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'जाने भी दो यारों' के सुधीर-विनोद बता रहे हैं कुंदन शाह से जुड़े किस्से

मशहूर डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा और सुधीर मिश्रा ने साझा किए उनके किस्से.

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'विनोद' बने नसीर साहब को सब जानते हैं, 'सुधीर' का नाम रवि बासवानी है.

आज़ादी के बरस 19 अक्टूबर को जन्मे कुंदन शाह ने 7 अक्टूबर 2017 को दुनिया छोड़ दी. 69 साल की उम्र में. पूरी दुनिया में बहुत कम डायरेक्टर ऐसे होंगे, जिनकी पहली ही फिल्म को कल्ट क्लासिक का दर्जा मिला. ये पहले ही प्रयास में एवरेस्ट पर फ़तेह पाने जैसा है.

कुंदन शाह का सिनेमा आम से भी ज़्यादा आम है. मैं ये बात सिर्फ वाक्य सजाने के लिए नहीं लिख रहा हूं. मैंने अक्सर ये नोट किया है कि हिंदी सिनेमा का आम आदमी कुछ ज़्यादा ही स्टीरियोटाइप्ड होता है. बेहद दीन-हीन लेकिन भयंकर रूप से नैतिक. ईमानदारी का जीता-जागता मुजस्समा. जिसकी सोच टाइड की ऐड में चमकनेवाली सफ़ेद कमीज़ से भी ज़्यादा साफ़-सुथरी हो.

जबकि असल ज़िंदगी में हर व्यक्ति अपने अंदर थोड़ी सी मक्कारी, थोड़ी सी बेईमानी लिए हुए चलता है. कुंदन शाह की फिल्मों का आम आदमी इसी हकीकत की धरातल पर टिका हुआ नज़र आता है. 'कभी हां कभी ना' का सुनील याद कीजिए. सुनील स्वीट तो है, लेकिन अपने मतलब के लिए चीटिंग करने से भी नहीं हिचकता. ऐसे विश्वसनीय लगनेवाले किरदारों ने ही कुंदन शाह के सिनेमा को एक करिश्माई आभा बख्शी. 'नुक्कड़' और 'वागले की दुनिया' के किरदार याद कीजिए.
 

कुंदन शाह का क्रिएशन 'सुनील', जिसका रीयलिस्टिक होना ही उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी.
कुंदन शाह का क्रिएशन 'सुनील', जिसका रीयलिस्टिक होना ही उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी.

'जाने भी दो यारों' कुंदन शाह का पहला और सबसे शानदार काम है, ये बात तो अब दुनिया जानती है. लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा इस फिल्म के पीछे का संघर्ष. इस फिल्म के जो दो लीड किरदार हैं, उनके नाम हैं 'विनोद चोपड़ा' और 'सुधीर मिश्रा'. असल में ये कुंदन शाह के दो पक्के दोस्तों के नाम हैं. वो दोस्त जो आज अपने आप में बड़ा नाम हैं. मशहूर डायरेक्टर विधु विनोद चोपड़ा और सुधीर मिश्रा.

'परिंदा' जैसी सशक्त फिल्म डायरेक्ट कर चुके हैं विधु विनोद चोपड़ा.
'परिंदा' जैसी सशक्त फिल्म डायरेक्ट कर चुके हैं विधु विनोद चोपड़ा.

विधु विनोद चोपड़ा इस फिल्म के प्रॉडक्शन कंट्रोलर थे. एक सीन में उन्होंने दुशासन का पार्ट भी प्ले किया. वहीं सुधीर मिश्रा फिल्म के स्क्रीन राइटर थे. साथ ही असिस्टेंट डायरेक्टर भी. इसके अलावा तीनों की दोस्ती तो थी ही. कुंदन शाह ने अपने यारों के ही नाम किरदारों को दे दिए.

सुधीर मिश्रा के नाम 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी', 'चमेली' जैसी बेहतरीन फ़िल्में दर्ज हैं.
सुधीर मिश्रा के नाम 'हजारों ख्वाहिशें ऐसी', 'चमेली' जैसी बेहतरीन फ़िल्में दर्ज हैं.

कुंदन शाह की डेथ के बाद विधु विनोद चोपड़ा ने उनके लिए इंडिया टुडे मैगज़ीन में एक लेख लिखा. लल्लनटॉप ने सुधीर मिश्रा से बात की. दोनों के संस्मरण आपके लिए ले आए हैं.

सुधीर मिश्रा

किरदारों को हमारा नाम देने का आईडिया कुंदन का खुद का था. इसके लिए किसी डिस्कशन या परमिशन की ज़रूरत भी नहीं थी. दोस्ती ही इतनी पक्की थी हमारी कि परमिशन वगैरह का कोई मतलब नहीं था. बल्कि हमारे नामों के साथ फिल्म में खूब खिलवाड़ भी हुआ. एक सीन में एक हवलदार दोनों का नाम पूछता है, जिसमें दोनों अपना पूरा नाम बताते हैं. फिर वो उनसे पैसे छीन कर उन्हें भगा देता है. इसी तरह नाव वाला सीन भी है. यारी-दोस्ती ऐसी ही होती है. दोस्त को सब छूट होती है. कुंदन बहुत ही करीबी दोस्त था. समझ नहीं आता उसके बारे में क्या बात करें. डेढ़ हज़ार किस्से हैं.
 

सुधीर मिश्रा इसी सीन को याद कर रहे हैं.
सुधीर मिश्रा इसी सीन को याद कर रहे हैं.

कुंदन बेहद हार्डवर्किंग था. पूरी यूनिट ही मेहनती थी. 'जाने भी दो यारों' का एक सीन याद आता है. कुंदन ने लगातार तीन दिनों तक शूटिंग की थी. ये वो सीन है जब विनोद कमिश्नर के साथ केक खा रहा होता है. और सुधीर के लिए खिड़की से बाहर फेंकता रहता है. इस सीन की शूटिंग के वक़्त तमाम कलाकार वहीं सो जाया करते थे. तीन दिनों तक एक ही ड्रेस पहने रहे सब. नसीरुद्दीन, रवि, सतीश शाह सब थोड़ी देर आराम करते, नींद की झपकी लेते और फिर शूटिंग में लग जाते. फिल्म लो बजट थी तो तमाम समझौते करने पड़े थे. बाद में हम सब अपने-अपने प्रोजेक्ट्स में व्यस्त हो गए. कुंदन टीवी की तरफ चले गए. लेकिन मिलना-जुलना तो चलता ही रहा. टीवी के लिए 'नया नुक्कड़' हमनें साथ ही किया. मिलते रहते थे, स्क्रिप्ट सुनाते रहते थे.

विधु विनोद चोपड़ा

कुंदन और मैं FTII में क्लासमेट थे. कुंदन बहुत कम बोलते थे लेकिन जब भी बोलते, वो मजेदार होता था. अगर वो आज स्टेज पर होते तो नंबर वन स्टैंडअप कॉमेडियन होते. मैं 'जाने भी दो यारों' में लाइन प्रोड्यूसर था. हमें NFDC से सिर्फ 12 लाख मिले थे ये फिल्म बनाने के लिए. पैसे बचाने के चक्कर में कई पापड़ बेलने पड़े. एक सीन के लिए मैंने एक एक्टर तय किया. उसे 4 दिनों के लिए 500 रुपए देने की बात थी लेकिन वो रोज़ के 500 मांगने लगा. उसी वक़्त ड्रेस वाला ड्रेस लेकर आ गया. मैंने उससे कपड़े लिए और खुद दुशासन बन गया. कुंदन ने मुझे तब पहचाना, जब मैंने आवाज़ लगाई, “दुर्योधन....”

दुशासन के रोल में विधु विनोद चोपड़ा.
दुशासन के रोल में विधु विनोद चोपड़ा.

ना सिर्फ कुंदन ने किरदारों के नाम हम पर रखें बल्कि ओम पुरी के बॉडीगार्ड का बार-बार 'गोली चला दूं सर?" कहना भी मुझ पर ही तंज था. मैं गुस्सैल था ये बात सब जानते थे. ये सारे आईडियाज़ कुंदन के शानदार सेंस ऑफ़ ह्यूमर की उपज थे. कुंदन बहुत ज़्यादा मेहनती थे. एक बार अलीबाग में शूटिंग चल रही थी. कुंदन ने मुझे विश्वास दिलाया कि शाम 6 बजे तक पैक अप हो जाएगा. मैंने एक बस कंपनी को एडवांस दिया हुआ था. लेकिन शूटिंग ख़त्म हुई अगले दिन दोपहर में. इतनी थकान थी यूनिट में कि सिनेमेटोग्राफर कैमरे के ऊपर ही सो गया था.
कुंदन के टीवी की तरफ जाने के बाद ज़्यादा संपर्क नहीं रहा. 'जाने भी दो यारों' जैसी समय के आगे की फिल्म सोचना कुंदन जैसे शख्स के ही बस की बात थी. ये फिल्म आज भी प्रासंगिक है. एक डेड बॉडी को पूरे शहर में घुमाने का आईडिया कुंदन ही सोच सकता था.



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