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इलेक्ट्रिक कार खरीदने का सोच रहे, बेचने में पसीना न छूट जाए?

एक स्टडी में पाया गया कि 3 साल पुरानी EV की कीमत आधे से ज्यादा कम हो गई. जिन लोगों ने 2023 में Tesla Model Ys खरीदा, उन कारों की वैल्यू 2025 में 42% तक गिर गई है.

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इलेक्ट्रिक गाड़ियों की डिमांड काफी बढ़ रही है, लेकिन कुछ साल चलाने के बाद बेचने में काफी मुश्किलें आ रही. (फोटो-Pexels)

एक गाड़ी का मालिक जब अपनी कार बेचने के लिए निकलता है, तो वह उम्मीद करता है कि उसे कार की अच्छी रीसेल वैल्यू मिल जाए. यानी जब कार पुरानी हो जाए तो बिकने पर ठीक-ठाक दाम मिल जाए. भारत में जहां Maruti Suzuki, Tata, Mahindra जैसी स्वदेशी कंपनियों की पुरानी गाड़ी हाथो-हाथ बिक जाती हैं, तो विदेशी कंपनियों को भी ठीक-ठाक पैसा मिल ही जाता है. लेकिन इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मामले में ऐसा नहीं है. इन गाड़ियों की रीसेल वैल्यू पेट्रोल-डीजल कारों के मुकाबले काफी कम हो रही है. ये हाल सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया का है. यहां तक सिर्फ इलेक्ट्रिक कार बनाने वाली Tesla कंपनी की कारों का भी ये ही हाल है.

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एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लोगों ने 2023 में Tesla  Model Ys खरीदा, उन कारों की वैल्यू 2025 में 42% तक गिर गई है. UK की एक स्टडी में पाया गया कि 3 साल पुरानी EV की कीमत आधे से ज्यादा कम हो गई, जबकि फ्यूल कारों में ये गिरावट 39% देखी गई. एक अन्य रिसर्च में पाया गया कि अमेरिका में इलेक्ट्रिक गाड़ी 3 से 5 साल में अपना 60% मूल्य खो सकती हैं. क्यों ?

असली ताकत ही असली कमजोरी

इलेक्ट्रिक गाड़ी की सबसे बड़ी ताकत उसकी बैटरी होती है. क्योंकि इनमें पेट्रोल और डीजल का खर्चा बच जाता है. लेकिन यही बैटरी ईवी की सबसे बड़ी कमजोरी भी है. दरअसल, इलेक्ट्रिक व्हीकल की बैटरी किसी भी गाड़ी की कुल लागत का 30–40% हिस्सा होती है. जैसे कि एक लाख रुपये की स्कूटी है, तो 40-45 हजार रुपये तक इसकी बैटरी की कॉस्ट है. ऐसे में अगर इस स्कूटी की बैटरी खराब हो गई, तो स्कूटी की कीमत का आधा पैसा नई बैटरी लेने पर लगाना पड़ेगा. 

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इसी साल एक मामला सामने आया था, जहां एक व्यक्ति ने इलेक्ट्रिक प्रीमियम सेडान BYD Seal खरीदी थी. लेकिन 2 महीने बाद बाढ़ में उनकी कार की बैटरी खराब हो गई. इसके बाद शख्स को बैटरी बदलने में 18 लाख रुपये तक का खर्च आया था.

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इलेक्ट्रिक गाड़ियों में आमतौर पर लीथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है, जो समय के साथ डिग्रेड होती है. फिर आप इसका इस्तेमाल करें या नहीं. माने कि एक ईवी जब यार्ड में या शोरूम में आकर खड़ी होती है, तब से ही उसकी बैटरी घटनी शुरू हो जाती है. फिर वो 0.001% ही क्यों न हो. इसके बाद जिस दिन आप चाबी घुमाकर गाड़ी को शोरूम से घर लाते हैं. तब से ही इसकी बैटरी की लाइफ घटने लगती है. उदाहरण के लिए एप्पल ने भी कुछ साल बताया कि लीथियम बैटरी की कैपेसिटी समय के साथ कम हो जाती है. 

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एप्पल के मुताबिक, 500 साइकिल के बाद iPhone की बैटरी हेल्थ 80% के आसपास रह जाती है. 500 साइकिल मतलब मोटा-माटी 3 साल. वैसे ये कम ज्यादा भी हो सकता है. यहां चार्जिंग साइकिल से मतलब बैटरी का 0 से 100 फीसदी चार्ज होना है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि जितनी बार आपने चार्जिंग पर फोन लगाया उतनी बार में एक साइकिल हो गई. जैसे मान लेते हैं कि आईफोन 0 फीसदी चार्ज था, जिसे आपने 100 फीसदी चार्ज किया. ये हो गई 1 साइकिल. लेकिन फिर फोन 50 फीसदी डिस्चार्ज हुआ और आपने 100 फीसदी चार्ज कर लिया तो साइकिल काउंट नहीं होगी.

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ऐसे में एक ईवी की साइकिल देखें, तो 3 साल में वो करीब-करीब 700 के आस-पास हो सकती है. या शायद उससे ज्यादा. जिसका असर बैटरी की कैपेसिटी पर जाएगा. जितनी रेंज एक गाड़ी फुल चार्ज में शुरुआत में दे रही थी. उतनी रेंज वो 3-4 साल बाद नहीं देगी. सिर्फ इतना ही नहीं, मौसम का भी असर भी लीथिमय बैटरी पर पड़ता है. ज्यादा गरम और ज्यादा ठंडा मौसम बैटरी को अच्छा नहीं लगता है. 

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इलेक्ट्रिक कार की ताकत उसकी बैटरी है (फोटो-Pexels)

मोटा-माटी कहा जाएं, तो एक इलेक्ट्रिक गाड़ी की बैटरी लगभग 7 साल तक साथ निभा सकती है. जिसके बाद इसे बदलना ही एक ऑप्शन बचता है और जैसे हम ऊपर बता ही चुके हैं कि एक बैटरी गाड़ी की कुल लागत का 30–40% हिस्सा होती है. ऐसे में अगर कोई व्यक्ति 5 साल पुरानी इलेक्ट्रिक गाड़ी भी ले रहा है, तब भी उसे किसी भी मौके पर नई बैटरी के लिए तैयार रहना पड़ेगा. क्योंकि किसे पता कि एक व्यक्ति पुरानी ईवी के लिए 4 या 5 लाख रुपये चुकाएं और 5 महीने बाद ही उसे बैटरी पर 5 लाख रुपये अलग से खर्च करने पड़ जाए. ऊपर से पुरानी बैटरियों की सेहत का आकलन करने के लिए कोई वास्तविक बैटरी हेल्थ मीटर नहीं है. सिर्फ एक ईवी की ताकत यानी बैटरी ही उसकी वैल्यू घटा रही है.

आप क्या करें?

ईवी लेने का मन है, तो कोशिश करें की गाड़ी ऐसी कंपनी से खरीदें, जो बैटरी पर अच्छी-खासी वॉरंटी देती हो. कुछ कंपनियां बैटरी पर लाइफटाइम तक की वॉरंटी भी ऑफर करती है. लेकिन ये ऑफर आमतौर पर पहले मालिक के लिए ही होता है. ऐसे में आपको ये पूछना चाहिए कि जब आप ये गाड़ी भविष्य में सेल करें, तो दूसरे ओनर के लिए इस वॉरंटी का क्या होगा? अगर बैटरी पर वॉरंटी दूसरे ओनर को भी मिल जाएगी, तो ये आपके लिए प्लस प्वॉइंट होगा.   

सर्टिफिकेट- नई कार खरीदते समय कोशिश करें कि कार निर्माता से "स्टेट ऑफ हेल्थ" (SoH) सर्टिफिकेट लें. जिसमें ये जिक्र हो कि हर साल बैटरी की क्षमता 2% से ज्यादा कम न हो. यानी अगर बैटरी की शुरुआत में कैपेसिटी 100% थी, तो एक साल में सिर्फ 98% ही कम होनी चाहिए.

 

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