टाटा मोटर्स सेंसेक्स से बाहर होने वाली है. कंपनी शेयर मार्केट में अपना बेंचमार्क खोने की कगार पर है. दरअसल, टाटा मोटर्स अपने कमर्शियल और पैसेंजर व्हीकल बिजनेस को बांटने के बाद सेंसेक्स में बने रहने की न्यूनतम शर्त पूरी नहीं कर पा रही है. संभावना ये भी है कि सेंसेक्स में टाटा मोटर्स की जगह एयरलाइन कंपनी इंडिगो (IndiGo) ले सकती है. दरअसल, अक्टूबर महीने में टाटा मोटर्स ने अपने कमर्शियल और पैसेंजर व्हीकल के बिजनेस को बांटकर दो अलग कंपनियां बना दी थीं.
टाटा मोटर्स करेगी बाजार को 'टाटा'? सेंसेक्स से बाहर हो सकती है
Tata Motors Sensex: टाटा मोटर्स 30-शेयर वाले बेंचमार्क से दिसंबर महीने में बाहर हो सकती है. इसकी वजह कंपनी के कमर्शियल और पैसेंजर व्हीकल के अलग होने को बताया जा रहा है.


बंटवारे के बाद कमर्शियल व्हीकल की मार्केट वैल्यू 1.19 ट्रिलियन और (एक लाख करोड़ से ऊपर) पैसेंजर व्हीकल की वैल्यू 1.37 ट्रिलियन हो गई. इन दोनों कंपनियों से इतर इंडिगो की वैल्यू 2.27 ट्रिलियन (दो लाख करोड़ से ऊपर) है. जो इन दोनों से ज्यादा है. सेंसेक्स का रिव्यू नवंबर महीने के आखिर में हो सकता है. इसके बाद टाटा मोटर्स को शेयर मार्केट को 'टाटा' बोलना पड़ेगा.
सालों से टिकी हैं कुछ कंपनियांटाटा मोटर्स अगर सेंसेक्स से बाहर निकलती है, तो ये पहली बार नहीं होगा. 2019 में भी टाटा सेंसेक्स से बाहर होकर 2022 में फिर से जुड़ चुकी है. बता दें कि सेंसेक्स की शुरुआत 1 जनवरी 1986 से हुई थी. तब से लेकर अब तक सिर्फ कुछ ही शेयर्स, माने कि कंपनियां हैं, जो 30 स्टॉक में जगह बनाए हुए हैं. ये कंपनियां हैं- रिलायंस इंडस्ट्री, हिंदुस्तान यूनिलिवर और ITC.
यानी जब से सेंसेक्स का 30-शेयर बेंचमार्क खड़ा हुआ है, तब से ये कंपनियां उससे जुड़ी हुई हैं. वहीं, महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा स्टील, टाटा मोटर्स और Larsen & Toubro जैसी कंपनियां अंदर-बाहर होती रही हैं. इसी साल जून में नेस्ले इससे बाहर हुई है, जो लंबे समय से इसका हिस्सा थी.

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर टाटा सेंसेक्स से बाहर हुई, तो उसे लगभग 2 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है. वहीं, इंडिगो को लगभग 3 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा मिल सकता है.
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सेंसेक्स में शामिल होने की कुछ शर्ते होती हैं. जैसे कि कंपनी को BSE (मुंबई शेयर एक्सचेंज) पर कम से कम 6 महीने लिस्टेड होना चाहिए. कंपनी का नाम फुल मार्केट कैप के बेस पर देश की टॉप-75 कंपनियों में होना चाहिए. पिछले 6 महीने में औसत रोजाना ट्रेडिंग वैल्यू कम से कम 10-15 रुपये होनी चाहिए. फ्री-फ्लोट मार्केट कैप (अवेलेबल शेयर वैल्यू) पर आधारित वेटेज कम से कम 0.5 प्रतिशत होना जरूरी है. इसके अलावा, कंपनी के शेयर पिछले 6 महीने में कम से कम 98% ट्रेडिंग दिनों में ट्रेड होने चाहिए. एक बार कंपनी ये सब कर लेती है, तो वह सेंसेक्स के 30-शेयर बेंचमार्क में जुड़ सकती है.
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