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चीन में शी जिनपिंग ने राष्ट्रपति चुनाव जीता, माओ ज़ेदोंग क्यों याद आए?

शी जिनपिंग की पूरी कहानी क्या है?

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शी जिनपिंग की पूरी कहानी क्या है? (GETTY)
शी जिनपिंग की पूरी कहानी क्या है? (GETTY)
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10 मार्च 2023 (Updated: 10 मार्च 2023, 08:58 PM IST) कॉमेंट्स
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चीन में नए राष्ट्रपति का चुनाव पूरा हो गया है.  10 मार्च को चीन की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (NPC) ने शी जिनपिंग के नाम पर मुहर लगा दी. NPC के सदस्यों को चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) चुनती है. संसद के 2952 सदस्यों ने जिनपिंग के पक्ष में वोट किया. ख़िलाफ़ में एक भी वोट नहीं पड़ा. ये राष्ट्रपति के तौर पर जिनपिंग का लगातार तीसरा कार्यकाल होगा. चीन में राष्ट्रपति का पद औपचारिकता वाला है. असली ताक़त CCP के जनरल-सेक्रेटरी के पास होती है. जिनपिंग को जनरल-सेक्रेटरी का तीसरा कार्यकाल नवंबर 2022 में ही मिल गया था. भले ही राष्ट्रपति के पद पर उनकी जीत पहले से तय थी, फिर भी इस घटना को ऐतिहासिक और अविश्वसनीय माना जा रहा है. इसकी दो बड़ी वजहें हैं. पहली, CCP में रिटायरमेंट की उम्र 68 साल है. जिनपिंग 69 बरस के हो चुके हैं और आने वाले कई बरसों तक पावर में रहने वाल हैं. दूसरी बात, चीन में जिनपिंग से ज़्यादा समय तक सिर्फ माओ ज़ेदोंग ने शासन चलाया. हालांकि, वो कम्युनिस्ट क्रांति के अगुआ थे. उनके बरक्स किसी और को खड़ा नहीं किया जा सकता था. शी जिनपिंग के साथ ऐसा नहीं है. इसके बावजूद सत्ता पर उनकी मज़बूत पकड़ हैरान करती है.

आइए समझते हैं,

- शी जिनपिंग की पूरी कहानी क्या है?
- उन्हें तीसरा कार्यकाल कैसे हासिल हुआ?
- और, जिनपिंग के सामने कोई चुनौती क्यों नहीं है?

पहले एक सवाल. मौजूदा समय में दुनिया का सबसे ताक़तवर नेता कौन है?

आप अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का नाम ले सकते हैं. इसकी वाजिब वजहें भी हैं. मसलन, अमेरिका सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. उसके पास दुनियाभर में सबसे ज़्यादा सैन्य अड्डे हैं. यूएस मिलिटरी के पास सबसे अत्याधुनिक हथियार हैं. लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर अमेरिका का दबदबा है. उसकी करेंसी सबसे स्थिर है आदि इत्यादि. राष्ट्रपति होने के नाते बाइडन इन शक्तियों के केंद्र में हैं. वैसे, ये उपलब्धि हर अमेरिकी राष्ट्रपति को विरासत में मिलती है.

खैर, जो सवाल हमने शुरुआत में पूछा, उसका एक जवाब व्लादिमीर पुतिन भी हो सकता है. पुतिन रूस के राष्ट्रपति हैं. पिछले दो दशकों से सत्ता पर उनका दबदबा कायम है. सोवियत संघ के विघटन के बाद वर्ल्ड पोलिटिक्स में रूस को प्रासंगिक बनाने का क्रेडिट उन्हीं को दाता है. ज्ञात आंकड़ों के अनुसार, सबसे ज़्यादा परमाणु हथियार रूस के पास है. उनकी चाबी पुतिन की जेब में रखी है. इन सबके अलावा, पुतिन अकेले दम पर पश्चिमी देशों का सामना कर रहे हैं. और तो और, घरेलू मोर्चे पर भी उन्होंने विरोध की गुंजाइश को ताले में बंद कर दिया है. ये पुतिन का हासिल है.

तो, क्या हम पुतिन के नाम पर लॉक लगा दें? शायद नहीं. अगर और गौर से परखा जाए तो सबसे ताक़तवर नेताओं की लिस्ट में एक अलग नाम उभरकर सामने आता है. वो नाम है, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का. उनको सबसे शक्तिशाली नेता मानने के तीन बड़े कारण हैं.

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 

- नंबर एक. मिस्टर मिस्टीरियस. शी जिनपिंग की निजी ज़िंदगी किसी रहस्य से कम नहीं है. उनके पिता माओ ज़ेदोंग की सेना में कमांडर थे. उनकी मां भी कम्युनिस्ट पार्टी की मेंबर थीं. सांस्कृतिक क्रांति के दौरान जिनपिंग के पिता को जेल में बंद कर दिया गया. नौजवान जिनपिंग को एक सुदूर गांव में मज़दूरी के लिए भेज दिया गया. माओ की मौत के बाद डेंग जियाओपिंग की वापसी हुई. डेंग ने माओ के सताए नेताओं को सत्ता में हिस्सेदारी दी. उसी क्रम में जिनपिंग के पिता बहाल हुए. इसी के साथ उनका जीवन भी ट्रैक पर लौटा. इसके बाद जिनपिंग ने फुजियान और शंघाई में गवर्नर के तौर पर काम किया. कालांतर में दोनों प्रांत एंटी-करप्शन कैंपेन की ज़द में आए. 

2000 के दशक में जिनपिंग CCP के पोलितब्यूरो में जगह बनाने में कामयाब हुए. फिर तो उनका कद बढ़ता ही गया. हालांकि, जब हू जिंताओ ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना, तब बहुत लोगों को हैरानी हुई थी. उन्हें जिंताओ की पसंद की वजह समझ नहीं आ रही थी. उन्होंने जिनपिंग को कम करके आंका था. क्योंकि जैसे ही वो सत्ता में आए, उनका असली चेहरा सामने आने लगा. 2012 में पार्टी का जनरल-सेक्रेटरी बनने के बाद से उनकी स्थिति मज़बूत ही हुई है. मौजूदा दौर में वो सबसे बड़ी आबादी वाले देश के सर्वेसर्वा हैं. इसके बावजूद उन्होंने आज तक एक भी प्रेस कॉन्फ़्रेंस नहीं की है, सिर्फ अपने फ़ैसले सुनाए हैं. पार्टी की मीटिंग्स में दिए गए भाषण महीनों बाद पब्लिक डोमेन में आते हैं. वो भी एडिटेड फ़ॉर्म में. उनके परिवार के बारे में शायद ही कभी मीडिया में बात होती है. 

जिनपिंग के बारे में जितनी जानकारी उपलब्ध है, उनमें से अधिकतर सरकारी मीडिया ने रिलीज की हैं. इनमें उनका बखान किया जाता है. अगर कोई चीन में रहकर जिनपिंग की आलोचना छाप दे तो उसके लिए जेल के दरवाज़े खुल जाते हैं. इसके अलग नतीजे भी संभव हैं. जैसे, जनवरी 2016 में हॉन्ग कॉन्ग के एक बुकस्टोर से जुड़े पांच लोग गायब हो गए थे. उनकी गुमशुदगी का लिंक एक ऐसी किताब से जुड़ रहा था, जिसमें जिनपिंग के एक्स्ट्रा-मेरिटल अफ़ेयर्स की कहानियां दर्ज़ थीं. आपको ऐसे और भी उदाहरण मिल जाएंगे. हालांकि, इसी सीक्रेसी ने जिनपिंग को बाकी दुनिया के लिए अबूझ बनाकर रखा है. जिसका उनको फायदा भी मिलता रहता है.

- अब दूसरी वजह जान लीजिए. द अनचैलेंज़्ड. CCP दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टियों में से एक है. उसका कैडर लगभग 10 करोड़ लोगों का है. चीन में वन-पार्टी सिस्टम है. वहां CCP ही सब कुछ है. शी जिनपिंग नवंबर 2012 से CCP के जनरल-सेक्रेटरी हैं. यानी, पार्टी के सबसे बड़े अधिकारी. इसके अलावा, वो सेंट्रल मिलिटरी कमिशन (CMC) के चेयरमैन भी हैं. यानी, चाइनीज़ आर्मी की कमान भी उन्हीं के हाथों में हैं.

अगर इसकी तुलना अमेरिका से की जाए तो वहां भी बाइडन तीनों सेनाओं के अध्यक्ष होते हैं. लेकिन उनके ऊपर संसद और अदालत की नज़र बनी रहती है. बाइडन सिर्फ अपनी इच्छा से कोई अभूतपूर्व फ़ैसला नहीं ले सकते. उन्हें सबकी इच्छा और राय को लेकर चलना पड़ता है. अगर पुतिन की बात करें तो उनके सामने ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. फिर भी रूस के अंदर उनके ख़िलाफ़ प्रोटेस्ट करना संभव है. कई मीडिया संस्थान उनके ख़िलाफ़ लिखते रहे हैं. भले ही उन्हें तालेबंदी का सामना करना पड़ा हो, मगर उनका सफाया नहीं हो सका.
इसके बरक्स जिनपिंग के पास निरंकुश शक्तियां हैं. पार्टी के अंदर उनका कहा ही अंतिम सत्य है. जनता की राय उनके लिए बहुत अहम नहीं है. प्रोटेस्ट और आलोचना की गुंजाइश भी नहीं के बराबर रहती है. ये सारी चीजें जिनपिंग का एकाधिकार पुष्ट करतीं हैं.

- नंबर तीन. द आर्ट ऑफ़ कॉन्सेन्सस. यानी, सर्वसम्मति बनाने की कला. इस तथ्य में कोई शक़ नहीं कि जिनपिंग मौजूदा समय में अकाट्य हैं. पार्टी के अंदर उनके विरोध की कोई गुंजाइश नहीं है. ये भी कहा जाता है कि संसद का सत्र महज एक नाटक होता है. उसके फ़ैसले पहले से तय होते हैं. अगर इसको सच मान भी लें, फिर भी लगभग तीन हज़ार लोगों से एक ऑप्शन पर टिक लगवाना कोई आसान काम नहीं है. इसके अलावा, ज़ीरो-कोविड पोलिसी हो या वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट, तमाम आलोचनाओं के बावजूद पार्टी के अंदर जिनपिंग पर एक ऊंगली नहीं उठी. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) जैसी संस्था कोविड की उत्पत्ति की थ्योरी पर चीन की राय से सहमत दिखी. 

ताइवान के मसले पर चीन हमेशा से आक्रामक रहा है. 2022 में अमेरिकी संसद के निचले सदन की तत्कालीन स्पीकर नैन्सी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया. इसके तुरंत बाद चीन ने ताइवान के करीब में मिलिटरी ड्रिल की. भारत के साथ सीमा विवाद को भी चीन सुलझाने के लिए तैयार नहीं दिखता. रूस-यूक्रेन युद्ध में वो स्पष्टत तौर पर रूस के साथ खड़ा दिखता है. कहने का मतलब ये कि चीन अपने हिसाब से अपनी विदेश-नीति की दिशा और दशा तय कर रहा है. इसे सिर्फ एक नेता की सनक बताकर पेश करना बेमानी होगी. ये खेल उससे कहीं ज़्यादा बड़ा है.

अब शी जिनपिंग की शक्ति का राज़ जानते हैं. वो चीन में अजेयता की स्थिति तक कैसे पहुंचे? लेकिन उससे पहले एक नज़र उनकी टाइमलाइन पर.

> साल 1953. जून के महीने में बीजिंग में शी जोंग्शुन और ली जिन के घर जिनपिंग का जन्म हुआ. जोंग्शुन कम्युनिस्ट पार्टी में बड़े पद पर थे. वो माओ के साथ कम्युनिस्ट क्रांति में हिस्सा ले चुके थे.

माओ ज़ेदोंग की तस्वीर ले जाते लोग 

> 1960 के दशक में माओ ने शहरी नौजवानों को गांवों की तरफ़ भेजने का प्लान लॉन्च किया. इस प्लान का मकसद उन्हें असली चीन से रूबरू कराना था. जिनपिंग को 15 बरस की उम्र में गांव भेज दिया गया. जैसी कि कहानियां हैं, जिनपिंग उन दिनों गुफा में सोते थे और किसानों के साथ पूरे दिन मेहनत किया करते थे.

> 1975 में जिनपिंग वापस लौटे. फिर उन्होंने शिन्हुआ यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. इसी दौरान उन्होंने CCP का मेंबर बनने की कोशिश की. कई बार रिजेक्ट होने के बाद उन्हें मेंबरशिप मिल गई.

> 1979 में वो सेंट्रल मिलिटरी कमिशन और डिफ़ेंस मिनिस्ट्री में सहायक बने.

> 1985 में CCP ने जिनपिंग को झेंगदिंग काउंटी में पार्टी का लीडर बनाकर भेजा.

> 1985 में उनका ट्रांसफ़र फ़ुजियान प्रांत में कर दिया गया. साल 2000 में वो फ़ुजियान प्रांत के गवर्नर बन गए.

> 2002 में उन्हें बगल के झेजियांग प्रांत में भेज दिया गया. वहां उन्हें CCP का मुखिया बना दिया गया. ये पोस्ट गवर्नर से ऊपर की थी.

> मार्च 2007 में जिनपिंग को शंघाई लाया गया. कुछ महीने बाद ही उन्हें CCP की पोलितब्यूरो स्टैंडिंग कमिटी में शामिल कर लिया गया. ये पार्टी की सबसे बड़ी डिसिजन-मेकिंग बॉडी है.

> मार्च 2008 में उन्हें चीन का वाइस प्रेसिडेंट बना दिया गया. उन्हें अगस्त 2008 में होने वाले ओलंपिक गेम्स की ज़िम्मेदारी सौंपी गई. उन्होंने इसे बखूबी निभाया और इस ऐपिसोड ने उनकी आगे की राह आसान कर दी.

> नवंबर 2012 में शी जिनपिंग को पार्टी का जनरल-सेक्रेटरी घोषित कर दिया गया. उन्होंने हू जिंताओ की जगह ली. मार्च 2013 में जिनपिंग को राष्ट्रपति की कुर्सी भी मिल गई.

> अक्टूबर 2017 में ‘शी जिनपिंग थॉट’ को संविधान में शामिल कर लिया गया. इसमें चीन के भविष्य को लेकर जिनपिंग के विचार दर्ज थे.

> मार्च 2018 में चीन की संसद ने राष्ट्रपति पद पर लगी दो टर्म की लिमिट हटा दी. यहीं साफ़ हो चुका था कि जिनपिंग का इरादा लंबी पारी खेलने का है.

> जून 2019 में हॉन्ग कॉन्ग में आज़ादी की मांग को लेकर प्रोटेस्ट शुरू हुए. जिनपिंग की सरकार ने इसे सख़्ती से दबा दिया. उनकी सरकार नेशनल सिक्योरिटी लॉ लेकर आई. अब इस कानून के ज़रिए आलोचकों पर शिकंजा कसा जा रहा है. जब ब्रिटेन ने हॉन्ग कॉन्ग को चीन के हवाले किया था, तब 2047 तक की तारीख़ तय की थी. इतनी अवधि में चीन हॉन्ग कॉन्ग के मूल को नहीं बदल सकता था. मगर जिनपिंग ने उसको धता बताकर अपना दमन कार्यक्रम जारी रखा.

> जनवरी 2020 में वुहान में कोरोना वायरस का पहला केस मिला. शहर में लॉकडाउन लगाया गया. फिर चीन में ज़ीरो-कोविड पोलिसी लागू की गई. इसका चीन समेत पूरी दुनिया में विरोध हुआ. चीन पर डेटा में झोल करने के आरोप भी लगे. मगर सरकार अपने में मगन रही.

> अक्टूबर 2022 में शी जिनपिंग को तीसरी बार पार्टी का जनरल सेक्रेटरी बना दिया गया. उससे पहले अफ़वाह उड़ी थी कि सेना ने उनका तख़्तापलट कर दिया है.

> और, अब मार्च 2023 में शी जिनपिंग को राष्ट्रपति के तौर पर तीसरा कार्यकाल मिल गया है.

04 मार्च 2023 को बीजिंग के द ग्रेट हॉल ऑफ़ पीपुल में दो बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ. पहली, चाइनीज पीपुल्स पोलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ़्रेंस (CPPCC). इसमें अलग-अलग फ़ील्ड्स के जानकार और पार्टी के सलाहकार हिस्सा लेते हैं. दूसरी बैठक होती है, नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (NPC) की. इसमें पार्टी के प्रतिनिधि शामिल होते हैं. NPC चीन की संसद है. इसके सदस्य प्रांतों, मिलिटरी और दूसरे विभागों से चुने जाते हैं. हर सदस्य का कार्यकाल पांच बरस का होता है. पूरे सत्र को टू सेशंस भी कहते हैं. ये हर साल आयोजित होता है. इसमें सरकार की भविष्य की योजनाओं, कानूनों, नियुक्तियों आदि पर वोटिंग होती है. जानकारों का कहना है कि पूरे फ़ैसले स्टैंडिंग कमिटी ले चुकी होती है. उन्हें सत्र में पढ़ा जाता है और फिर उस पर हामी की औपचारिकता भरवा ली जाती है. 

सत्र के दौरान किसी भी तरह के विचार-विमर्थ की गुंजाइश नहीं होती. इसी वजह से NPC को रबर-स्टैंप पार्लियामेंट भी कहा जाता है.
इसका सजीव उदाहरण शी जिनपिंग के चुनाव में देखने को मिला. वोटिंग के दौरान कोई कैंडिडेट लिस्ट नहीं दी गई. इलेक्शन की प्रक्रिया को भी गुप्त रखा गया. हॉल के चार कोनों में चार डिब्बे रखे गए थे. उसमें जिनपिंग के नाम पर अपना मत लिखकर जमा करना था. गिनती में पता चला कि सारे के सारे वोट उनके पक्ष में गए हैं. इस तरह शी जिनपिंग की जीत की औपचारिकता पूरी कर ली गई.

NPC की बैठक में और क्या हुआ?

- मीटिंग में ज़ीरो-कोविड पोलिसी और कोरोना से मची तबाही पर चर्चा होनी थी. लेकिन जब चर्चा की बात आई, तब बहस को दूसरी दिशा में मोड़ दिया गया. कहा गया कि अब हम साइंस और टेक्नोलॉजी पर विमर्श करेंगे.

- चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है. कोरोना ने उसके आर्थिक विकास पर लगाम लगाई है. संसदीय बैठक में आर्थिक वृद्धि को गंभीरता से लिया गया. चीन ने 2023 के लिए 05 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि का टारगेट रखा है. इतनी कम वृद्धि का टारगेट रखना चीन में दशकों बाद हुआ है.

- जिनपिंग ने संसदीय बैठक के इतर अमेरिका पर कई गंभीर आरोप भी लगाए. उन्होंने कहा कि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने हमें चौतरफा तरीके से दबा दिया है. जिसने हमारे विकास के लिए गंभीर चुनौतियां पेश की हैं. उनका इशारा रूस-यूक्रेन युद्ध की तरफ़ था.

कुल जमा बात ये कि पूरी बैठक का मजमून शी जिनपिंग और उनकी विचारधारा के इर्द-गिर्द घूम रहा है. अब सवाल ये उठता है कि, जिनपिंग की ताक़त का कारण क्या है?
तीन बड़े कारण हैं. एक-एक कर जान लेते हैं.

- नंबर एक. वफ़ादारी. जिनपिंग ने अपने करीब के लोगों को चुनने में हमेशा से सतर्कता बरती. जिस किसी से भी उन्हें ख़तरा महसूस हुआ, उसको उन्होंने किनारे कर दिया. चीन में इसकी परंपरा बहुत पुरानी रही है. माओ के समय में गैंग ऑफ़ फ़ोर का दबदबा था. इस गैंग में एक माओ की पत्नी भी थी. माओ सिर्फ उन्हीं चारों की बात मानता था. उन्हीं के भड़काने पर उसने डेंग जियाओपिंग और चाऊ एन लाई जैसे नेताओं को नज़रों से गिरा दिया. माओ की मौत के बाद गैंग ऑफ़ फ़ोर ने कुर्सी हड़पने की कोशिश की. मगर वे सफ़ल नहीं हो पाए.

डेंग जियाओपिंग ने ऐसे लोगों को अपने करीब रखा, जिन्हें माओ ने जेल में भेजा या शक्तियां छीन ली थीं. जियाओपिंग के बाद आए जियांग जेमिन भी शंघाई गैंग के इशारों पर चलते थे.
ये शी जिनपिंग का दौर है. उन्होंने भी पुरानी परंपरा बरकरार रखी है. जिनपिंग को हल्का सा ख़तरा मौजूदा प्रीमियर ली केचियांग से था. चीन में प्रीमियर की पोस्ट नंबर दो की होती है. केचियांग को अक्टूबर 2022 में ही निकलने का संकेत दे दिया गया था. उनकी जगह पर ली चियांग को चीन का नया प्रीमियर बनाया जा रहा है. इसका औपचारिक ऐलान 11 मार्च को हो सकता है. ली चियांग, शी जिनपिंग के सबसे वफ़ादार लोगों में से हैं. 

शंघाई में सख़्त ज़ीरो कोविड पोलिसी लागू कराने के पीछे चियांग ही थे. इसी वजह से शंघाई में ज़बरदस्त प्रोटेस्ट भी हुए. जिसके चलते सरकार को पोलिसी में बदलाव करना पड़ा. इसके बावजूद जिनपिंग, चियांग को प्रमोट कर रहे हैं. इसके अलावा, डिंग शेशियांग को एग्जीक्युटिव वाइस-प्रीमियर बनाया जा रहा है. वो जिनपिंग के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ रह चुके हैं. चाऊ लीजि को NPC का मुखिया बनाया गया है. उन्होंने शी जिनपिंग के एंटी-करप्शन कैंपेन को लीड किया था. वांग हूनिंग को CPPCC की कमान दी गई है. उन्हें पार्टी का वैचारिक गुरू कहा जाता है. पार्टी की टॉप लीडरशिप में लगभग सारे लोग जिनपिंग के वफ़ादार हैं. वहां उन्हें कोई ख़तरा नहीं है.

- नंबर दो. द शैडो कैंपेन. बतौर जनरल-सेक्रेटरी, जिनपिंग ने पहला भाषण नवंबर 2012 में दिया. इसमें उन्होंने कहा था,

“ये एक अटल सत्य है कि अगर भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगाई गई तो पार्टी और स्टेट का समूल नाश हो जाएगा. हमें सजग रहना होगा.” 

जनवरी 2013 में उनका एक और संबोधन चर्चा में आया. इसमें उन्होंने वादा किया कि बड़ी और छोटी मछलियों से एक साथ निपटेंगे. उनका इशारा पार्टी के ताक़तवर नेताओं और लोकल लेवल पर काम करने वाले छोटे अधिकारियों से था. मार्च 2013 में शी जिनपिंग चीन के राष्ट्रपति बन गए. अब पार्टी के साथ-साथ सरकार की कमान भी उनके हाथों में थी. कुछ समय बाद ही एंटी-करप्शन कैंपेन लॉन्च किया गया. सेंट्रल इंस्पेक्शन टीम के अधिकारियों को प्रांतों में भेजा गया. उन्होंने वहां स्थानीय अधिकारियों की जांच की. जो दोषी मिले, उन्हें पद से बर्खास्त किया गया. ऐसे लोगों पर मुकदमा चला और उन्हें जेल भी भेजा गया. एक तरफ़ तो ये भ्रष्टाचार-विरोधी कैंपेन था, लेकिन इसकी आड़ में जिनपिंग ने अपने विरोधियों को भी ठिकाने लगाया.

- नंबर तीन. द पर्सनल करिश्मा. जिनपिंग ने अपनी छवि को बेहद झाड़-पोंछकर चीन और दुनिया के सामने पेश किया. अपने लोगों के लिए वो संघर्ष से लड़कर उभरे नेता हैं. दुनिया के सामने उनकी छवि एक सख़्त और आक्रामक रणनीतिकार की है. जिनपिंग के विचारों को चीन के स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाया जाता है. उन्हें चीनी जनता के बीच पिता के तौर पर दिखाया जाता है. ऐसा पिता, जो अपने बच्चों के बारे में कभी बुरा नहीं सोच सकता. इन सबके ज़रिए शी जिनपिंग ने अपना करिश्मा बनाकर रखा है. हाल-फिलहाल में इसके धूमिल होने की कोई संभावना नज़र नहीं आती.

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