बीते कुछ समय से नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी अपनी आवाज़ बदलने की कोशिश कर रहे हैं. एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं. जैसा सिनेमा वो करते हैं, उससे इतर टिपिकल कमर्शियल सिनेमा पर ध्यान दे रहे थे. ‘हीरोपंती 2’ और ‘टिकू वेड्स शेरु’ ऐसे ही एक्सपेरिमेंट्स में शामिल थीं. अब उनकी नई फिल्म ‘हड्डी’ रिलीज़ हुई है. ऐसी फिल्म, जो नवाज़ की कमर्शियल वैल्यू से ज़्यादा उनकी प्रतिभा को भुनाना चाहती है. फिल्म को अक्षत अजय शर्मा ने बनाया है. ज़ी5 पर ‘हड्डी’ रिलीज़ हो चुकी है. फिल्म की कहानी, इसके अच्छे-बुरे पॉइंट्स पर बात करेंगे.
हड्डी : मूवी रिव्यू
फिल्म अपने किरदारों को उसी नज़र से देखती है जिसके वो हकदार हैं. एक आम इंसान की तरह.

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने फिल्म में हड्डी नाम की ट्रांसजेंडर महिला का किरदार निभाया है. वो कहती है कि उसके गले में हड्डी नहीं है. इस वजह से ऐसा नाम पड़ा. हालांकि कहानी कुछ और है. हड्डी की कहानी में कई सारे किरदार हैं. हड्डियां हैं. लूट है. खून-खराबा है. घिनौनापन है. लालच है. राजनीति है. इस सब से होकर हड्डी को पहुंचना है प्रमोद अहलावत तक. प्रमोद एक नेता है, जो नोएडा को दंगाई होने से बचाकर शंघाई बनाना चाहता है. जिसके पास टीवी के किसी गोस्वामी जी का इंटरव्यू के लिए कॉल आता है. अनुराग कश्यप फिल्म में प्रमोद बने हैं. ऐसा सिर्फ फिल्म के यूनिवर्स में ही हो सकता था. खैर हड्डी का प्रमोद से अपना एक इतिहास रहा है. प्रमोद को खबर लगने से पहले हड्डी के हाथ उसकी गर्दन तक पहुंचते हैं या नहीं, ये फिल्म का मेन प्लॉट है.
# फिल्म की सबसे सॉलिड बातें
‘हड्डी’ के अहम किरदार कुछ ट्रांसजेंडर लोग हैं. वो उन्हें किसी दया का पात्र नहीं बनाती. ना ही उन्हें किसी असामान्य रोशनी में दिखाती है. किसी भी पॉइंट पर उन्हें किसी कैरिकेचर में तब्दील नहीं करती. फिल्म उन्हें इंसानों की तरह देखना चाहती है. हम और वो वाली रेखा कभी नहीं खींचती. सौरभ सचदेवा ने इंदर नाम के शख्स का रोल किया. उनकी चाल, बोलने के लिहाज़ से कभी नहीं लगेगा कि वो कुछ बनने की कोशिश कर रहे हैं. वो बस एक किरदार निभा रहे हैं. फिल्म की सबसे बड़ी जीत यही है कि वो अपने किरदारों को किसी विस्मय का पात्र नहीं बनाती.

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने सेंसिबल ढंग से अपने किरदार को अप्रोच किया. कुछ जगह पर उनके और मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब के बीच कुछ रोमांटिक मोमेंट्स हैं. वहां नवाज़ की अदाएं प्यारी हैं. फिर चाहे वो अपने प्रेमी को छेड़ना हो या वल्नरेबल होकर उसे अपनी इनसिक्योरिटी, अपने डर से रूबरू करवाना हो. उन्होंने ऐसी परफॉरमेंस दी, जिसे आप सिर्फ एक्टिंग के लिए देखना चाहेंगे. उनके नाम के लिए नहीं.
‘हड्डी’ के ट्रेलर ने बहुत हद तक कहानी क्लियर कर दी थी. दिखा दिया कि हड्डी कौन है. वो अपना बदला क्यों लेना चाहता है. उस लिहाज़ से फिल्म का ट्रीटमेंट सही था. कम से कम पहले हाफ का तो. चीज़ें अचानक घटती हैं लेकिन फिर उनके ऐसा होने की वजह भी साफ हो जाती है. इत्तेफाक पर चीज़ें नहीं छोड़ी जाती. किरदार का मोटिव हल्का नहीं लगता.
# तो फिर समस्या कहां है?
फिल्म के पहले हाफ में कहानी को नॉन-लीनियर तरीके से दिखाया. यानी कहानी एक सीधी लाइन पर नहीं चलती. ऐसा करते हुए भी आपको एंगेज कर के रखती है. किरदारों की दुनिया से भटकती नहीं. हालांकि सेकंड हाफ में यही चीज़ उल्टी पड़ जाती है. क्लाइमैक्स की ओर जाते हुए कुछ भी होने लगता है. इधर-उधर कुछ भी घट रहा है. इतना काफी नहीं था तो रही-सही कसर क्लाइमैक्स पूरी कर देता है. हड्डी के साथ कुछ घटता है, जिससे बाहर निकलना लगभग नामुमकिन है. उसके बाद हम उसका संघर्ष नहीं देखते. हम एक टेक्स्ट प्लेट देखते हैं. लिखा होता है, ‘कुछ महीनों बाद’. उसके बाद एक सीन है जहां पूरा एक्शन होता है और पिच्चर खतम. ऐसा लगता है कि मेकर्स ही फिल्म को ठीक से एंडिंग देने में इच्छुक नहीं थे. फिर आप ऑडियंस से तो रुचि लेने की क्या ही उम्मीद रख सकते हैं. फिल्म पहले हाफ में जितना उठती है, सेकंड हाफ उस पूरी मेहनत को उलटने में लग जाता है.
फिल्म में ह्यूमर का स्केल बहुत सीमित था. ऐसे में मेकर्स ने बीच-बीच में मीम कल्चर वाली भाषा का इस्तेमाल किया. जैसे प्रमोद अहलावत का बेटा उससे कहता है, ‘क्या करूं मैं मर जाऊं, मेरी कोई फीलिंग्स नहीं हैं’. ये आई-गई बातों की तरह निकल जाते हैं. फिल्म की अगली बड़ी समस्या है उसका विलेन. अनुराग कश्यप कैमरे के पीछे जितना सॉलिड काम करते हैं, कैमरा के सामने उनका असर बिल्कुल विपरीत है. किसी भी सीन में उनकी आंखों के पास कहने को कुछ नहीं था. समान भाव लगते हैं.
फिल्म की एडिटिंग भी उनकी कोई मदद नहीं करती. कई मौकों पर सीन्स किसी भी तरह शुरू और खत्म हो जा रहे हैं. कोई फ्लो नहीं दिखता.
बाकी ‘हड्डी’ ज़ी5 पर रिलीज़ हो चुकी है. फिल्म की अच्छी-बुरी बातें हमने आपको बता दी. फिल्म देखिए और अपनी राय बनाइए.
वीडियो: फिल्म रिव्यू: घूमर