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नवाज ने सुनाया पहलवानी के दिनों का किस्सा, जब उन्हें 'तीतर पहलवान' बुलाया जाता था

लंगोट बांधकर रोज अखाड़े में जाते. बदन पर तेल-मिट्टी की मालिश हो रही थी. धोबी पछाड़ समेत कुछ दांव उन्हें आज भी याद है.

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लल्लनटॉप के साथ हुए इंटरव्यू के दौरान नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी. दूसरी तरफ फिल्म 'घूमकेतू' का एक सीन.

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी. आला एक्टर. मज़ेदार शख्सियत. लल्लनटॉप के न्यूज़रूम पहुंचे. सौरभ द्विवेदी और लल्लनटॉपवालों के साथ बातें, सवाल, हंसी ठिठोली हुई. कुछ काम की बातें भी हुईं. जो हमें नवाज को और बेहतर समझने में मदद करती हैं. यहां हमें नवाज ने अपनी पहलवानी के दिनों का किस्सा बताया. जब लोग उन्हें 'तीतर पहलवान' कहकर बुलाते थे.  

नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि वो 10-15 साल के थे. पिता नवाबुद्दीन सिद्दीकी की बड़ी इच्छा थी कि उनका बेटा पहलवान बने. नवाज़ का मन नहीं था. मगर पिता की माननी पड़ी. नवाज का बॉडी टाइप वैसा नहीं था. वो खुद बताते हैं कि ''खेलने जाते थे, तो एक मिनट में मेरा फैसला हो जाता था. ज़्यादातर कुश्तियां मैं हारा. क्योंकि मैं कमज़ोर था. एक-दो बार जीता. वो भी दांव पेंच से.'' इसी वजह से उन्हें ‘तीतर पहलवान’ बुलाया जाता था. 

कमजोर थे. इसलिए कभी पहलवान नहीं बन पाए. मगर ट्रेनिंग बाकायदा चल रही थी. लंगोट बांधकर रोज अखाड़े में जाते. बदन पर तेल-मिट्टी की मालिश हो रही थी. धोबी पछाड़ समेत कुछ दांव उन्हें आज भी याद है. क्योंकि कुश्ती की बात आते ही उनका हाथ एक दम से घूम जाता है. मानों जोर की नोस्टैल्जिया हिट आ रही हो. हालांकि नवाज अपने रेस्लिंग करियर में बमुश्किल एक-दो कुश्ती ही जीत पाए.  

पिता के अलावा उस्ताद भी चाहते थे कि नवाज़ पहलवान बनें. आश्वाशन देते रहते थे कि समय दो, हो जाएगा. ऐसा इसलिए था क्योंकि नवाज के पिता इलाके के इज्ज़तदार और ज़मींदार आदमी थे. उस्ताद को लगता था कि अगर उनके बेटे को पहलवान बना दिया, तो लोगों में नाम हो जाएगा. इसलिए वो नवाज से अलग-अलग पैंंतरे आज़माने को कहा करते थे. आखिरकार नवाज ने ही कहा कि उनसे ये न हो पाएगा. इसलिए उन्हें छोड़ दिया जाए. तब जाकर उन्हें कुश्ती से छुटकारा मिल पाया.

नवाज़ुद्दीन सिद्दी के साथ 'गेस्ट इन द न्यूज़रूम' का फुल वीडियो आप दी लल्लनटॉप के यूट्यूब चैनल पर देख पाएंगे. 

वीडियो देखें: वॉचमैन से एक्टर बने नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी की कहानी सुनिए