क्या E20 पेट्रोल से कार का माइलेज कम होता है? क्या E20 पेट्रोल से गाड़ी जल्दी खराब होती है? क्या E20 पेट्रोल वातावरण के लिए अच्छा है? क्या E20 पेट्रोल से भारत की दूसरे देशों पर पेट्रोल की निर्भरता कम हो जाएगी? ऐसे कई सवाल पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया में रफ्तार पकड़े हुए हैं. E20 पेट्रोल को लेकर ऑटो एक्सपर्ट और जनता दो धड़ों में बंटी हुई है. एक तीसरा धड़ा देश की पेट्रोलियम कंपनियों का भी है जो E20 पेट्रोल के फायदे गिनाते नहीं थक रहा. उधर तो E27 पेट्रोल लाने की तैयारी भी चल रही है.
E20 पेट्रोल आपकी गाड़ी की माइलेज कितनी गिराएगा? हर सवाल का जवाब यहां है
E20 पेट्रोल से जुड़े सारे सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे ताकि आप 'बेकार' में परेशान न हों. जानने की कोशिश करेंगे कि नई कारों को इससे क्या फायदा होगा और पुरानी को कोई नुकसान तो नहीं होगा.

वैसे एथेनॉल ब्लेंडिंग भारत में होने वाला कोई अनोखा प्रयोग नहीं है. अमेरिका, यूरोप, ब्राज़ील, कनाडा समेत कई देश एथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल का इस्तेमाल करते हैं. अमेरिका में करीब 10% एथेनॉल ब्लेंडिंग होती है. वहीं ब्राज़ील जैसा देश तो 1970 के दशक से ही 20 से 25% वाला एथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल इस्तेमाल करता आया है. होंडा की कारें साल 2009 से ही E20 पेट्रोल के हिसाब से डिजाइन हैं.
हम क्या करें?
इन सारे सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे ताकि आप 'बेकार' में परेशान न हों. जानने की कोशिश करेंगे कि नई कारों को इससे क्या फायदा होगा और पुरानी को कोई नुकसान तो नहीं होगा. चाय बना लीजिए क्योंकि बातचीत थोड़ी लंबी होने वाली है.
क्या है E20 पेट्रोल?‘E’ मतलब एथेनॉल और ‘20’ मतलब 20 पर्सेंट. शॉर्ट में हो गया E20. मतलब जो आपने एक लीटर पेट्रोल लिया तो उसमें 20 फीसदी एथेनॉल मिला होगा. फ़रवरी 2023 से इस वाले पेट्रोल को बाज़ार में उतारा गया था. सरकार इस वाले पेट्रोल को साल 2030 के आख़िर तक सभी पेट्रोल पंपों पर उपलब्ध करवाने का टारगेट लेकर चल रही थी. लेकिन उससे 5 साल पहले ही ये टारगेट पूरा हो गया है.
पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया है कि सरकार ने भारत में बेचे जा रहे पेट्रोल में 20 फ़ीसद एथेनॉल मिलाने का लक्ष्य हासिल कर लिया है. सरकार ने जैसे ही इसके बारे में बताया, उसके बाद से ही इसको लेकर बहस शुरू हुई. 80-20 वाला रूल समझ लिया, अब बताते हैं कि ये एथेनॉल है क्या.
असल में एथेनॉल एक किस्म का ऐल्कोहॉल है. ये पेट्रोल की तरह ज़मीन से नहीं निकलता है, इसे गन्ने और मक्के से बनाया जाता है. गन्ने या ख़राब मक्के को बैक्टीरिया और कई जीवाणुओं की मदद से सड़ाया जाता है. इस प्रक्रिया को फर्मेंटेशन कहते हैं. उसी से मिलता है एथेनॉल. आपके मन में सवाल होगा कि ये सब तो ठीक है, मगर अचानक से सरकार को क्या सूझी जो सीधे 20 फीसदी एथेनॉल मिला दिया.
दरअसल ऐसा है नहीं. साल 2003 में भारत सरकार ने Ethanol Blended Petrol Program शुरू किया गया था. तब प्लान था कि 100 लीटर पेट्रोल में 5 लीटर एथेनॉल मिलेगा, यानी 5%. इसे कहते हैं एथेनॉल ब्लेंडिंग. और ऐसे पेट्रोल को कहते हैं एथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल. 5% का ये टारगेट कामयाब हुआ तो फिर सरकार ने दो नए गोल सेट किए- 2022 तक 10% एथेनॉल वाला पेट्रोल और 2030 तक 20% एथेनॉल वाला पेट्रोल हर पेट्रोल पंप पर.
आपके मन में सवाल होगा कि ये सब तो ठीक है मगर इसको मिलाना ही क्यों हैं.
एथेनॉल ब्लेंडिंग का चलन बढ़ने की कई वजहें हैं. सबसे पहले तो कच्चे तेल का बाजार बेहद Unpredictable है. हमने रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच ही देखा कि कैसे कच्चे तेल के दाम आसमान छूने लगे थे. कच्चा तेल महंगा होगा तो स्वाभाविक है, उससे बनने वाले पेट्रोल के दाम पर भी असर पड़ेगा. और अंत में पूरी अर्थव्यवस्था ही चरमराने लगेगी. पेट्रोल में एथेनॉल मिलने से कच्चे तेल की खपत कम हो जाती है. आर्थिक मोर्चे के अलावा एथेनॉल के इस्तेमाल से प्रदूषण में भी कमी आती है.
वो कैसे?
जैसा कि आप सब जानते हैं पेट्रोल के जलने से कई जहरीली गैसें निकलती हैं. जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड. नतीजा, AQI ख़राब होता है. एथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल में ऐसी गैसों की मात्रा कम हो जाती है. और AQI को ख़राब करने वाले pollutants भी कम हो जाते हैं.
अब आपके मन में सवाल होगा कि इसको लेकर बहस क्यों हो रही है.
पेट्रोल नया, तकनीक पुरानीबहस की सबसे बड़ी वजह है देश में चलने वाली कारें जो 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग के लिए तैयार नहीं हैं. खास कर भारत के पुराने वाहन. ज्यादातर वाहनों के इंजन सिर्फ 10% ब्लेंडिंग के लिए ही बने हैं. इसीलिए आशंका जताई जा रही है कि 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग से इन गाड़ियों के इंजनों में तकनीकी समस्या आ सकती है. एथेनॉल की वजह से इनके इंजन खराब हो सकते हैं.
एथेनॉल से होने वाले नुकसान पर साल 2024 में साइंस डायरेक्ट नाम की साइंस जर्नल में एक रिसर्च पेपर भी पब्लिश हुआ है. इसके मुताबिक एथेनॉल में पेट्रोल के मुकाबले कम एनर्जी होती है. माने पेट्रोल के जलने पर ज्यादा ऊर्जा पैदा होती है, जिससे इंजन का पिकअप और उसका माइलेज बेहतर होता है.
लोकलसकिल्स नाम की एक संस्था है. इसने पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने के विषय पर एक सर्वे किया. इस सर्वे में बेहद काम की बात सामने आई. दो तिहाई लोग सरकार की 20% एथेनॉल ब्लेंडिंग पॉलिसी के ख़िलाफ़ थे. क्यों? उनका मानना है कि इससे उनकी गाड़ियों का माइलेज कम हो गया है. इनमें से 20% लोगों का कहना था कि एथेनॉल ब्लेंडिंग की वजह से गाड़ियों का माइलेज 20% तक कम हो गया है.
नुकसान है तो सही, मगर...सोशल मीडिया पर जब E20 ने रफ्तार पकड़ी तो सरकार ने अपना पक्ष रखा. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoPNG) ने सोशल नेटवर्किंग साइट 'X' पर बाकायदा इसके लिए एक लंबा-चौड़ा लेख लिखा है, जिसमें एथेनॉल ब्लेंड फ्यूल की खूबियों को बताया गया है. मंत्रालय के अनुसार, "एथेनॉल-ब्लेंड फ्यूल के उपयोग के प्रभाव पर अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन हुए हैं. इनमें पता चला कि कार्बोरेटेड और फ्यूल-इंजेक्टेड वाहनों का उनके पहले 1 लाख किलोमीटर के दौरान हर 10,000 किलोमीटर पर परीक्षण किया गया है, जिसमें वाहन के पावर, टॉर्क या माइलेज पर कोई नकारात्मक असर नहीं देखा गया है.
मंत्रालय ने लिखा, “ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ARAI), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम (IIP) और इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (R&D) द्वारा किए गए टेस्ट ने पुष्टि की है कि पुराने वाहनों में भी E20 फ्यूल के इस्तेमाल से वाहन में कोई बड़ा बदलाव, परफॉर्मेंस संबंधी समस्याएं या वियर-एंड-टियर नहीं देखा गया है.”
एथेनॉल ब्लेंड फ्यूल के इस्तेमाल पर वाहनों का माइलेज कम होने के बारे में मंत्रालय का कहना है कि रेगुलर पेट्रोल की तुलना में एथेनॉल की एनर्जी डेंसिटी कम है जिससे माइलेज में मामूली कमी आती है. हालांकि, एफिशिएंसी के मामले में इस मामूली गिरावट को बेहतर इंजन ट्यूनिंग और E20-कम्प्लाएंट एलिमेंट के उपयोग के जरिये और भी कम किया जा सकता है. प्रमुख ऑटोमोबाइल निर्माता पहले ही इस पर काम कर रहे हैं.
साल 2023 के बाद आने वाले वाहन E20 फ्यूल के हिसाब से ही डिजाइन किए गए हैं. भारत सरकार ने 2023 में बीएस6-II नाम की वाहन उत्सर्जन मानक प्रणाली लागू की थी. इसके तहत वाहन निर्माता कंपनियों के लिए इंजन और उससे जुड़े पुर्जों को ई20 फ्यूल के अनुकूल बनाना अनिवार्य किया गया था.
एक्सपर्ट का क्या कहना है?
हमने बात की ऑटो टुडे के डिप्टी एडिटर राहुल घोस से. उनके मुताबिक,
“पुरानी गाड़ियों में इसका नुकसान ही नुकसान है. दरअसल एथेनॉल एक दूसरे किस्म का प्रोडक्ट है जो पेट्रोल इंजन के लिए नहीं बना है. अब जो इसे मिलाया गया तो ये आम पेट्रोल की तुलना में ज्यादा जलेगा. नतीजतन, गाड़ी का माइलेज कम होगा. सरकार के मुताबिक ये गिरावट 1-2% है मगर वो स्टैंडर्ड टेस्टिंग में है. गाड़ी जब सड़क पर चलेगी तो ये फर्क 6 फीसदी तक होगा. माने जो गाड़ी अभी 40 का माइलेज देती थी वो गिरकर 37 पहुंच जाएगा."
राहुल ने आगे बताया कि एथेनॉल एक हाइग्रोस्कोपिक नेचर का प्रोडक्ट है. मतलब ये बहुत जल्दी नमी पकड़ता है. इससे इंजन और दूसरे पार्ट्स में जंग का खतरा भी है. 20 से 25 हजार किलोमीटर चलाने के बाद गाड़ी का परफ़ोर्मेंस कम होगा.
उन्होंने बेहतर इंजन ट्यूनिंग और E20-कम्प्लाएंट एलिमेंट के उपयोग को लेकर भी बताया है. राहुल के मुताबिक, “सरकार गाड़ी के अंदर जिस रबर पार्ट्स और गैस्किट को बदलने के बारे में कह रही है, वो बहुत जटिल प्रक्रिया है. ये काम करने के लिए पूरी गाड़ी ओपन करनी होगी. बड़ा सा बिल ग्राहक के हाथ में थमा दिया जाएगा. वारंटी भी नहीं मिलेगी.”
इसके इतर राहुल ने एथेनॉल बनने में इस्तेमाल होने वाले पानी के बारे में भी चेताया है. उनके मुताबिक इसको बनाने में पानी की खपत बहुत ज्यादा होने वाली है. ये पैसा भी जनता की जेब से ही जाएगा.
बाकी थोड़ा और इंतजार कीजिए. सरकार इस गेम को ‘73-27’ करने वाली है. E27 आएगा. तब तक चाहें तो प्रीमियम कैटेगरी के फ्यूल से टंकी फुल करते रहिए. पैसा ज्यादा फूंकना पड़ेगा.
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