पद्मश्री छुटनी महतो: 'झारखंड की शेरनी' जिन्हें कभी 'डायन' बताकर पीटा गया था
छुटनी महतो के जीवन संघर्ष पर एक फिल्म भी बन चुकी है!
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छुटनी महतो. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्म पुरस्कार पाने वाली एक और शख्सियत. झारखंड की छुटनी महतो को पद्मश्री से नवाजा गया है. सरायकेला की छुटनी महतो समाज में प्रताड़ित औरतों का सहारा हैं. 'डायन' जैसी कुप्रथा और जादू-टोने के नाम पर औरतों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ छुटनी महतो पिछले बीस सालों से लड़ रही हैं. आज इलाके के लोग उन्हें 'शेरनी' कह कर बुलाते हैं. कभी उनको भी 'डायन' बताकर ससुराल और गांव वालों ने खूब यातनाएं दी थीं. अब छुटनी महतो सरायकेला खरसावां जिले में एक पुनर्वास केंद्र चलाती हैं जहां बेसहारा औरतों की देखभाल की जाती है.
जब गांव वालों ने 'डायन' घोषत कर दिया था हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक छुटनी कहती हैं कि 1978 में महज 13 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी. तीसरी क्लास के बाद वे कभी स्कूल नहीं गईं. शादी के 16 साल बाद 1995 में उनकी जिंदगी एकदम से बदल गई. हुआ ये कि उनकी भाभी गर्भवती थीं. बातों-बातों में छुटनी ने कह दिया कि लड़का होगा, लेकिन हुई लड़की. कुछ समय बाद वो लड़की बीमार पड़ गई. ससुराल वालों ने इसका दोष छुटनी के सिर मढ़ दिया. वे छुटनी को 'डायन' कहकर प्रताड़ित करने लगे. लेकिन अभी उन पर जुल्म की अति होनी बाकी थी. अब गांव वालों ने भी छुटनी को 'डायन' घोषित कर दिया. इसके बाद छुटनी को पेड़ से बांधकर पीटा गया, मल-मूत्र खिलाने की कोशिश की गई, कपड़े फाड़कर गलियों में घसीटा गया. जब इससे भी उनका मन नहीं भरा तो गांव वाले उनकी हत्या करने की सोचने लगे. अब छुटनी ने हिम्मत दिखाई और अपने चार बच्चों को साथ लेकर गांव से भाग गईं. उनका सबसे छोटा बेटा उस वक्त आठ महीने का था. हिंदुस्तान टाइम्स को छुटनी बताती हैं,President Kovind presents Padma Shri to Smt. Chhutni Mahato for Social Work. She is a tribal activist from Seraikela, Jharkhand. She has single-handedly saved 125 women from witch-hunting till now. For her acts of bravery, she is also famously called the “Tigress”. pic.twitter.com/uWCyHivWbO
— President of India (@rashtrapatibhvn) November 9, 2021
"पहले पंचायत ने मुझ पर 500 रुपये का जुर्माना लगाया. छह महीने बाद उन्होंने मुझे पीटा और जान से मारने की कोशिश की. मैं भाग गई. मैं पुलिस के पास भी गई पर उन्होंने शिकायत लिखने के लिए मुझसे 10 हजार रुपये मांगे. किसी ने मेरा साथ नहीं दिया."छुटनी आगे कहती हैं कि आईएएस निधि खरे ने उनकी मदद की और उनको झारखंड के ही एक एनजीओ में भेजा. ये एनजीओ डायन प्रथा को समाज से मिटाने के लिए काम करता है. छुटनी कहती हैं,
"उस समय के पश्चिम सिंहभूम जिले एक डिप्टी कमिशनर अमीर खरे ने मेरी मदद की. उनकी मदद से मैंने एक पुनर्वास गृह की स्थापना की. अब तक हम 125 महिलाओं की मदद कर चुके हैं जिनको अंधविश्वास के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है."नैशनल क्राइम ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2019 के बीच अब तक 575 महिलाओं को 'डायन' कहकर उनके साथ अत्याचार किए गए हैं. आज भी दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में ये कुप्रथा चलन में है. हालांकि छुटनी महतो कहती हैं कि हालात पहले से सुधरे हैं. अब कोई पहले की तरह किसी महिला को 'डायन' बताकर प्रताड़ित नहीं कर सकता. उन्होंने अपनी जैसी पीड़ित 70 महिलाओं का एक संगठन बनाया है और समाज से इस कलंक को मिटाने का काम कर रही हैं. छुटनी के संघर्ष पर बन चुकी है फिल्म छुटनी महतो ने डायन जैसी कुप्रथा के चलते के बहुत जुल्म सहे हैं. आज वो कहती हैं,
'अगर मैं डायन होती तो खुद के साथ ये सुलूख नहीं होने देती. पर ऐसा कुछ नहीं होता है. एक ओझा के कहने पर गांव वालों ने मुझ पर वो जुल्म किए जो सभ्य समाज को शोभा नहीं देता है. पुलिस-प्रशासन भी मदद के लिए आगे नहीं आते हैं. लेकिन मैं मरते दम तक समाज से औरतों के सम्मान के लिए लड़ती रहूंगी.'चलते-चलते बता दें कि बॉलीवुड ने छुटनी महतो के जीवन संघर्ष पर एक फिल्म भी बनाई है. 2014 में काला सच: दि डार्क ट्रुथ नाम से एक फिल्म आई थी. इस फिल्म में छुटनी के संघर्ष भरे जीवन के बारे में ही बताया गया है.