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नाना पाटेकर की 'प्रहार': जब उनकी खतरनाक ट्रेनिंग देख एक्टर रो दिए, कपड़ों में पेशाब कर दिया!

Madhuri Dixit याद करती हैं कि Prahaar के एक सीन में जब तक Nana Patekar ने कट नहीं बोला तब तक वो कांपती रहीं.

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'प्रहार' के बाद नाना पाटेकर ने कोई फिल्म डायरेक्ट नहीं की.

साल 1961 में Dev Anand की फिल्म Hum Dono आई थी. यहां उन्होंने डबल रोल किया और ये दोनों किरदार इंडियन आर्मी का हिस्सा होते हैं. कहा जाता है कि इस फिल्म को देखने के बाद बहुत सारे लड़कों की आर्मी के प्रति इच्छा जागी. उन्होंने आर्मी को बतौर प्रोफेशन एक नई रोशनी में देखना शुरू किया. कई दशक बाद Farhan Akhtar की फिल्म Lakshya आती है. इसे उन्होंने अपने दोस्त Hrithik Roshan के साथ बनाया. जी तोड़ मेहनत के साथ फिल्म तैयार की लेकिन जब ये सिनेमाघरों में नहीं चली तो फरहान का दिल जख्मी हो गया. वो बताते हैं कि ‘लक्ष्य’ की नाकामयाबी की वजह से डिप्रेशन में भी चले गए थे.

कुछ साल बाद फरहान मिलिट्री अकेडैमी में गए. वहां सीनियर ऑफिसर ने फरहान के सामने अपने जवानों से पूछा कि कितने लोग ‘लक्ष्य’ देखने के बाद यहां आए हैं. इतने हाथ उठे कि फरहान के लिए गिनना मुश्किल हो रहा था. वो कहते हैं कि ये किसी भी बॉक्स ऑफिस के आंकड़े से बड़ा था. इस देश में आर्मी और वॉर पर बननेवाली फिल्मों की कोई कमी नहीं है. हर साल हर फिल्म इंडस्ट्री से दर्जनों ऐसी फिल्में निकलती हैं. लेकिन इसमें से चुनिंदा ही ऐसी होती हैं जो अपने सब्जेक्ट के नाम पर छाती नहीं ठोंकती. देशभक्ति की आड़ में किसी को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करतीं. जो आर्मी के जवानों को इंसानों की तरह देखती हैं. ऐसे इंसान जो गलती करने में सक्षम हैं. ऐसे इंसान जो उसे सुधारने की हिम्मत भी रखते हैं.

‘हम दोनों’ और ‘लक्ष्य’ के बीच एक ऐसी ही फिल्म आई थी. हालांकि इसे वॉर फिल्म नहीं कहा जा सकता. इस फिल्म की दुनिया के किरदार बस आर्मी बैकग्राउंड से आते हैं. इस फिल्म को बतौर डायरेक्टर Nana Patekar की पहली फिल्म के रूप में याद किया जाता है. इसलिए याद किया जाता है कि फिल्म के लिए Madhuri Dixit और Dimple Kapadia ने कोई मेकअप नहीं किया. लेकिन Prahaar इन सतही बातों से बहुत ऊपर है. ‘प्रहार’ एक ऐसी फिल्म है जो अपने मैसेज के ज़रिए जनचेतना को चैलेंज करने की कोशिश करती है, और वो भी बिना शोर मचाए.

फिल्म में नाना पाटेकर ने मेजर चौहान का रोल किया. एक अपराध के लिए उसे कोर्ट में पेश किया जाता है. वो जज के सामने कहता है,

हमें आर्मी में सिखाया जाता है सीमा को दुश्मन से बचाना. देश के लिए मर जाना. हमारे कुछ कर्तव्य हैं. मैंने उन्हीं का पालन किया है. मरने की कोई जायज़ वजह तो होनी चाहिए? हमारे लिए वजह है, देश. लेकिन देश का मतलब क्या है? सड़कें, इमारतें, खेत-खलिहान, नदियां, पहाड़, बस इतना ही. और लोग? वो कहां हैं. किसे बचाएं हम. सीमा पर तो हमें मालूम है कि गोली किस पर चलानी है. यहां जिधर भी देखो, दुश्मन ही दुश्मन है. और दुश्मन फिर दुश्मन है, फर्क सिर्फ इतना है कि एक सीमा के उस पार, एक सीमा के इस पार. और इस पार का दुश्मन ज़्यादा खतरनाक है.

इसके बाद जज, मेजर चौहान को असायलम में भेजते हैं. ताकि उनके दिमाग की जांच की जा सके. जज कहते हैं कि उन्होंने समाज सुधारने की गलती की है. ये काम नेताओं का है. इसे बिना किसी आइरनी के कहा जाता है. ‘प्रहार’ अपने समय से आगे की फिल्म थी. फिल्म ने ऐसे सवाल पूछे जिनसे हम आज भी कतराते हैं. नाना पाटेकर आर्मी में जाना चाहते थे. ऐसा नहीं हो सका तो उन्होंने अपनी भड़ास निकालने के लिए आर्मी पर फिल्म बना डाली. ये फिल्म कैसे बनी. उस दौरान क्या दिक्कतें आईं, ‘प्रहार’ के कागज़ से निकलकर परदे पर उतरने की पूरी कहानी बताएंगे.

# जब नाना ने एक्टर का पेशाब निकाल दिया

‘प्रहार’ में नाना पाटेकर का किरदार मेजर चौहान एक सख्त ऑफिसर होता है. अपने जवानों की ट्रेनिंग में कोई छूट नहीं बरतता. फिल्म में गौतम जोगलेकर का किरदार पीटर डी’सूज़ा उससे परेशान होकर आर्मी छोड़ने की भी सोचता है. बताया जाता है कि सेट पर भी नाना पाटेकर ‘मुश्किल वक्त कमांडो सख्त’ किस्म के डायरेक्टर थे. नाना अपने हिसाब से फिल्म बनाना चाहते थे. उसे वास्तविकता के करीब रखना चाहते थे. उसे टिपिकल कमर्शियल फिल्म का चोगा नहीं ओढ़ाना चाहते थे. यही वजह है कि उन्होंने अपने किरदार की तैयारी के लिए तीन साल तक इंडियन आर्मी की मराठा लाइट इंफेंट्री के साथ ट्रेनिंग की. इसी ट्रेनिंग की बदौलत आगे चलकर नाना ने कारगिल युद्ध में भी हिस्सा लिया. वो आर्मी की क्विक रिएक्शन टीम में थे. ‘प्रहार’ के शिव सुब्रमणियम ये तक कहते थे कि नाना की ट्रेनिंग इतनी बुलंद थी कि वो आर्मी जॉइन कर सकते थे.

नाना ने दी लल्लनटॉप के शो ‘गेस्ट इन द न्यूज़रूम’ में शिव सुब्रमणियम से जुड़ा एक किस्सा बताया था. शिव फिल्म में एक जवान बने थे जिसे मेजर चौहान ही ट्रेन कर रहा होता है. एक सीन में उन लोगों को ज़मीन से 60 फीट की ऊंचाई पर बंधी रस्सी पर चलना था. शिव को ऊंचाई से बहुत डर लगता था. किसी तरह वो ऊपर पहुंच तो गए लेकिन उसके बाद उनके पांव पत्थर हो गए. आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं मिल रही थी. नाना बताते हैं कि शिव बुरी तरह रोने लगे, उन्होंने अपने कपड़ों में ही पेशाब कर दिया. इससे अगले शॉट में मेजर चौहान ऊपर चढ़ता है और शिव के किरदार को चलकर दिखाता है. हालांकि वो सीन फिल्म में था ही नहीं.

हुआ ये कि नाना पाटेकर के गुरु और डायरेक्टर राज दत्त उस दिन सेट पर क्लैप दे रहे थे. उन्होंने देखा कि शिव रो रहे हैं और नाना गुस्से में तमतमाए ऊपर चढ़े जा रहे थे. राजदत्त ने तुरंत कैमरा ऑन किया और रिकॉर्ड करने लगे. नाना ऊपर गए और शिव को चलकर दिखाने लगे. फिल्म में दिखता है कि वो शिव के किरदार से उठने को कह रह थे. हालांकि वास्तविकता में नाना ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा था. उन्होंने गुस्से में शिव को भद्दी से भद्दी गालियां दी थीं जिन्हें डबिंग में हटा दिया गया.

# “तू कमांडो बनेगा तो मर जाएगा”

‘प्रहार’ का एक बहुत पॉपुलर और ज़रूरी सीन है. माधुरी दीक्षित के पिता स्वतंत्रता सेनानी होते हैं. वो देखते हैं कि उनका बेटा (मकरंद देशपांडे) नशे में खर्च हो जा रहा है. उसे खुद से ऊपर उठकर कुछ करने में कोई रुचि नहीं. पिता को ताना मारता है कि जो इंसान अपने बच्चों को नहीं संभाल सका, वो देश को क्या संभालेगा. इस पर पिता झल्लाकर घर से निकल जाने को कहता है. जोड़ता है कि इससे अच्छा तो तू पैदा ही नहीं हुआ होता. बेटा अपना जॉइंट रोल करते हुए कहता है,

कौन ज़िम्मेदार है? मैंने ऐप्लीकेशन दिया था?

पिता के पास कोई जवाब नहीं होता. फिल्म में मकरंद के सिर्फ दो सीन थे लेकिन उन्होंने अपने काम से दोनों ही सीन्स को यादगार बना दिया. हालांकि ओरिजनली मकरंद ये रोल नहीं करने वाले थे. वो फिल्म में एक कमांडो बनने वाले थे. फाइनल भी हो चुके थे. लेकिन किसी वजह से फिल्म आगे खिसक गई. इस बीच मकरंद को पीलिया हो गया. उनकी रिकवरी के बीच ही ‘प्रहार’ की शूटिंग शुरू हो गई. मकरंद, नाना से मिलने पहुंचे. बताया कि उन्हें शूट करने में कोई दिक्कत नहीं है. मगर नाना राज़ी नहीं हुए. उनका कहना था कि तू अभी रिकवर कर रहा है, ऐसी हालत में अगर कमांडो बनेगा तो मर जाएगा. तब नाना ने उन्हें माधुरी दीक्षित के भाई का रोल दिया.

मकरंद ने एक इंटरव्यू में अपने सीन से जुड़ा एक किस्सा बताया था. जिस सीन में मकरंद अपने पिता बने अच्युत पोतदार को ताना मार रहे होते हैं, वहां माधुरी दीक्षित और नाना पाटेकर भी मौजूद होते हैं. लेकिन वो कुछ कहते नहीं. इस सीन के बीच में माधुरी की एंट्री होती है. मकरंद बताते हैं कि वो कुछ इम्प्रोवाइज़ करने वाली थीं. लेकिन उन्हें नाना पाटेकर ने रोक दिया. नाना ने कहा कि तू इम्प्रोवाइज़ मत कर, वरना ये (मकरंद) चिल्ला देगा.

# सीन कट होने तक माधुरी कांपती रहीं

‘प्रहार’ में माधुरी ने पीटर की पत्नी शर्ली का रोल किया. यहां माधुरी को भले ही सीमित स्क्रीन स्पेस मिला मगर उन्होंने दमदार काम किया. जब भी उनके करियर के बेस्ट रोल्स का लिस्टिकल सजता है, उसमें हमेशा ‘प्रहार’ अपनी जगह पाती है. माधुरी के सामने नाना ने शर्त रखी थी कि वो पूरी फिल्म में मेकअप नहीं करेंगी. पढ़ने को मिलता है कि एक सीन के लिए माधुरी ने बेसिक टचअप करवा लिया था. नाना ने ये नोटिस किया और उन्हें तुरंत मुंह धोकर आने के लिए कहा. माधुरी ने साल 2000 में रेडिफ को दिए इंटरव्यू में इस फिल्म पर बात भी की थी. उन्होंने बताया कि ये बतौर डायरेक्टर नाना पाटेकर की पहली फिल्म थी. उन्हें सपोर्ट करने के लिए माधुरी ने ये फिल्म की. माधुरी ने अपने एक सीन पर कहा था,

फिल्म में सिर्फ एक परफॉर्मिंग सीन था लेकिन वो ऐसा पल था जिस पर मुझे बहुत गर्व है. वो बहुत शांत और मार्मिक पल था लेकिन जब तक डायरेक्टर ने कट नहीं बोला तब तक मैं कांप रही थी.

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‘प्रहार’ में माधुरी दीक्षित और डिम्पल कपाड़िया. 

देश क्या है? देशभक्ति की भावना के सही मायने क्या हैं? क्या एक फौजी का फर्ज़ सिर्फ उसकी वर्दी तय करती है? ‘प्रहार’ ने ऐसे कई गहरे सवालों के जवाब देने की कोशिश की. साथ ही मेजर चौहान ने देशभर से अपील की कि हर नागरिक को एक साल आर्मी में ड्यूटी देनी चाहिए. ताकि वो ये समझ सकें कि आज़ादी सस्ते में नहीं मिली थी. ‘प्रहार’ ने जिस सेंसीबिलिटी से अपने किरदारों की दुनिया, उनकी व्यथा दिखाई वो उसे आज भी एक रेलेवेंट फिल्म बनाता है. इसे आप यूट्यूब पर फ्री में देख सकते हैं.     
   

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