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महिला IPS अधिकारी को सुप्रीम कोर्ट का आदेश, 'पति और ससुराल से सार्वजनिक माफी मांगो'

Supreme Court Orders Apology: महिला ने पति और उसके परिवार पर कुल 6 आपराधिक केस किए थे. इनमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (घरेलू हिंसा), 307 (हत्या की कोशिश), 376 (यौन उत्पीड़न) और 406 (विश्वासघात)जैसे गंभीर आरोप शामिल थे.

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सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करते हुए दोनों का तलाक मंजूर कर लिया. (Supreme Court)

सुप्रीम कोर्ट ने एक भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी अफसर और उनके माता-पिता को आदेश दिया है कि वे अपने पूर्व पति और उसके परिवार से तीन दिनों के अंदर सार्वजनिक तौर पर माफी मांगें. कोर्ट ने यह फैसला इसलिए दिया क्योंकि महिला ने अपने पति और उसके परिवार के खिलाफ कई गंभीर आपराधिक केस दर्ज कराए थे, जिनकी वजह से पति को 109 दिन और उसके पिता को 103 दिन जेल में रहना पड़ा.

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मंगलवार, 22 जुलाई को चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह कोर्ट की बेंच ने IPS पत्नी को अखबार में माफीनामा छपवाने के लिए कहा है. इसके अलावा इस माफी को सोशल मीडिया पर शेयर करने के लिए भी कहा गया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,

"उन्होंने (पीड़ित पति और उनका परिवार) जो कुछ सहा है उसकी भरपाई या क्षतिपूर्ति किसी भी तरह से नहीं की जा सकती. (महिला IPS अधिकारी) और उनके माता-पिता अपने पति और उनके परिवार के सदस्यों से बिना शर्त माफी मांगेंगे, जिसे एक प्रसिद्ध अंग्रेजी और एक हिंदी अखबर के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित किया जाएगा. इस तरह की माफी को फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और अन्य समान प्लेटफॉर्म पर भी पब्लिश और सर्कुलेट किया जाएगा."

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सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा, "इस तरह की माफी को बोझ मानने के तौर पर नहीं माना जाएगा और इसका कानूनी अधिकारों, दायित्वों या कानून के तहत पैदा होने वाले परिणामों पर कोई असर नहीं होगा. माफी इस आदेश की तारीख से 3 दिनों के भीतर प्रकाशित की जाएगी और बिना किसी फेरबदल के निम्नलिखित रूप में होनी चाहिए."

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी बताया कि महिला IPS अधिकारी को किस तरह माफी मांगनी है. माफी का फॉर्मेट कोर्ट ने खुद तय किया और कहा कि उसमें कोई बदलाव नहीं किया जाएगा. इसमें लिखा है,

“मैं (IPS का नाम और पता), अपने और अपने माता-पिता की ओर से अपने किसी भी शब्द, कार्य या कहानी के लिए माफी मांगती हूं, जिससे (ससुराल) परिवार के सदस्यों (ससुराल के सदस्यों के नाम) की भावनाओं को ठेस पहुंची हो या उन्हें परेशानी हुई हो. मैं समझती हूं कि विभिन्न आरोपों और कानूनी लड़ाइयों ने दुश्मनी का माहौल पैदा कर दिया है और आपकी भलाई को गहराई से प्रभावित किया है. हालांकि कानूनी कार्यवाही अब हमारी शादी की समाप्ति और पक्षों के बीच लंबित मुकदमों को रद्द करने के साथ खत्म हो गई है. 

मैं समझती हूं कि भावनात्मक जख्मों को भरने में समय लग सकता है. मुझे पूरी उम्मीद है कि यह माफी हम सभी के लिए शांति और समापन पाने की दिशा में एक कदम हो सकती है. दोनों परिवारों की शांति, अच्छे स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली की कामना करते हुए, मुझे पूरी उम्मीद है कि (ससुराल) परिवार मेरी इस बिना शर्त माफी को स्वीकार करेगा. 

अतीत चाहे कितना भी अंधकारमय क्यों ना हो, वह भविष्य को बंधन में नहीं डाल सकता. मैं इस अवसर पर (ससुराल) परिवार के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करती हूं कि उनके साथ अपने जीवन के अनुभवों से मैं एक अधिक आध्यात्मिक व्यक्ति बनी. एक (धर्म) की धर्मावलंबी होने के नाते मैं (ससुराल) परिवार के हर सदस्य की शांति, सुरक्षा और खुशहाली की सच्चे मन से कामना और प्रार्थना करती हूं. यहां, मैं दोहराती हूं कि (ससुराल) परिवार का विवाह से जन्मी उस बच्ची से मिलने और उसकी खैरियत जानने के लिए हार्दिक स्वागत है, जिसका कोई दोष नहीं है.

आदर और सम्मान के साथ,

'(महिला IPS अधिकारी का नाम)'"

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Supreme Court Apology
सुप्रीम कोर्ट ने माफीनामे का फॉर्मेट बताया. (Supreme Court)

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला ने पति और उसके परिवार पर कुल 6 आपराधिक केस किए थे. इनमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A (घरेलू हिंसा), 307 (हत्या की कोशिश), 376 (यौन उत्पीड़न) और 406 (विश्वासघात) जैसे गंभीर आरोप शामिल थे. इसके अलावा तीन केस घरेलू हिंसा कानून के तहत और फैमिली कोर्ट में तलाक, भत्ते जैसे मामले भी दायर किए गए थे.

कोर्ट ने महिला अधिकारी को यह भी चेतावनी दी कि वो अपनी IPS की ताकत या अपने किसी अफसर या जान-पहचान वालों की ताकत का इस्तेमाल पति और उसके परिवार के खिलाफ अब या भविष्य में नहीं करेंगी.

वहीं, कोर्ट ने पति और उसके परिवार को भी चेतावनी दी कि वे इस माफीनामे का इस्तेमाल किसी भी कोर्ट या संस्था में महिला के खिलाफ नहीं करेंगे, वर्ना यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी. कोर्ट ने इस फैसले में संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए दोनों का तलाक मंजूर कर लिया. साथ ही सभी केसों को खत्म करने का आदेश भी दे दिया.

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