दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट की ऊंचाई फिर मापी जा रही है, लेकिन क्यों?
1955 में भारत ने बताया था कि कितना ऊंचा है एवरेस्ट, अब चीन और नेपाल बताएंगे.
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(तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स/पिक्साबे)
नेपाल और चीन ने घोषणा की है कि वो मिलकर माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई दुबारा मापेंगे. 70 सालों से माउंट एवरेस्ट का नाम दुनिया की सबसे ऊंची चोटी के तौर पर दर्ज है. इसकी ऊंचाई 8,848 मीटर यानी 29,029 फीट है. अब इसकी ऊंचाई दुबारा मापी जाएगी.चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के दौरे पर आए. इसके बाद नेपाल भी जाना हुआ उनका. वहां की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली से मिले. इसी मौके पर नेपाल और चीन ने एक संयुक्त स्टेटमेंट जारी किया. इसमें कहा गया,
‘नेपाली में सागरमाथा और चीनी में ज्हुमुलंग्मा/चुमुलांग्मा के नाम से मशहूर माउंट एवरेस्ट नेपाल और चीन के बीच की दोस्ती का अमिट प्रतीक है. दोनों तरफ के लोग अलग-अलग क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देंगे, जिनमें जलवायु परिवर्तन और वातावरण की सुरक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं. वे वैज्ञानिक अनुसंधानों के बाद सागरमाथा/ ज्हुमुलंग्मा की ऊंचाई संयुक्त रूप से घोषित करेंगे.'1955 में भारत ने एक सर्वे टीम भेजी थी. एवरेस्ट की ऊंचाई नापने के लिए. उस टीम ने जो ऊंचाई मापी थी, अब तक हर जगह वही मान्य रही है. 2017 में भारत ने नेपाल को ये प्रस्ताव दिया था कि वो मिलकर फिर से एवरेस्ट की ऊंचाई माप सकते हैं. लेकिन इस बार नेपाल ने चीन के साथ मिलकर ये कदम उठाने का निर्णय लिया है.
लेकिन ये दुबारा मापे जाने की कवायद क्यों?
2015 में नेपाल में भयंकर भूकंप आया. रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 7.6 बताई गई. इसके बाद ये कहा गया कि इस भूकंप की वजह से एवरेस्ट की ऊंचाई तीन सेंटीमीटर कम हो गई है. नेपाल ने अपनी तरफ से पर्वतारोहियों को भेजा दिया है एवरेस्ट पर. ऊंचाई मापने के लिए. इसका नतीजा 2020 तक आने की संभावना है.
एवरेस्ट दुनिया की सर्वोच्च चोटी है. पहले इस पर चढ़ाई करना असाध्य माना जाता था. आज हाल ये है कि यहां चढ़ाई करने वालों का तांता लगा रहता है.
इंची टेप से मापेंगे एवरेस्ट?
अब इतना ऊंचा पर्वत. उसे नापने के लिए वो इंची टेप तो ले कर जाएंगे नहीं, जिससे कमर नापते हैं. फिर कैसे मापते इतनी ऊंचाई? पहले मापते थे ऐसे जैसे ट्रिग्नोमेट्री के ज़रिए ट्रायंगल की हाईट मापते हैं. चोटी के ऊपर और ज़मीन पर चुने गए पॉइंट्स के बीच बनने वाले कोण के सहारे उसकी ऊंचाई मापी जाती थी. अब वैज्ञानिक चोटी पर एक जीपीएस सिस्टम रख देते हैं. और उसके बाद सैटेलाईट से मिलने वाली जानकारी के ज़रिए कैलकुलेशन करते हैं.एवरेस्ट एक नई चोटी है. अरावली की पहाड़ियों की तुलना में काफी नई. इसलिए ये स्थिर भी नहीं है. इसके नीचे की टेक्टोनिक प्लेटें घूम रही हैं. इस वजह से अगर उसकी ऊंचाई में कोई फर्क आया भी हो तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. लेकिन इसकी ऊंचाई नापने के लिए नेपाल का भारत को छोड़कर चीन से हाथ मिलाना भारत के लिए अलार्मिंग हो सकता है.
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