आपके स्मार्टफ़ोन में मैप वाले ऐप को तो आपकी लोकेशन चाहिए ही होती है. इसके बिना वो ये नहीं बता सकता कि नक्शे पर आप हैं कहां? आपको जहां जाना है? वो जगह आपसे कितनी दूर है? मगर और भी ऐप हैं, जो लगे हाथ लोकेशन लिया करते हैं. ज़ोमैटो और ग्रोफ़र आपकी लोकेशन मांगते हैं, ताकि आपको वही सामान दिखाए, जो आप तक पहुंचाया जा सकता है. इसी तरह मौसम बताने वाले ऐप, ईवेंट बुक करने वाले ऐप और मूवी टिकट बुक करने वाले ऐप भी लोकेशन मांगते हैं. लेकिन अगर ये ऐप चाहें तो लोकेशन-ट्रैकिंग डेटा की मदद से आपकी बहुत सारी जानकारी निकाल सकते हैं, वो भी बिना आपकी मर्ज़ी के.
आपकी लोकेशन से इस बात का पता लगाना कोई बड़ी बात नहीं है, कि आप कहां रहते हैं और काम करने कहां जाते हैं. मगर क्या आपको पता है, आपकी लोकेशन हिस्ट्रीआपका धर्म, आपकी आदतें, आपकी रुचि, आपकी सेहत, आपकी जातीयता और यहां तक कि आपके पॉलिटिकल विचार के बारे में भी जानकारी दे सकती है? एक स्टडी के मुताबिक आपकी लोकेशन देखने वाले ऐप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं.
किसने की है ये स्टडी? इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ बलोनी के रिसर्चर, मर्को मूसोलेसी और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन, UK के रिसर्चर, बेंजामिन बैरन ने इस स्टडी को अंजाम दिया है. इस रिसर्च के लिए इन्होंने TrackAdvisor नाम का एक ऐप भी डेवेलप किया है.
लोकेशन से क्या-क्या पता चला?

रिसर्च करने वालों ने ट्रैक-ऐड्वाइज़र ऐप को 69 लोगों के फ़ोन पर इंस्टॉल करवाया. 69 ही क्यों, ये नहीं पता. ये ऐप इन लोगों के फ़ोन पर 2 हफ़्ते तक पड़ा रहा और इस दौरान इसने 2 लाख से ज़्यादा लोकेशन रजिस्टर की. इनमें से ऐप ने करीब 2,500 जगहों की पहचान की और इसकी मदद से 5,000 तरह की निजी जानकारी इकट्ठा की. स्टडी के मुताबिक ट्रैक-ऐड्वाइज़र ने इन लोगों की लोकेशन की जानकारी की मदद से इनकी नस्ल, सेहत, सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति और धर्म तक का पता लगा लिया.
इस ऐप में ऐसा सिस्टम भी मौजूद था, जो स्टडी में हिस्सा लेने वाले लोगों को ये चेक करने का ऑप्शन देता था कि जो जानकारी इसने इकट्ठा की है, वो सही है या नहीं. इसी फीचर की मदद से रिसर्च करने वालों को ये पता लग पाया कि ये जानकारी कितनी सही और कितनी प्राइवेट है. मूसोलिसी ने कहा:
“ज़्यादातर लोगों को ये नहीं पता होता कि वो जो ऐप्स को पर्मिशन देते हैं उसका उनकी निजता पर क्या प्रभाव हो सकता है, खास तौर पर लोकेशन-ट्रैकिंग की जानकारी. मशीन लर्निंग की मदद से ये डेटा लोगों से जुड़ी संवेदनशील जानकारी, जैसे ये कहां रहते हैं, इनकी आदतें, रुचि और इनकी पर्सनैलिटी से जुड़ी जानकारी मुहैया कराता है.”
इस जानकारी से क्या किया जा सकता है?
आपकी लोकेशन के हिसाब से ऐड कंपनियां आपको पहले से विज्ञापन परोसती आ रही हैं. अगर ये ऐड कंपनियां आपकी लोकेशन से आपकी निजी जानकारी भी निकालना शुरू कर देती हैं, तो आपकी तरफ़ आने वाले ऐड और भी ज़्यादा पर्सनल हो सकते हैं.
आपकी लोकेशन से आपकी निजी जानकारी कैसे निकल सकती है?

रिसर्च आर्टिकल के सार में और यूनिवर्सिटी ऑफ बलोनी की तरफ़ से आई हुई प्रेस रिलीज में इस बात के ऊपर खुलासा नहीं है कि ट्रैक-ऐड्वाइज़र ऐप ने किस तरह लोकेशन डेटा की मदद से निजी जानकारी इकट्ठा की. मगर ऐसा होना नामुमकिन भी नहीं लगता. आप देर रात से लेकर सुबह तक जहां वक़्त बिता रहे हैं वो आपका घर ही होगा, ऑफिस के टाइम पर आप रोज़ाना जिस जगह पर होते हैं आप वहीं काम कर रहे होंगे, अगर आपके अस्पताल के चक्कर ज़्यादा लग रहे हैं तो आपकी सेहत गड़बड़ है, मस्जिद-मंदिर-गुरुद्वारा-चर्च की ट्रिप आपके धर्म की जानकारी मुहैया करा देती है. शायद इसी तरह मशीन लर्निंग की मदद से आपका लोकेशन-ट्रैकिंग डेटा आपके बहुत से राज़ खोल दे.
वॉट्सऐप ने जबसे बताया है कि ये और फ़ेसबुक अब परम मित्र हैं और इनके बीच में कोई राज़ नहीं रहेंगे तब से प्राइवसी को लेकर अपने यहां खूब बहस हुई है. अपनी निजता को लेकर कुछ लोग चिंतित हैं तो कुछ ये कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि ये मेरी जानकारी लेकर कर भी क्या लेंगे. “क्या कर लेंगे” को लेकर हमने विस्तार से बात की है जिसे आप यहां पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं. ये स्टडी इसमें एक कड़ी और जोड़ी देती है, जो हमारी लोकेशन हिस्ट्री की अहमियत को दर्शाती है. अगर हमारी लोकेशन की जानकारी गलत हाथों में है, तो इसके काफ़ी बड़े-बड़े नुकसान हो सकते हैं.
रिसर्चर कहते हैं कि इनकी स्टडी शायद लोकेशन इकट्ठा करने वाली पॉलिसी में किसी बदलाव की तरफ़ पहला क़दम बन सके. फिलहाल तो आपके हाथ में इतना कंट्रोल है कि किस ऐप को आप अपनी लोकेशन की जानकारी देना चाहते हैं और किसे नहीं.
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