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नोबेल की आलोचना करने वाले शख्स को मिला है इस साल का साहित्य नोबेल

लोग क्यों कह रहे हैं कि नोबेल अकादमी ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी है.

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(तस्वीर : Getty /AP)
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11 अक्तूबर 2019 (Updated: 11 अक्तूबर 2019, 03:12 PM IST) कॉमेंट्स
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नोबेल प्राइज. दुनिया के सबसे जबर अवॉर्ड्स में टॉप की कैटेगरी वाला अवॉर्ड. ये मिल जाए तो लोग कहते हैं कि सबसे बड़ा सम्मान पा लिया. अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर दिया  जाता है. जैसे क्रिकेट में होता है न, वर्ल्ड कप जीतना सबसे अल्टीमेट होता है. फुटबॉल में गोल्डन बूट. वैसे ही एकेडमिक्स, लिटरेचर, सोशल वर्क की दुनिया में होता है नोबेल.
भारत से हाल फिलहाल में नाम याद होगा आपको कैलाश सत्यार्थी का. मलाल यूसुफजई के साथ शान्ति का नोबेल प्राइज मिला था. 2014 में. उनसे पहले रबीन्द्रनाथ टैगोर को गीतांजलि के लिए मिला था. भारत से नोबेल पाने वाले लोगों के नाम गिने चुने हैं. कैलाश सत्यार्थी, रबीन्द्रनाथ टैगोर, अमर्त्य सेन, सी वी रमन के नाम इनमें शामिल हैं.

इस बार किसको मिला?

इस साल और पिछले साल के लिए साहित्य का नोबेल जीतने वालों के नाम की घोषणा हो गई है. साल 2018 के लिए पोलैंड की लेखिका ओल्गा  टोकारचुक और 2019 के लिए ऑस्ट्रियन लेखक पीटर हैंडकी को दिया गया है.
ओल्गा की ख़ास बात ये है कि उनके काम की तारीफ पब्लिक के साथ साथ क्रिटिक्स भी करते हैं. (तस्वीर: AP)
ओल्गा की ख़ास बात ये है कि उनके काम की तारीफ पब्लिक के साथ साथ क्रिटिक्स भी करते हैं. (तस्वीर: AP)

ओल्गा पोलैंड में मशहूर हैं. वहां पर उनकी लिखी किताबें बहुत बिकती हैं. लेकिन इंटरनेशनल स्टेज पर उनको पहचान तब मिली जब उनकी किताब फ्लाइट्स को 2018 में इंटरनेशनल मैन बुकर्स अवॉर्ड मिला. इनकी दो किताबें पहले भी अंग्रेजी में आ चुकी हैं. फ्लाइट्स भी पोलैंड में 2007 में रिलीज हुई थी. लेकिन उसे अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने में इतना समय लग गया. द गार्डियन को दिए अपने इंटरव्यू में 57 साल की ओल्गा कहती हैं,
कभी-कभी मैं सोचती हूं कि मेरी ज़िन्दगी कैसी होती अगर मेरी किताबों को अंग्रेज़ी में थोड़ा और पहले ट्रांसलेट कर दिया जाता. क्योंकि अंग्रेजी वो भाषा है जो पूरी दुनिया में  बोली जाती है, और जब कोई किताब अंग्रेजी में आती है तो एक वैश्विक पब्लिकेशन बन जाती है.
ओल्गा अपने देश में विवादों में भी रही हैं. इनकी किताब द बुक्स ऑफ़ जेकब की वजह से इनको अपने देश में काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी. और विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया था कि कुछ समय के लिए उनके पब्लिशर को उनकी रक्षा के लिए गार्ड्स रखने पड़े थे.
2018 में विवाद के चलते नहीं दिया गया था साहित्य का नोबेल
2018 में नोबेल के ज्यूरी मेंबर्स में से एक कटरीना फ्रोस्टेंसन के पति ज्यां क्लॉड आरनॉल्ट पर यौन शोषण के आरोप लगे. करीब 18 महिलाओं ने ज्यां पर आरोप लगाया था. इसके बाद ही अकादमी ने उस साल साहित्य का नोबेल देने से हाथ पीछे खींच लिए. तभी यह घोषणा हो गई थी कि 2018 और 2019 दोनों सालों का नोबेल साथ में दिया जाएगा. अब ओल्गा को ये पुरस्कार मिला है. उनसे पहले अभी तक सिर्फ 14 महिलाओं को ही नोबेल मिला था. इस बात को लेकर अक्सर नोबेल अकादमी की आलोचना होती रहती है. यही नहीं, ये भी कहा जाता है कि वो यूरोप में बसे लेखकों को, यूरोपीय भाषाओं में लिखने वालों को वरीयता देते हैं.
2019 का नोबेल पीटर हैंडकी को दिया गया है. इनके नाम पर पहले भी हवा बनी थी कि इनको नोबेल मिल सकता है. इस वक़्त 76 साल के हैं. ऑस्ट्रिया इनका देश है. इनके नाम पर नोबेल की चर्चा कितनी पुरानी है, ये आप इसी से समझ लें कि जब 2004 में एल्फ्रिड जेलिनेक ने नोबेल जीता था, तो न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया था,
मुझे ये पूरा यकीन था कि अगर ऑस्ट्रिया में किसी को नोबेल मिलेगा तो हैंडकी को ही, और यही सही होगा.
पीटर के नाम की घोषणा होने पर कई लोगों ने इसकी आलोचना की है. (तस्वीर: रायटर्स)
पीटर के नाम की घोषणा होने पर कई लोगों ने इसकी आलोचना की है. (तस्वीर: रायटर्स)

लेकिन पीटर हैंडकी के नाम की घोषणा के साथ ही आलोचना एक बार फिर शुरू हो गई है. आलोचना क्यों हो रही है, इसके लिए आपको थोडा सा बैकग्राउंड समझना पड़ेगा. इतिहास में जाना पड़ेगा. एक ऐसे देश में जिसकी ख़बरों से हमारा वास्ता अब कम ही पड़ता है. तभी हम समझ पाएंगे कि आखिर पीटर हैंडकी के नाम पर इतना बवाल क्यों मचा है.

बवाल के पीछे का किस्सा

जब दूसरा विश्वयुद्ध खत्म हुआ था, तब साफ़ तौर पर दो शक्तियां उभरी थीं. एक थी अमेरिका, दूसरा सोवियत संघ. जिसे यूनियन ऑफ़ सोशलिस्ट सोवियत रिपब्लिक यानी USSR कहा गया. दुनिया के कुछ देश एक तरफ हो गए, कुछ दूसरी तरफ. इन दोनों गुटों के बीच लगभग चालीस साल तक युद्ध चला. नहीं, वैसा नहीं जैसा आम तौर पर होता है. इस युद्ध में आमने-सामने की लड़ाई नहीं हुई. औरों के कंधे पर रख कर बंदूकें चलाई गयीं. खुल्लम-खुल्ला युद्ध की कोई घोषणा नहीं हुई. इसे कोल्ड वॉर, या शीत युद्ध कहा गया.
इस दौरान देशों का एक और गुट उभरा, जिसे गुट निरपेक्ष आन्दोलन कहा गया. इसमें शामिल देश किसी की भी साइड नहीं थे. न अमेरिका के, न सोवियत संघ के. जो देश इससे जुड़े उनमें सबसे आगे थे भारत, यूगोस्लाविया, इजिप्ट (मिस्र), इंडोनेशिया और घाना. इनको अपनी स्वतंत्रता बनाए रखनी थी. किसी के प्रभाव में नहीं आना था. क्योंकि ये नए-नए आज़ाद हुए थे. इनसे कई और देश जुड़ गए और ये संगठन बड़ा होता गया.
जोसिप ब्रोज़ टीटो. (तस्वीर: विकिमीडिया)
जोसेप ब्रोज़ टीटो. यूगोस्लाविया के लीडर. (तस्वीर: विकिमीडिया)

कोल्ड वॉर आखिर खत्म हुआ सोवियत संघ के विघटन के साथ. इस समय पूरे विश्व में उथल-पुथल मच रही थी. नए बने देश अपनी आज़ादी के लिए जंग लड़ रहे थे. लेकिन एक जगह हालात काबू से बाहर हो गए थे , और वो जगह थी यूगोस्लाविया. वही यूगोस्लाविया जिसके नेता जोसेप ब्रोज़ टीटो नेहरू के बेहद करीबी थे. गुट निरपेक्ष आन्दोलन में नेहरू के साथ सबको लीड करने वाले. छः देशों को साथ लेकर यूगोस्लाविया बनाकर रखने वाले. जब तक वो ज़िंदा रहे, तब तक यूगोस्लाविया एक कम्युनिस्ट स्टेट बन कर रहा. 1980 में उनकी मौत के बाद शुरू हुई असली मुसीबत. यूगोस्लाविया बिखरना शुरू हो गया.
यूगोस्लाविया के छः देश थे-
# बोस्निया हर्ज़ेगोविना  # क्रोएशिया  # सर्बिया # स्लोवेनिया  # मोंटेनेग्रो  # मैसेडोनिया.
साल 1992. एक बोस्नियाई शूटर सर्बियन शूटिंग का जवाब देता हुआ. (तस्वीर : AP)
साल 1992. एक बोस्नियाई शूटर सर्बियन शूटिंग का जवाब देता हुआ. (तस्वीर : AP)

जैसे-जैसे बिखराव शुरू हुआ, इनमें आपस में ज्यादा से ज्यादा ताकत खींचने की जद्दोजहद शुरू हुई. स्लोवेनिया और क्रोएशिया ने आज़ादी की तरफ कदम बढ़ाए, सर्बिया ने उनको रोकने की कोशिश की. बोस्निया के भीतर भी मुस्लिमों की आबादी बाकी जगहों के मुकाबले ज्यादा थी. सर्बिया सभी को एक साथ रखकर अपना दबदबा बनाए रखना चाहता था. बिग ब्रदर की तरह. लेकिन इसके बीच आ रही थी इन देशों की जिद, कि वो अलग होकर रहेंगे. इसके बाद बोस्निया की ही सर्ब जनता द्वारा 1992 में बोस्निया के मुस्लिमों के खिलाफ एक ऐसा संहार रचा गया, जिसे दर्ज करते हुए इतिहास के भी हाथ कांप गए.
मार्च 1992.
बोस्निया हर्ज़ेगोविना ने यूगोस्लाविया से अलग होने की घोषणा कर दी. साराहेवो वहां की राजधानी थी. अब भी है. बोस्नियाकों और क्रोएटों के खिलाफ सर्बों ने दमन करना शुरू किया. ये तीनों ही समूह स्लाविक हैं, जो एक तरह की पहचान है. लेकिन इनमें से बोस्नियाक मुस्लिम थे, सर्ब ऑर्थोडॉक्स ईसाई. और क्रोएट कैथोलिक ईसाई. यही फर्क था. बोस्निया के सर्बों ने बोस्नियाक मुसलमान जनता पर धावा बोल दिया. कई साल बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस घटनाक्रम को जेनोसाइड माना गया. यानी नरसंहार. जो कि हिटलर ने ज्यूस यानी यहूदियों के साथ किया था.
बॉस्को ब्र्किच और एडमिरा इस्मिक. दोनों सर्बियाई शूटिंग से बचने की कोशिश करते हुए मारे गए. इनको साराहेवो का रोमियो और जूलियट कहा गया. (तस्वीर: AP)
बॉस्को ब्र्किच और एडमिरा इस्मिक. दोनों सर्बियाई शूटिंग से बचने की कोशिश करते हुए मारे गए. इनको साराहेवो का रोमियो और जूलियट कहा गया. (तस्वीर: AP)

पीटर हैंडकी का इससे क्या लेना-देना?

झिंझोड़ कर रख देने वाली है न इतिहास की ये बात. लेकिन पीटर हैंडकी का इससे क्या कनेक्शन? कनेक्शन ये कि जब सर्बिया की तरफ से ये संहार किया जा रहा था, तब उस समय सर्बिया के प्रेसिडेंट थे स्लोबोदान मिलोशेविच. इनके ऊपर आरोप थे कि उन्होंने नरसंहार को बढ़ावा दिया. पीटर हैंडकी इनके फ्यूनरल पर बोलने गए थे. स्लोबोदान के लिए कसीदे पढ़ने. यही नहीं, द गार्डियन के अनुसार पीटर ने ये भी कहा था कि साराहेवो के मुस्लिमों ने अपना संहार खुद किया था और दोष सर्बियन लोगों पर डाल दिया था. 1999 में सलमान रश्दी (लेखक हैं, बुकर अवॉर्ड जीत चुके हैं, इनकी किताब द सैटनिक वर्सेज काफी विवादों में फंसी थी) ने पीटर को साल के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय बेवकूफ के टाइटल का रनर अप बताया था. यानी दूसरे नम्बर पर रखा था उनको.
लोगों का ये कहना है कि एक ऐसे आदमी का पक्ष लेना जो कि वॉर क्राइम्स का अपराधी हो, बेहद शर्मनाक है. ये भी कहा जा रहा कि पीटर को अवॉर्ड देकर नोबेल अकादमी ने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है. 2014 में हैंडकी ने कहा था कि साहित्य का नोबेल बंद हो जाना चाहिए. क्योंकि जिसको भी ये मिलता है उसको संत की झूठी उपाधि मिल जाती है, ऐसा लगता है.
अब उन्हें ये अवॉर्ड मिला है, तो कई लोग ये कह रहे हैं कि अकादमी को अपने निर्णय पर विचार करना चाहिए. संभल कर नाम चुनने चाहिए.


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