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गाड़ी चोरी हुई या पूरी टूट गई? ये पॉलिसी दिलाएगी पूरी कीमत, जानिए क्या है RTI इंश्योरेंस

Return To Invoice Cover: गाड़ी खरीदने के बाद जैसे ही वो शोरूम से बाहर आती है, उसकी वैल्यू कम जाती है. लेकिन रिटर्न टू इनवॉइस पॉलिसी से आपको नई गाड़ी की कीमत चोरी या टोटल लॉस होने की सिचुएशन में पूरी मिलेगी.

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रिटर्न टू इनवॉइस कवर एक बीमा ऐड-ऑन है. (फोटो-Business Today)

आपने नई गाड़ी खरीदी. साथ में उसका इंश्योरेंस भी ले लिया. सोच लिया कि अब बेफिक्र हैं. कुछ भी हो जाए, बीमा कंपनी नुकसान भर देगी. पर सच ये है कि जितना आप सोच रहे हैं, उतना क्लेम आपको नहीं मिलने वाला. कड़वा है, लेकिन सच्चाई यही है. 

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अब जरा ध्यान दीजिए, एक ऐसी पॉलिसी है, जो आपकी कार की कीमत को घटने नहीं देती. मतलब, अगर गाड़ी चोरी हो जाए या पूरी तरह टूट जाए, तो आपको उसकी पूरी ऑन-रोड कीमत मिल सकती है. नाम है- RTI यानी Return to Invoice.

क्या है Return to Invoice?

"रिटर्न टू इनवॉइस" (Return to Invoice) एक ऐड-ऑन कवर है, जिसे आप अपनी कम्प्रिहेंसिव कार इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ ले सकते हैं. ये तब काम आता है जब, आपकी कार चोरी हो जाए. या फिर इतनी बुरी तरह डैमेज हो जाए कि रिपेयर का मतलब ही न बचे.

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ऐसे केस में बीमा कंपनी आपको गाड़ी की पूरी ऑन-रोड कीमत देती है. इसमें एक्स-शोरूम प्राइस, रोड टैक्स और रजिस्ट्रेशन चार्ज, सब शामिल होता है. मिसाल के तौरपर, मान लीजिए आपने 10 लाख रुपये की कार खरीदी. टैक्स और रजिस्ट्रेशन मिलाकर कुल खर्च हुआ 11 लाख. दो साल बाद कार चोरी हो गई. RTI पॉलिसी होने पर आपको पूरे 11 लाख रुपये तक का क्लेम मिल सकता है.

बस ध्यान रहे - RTI कवर सिर्फ नई या 5 साल से कम पुरानी गाड़ियों पर ही लागू होता है.

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RTI से मिलेगी इंश्योंरेंस पर पूरी कीमत, फोटो-Pexels
RTI की कीमत और वैधता

कवरेज बढ़ता है, तो खर्च भी बढ़ता है. RTI लेने पर आपको नॉर्मल पॉलिसी से लगभग 10% ज़्यादा प्रीमियम देना पड़ सकता है. ज्यादातर बीमा कंपनियां RTI सिर्फ नई गाड़ियों के लिए देती हैं. कुछ कंपनियां इसे 2-3 साल पुरानी कारों पर भी देती हैं.

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साथ ही, हर ऐड-ऑन कवर की तरह RTI भी साल भर के लिए वैध होता है. उसके बाद इसे रिन्यू कराना पड़ता है. कई बार बीमा कंपनी पॉलिसी की अवधि बदल भी सकती है, इसलिए डॉक्यूमेंट में एक्सपायरी और रिन्यूअल डेट जरूर देख लें.

RTI और IDV में फर्क क्या है?

अब आते हैं बड़े सवाल पर, RTI और IDV में फर्क क्या है? जब आप कोई गाड़ी खरीदते हैं, तो उसकी वैल्यू शोरूम से बाहर निकलते ही घटने लगती है. इसे कहते हैं IDV यानी Insured Declared Value. यानी, आपकी गाड़ी का मौजूदा बाजार मूल्य.

समय के साथ गाड़ी की वैल्यू घटती जाती है, इसे डेप्रिसिएशन कहते हैं. देखिए, ये डेप्रिसिएशन आम तौर पर कितना होता है,
 

 कार की उम्रडेप्रिसिएशन 
6 महीने और उससे कम5%
6 महीने से 1 साल15%
1 साल से 2 साल20%
2 साल से 3 साल 30%
3 साल से 4 साल40%
4 साल से 5 साल 50%
5 साल से ऊपरबात करने के बाद जो मिले

मतलब साफ है कि अगर RTI नहीं लिया, तो क्लेम डेप्रिसिएटेड वैल्यू पर ही मिलेगा. RTI लेने पर पूरी ऑन-रोड वैल्यू वापस मिलेगी.

गाड़ी के बीमा के साथ चिपक कर आने वाले IDV का क्या मतलब है, हमेशा घटने वाली कीमत ही क्यों तय होती है

कहां काम नहीं करता RTI?

RTI कोई जादू नहीं है. इसके भी लिमिटेशन हैं. कई ऐसे मामले हैं, जहां आपको कॉम्प्रोमाइज़ करना पड़ सकता है. मिसाल के तौरपर

  • छोटा-मोटा नुकसान: गाड़ी पर हल्का डेंट या विंडशील्ड पर क्रैक आया, तो क्लेम नहीं मिलेगा.
  • थर्ड पार्टी पॉलिसी: RTI सिर्फ कम्प्रिहेंसिव इंश्योरेंस में मिलता है, थर्ड पार्टी में नहीं.
  • पुरानी कार: RTI सिर्फ नई गाड़ियों पर लागू होता है.
  • किसे लेना चाहिए RTI?

वहीं दूसरी तरफ अगर आप इन जगहों या हालात में हैं, तो RTI आपके लिए फायदेमंद रहेगा,

  • नई कार खरीदी है.
  • आप ऐसे इलाके में रहते हैं जहां बाढ़, तूफान या प्राकृतिक आपदाएं आम हैं.
  • या फिर ऐसी जगह, जहां वाहन चोरी अक्सर होती है.
सौ बात की एक बात

रिटर्न टू इनवॉइस थोड़ा महंगा जरूर पड़ता है. लेकिन सोचिए, अगर कभी चोरी या टोटल लॉस वाला खेला हो गया तो? ऐसे में अगर नई गाड़ी की पूरी कीमत वापस मिल जाए तो भला इससे बड़ी राहत क्या होगी?

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