फोटो: रॉयटर्स)

4. ISI चीफ का बेटा मुंबई से नहीं उड़ सकता जनरल दुर्रानी का बेटा जर्मनी में काम कर रहा था. बीसेक साल से. मगर उसने पाकिस्तानी पासपोर्ट नहीं छोड़ा था. कंपनी के काम से वो इंडिया आया. केरल के कोच्चि में. खूब स्वागत हुआ, खूब काम हुआ. फिर उसने सोचा कोच्चि के बजाय मुंबई से फ्लाइट पकड़ लेता हूं. मगर एयरपोर्ट पर सरप्राइज उसका वेट कर रहा था. उसे इमिग्रेशन ऑफिस ने वापस भेज दिया. इस सवाल के साथ. कि आप मुंबई में क्या कर रहे हैं. आप तो कोच्चि से ही फ्लाइट ले सकते हैं. ये प्रसीजर पाकिस्तान के नागरिकों के साथ होता है. उन्हें रजिस्टर करना होता है. जितने शहरों का वीजा होता है, उतने में ही जा सकते हैं और वहीं से वापस आ सकते हैं.
अब जनरल दुर्रानी परेशान. ये 2009 था. मुंबई में आतंकी हमले के एक साल बाद. उन्हें लगा मीडिया में बात फैल गई या पुलिस वालों ने बुरे से ट्रीट किया, तो क्या होगा. ऐसे में दुलत ने उनकी मदद की. अपने IB के दोस्तों के जरिए. इस वाकये पर चर्चा के दौरान दुलत ने एक बात कही. वे बोले, तुम्हारे बेटे ओस्मान की हेल्प के लिए मैंने एक RAW वाले को भी बोला. हालांकि वो कभी क्रेडिट नहीं लेगा. पर क्रेडिट तो RAW ने जनरल मुशर्रफ की जान बचाने का भी नहीं लिया. RAW ने ही पाकिस्तान को बताया था कि 2003 में मुशर्रफ पर हमला होने वाला है.
ये अप्रैल के महीने की तस्वीर है. दक्षिणी कश्मीर के शोपियां जिले में एक एनकाउंटर के दौरान ली गई थी. फोकस में भारतीय सेना का एक जवान है. आतंकियों के साथ मुठभेड़ में बंदूक थामे जमा है. पेड़ों के पीछे, झुरमुटे में लोकल कश्मीरी जमा हैं. पिछले कुछ सालों से वहां दस्तूर सा बन गया है. मुठभेड़ के समय स्थानीय लोग वहां जमा होकर सेना का विरोध करते हैं. कई बार सेना और सुरक्षाबलों पर हमला भी कर देते हैं (फोटो: रॉयटर्स)
ये अप्रैल के महीने की तस्वीर है. दक्षिणी कश्मीर के शोपियां जिले में एक एनकाउंटर के दौरान ली गई थी. फोकस में भारतीय सेना का एक जवान है. आतंकियों के साथ मुठभेड़ में बंदूक थामे जमा है. पेड़ों के पीछे, झुरमुटे में लोकल कश्मीरी जमा हैं. पिछले कुछ सालों से वहां दस्तूर सा बन गया है. मुठभेड़ के समय स्थानीय लोग वहां जमा होकर सेना का विरोध करते हैं. कई बार सेना और सुरक्षाबलों पर हमला भी कर देते हैं (फोटो: रॉयटर्स)

5. नरेंद्र मोदी के बारे में क्या बोले आदित्य सिन्हा ने सवाल पूछा. अगर मोदी आर्टिकल 370 (जो कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देता है) हटा देते हैं, तो क्या होगा? इस पर दुर्रानी बोले. नरेंद्र मोदी करतब दिखाते रहते हैं. मगर उसके पीछे कोई स्पष्ट योजना नहीं होती. एक करतब काम नहीं करता, तो दूसरा शुरू हो जाता है. दुलत का इस सवाल पर जवाब विस्तृत था. वे बोले, आर्टिकल 370 की इतनी बात होती है. मगर उसके प्रावधानों में अब बचा ही क्या है. दूसरे कानूनों से उसे भोथरा कर दिया. अब उसे हटाया जाता है, तो बाकी भारत में त्योहार मनेगा. कश्मीरी फिर विक्टिम की तरह महसूस करेंगे. हासिल कुछ नहीं होगा. इस जवाब पर आदित्य की टिप्पणी दिलचस्प थी. हासिल तो नोटबंदी से भी कुछ नहीं हुआ. मगर जनता में ये मैसेज गया कि मोदी काले धन पर गंभीर हैं.
द स्पाई क्रॉनिकल्स के बारे में और भी बातें करेंगे. अगले आर्टिकल में आपको बताएंगे एक पाकिस्तानी जनरल के बारे में, जो अमेरिका के हाथों बिक गया. और जिसके चलते ओसामा को पकड़वाने वाले डॉ. आफरीदी जेल में हैं.   पढ़ते रहिए दी लल्लनटॉप डॉट कॉम.


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