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तलाकशुदा पत्नी को मिलेगा 50,000 रुपये का मासिक गुजारा भत्ता, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

Alimony Rules: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि तलाकशुदा लेकिन अविवाहित महिला के लिए गुजारा भत्ता तय करते समय पूर्व पति के कमाई का पूरा ट्रैक रेकॉर्ड देखा जाए और बढ़ती महंगाई का भी ध्यान रखा जाए.

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कोर्ट ने कहा है कि पति नई शादी, माता-पिता की नई जिम्मेदारियों का हवाला देकर पूर्व पत्नी की तरफ जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता. (तस्वीर साभार- Freepik)
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उपासना
17 जून 2025 (Published: 11:56 AM IST) कॉमेंट्स
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तलाक के बाद भरण पोषण के नाम पर मिलने वाले भत्ते(Divorce Alimony Rules) को लेकर सुप्रीम कोर्ट(Supreme court) ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने तलाकशुदा लेकिन अविवाहित महिला को गुजारा भत्ता के नाम पर मिलने वाली रकम बढ़ाकर 50,000 रुपये महीना कर दी है. महंगाई के मद्देनजर हर दो साल पर इसमें 5 फीसदी इजाफा भी किया जाएगा.

इससे पहले कोलकाता हाई कोर्ट के आदेश के अनुसार पति अपनी पूर्व तलाकशुदा पत्नी को हर महीने 20,000 रुपये देने के लिए जिम्मेदार होता था. हर तीन साल पर ये रकम 5 पर्सेंट बढ़ती थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस गुजारा भत्ता को सीधे ढाई गुना बढ़ा दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने राखी साधुखान बनाम राजा साधुखान केस(Rakhi Sadhukhan vs. Raja Sadhukhan) में ये फैसला सुनाया है. 

क्या था मामला?

राखी सुधाखान और राजा साधुखान की 1997 में शादी हुई थी. 1998 में एक बेटा हुआ. 2008 में पति ने तलाक फाइल कर दिया. दोनों के बीच लंबे समय से भत्ते को लेकर लड़ाई चल रही थी. राखी तलाक के बाद मिलने वाले भत्ते से खुश नहीं थीं. उनका कहना था कि पूर्व पति कम भत्ता दे रहे हैं. शादी के समय वह जिस लाइफस्टाइल को जी रही थीं उसके हिसाब से ये पैसे कम हैं.

मुकदमेबाजी के दौरान राखी को 2010 तक अस्थायी भत्ते के तोर पर 8,000 रुपये मिल रहे थे. जिसे 2016 में बढ़ाकर 20 हजार रुपये कर दिया गया. 2023 में एक सुनवाई में राजा पेश नहीं हुआ. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अस्थायी भत्ते को बढ़ाकर 75,000 रुपये प्रति महीना कर दिया.

राजा साधुखान का कहना है कि वह सीमित कमाते हैं. दूसरी शादी की अतिरिक्त जिम्मेदारियां हैं, बूढे़ माता-पिता को भी संभालना है. बेटा भी अब 26 साल का हो गया है, वो अब निर्भर नहीं है. इसलिए उसके लिए ज्यादा भत्ता देना मुश्किल है. मगर सुप्रीम कोर्ट ने राजा साधुखान की दलील को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि दोबारा शादी या माता-पिता की जिम्मेदारियां पहली पत्नी की तरफ उसकी जिम्मेदारियों को कम नहीं कर सकती.

राखी ने सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त की कि परमानेंट एलिमनी यानी गुजारा भत्ता की रकम तय करते समय ये भी देखा जाए कि महंगाई कितनी है. पूर्व पति कितना कमा रहा है और वह कितना भत्ता देने में सक्षम है. पत्नी ने ये भी मांग फिलहाल हर महीने कोर्ट-कचहरी के चक्कर में बहुत खर्चा हो रहा है. उसके बजाय दोनों के नाम पर बने शेयर्ड फ्लैट उसके नाम कर दिया जाए. कोर्ट ने राखी की ये मांग मान ली. पति को आदेश दिया है, फ्लैट का बकाया होम लोन चुकाकर ओनरशिप पूर्व पत्नी को ट्रांसफर करें.

इस मामले में पत्नी ने दोबारा शादी नहीं की है. वह अविवाहित है. अकेले रह रही है. इसलिए शादी के दौरान वह जिस लाइफस्टाइल को एन्जॉय कर रही थी उसे बरकरार रखने का उसे अधिकार है.
इस तर्क के साथ सुप्रीम कोर्ट ने रहन-सहन बनाए रखने के लिए 50 हजार का गुजारा भत्ता तय किया. कहा, महंगाई के हिसाब और शादी शुदा जीवन के लाइफस्टाइल को मेंटेन करने लिए हर महीने 50,000 रुपये का भत्ता पर्याप्त और उचित है. इसी के साथ कोर्ट ने तलाक के लिए इजाजत दे दी.

आदेश की खास बातें

- कोर्ट के इस आदेश के साथ स्थायी भत्ते की रकम 150 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई है. 
- हर दो साल में भत्ते में 5 पर्सेंट का इजाफा होगा. 
- कोर्ट ने शेयर्ड फ्लैट राखी के नाम पर ट्रांसफर करने का आदेश दिया है. 
- 26 साल के बेटे के लिए सपोर्ट देने की कोई अनिवार्यता नहीं तय की है.
- सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे कोर्ट्स के लिए भी आदेश दिया. कहा, भत्ते पर फैसला सुनाते हुए शादीशुदा जीवन में दोनों का रहन सहन कैसा था, पति की मौजूदा सैलरी के बजाय, उसके कमाई के सभी जरियों का पूरा लेखा जोखा निकाला जाए और पत्नी की भविष्य में माली जरूरतों को ध्यान रखा जाए.

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