The Lallantop

लॉकडाउन में सफाई रखिये और इन 10 फ्री वेबसाइट पर हिंदी की कहानी-कविता पढ़ जाइये

लल्लनटॉप बता रहा है. मज़ाक थोड़े है.

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लल्लनटॉप थोड़ा डर ख़त्म करने और थोड़ा सजग रहने का आईडिया लेकर आया है.
कोरोनावायरस. बेहद संक्रामक. देश के 80 बड़े शहरों में लॉकडाउन. बहुत सारे लोग घर पर. घर पर कैसे जियें? बिना डरे? बिना घर को गोदाम बनाए? एकदम सेफ? इस पर हमारे साथी आशीष की ये स्टोरी
पढ़िए.
हाथ धो रहे हैं. मास्क पहन रहे हैं. सैनिटाईज़र लेकर हाथ रगड़ रहे हैं. आसपास साफ़-सफाई का ध्यान रख रहे हैं. थोड़ा बहुत रियाज-पानी मारिये. मुंडी घुमाने की एक्सरसाइज करिए. कमर और हाथ घुमाइए. सोसाइटी में हैं तो दौड़ लीजिए. रस्सी कूद लीजिए. थोड़ा बहुत पसीना निकल जाए. लेकिन इस सब झंझट के बीच आपका दिमाग है. आपकी अंतर्चेतना है. घर पर रहने से उसका रियाज़ बहुत नहीं हो पाता है. उसको रियाज़ करवाने का सबसे अच्छा तरीका है पढ़ना. और बात हिंदी की. तो हम लाए हैं हिंदी की कुछ सबसे बहसतलब, सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले ब्लॉगों, वेबसाइटों की ये लिस्ट. कविता-कहानी-निबंध-डायरी-फोटो-पेंटिंग और न जाने क्या-क्या कुछ. और एक और बात. सबकुछ एकदम्म फ्री...फ्री...फ्री
1. समालोचन
Samalochan समालोचन

यूआरएल : https://samalochan.blogspot.com
क्यों पढ़ें : बहुत सही जगह है. हिंदी के युवाओं और वरिष्ठों की रचनाएं छांट-छांट कर पढ़िए. कविताएं हैं. कहानियां हैं. आलोचना के निबंध हैं. हिंदी साहित्य के अध्येताओं के लिए बेहद ज़रूरी जगह तो है ही. गंभीर रचनाएं हैं. साथ ही नवप्रवेशियों के लिए - जो लोग नवका हैं -  उनके लिए भी बहुत कुछ हैं. कविता, कहानी और आलोचना के लिए सिरीज़ लिखी गयी हैं. हाल में ही यहां पिछले सभी सालों की पोस्ट्स की इंडेक्स बनायी गयी है, वो भी बहुत हेल्पफुल है. ध्यान दीजिये.
2. सदानीरा 
Sadaneera सदानीरा

यूआरएल : https://www.sadaneera.com
क्यों पढ़ें : एक तो पहले नाम से ही सेट है. सदानीरा. हमेशा कुछ न कुछ आता रहता है. हमेशा. और एक ख़ास बात. प्रिंट में भी है बहुत कुछ. सहयोग राशि टाइप कुछ दे देंगे तो पत्रिका का हार्ड बाउंड घर पर भी आकर टिक जाएगा. लेकिन वो बाद की बात. बहुत कुछ है. दुनिया भर की कविताओं का संकलन. हिंदी में. देश की कविताओं का भी संकलन. हिंदी में. कहानियां कम. कहानियों के पार का गद्य ज्यादा. पढ़िए-पढ़िए. खूब पढ़िए.
3. पढ़ते-पढ़ते
Padhte Padhte पढ़ते-पढ़ते

यूआरएल : http://padhte-padhte.blogspot.com
क्यों पढ़ें : दुनिया जमाने के लेखकों की कविताओं और कहानियों को पढने का मन करता ही होगा. ऊपर भी एक ज़िक्र किया है. उसी क्रम में ये ज़िक्र भी. 2017 में यहां आखिरी पोस्ट लगी थी. चल रहा है 2020. पढ़ते-पढ़ते को चलाने वाले मनोज पटेल का उसी साल यानी 2017 में निधन हो गया. उसके बाद से अब तक इस जगह पर अपडेट नहीं आए. लेकिन पूरी वेबसाइट खंगाल डालिए. बहुतेरी चीज़ें हैं. किस्म किस्म के अनुवाद. किस्म किस्म की चीज़ों के अनुवाद. सारी मनोज पटेल की कलम से. आलम ये कि हिंदी को लम्बे समय से साधने वाले लोग अब भी मनोज पटेल के इस पूरे खजाने की तारीफ करते नहीं थकते. क्यों? आप खुद पढ़कर देखिए. और हां. एक कैच है. अगर लगता है कि बड़का वाला पढ़ाकू बनकर यहां से कुछ भी लेकर कहीं भी चेंप देंगे. भूल जाइये. कॉपी ही नहीं कर सकते.
4. हिंदी समय
Hindi Samay हिंदी समय

यूआरएल : https://www.hindisamay.com
क्यों पढ़ें : बनारसी में एक शब्द है - नाहर. मतलब? बनारसी में शब्दों का मतलब नहीं होता, उनकी ध्वनि से पहचानना होता है. ऐसे समझिये तो नाहर का मतलब गज्जब का. हिंदी समय नाहर वेबसाइट है. महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र का ये एक जर्नल है. उसी की वेबसाइट. ऊपर की इमेज में सेक्शन दिख रहे हैं. उन सेक्शनों को देखिए. वहां से आईडिया निकाल लीजिये कि पढ़ने को क्या-कुछ मिलेगा? मतलब बहुत कुछ मिलेगा. ताबड़तोड़. कुर्सी जमा लीजिये. चांपकर पढ़िए.
5. कविता कोश
Kavita Kosh कविता कोश

यूआरएल : http://kavitakosh.org
क्यों पढ़ें : नाम से नहीं समझ आ रहा? कविताओं का बैंक. हिंदी के एकदम पुरनके-पुरनके लोगों से लेकर एकदम नवका-नवका लोगों तक. सबकी कविताएं मौजूद हैं. गुलज़ार पढ़ते हैं या बशीर बद्र या 'बुलाती है मगर जाने का नहीं' पर सिमटे हुए हैं. विष्णु खरे, वीरेन डंगवाल, मंगलेश डबराल, आलोक धन्वा, विनोद कुमार शुक्ल जैसे कई हिंदी के कवियों का जमघट. ठहरिये जनाब. बस हिंदी ही नहीं. उर्दू के शाईरों -- हां, 'शायर' तो हमने बना दिया -- उनका भी काम है. ग़ालिब, जालिब, मीर और सबकुछ सुहाना और गंभीर. 'कोष" होना चाहिए या 'कोश'. इस बहस में क्यों पड़ेंगे? पढ़िए. मूड जम जाएगा.
6. कबाड़खाना
Kabaadkhana कबाड़खाना

यूआरएल : http://kabaadkhaana.blogspot.com
क्यों पढ़ें : हर जगह यही बताएं? चलो बता देते हैं. बहुत मजबूत जगह है. बहुत यायावर लोगों के लिए. बहुत सारी बातें हैं. बहुत कुछ है. बहुत कुछ यारबाज़ी है. कुछ कविताएं हैं. कुछ कहानियां हैं. कुछ बेहद दुनियावी गद्य हैं. ऐसे गद्य, जो लोग अमूमन नहीं लिखते. कुछ लोगों पर कुछ बातें हैं. ऐसी बातें और ऐसे लोग, जो एकदम गायब हैं. जैसे किसी ने कुछ बेहद मेहनत से रचा हो. कुछ नायाब गज़लें हैं. कुछ नायाब बातें हैं. कुछ कहा कुछ सुना. कुछ तस्वीरें. एक जमघट. पढ़िए. अच्छा लगेगा.
7. जानकीपुल
Janakipul जानकीपुल

यूआरएल : https://www.jankipul.com
क्यों पढ़ें : बेहद सुलभ जगह. कई लोगों को मंच मुहैया कराने की जगह. हिदी की चीज़ें हैं. हिंदी की बातें हैं. हिंदी में सबकुछ. हिंदी से इतर भी है मामला. दुनिया जहां की चीज़ें हैं. मशहूर लेखकों की किताबों के हिस्से. उनके किस्से. उनकी कहानियां. उनकी कविताएं. हिंदी साहित्य के बड़े-बड़े बवाल - हां-हां, ये सब भी होता है - और बहुत कुछ. पकड़ लीजिए.
8. स्त्रीकाल
Streekal स्त्रीकाल

यूआरएल : http://streekaal.com/
क्यों पढ़ें : वेबसाइट का अबाउट वाला सेक्शन पढ़िए तो लिखा मिलेगा : "‘स्त्रीकाल’, स्त्री का समय और सच हिन्दी में स्त्री मुद्दों पर एक ठोस वैचारिक पहल है". हिंदी की दुनिया कहती है कि हिंदी के समाज की एक दिक्कत है. हिंदी का साहित्य बहुत पुरुष प्रधान है. स्त्रियों के लिए, बजरिये स्त्री और स्त्रियों की आवाजों के तहत हिंदी के साहित्य में बहुत कम बातचीत है. बहुत कम. इस आरोप के सामने हिंदी के बीच से ही जवाब निकलकर आता है. कई जवाबों की फेहरिस्त में छोटा-सा अध्याय है स्त्रीकाल. स्त्रियों के लिए और उनकी आवाजों को फलक पर लाती रचनाओं से लबरेज़. पढ़िए. ज़रूर पढ़िए.
9. पोषम पा
Poshampa पोषम पा

यूआरएल : https://poshampa.org
क्यों पढ़ें : बेहद बेतरतीब. बेहद विस्तृत. बेहद फैलाव लिए हुए पोषम पा. हिन्दी की युवा पीढ़ी का अड्डा. हिंदी के बहुत कुछ बिखरे हुए को समेटने की कोशिश. हिंदी में नहीं सुनी गयी-कही गयी बातों को यहां ले आने की कोशिश. सबकुछ सामने. सबकुछ फ्री. पढ़िए. जी लगाकर पढ़िए. कोरोना के मौसम में - इस ठंडे उदास मौसम में - कुछ फड़क जाए. कुछ लिख जाएं. कुछ फूट पड़े. कुछ टूट पड़े. तो स्वागत है.
10. प्रतिलिपि.इन
Pratilipi प्रतिलिपि.इन

यूआरएल : http://pratilipi.in
क्यों पढ़ें : हिंदी में हिंदी का ही काम बहुत हुआ है. तरह-तरह का काम. अब शिथिल पड़े इस प्रकाशन ने शुरू किया एक काम. हिंदी और अंग्रेजी दो भाषाओं को परस्पर सामने रखने का. इन दो भाषाओं की रचनाओं को भी. हिंदी है तो अंग्रेजी में भी. अंग्रेजी है तो हिंदी में भी. हिंदी को एक नया आसमान मिला. कई लेखक जुड़ने लगे. कई लोग सामने आने लगे. कुछ युवा संपादकों की ज़िद से हिंदी को कलाओं को देखने का, पेंटिंग्स को समझने का, नयी-नयी कहानियां और नयी-नयी कविताएं पढने का मौक़ा मिला. ये मौक़ा यहीं ये आया. प्रतिलिपि से. लिंक पर चटका लगाइए. और आप भी पढ़ जाइए.
सबकुछ के साथ. सबकुछ के बाद. खुद का ख़याल रखिये. सफाई-खानपान दुरुस्त रखिये. अफवाहों से दूरी ज्यादा ज़रूरी है.

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