यूं स्टोरी में एक कॉन्फ्लिक्ट या मेन प्लॉट बनता है जो क्लाइमेक्स तक इंटेंस होता चला जाता है. लेकिन मूवी लास्ट में ‘...तो बच्चा बजाओ ताली’ वाली फील देते हुए हैप्पी एंडिंग को प्राप्त हो जाती है.
अरे हां! पति वाले कैरेक्टर का एक दोस्त भी है. फ़हीम रिज़वी. जो इस कॉमेडी मूवी में कॉमिक रिलीफ लाने का काम करता है. और जिसे लगता है कि वो अभिनव त्यागी रुपी राम के जीवन में हनुमान का रोल प्ले करेगा. लेकिन दरअसल वो तो लंका लगाने के लिए अवतरित हुआ है. जैसा एक जगह अभिनव त्यागी (चिंटू) कहता है.
पति जो कभी प्रेमी बना ही नहीं. न शादी से पहले किसी और का. न शादी के बाद अपनी पत्नी का.
# एक्टिंग का बही खाता -
# पति. यानी अभिनव त्यागी बने है कार्तिक आर्यन. जिनके बारे में अब समझ में आना असंभव हो गया है कि अच्छी एक्टिंग कर रहे हैं या टाइपकास्ट हो रहे हैं. मूछों के साथ, मूछों के बिना. शादीशुदा, बैचलर. एक बार 'रज्जो' बन चुके आर्यन को देखकर अब कोई अलग फील आती ही नहीं. और शायद डायरेक्टर्स भी उनसे ऐसा ही चाहते हैं.
# पत्नी. यानी वेदिका त्रिपाठी बनीं भूमि को ऐसे रोल्स 9 टू 5 सरीखे रूटीन ऑफिस वर्क लगते होंगे. जिसमें उनको ‘सांड की आंख’ लेवल के एफर्ट्स नहीं लगाने पड़ते होंगे. बस आए, दस बारह टेक में चार पांच सीन शूट किए और घर गए.
# वो. यानी तपस्या सिंह का रोल अदा किया है चंकी पांडे की लड़की, अनन्या पांडे ने. वो मूवी में कॉन्फिडेंट तो दिखती ही हैं, साथ ही एक्टिंग भी ठीक की है. लेकिन उनके ट्रू पोटेंशियल को जानने के लिए उनकी एक दो मूवीज़ का और इंतज़ार करना होगा.
अपराशक्ति खुराना. गज़ब. वो होता है न, कि एक मूवी के बाद आप कुछ और बड़े हो जाते हैं. आप कुछ और परिपक्व हो जाते हैं. फहीम रिज़वी का किरदार भी अपारशक्ति खुराना के साथ यही करता है. उन्हें कुछ और बड़ा बना देता है. कुछ और परिपक्व बना देता है. मूवी में उनकी कॉमिक टाइमिंग और उर्दू के तलफ्फुज़ ऐसे हैं कि शायद पैकअप के बाद उन्हें रोज़ 'घर वापसी' करनी पड़ती होगी. ;-)
सनी सिंह, जिनकी कार्तिक के साथ जोड़ी काफी सेलिब्रेट की जाती है. इसमें एक गेस्ट रोल में है. उनके आने पर हॉल में इतनी सीटियां बजने लगती हैं गोया शाहरुख़ की मूवी में सलमान का गेस्ट एपियरेंस हो.
पत्नी. जो पति से प्रेम तो करती है, लेकिन अपने आत्मसमान के एवज़ में नहीं.
# कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन-
‘पति, पत्नी और वो’ को भूषण कुमार और जूनो चोपड़ा की कंपनी ने प्रोड्यूस किया है. जूनो बलदेव राज चोपड़ा के पोते हैं. ये फिल्म 1978 में आई बीआर चोपड़ा की फिल्म की रीमेक है. उस फिल्म और इस फिल्म की समानता मूवी के शुरू होने से पहले ही दिखने लग जाती है. जब बीआर चोपड़ा के बैनर का थीम शंखनाद होता है-कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन...
इसके बाद उस मूवी, यानी पुरानी वाली और इस मूवी, यानी नई वाली में समानताएं केवल ‘रेफरेंस’ के स्तर पर ही रह जाती हैं. मतलब इंस्पिरेशन के स्तर पर, न कि कॉपी के. और इसलिए ये समानताएं, ये सटल रेफरेंसेज़ अच्छे लगते हैं. मतलब ऐसा लगता है कि ये नई वाली मूवी उस मूवी को कॉपी नहीं कर रही. बस उसका और उसकी लेगेसी का सम्मान भर कर रही है.
# कि जब, बैकग्राउंड में ‘ठंडे ठंडे पानी से’ गीत चलता है.
# कि जब, नई वाली मूवी के क्लाइमेक्स में कृति सेनन उसी रंग के कपड़े पहन कर आती हैं जिस रंग के पुरानी मूवी में परवीन बॉबी पहन कर आईं थीं.
# कि जब, फहीम रिज़वी का किरदार, अब्दुल करीम दुर्रानी के किरदार का बड़े यूनिक तरीके से अडैप्टेशन करता है.
वो. जिसका अपना भी एक अस्तित्व है. और फिल्म इसे नकारती नहीं.
# अच्छी या फिर कम बुरी बातें-
मूवी के डायलॉग्स या वन लाइनर्स बड़े इंटेलिजेंट ढंग से लिखे गए हैं. जिनको सुनकर एक पहेली हल कर लेने करने वाला सेटिस्फेकशन मिलता है. और इसी से हास्य पैदा होता है. जैसे-
टमाटर पैक कर लो. क्यूंकि, ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा.
या फहीम रिज़वी से यूपी पुलिस का कहना-
फहीम जी बी एक्स्ट्रा केयरफुल.
अगर आप मूवी में अपने इमोशन पूरी तरह इंवेस्ट करते हैं तो आपको क्लाइमेक्स का वो डायलॉग भी अच्छा लगेगा जहां वेदिका त्यागी कहती है-
अगर तुम्हारी हंसी किसी को क्यूट लगे तो सोचना कि तुम्हारी हंसी है किसके वजह से.
‘पति पत्नी और वो’ के ट्रेलर ने डायलॉग्स के चलते बहुत कंट्रॉवर्सी बंटोरी.
ट्रेलर देख कर ऐसा महसूस होता था मानो किसी ने फैमिली ग्रुप में आने वाले सस्ते वॉट्सऐप फॉरवर्ड लेकर डायलॉग लिख दिए हैं. जैसे-
'मेरी बीवी भाग गई है.'
'ओह, तो मेरी भी भगवा दो.'
ट्रेलर में एक जगह कार्तिक आर्यन का किरदार ये भी कहता है कि-
बीवी से सेक्स मांग लें तो हम भिखारी, बीवी को सेक्स मना कर दें तो हम अत्याचारी, और किसी तरह जुगाड़ लगा के उससे सेक्स हासिल कर लें न, तो बलात्कारी भी हम ही हैं.
इसको लेकर लल्लनटॉप ने तो आपत्ति जताई ही थी, साथ ही सोशल मीडिया और बाकी जागरूक लोगों ने भी इसे लेकर अपना विरोध दर्ज़ किया था.
हालांकि मूवी में राहत की बात ये है कि 3 मिनट के ट्रेलर में जितने कंट्रॉवर्शियल डायलॉग्स हैं 2 घंटे के लगभग की मूवी में भी उससे सिर्फ एक और एक्स्ट्रा कंट्रॉवर्शियल डायलॉग है. ये एक्स्ट्रा वाला ट्रांसजेंडर्स को लेकर है. और इसे किसी भी हालत में मूवी में नहीं होना चाहिए था. लेकिन बाकी मूवी सुथरी है. और कार्तिक के मोनोलॉग से भी 'बलात्कारी' शब्द को 'बेड संस्कारी' से रिप्लेस कर दिया गया है.
मूवी जितनी महिला विरोधी अपने ट्रेलर से लग रही थी उतनी है नहीं. बल्कि एंड में तो ये 'सामजिक इश्यूज़' को लेकर कुछ ज़्यादा ही ज्ञान देने लगती है. प्रीची लगने लगती है.
मूवी के फीमेल करैक्टर्स भी पर्याप्त स्ट्रॉन्ग हैं. चाहे उनकी तुलना पुरानी वाली ‘पति पत्नी और वो’ की फीमेल कैरेक्टर्स से करो या कार्तिक की ही किसी पुरानी मूवी के फिमेल कैरेक्टर्स से. या फिर रिसेंटली आईं 'हाउस फुल 4' टाइप मूवीज़ से. जब भूमि पेडणेकर कहतीं हैं-
पतिव्रता आउट ऑफ़ फैशन है. आजकल कुलटाओं का ज़माना है.
या, जब वो कहतीं हैं-
हमारा पति चरित्रहीन हो गया.
...तो यकीन जानिए वो ये सब इतने कॉन्फिडेंस और अधिकार से कहती हैं कि अपने पति से धोखा खा रहा उनका किरदार भी 'नो नोनसेंस' किरदार लगता है. वो कहीं से भी 'अबला नारी' टाइप किरदार नहीं लगता. ये किरदार अपने होने वाले पति से साफ़ बोल देता है कि वो वर्जिनिटी खो चुका है या फिर उसकी हॉबी ये है कि उसे सेक्स बहुत पसंद है.
मूवी की एक और अच्छी बात इसका फैमिली मूवी होना है. न्यूनतम या ज़ीरो बिलो दी बेल्ट जोक. न्यूनतम या ज़ीरो द्विआर्थी डायलॉग. और इतनी ही मात्रा के सेक्स या क्राइम सीन्स. हां फिल्म इक्का-दुक्का जगह, माफ़ कीजिए पर इधर-उधर भटककर 'लूज़ टॉक' करने लगती है.
'पति पत्नी और वो' का ट्रांसलेशन, 'कानपुर लखनऊ और दिल्ली' भी किया जा सकता है.
फिल्म के डायरेक्टर और लेखक मुदस्सर अज़ीज़ हैं और उनकी तारीफ़ मूवी की क्रिस्पनेस के चलते. एडिटर की तारीफ़ फिल्म छोटी करने के चलते. और स्क्रिप्ट राईटर (अगेन मुदस्सर अज़ीज़) की तारीफ़ इसलिए कि मूवी के ओवरऑल इंटेंशन ग़लत नहीं लगते हैं.
चिरंतन दास की सिनेमाटोग्राफी की बात ज़रूर होनी चाहिए. कि जिस तरह से गली गली घूम के कानपुर का नक्शा बनाया है. मूवी देखने जाएं तो इसके सबसे पहले सीन को गौर से देखिएगा जब कैमरा दूर से आता हुआ कोर्ट के गुंबद से गुज़रकर एक्टर्स पर फोकस हो जाता है. विहंगमता ऐसी कि मानो किसी स्लो मोशन में चल रही चील पर लगा दिया गया हो. या फिर ये शायद 'ड्रोन' हो.
# बुरी या फिर कम अच्छी बातें-
मूवी की एक कमी इसमें ताज़गी का न होना है. जैसे भूमि के किरदार को ही ले लें. कभी वो तनु वेड्स मनु की कंगना लगती हैं तो कभी वो जब वी मेट की करीना तो कभी मनमर्जियां की तापसी.
कुछ और फ़ॉर्मूले भी यूज़ किए गए हैं और ये भी मूवी के ताज़ेपन में कमी लाते हैं. जैसे अगर किसी पुरुष को सीधा-साधा दिखाना है तो उनकी नाक के नीचे मूछें चेप दो. कानपुर के साथ ‘ठग्गू के लड्डू’ और ‘कंटाप’ जैसे शब्द टैग कर दो. मुस्लिम कैरेक्टर को 'एक विशेष तरह का' डिक्शन दे दो. दिल्ली दिखाना है तो ‘राष्ट्रपति भवन’ दिखा दो.
मूवी का म्यूज़िक एल्बम कई गीतकारों और संगीतकारों का कोलाज है. लेकिन फिर भी औसत दर्ज़े का ही है.
मूवी का क्लाइमेक्स भी थोड़ा सपाट है. वो जैसा हज़ारों हॉलीवुड-बॉलीवुड मूवीज़ में हम देख चुके हैं. एयरपोर्ट वाला. बस वही.
और अंत में क्रेडिट रोल-
मूवी एंटरटेनिंग तो है ही साथ ही आजकल बनने वाले कंटेट के हिसाब से फैमिली मूवी की कैटेगरी में आती है. अच्छे ह्यूमर की तलाश करने वाले अपनी पूरी फैमिली के साथ इसे देखने जा सकते हैं. इसके अलावा इसे देखा जा सकता है 'नेहा' नाम के एक कैरेक्टर के चलते जो फिल्म में कहीं नहीं है. या इसे देखा जा सकता है 'राकेस' यादव की 'मैं हूं ना' फेम आशिकी के लिए. इसे कानपुर, लखनऊ और दिल्ली के लिए भी देखा जा सकता है. और 'हाउसफुल 4' या 'पागलपंती' से अपने को डिटॉक्स करने के लिए तो इसे यकीनन देखा जा सकता है.
वीडियो देखें:
मामा गोविंदा के साथ अपना झगड़ा खत्म करना चाहते हैं कृष्णा अभिषेक?-