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एक कविता रोज: स्त्री हो तुम'

आज पढ़िए पियूष रंजन परमार की कविता.

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18 जुलाई 2016 (Updated: 18 जुलाई 2016, 03:01 PM IST) कॉमेंट्स
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पीयूष बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन के बाद इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन से हिंदी पत्रकारिता में पी.जी. डिप्लोमा किया है. ब्लॉग लिखते हैं. नाम है विहंग दृष्टी. राजनीति, सिनेमा से लेकर कला तक सब पर बड़े अधिकार से कलम चलाते हैं. आजकल सोनी टीवी के साथ काम कर रहे हैं.
मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूंतुम मेरी मां हो मेरी जमीन हो तुम तुम मेरी बहन भी तो हो जिसके राखी के छुअन से मजबूत हो गया है हाथ दुनिया का बोझ उठाने के वास्ते तुम दोस्त थी जब मुझे जरुरत थी सहारे की मेरी प्रेमिका भी थी तुम कभी अकेलेपन और निराशा के क्षण में तुम पत्नी भी हो जीवन के सुनसान अनजान सड़क परलेकिन आज मैं स्वीकार करता हूंसदी का सत्य तमाम भूमिका से दूर एक स्त्री हो तुम स्वतंत्र स्वच्छंद मुक्त एक दूब एक ओस की बूंद एक सांसजीवन के वास्ते
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