राष्ट्रीय लेखा परीक्षक CAG की रिपोर्ट में रेल मंत्रालय (Ministry of Railways) को लापरवाही की वजह से 573 करोड़ रुपये की वित्तीय नुकसान की बात कही है. साथ ही रेल मंत्रालय के कामकाज के ढुलमुल तरीके पर भी सवाल उठाए गए हैं. 21 जुलाई को लोकसभा में पेश इस रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि रेल मंत्रालय में रेवेन्यू रिकवरी की प्रक्रिया बेहद लचर है, संपत्तियों के प्रबंधन के लिए सक्रिय सिस्टम नहीं है. अलग-अलग जोन में प्रोजेक्ट्स अटके पड़े हैं. इससे रेलवे को काफी नुकसान हुआ है. वित्त वर्ष 2022-23 तक रेलवे के कामकाज को देखकर तैयार की गई इस रिपोर्ट में कैग ने 25 निष्कर्षों का जिक्र किया है.
लापरवाही की वजह से रेलवे को करोड़ों का नुकसान, यात्रियों की सुरक्षा पर सवाल: CAG
21 जुलाई को लोकसभा में पेश इस रिपोर्ट में कैग ने रेल मंत्रालय के ढुलमुल कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाया है. रिपोर्ट के मुताबिक इस रवैये से रेलवे को 573 करोड़ की कमाई का नुकसान हुआ है. इसमें सबसे ज्यादा चपत उत्तर रेलवे ने लगाई है.

रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे को सबसे बड़ी चपत उत्तर रेलवे ने लगाई है. तय नियमों के मुताबिक सरकारी स्कूलों से रेलवे की जमीन इस्तेमाल करने के लिए 6 प्रतिशत की दर से फीस वसूलनी थी, लेकिन उत्तर रेलवे ने स्कूलों से कम फीस वसूली. इससे रेलवे को 141.81 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. दूसरा सबसे बड़ा नुकसान 55.51 करोड़ का रुपये हुआ है, जिसका जिम्मेदार 9 रेलवे जोन्स को ठहराया गया है. दरअसल, कानून के तहत रेल मंत्रालय को डिस्ट्रिक्ट माइनिंग फाउंडेशन(DMF) को एक रकम देनी होती है. ये रकम माइनिंग वाले इलाकों में रहने वालों की भलाई के लिए इस्तेमाल होती है.
रेलवे को इस रकम की भरपाई माइनिंग कॉन्ट्रैक्टर्स से करनी होती है. माने रेलवे को कॉन्ट्रैक्टर्स से रॉयल्टी फीस के अलावा उनसे DMF के खाते में जाने वाली रकम भी वसूलती है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 9 रेलवे जोन्स माइनिंग कॉन्ट्रैक्टर्स से रॉयल्टी फीस तो ले रहे थे मगर DMF को दी जाने वाली रकम नहीं वसूल रहे थे. इससे रेलवे को 55.51 करोड़ की चपत लगी है.
कैग की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि दक्षिण पूर्व रेलवे ने खराब गुणवत्ता वाले माल डब्बों की सप्लाई की और कारगर ना होने के बाद भी उन्हें चलाना जारी रखा, जिससे रेलवे को करोड़ों को नुकसान हुआ है. धुतरा में अल्ट्राटेक सीमेंट साइडिंग और राजगनपुर में ओडिशा सीमेंट साइडिंग को अच्छी गुणवत्ता वाले माल डब्बों के साथ-साथ खराब गुणवत्ता वाले माल डब्बे भेजे गए.
कायदे से अनफिट डब्बों को हटा देना चाहिए था. हटाना दूर, ये डब्बे अच्छे वाले माल डब्बों के साथ पटरी पर दौड़ते रहे. मगर उनमें सामान की ढुलाई तो हुई नहीं. इसकी वजह से दक्षिण पूर्व रेलवे वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2023 के दौरान 10.25 करोड़ का घाटा लगा है.
रिपोर्ट में पूर्व केंद्र रेल की तरफ से भी फीस वसूली प्रक्रिया में लापरवाही दिखाने की बात कही गई है. रिपोर्ट के मुताबिक बीना साइडिंग में रेलव इंजनों के इस्तेमाल के बदले शंटिंग चार्ज नहीं वसूले गए. जिसकी वजह से अप्रैल 2020 से मार्च 2023 के बीच रेलवे को 50.77 करोड़ का नुकसान हुआ.
रिपोर्ट में कमाई वसूलने में लापरवाही के अलावा फंड के गलत इस्तेमाल, यात्रियों की सुरक्षा से समझौते से जुड़े मामलों का भी जिक्र है. रिपोर्ट में इंटरनल कोच फैक्ट्री(ICF) पर नीलगिरी माउंटेन रेलवे के लिए खराब डब्बे बनाने और उन्हें मंजूरी के बिना ही शुरू कर यात्रियों की सुरक्षा से समझौते का आरोप लगा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण रेलवे को 45.88 किलोमीटर लंबे मेट्टुपालयम और उदगमंडलम स्टेशनों के बीच चल रहे 100 साल पुराने 28 कोच बदलने थे. उसकी डिमांड पर 2015 में रेल मंत्रालय ने ICF को प्रोटोटाइप बनाने का ऑर्डर दिया. आईसीएफ ने शुरुआत में 15 कोच बनाए और उन्हें दक्षिणी रेलवे को सौंप दिया. दो अप्रैल, 2019 को पहले चार कोचों को मेट्टुपालयम से उदगमंडलम रूट पर शुरू भी कर दिया गया.
रिपोर्ट ICF पर सवाल उठाते हुए कहती है कि पहले तो ICF ने दिशानिर्देशों के हिसाब से प्रोटोटाइप नहीं बनाया. दूसरा प्रोटोटाइप को बिना मंजूरी के ही शुरू भी कर दिया गया. ये डब्बे पवर्तीय इलाके के लिए बनाए जाने थे, इसलिए इनका परीक्षण भी उसी हिसाब से होना चाहिए था. मगर ऐसा नहीं किया गया. आलम ये है कि ये डब्बे आज भी जस के तस पड़े हैं. इससे रेलवे को 27.91 करोड़ का नुकसान हुआ है.
कैग ने इस बारे में कुछ सिफारिशें भी दी हैं. कहा गया है, ‘रेल मंत्रालय आरडीएसओ (अनुसंधान डिजाइन एवं मानक संगठन) के परामर्श से ‘प्रोटोटाइप’ कोच के विकास के लिए एक मजबूत प्रणाली विकसित कर सकता है. सफल परीक्षण के बाद ही रेल डिब्बों का नियमित उत्पादन शुरू किया जाना चाहिए.'
इसके अलावा कैग ने ये भी बताया है कि सत्य साइ प्रशांति निलयम (SSPN) स्टेशन और KSR बेंगलुरु सिटी(SBC) के बीच चलने वाली एक्सप्रेस को ज्यादा पैसेंजर नहीं मिल रहे थे. बेंगलुरु डिविजन की शिकायत के बाद भी दक्षिण पश्चिम रेलवे ने इसे चलाना जारी रखा. जिससे 2017-18 से 2022-23 के बीच रेलवे को 17.41 करोड़ का नुकसान हुआ.
पूर्व रेलवे ने रोड ओवर ब्रिज बनाने के लिए रेलवे बोर्ड ने निर्देश और मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग के प्रावधानों का पालन नहीं किया. लिहाजा, ब्रिज का काम रुक गया. इसकी वजह से राज्य सरकार की तरफ से मिलने वाले 13.52 करोड़ का फंड भी रुक गया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रैफिक बढ़ाने के लिए रेलवे को स्टेशन टू स्टेशन स्कीम के तहत माल ढुलाई भाड़े में छूट की इजाजत दी गई थी. इस छूट के लिए कुछ शर्तें तय की गई थीं. मगर दक्षिण रेलवे ने नियमों के उलट जाकर माल ढुलाई भाड़े में छूट दी, जिसकी वजह से रेलवे को 11.02 करोड़ का नुकसान हुआ.
उत्तर पूर्व रेल ने ऊंचे दाम वाली मशीन से तोड़ी गई गिट्टी को प्राथमिकता दी. जबकि, इससे पहले रेलवे ने उसी इलाके में इससे सस्ते दाम पर गिट्टी खरीदी थी. नए हाई रेट्स की वजह से कॉन्ट्रैक्टर को 9.40 करोड़ का फायदा हुआ.
वीडियो: तत्काल टिकटों पर रेलवे के नए नियम से क्या बड़ा बदलाव होगा जान लीजिए