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जोंटी रोड्स का कभी न भुलाया जा सकने वाला रन आउट

आज जन्मदिन है इस महान फील्डर का.

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केतन बुकरैत
27 जुलाई 2020 (Updated: 27 जुलाई 2020, 07:22 AM IST)
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1992 वर्ल्ड कप. ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में खेला जा रहा था. मैच नम्बर 22. पाकिस्तान वर्सेज़ साउथ अफ्रीका.
साउथ अफ्रीका इंटरनेशनल क्रिकेट में वापस आने के बाद अपना छठा मैच खेल रहा था. 1970 में इस टीम को आईसीसी ने सस्पेंड कर दिया था. हुआ ये था कि साउथ अफ़्रीकी सरकार ने ये नियम निकाल दिया था कि उनकी टीम सिर्फ गोरी टीम के खिलाफ़ खेलेगी. यानी इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया. और साउथ अफ्रीका की टीम में सिर्फ गोरे प्लेयर्स ही खेलेंगे. 1991 में साउथ अफ़्रीका ने ये नियम ख़तम करके इंटरनेशनल क्रिकेट में वापसी की.
दिन बदल चुका था. साल बदल चुके थे. क्रिकेट सफ़ेद कपड़ों से रंगीन में आ चुका था. गेंद रंगीन से सफ़ेद हो चुकी थी. 8 मार्च 1992. ब्रिस्बेन का मैदान. गाबा. भरे हुए स्टैंड्स. जब साउथ अफ़्रीका का इंटरनेशनल क्रिकेट में हुक्का पानी बंद किया गया था तो वन-डे मैच खेले भी नहीं जाते थे. आज वो मात्र 5 मैच खेलने के बाद वर्ल्ड कप में खेल रही थी.
मैदान में बैठे लोग, प्लेयर्स और टीवी पर मैच देख रहे लोगों के दिमाग में कैलकुलेशन चल रहे थे. साउथ अफ़्रीका की टीम 50 ओवर में बैटिंग कर 211 रन बना चुकी थी. एंड्रयू हडसन ने ओपनिंग करते हुए 54 रन बनाए. बाद में असली काम निचले ऑर्डर में हैन्सी क्रोन्ये ने किया. क्रोन्ये आगे चलकर साउथ अफ़्रीका के सफलतम कप्तान बने और फ़िर मैच फ़िक्सिंग का बेहद बुरा दाग लेकर चले गए. पाकिस्तान की बैटिंग के दौरान हल्की-फ़ुल्की बारिश हो रही थी. एक बात तय थी कि कभी न कभी डकवर्थ लुइस गेम में ज़रूर रोल प्ले करेगा.


दुनिया में दो तरह के लोग हैं. एक वो जिन्हें डकवर्थ लुइस का नियम समझ नहीं आता है. और दूसरे वो जो इस बात का नाटक करते हैं कि उन्हें डकवर्थ लुइस समझ में आता है. 




साउथ अफ्रीका के लिए ये मैच जीतना बहुत ज़रूरी था. साउथ अफ्रीका ने वर्ल्ड कप की शुरुआत बेहद धमाकेदार तरीके से की थी. ऑस्ट्रेलिया को पहले ही मैच में 9 विकेट से हराया था. लेकिन उसके बाद न्यूज़ीलैंड और श्रीलंका से हार गए. अपने चौथे मैच में भले ही वेस्ट इंडीज़ को हरा दिया था लेकिन आगे के स्टेज में पहुंचने के लिए उसे पाकिस्तान को हराना ज़रूर था.

बारिश हुई तो पाकिस्तान का स्कोर था 22वें ओवर में 74 रन. उसे रिवाइज़ हुआ टार्गेट मिला 36 ओवर में 194 रन का. यानी अगले 14 ओवर में उसे 120 रन बनाने थे.




साउथ अफ़्रीका ने इंटरनेशनल क्रिकेट में जब वापसी की थी तो कप्तानी क्लाइव राइस को दी गई थी. 1991 में वापसी के बाद साउथ अफ्रीका का पहला दौरा था इंडिया का. वहां उन्हें एक बात समझ में आई. खेल बहुत बदल चुका था. खासकर सबसे बड़े लेवल पर. वहां जितना बैट और बॉल के पैनेपन की ज़रूरत थी उतना ही दिमाग के भी. बॉलर और बैट्समैन के अलावा फ़ील्ड प्लेसमेंट भी एक ज़रूरी फैक्टर था. अब नए आईडिया चाहिए थे. पुराने तौर-तरीके हवा हो गए थे. केप्लर वेसल्स साउथ अफ़्रीका के क्रिकेट बैन के दौरान ऑस्ट्रेलिया से खेल चुके थे. उन्हें वो जगह मालूम थी. साथ ही उनका दिमाग जंग खाया हुआ नहीं था. उन्होंने क्रिकेट खेलने के लिए इंग्लैंड से ऊपर ऑस्ट्रेलिया को चुना था. अपने आप में यही एक बड़ी बात थी. इससे उनके जोखिम उठाने की फितरत भी मालूम चल रही थी. लिहाज़ा वर्ल्ड कप के लिए वेसल्स कैप्टन थे. 




जोंटी रोड्स पॉइंट में खड़े थे. 22 साल का यूरेनियम सी एनर्जी का भंडार. सिर पर सुनहरे बाल और पैरों में बिजली. हाथ में जैसे चुम्बक लगा हो जो गेंद को अपने आस पास से जाने ही नहीं देता था. उसे हर कोई जानता था. क्योंकि उसने अपनी फील्डिंग से अपनी पहचान बनाई हुई थी. रोड्स का फ़ील्ड में होने का मतलब था कि सामने वाली टीम के कम से कम 20 रन तो कम होंगे ही. उसकी फील्डिंग में हॉकी की कारीगरी थी जो उसने भरपूर खेला हुआ था. हॉकी का खेल आपको हमेशा अलर्ट रखता है और आस पास हो रही एक-एक बारीक से बारीक हलचल पर रिऐक्ट करना सिखाता है.

स्कोरबोर्ड पर 135 रन टंगे हुए थे. 2 विकेट. एक गेंद इंज़माम के बल्ले की बजाय पैड पर लगी और पॉइंट की ओर चली गई. रोड्स गेंद की ओर दौड़ पड़े. इंज़माम रन लेने के लिए क्रीज़ से निकल चुके थे. दूसरे एंड पर खड़े इमरान खान ने दो कदम निकलकर उन्हें वापस जाने को कहा. इमरान को निकलता देख इंज़माम पूरी तरह से सिंगल लेने का मन बना चुके थे. इमरान के वापस जाने को कहने पर वो पीछे मुड़े लेकिन देर हो चुकी थी. कभी हॉकी खेलने वाला सुनहरे बालों वाला लड़का गेंद को हाथ में पकड़कर ऐसे भाग रहा था मानो उसे सेंटर लाइन पर गेंद मिल गई हो और वो सामने खाली पड़ी फ़ील्ड में खुद ही गेंद ड्रिबल करते हुए स्ट्राइकिंग सर्किल पर पहुंचकर गोलपोस्ट में गेंद मारना चाहता हो.

इंज़माम पीछे मुड़कर क्रीज़ में वापस पहुंचना चाहते थे लेकिन जोंटी बहुत तेज़ थे. पांच सेकंड का समय लगा इंज़माम के पैड से गेंद लगकर जोंटी तक पहुंचने में और जोंटी के दौड़कर गेंद को स्टंप्स में दे मारने में. ये सब कुछ मात्र पांच सेकंड में हुआ. स्लो मोशन में याद किया जाए तो दिखता है कि गेंद कलेक्ट करने के बाद जोंटी ने सात बार ज़मीन पर पैर रख हवा में खुद को उछाल दिया. उनकी दाईं बांह सामने की ओर सधी हुई थी. इंज़माम का बैट क्रीज़ से दो बित्ते की दूरी पर था जब अपने स्ट्रेच हो जाने की लिमिट पर मौजूद जोंटी ने गेंद से स्टंप्स हिला दिए. जोंटी विकेट्स के साथ ज़मीन पर गिरे और उठते ही अम्पायर की ओर उंगली उठा दी.


jonty rhodes
वर्ल्ड कप खतम होने के बाद साउथ अफ्रीका के प्लेयर्स जोंटी को गोद में उठाए हुए

मैच के बाद जोंटी ने कहा, "मैं अगर गेंद को विकेट पर फेंकता तो विकेट पर लगने के 50% चांस थे. लेकिन अगर मैं गेंद को दौड़कर विकेट पर मार देता तो 100% चांस थे. मैं 100% के साथ गया. आखिरी के 10 मीटर मुझे सबसे तेज़ कवर करने थे. इसलिए मैं कूद गया."

अगले ही ओवर में इमरान खान आउट हो गए. साउथ अफ़्रीका ने मैच 20 रन से जीत लिया. सचिन तेंदुलकर ने सालों बाद कहा कि उस वर्ल्ड कप में जोंटी रोड्स का वो रन आउट सबसे बड़ी हाईलाइट था.

क्रिकेट में फ़ील्डिंग के मामले में क्रांति के लेवल का बदलाव लाने के लिए शायद जोंटी रोड्स को ही ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. जोंटी ने इस रस्म की शुरुआत की जिसमें फील्डर्स गेंद फेंके जाते वक़्त चलकर नहीं दौड़कर आगे बढ़ रहे होते हैं. वो घुटनों पर बैठकर गेंद नहीं पकड़ते बल्कि स्लाइड करते हैं और फ़ौरन पैरों पर खड़े हो जाते हैं. फील्डर्स का खुद को इधर-उधर फेंकते रहना अब मात्र एक घटना नहीं होती बल्कि रूटीन बन गया है. आज कई मौकों पर गिरने वाला विकेट जितना बॉलर का होता है उतना ही फील्डर का भी.

https://www.youtube.com/watch?v=mHqviooA38g


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