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'सैराट' पर बात करते हुए डायरेक्टर नागराज मंजुले ने जाति पर क्या कह दिया?

फ़िल्ममेकर, लेखक और डायरेक्टर नागराज मंजुले ने अपनी कमाल फिल्म 'सैराट' के री-मेक 'धड़क' पर खुलकर बात की है.

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गेस्ट इन द न्यूजरुम में फ़िल्म-मेकर नागराज मंजुले.

दी लल्लनटॉप के साप्ताहिक शो ‘गेस्ट इन दी न्यूज़रूम’ की हालिया किश्त में हमारे गेस्ट के तौर पर पधारे थे राइटर, डायरेक्टर और फ़िल्म-मेकर नागराज मंजुले (Nagraj Manjule). उनसे कला, सिनेमा और उनके सिनेमा पर बात हुई. इसी सिलसिले में उनकी फ़िल्म ‘सैराट’ का ज़िक्र आया. मराठी भाषा में बनी, 2016 में रिलीज़ हुई एक रोमांटिक-ड्रामा फ़िल्म. 100 करोड़ से ज़्यादा कमाने वाली पहली मराठी फ़िल्म. कहानी प्रेम की है; जो जाति को मंज़ूर नहीं.

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‘सैराट’ पर एक हिंदी फ़िल्म भी बनी है ‘धड़क’. उसी विषय पर है, पर संभवतः भाषा की वजह से ‘धड़क’ ने हमारे मन पर वो छाप नहीं छोड़ी, जो ‘सैराट’ छोड़ती है. नागराज मंजुले ने बताया,

सैराट एक ऐसे विषय को पकड़ती है, जिसपर हम बात नहीं करते. एक ऐसे भेदभाव की ओर उंगली उठाती है, जो हमारे आस-पास, हमारी डेली लाइफ़ में हमासे सामने होता है. मगर हमें दिखाई नहीं देता. जब कोलंबिया यूनिवर्सिटी में फ़िल्म की स्क्रीनिंग हुई, तो एक महिला ने मुझसे कहा - ‘..आप बहुत ही पुरानी कहानी कह रहे हैं’.

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नागराज मंजुले इसके साथ ही प्रिविलेज और उसकी वजह से आई उपेक्षा पर भी सवाल करते हैं. कहते हैं,

अगर कोई समस्या आपकी ख़ुद की नहीं है, तो आपको लगता है वो समस्या है ही नहीं. समाज में ऐसे लोग होते हैं जो हमारा काम आसान करते हैं, पर हमें नजर नहीं आते. ‘सैराट’ इसी विषय को टच करती है.

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आगे बात होती है मिलते-जुलते विषय पर बनी फ़िल्म 'कस्तूरी' की. अनुराग कश्यप और विनोद कांबले की ये फ़िल्म सीवेज और मैन-होल साफ़ करने वाले लोगों की ज़िंदगी को दिखाती है. 

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नागराज ने शिवाजी, अंबेडकर और जाति की वजह से होने वाले उत्पीड़न पर तसल्ली से बात की है. पूरी बात-चीत शनिवार, 4 नवंबर से वेबसाइट पर लाइव है. अब तो यूट्यूब पर भी आ गई है. 

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