आजकल की मॉडर्न कारों में क्रूज कंट्रोल फीचर जरूर मिलता है. इस फीचर की मदद से गाड़ी को बिना लगातार एक्सेलेरेटर दबाए, एक निश्चित स्पीड पर चलाया जा सकता है. यानी ये एक स्पीड को लॉक कर देता है. इसका सबसे बड़ा फायदा हाईवे पर मिलता है. जहां कार को एक निश्चित स्पीड पर लगातार चलाया जा सकता है. क्रूज कंट्रोल तब तक आपकी गाड़ी को कंट्रोल करता है जब तक आप ब्रेक नहीं दबाते, क्लच नहीं दबाते या क्रूज कंट्रोल बंद नहीं करते हैं. कमाल फीचर है मगर इससे भी कमाल है इस फीचर को बनाने वाले की कहानी. खुद पर कंट्रोल रखिएगा जब आपको पता चलेगा कि जिस व्यक्ति ने इस तकनीक को बनाया, वो देख नहीं सकते थे. ड्राइविंग तो दूर की बात है. पूरी कहानी जान लीजिए.
अंधा इंजीनियर जिसने क्रूज़ कंट्रोल बनाई, ड्राइविंग की दुनिया बदलने की कहानी
Cruise Control History: क्रूज कंट्रोल एक तकनीक है, जो गाड़ी को तय स्पीड पर चलने देती है. ये फीचर आजकल ज्यादातर गाड़ियों में दिया जाता है. लेकिन जिस व्यक्ति ने इस सिस्टम को बनाया, वे अंधे थे और अपने वकील की ड्राइविंग से बहुत परेशान थे.


Ralph Teetor एक अमेरिकी मैकेनिकल इंजीनियर थे. 5 साल की उम्र में एक दुर्घटना में उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी. वे ड्राइविंग नहीं कर पाते थे और इसी वजह से उन्हें क्रूज कंट्रोल बनाने का आइडिया दिया. दरअसल, 1940 के दशक में वे अक्सर अपने वकील Harry Lindsay के साथ ट्रैवल करते थे. Harry काम में तो काफी अच्छे थे लेकिन ड्राइविंग में बहुत खराब. जब भी Harry बोलते, तो उनका पैर अनजाने में एक्सीलरेटर पर जोर से दब जाता. जब वह बोलना बंद करते, तो एक्सीलरेटर पर से पैर हटा लेते थे. इस लगातार स्पीड कम और तेज होने से Teetor काफी परेशानी हो जाते थे.

Ralph एक इंवेंटर के साथ ही प्रॉब्लम-सॉल्वर भी थे. गाड़ी के धीमी और तेजी गति से परेशान Teetor ने एक ऐसा डिवाइस बनाने का सोचा जो ड्राइवर के ध्यान भटकने के बावजूद, खुद से थ्रॉटल (स्पीड) को कंट्रोल कर सके. साथ ही एक स्थिर गति बनाए रखे. 1940 के दशक में ये आइडिया काफी अलग लगा था. क्योंकि उस समय कारों में सेफ्टी फीचर्स तक नहीं दिए जाते हैं. गाड़ी सिर्फ एक वाहन था, जो एक जगह से दूसरी जगह लोगों को जाने में मदद करता है.
खैर, Teetor वकील की ड्राइविंग से तंग थे और उन्हें इसका कुछ न कुछ उपाय निकालना ही था. इसलिए उन्होंने स्पीड-कंट्रोल डिवाइस पर काम करना शुरू कर दिया. 1945 में उन्होंने इस तकनीक के लिए पहला पेटेंट फाइल किया. 1948 में इसे ‘स्पीडोस्टेट’ नाम से आधिकारिक तौर पर पेटेंट कराया गया. 1950 में इसे मंजूरी मिली. उस समय इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल यूनिट नहीं थी. जिस वजह से ये सिस्टम पूरी तरह मैकेनिकल और वैक्यूम ड्रिवन होता था. ये तकनीक कार के ड्राइवशाफ्ट से जुड़े एक घूमने वाले शाफ्ट, एक स्प्रिंग और थ्रॉटल से जुड़े एक डायाफ्राम से चलती थी. जब कार तय स्पीड से आगे बढ़ती या कम होती, तो ये सिस्टम थ्रॉटल को एडजस्ट करके वापस चुनी हुई गति पर लेकर आ जाता था.

सालों तक इस तकनीक में सुधार के बाद 1958 में Teetor का ये डिवाइस पब्लिक के लिए उपलब्ध हो गया. Chrysler (एक कार कंपनी) ने इस तकनीक को "ऑटो-पायलट" नाम से Imperial मॉडल में पेश किया. इसमें ड्राइवर अपनी मर्जी से स्पीड तय कर सकते थे और कार उस स्पीड को बरकरार भी करके रखती थी. इससे लंबे हाईवे रूट पर थकान नहीं होती थी. इस तकनीक को उस समय सफलता भी मिली. Chrysler ने जल्द ही इसे अन्य मॉडल्स में भी देना शुरू कर दिया. बाद में इस तकनीक को क्रूज कंट्रोल नाम दिया गया.
आज क्रूज कंट्रोल Teetor के मूल डिजाइन से काफी आगे निकल गया है. अब कारों में रडार, कैमरा और ECU की मदद से क्रूज कंट्रोल तकनीक काम करती है. फिर भी इस तकनीक में Teetor की झलक दिखती है. जिन्होंने ड्राइविंग एक्सपीरियंस के साथ ही पैसेंजर सीट पर बैठे व्यक्ति के आराम के बारे में भी सोचा.
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