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बिजली के केबल में एक तार की जगह ढेर सारे पतले-पतले तार क्यों होते हैं?

ये तार सांप की तरह एक दूसरे से लिपटे हुए क्यूं रहते हैं?

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दर्पण
14 जून 2018 (Updated: 14 जून 2018, 11:07 AM IST)
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राम के पास अपने दादा के ज़माने की एक पेंडुलम वाली घड़ी है. इसमें घड़ी की सुइयां तो दिनभर चक्कर लगाती रहती हैं, लेकिन घड़ी का पेंडुलम दाएं से बाएं, बाएं से दाएं डोलता रहता है. यानी पेंडुलम एक निश्चित ऊंचाई पर पहुंचकर वापस दूसरी तरफ मुड़ जाता है.
यही अंतर एसी और डीसी में भी है.
एसी यानी अल्टरनेटिंग करेंट और डीसी यानी डायरेक्ट करेंट दोनों ही करंट के प्रकार हैं. और दोनों में ही ये करेंट पैदा होता है इलेक्ट्रॉनों की गति से. ये समझ लीजिए कि हर आज़ाद इलेक्ट्रॉन में बहुत छोटी मात्रा में चार्ज होता है. तो जब ये इलेक्ट्रॉन एक जगह से दूसरी जगह चलते हैं तो करेंट का भी प्रवाह होता है.
स्किन इफ़ेक्ट
स्किन इफ़ेक्ट
# किसी सर्किट में डीसी उत्पन्न होती है इलेक्ट्रॉन्स के गोल-गोल चक्कर लगाने से – जैसे घड़ी की सुइयां.
# वहीं सर्किट में एसी उत्पन्न होती है इलेक्ट्रॉन्स के पेंडुलम की तरह गति करने से – जैसे घड़ी का पेंडुलम. तभी इसे अल्टरनेटिंग (बारी बारी से) करेंट कहते हैं.
अब हमारे घर में जो बिजली पहुंचती है वो है एसी करेंट. इसमें होता है स्किन इफेक्ट.
स्किन इफेक्ट मतलब एसी किसी तार की स्किन में सबसे ज़्यादा प्रभावी होती है, और जैसे जैसे तार के अंदर की ओर या केंद्र की ओर बढ़ें वैसे-वैसे इसका प्रभाव कम होता चला जाता है. ज़्यादा मोटा तार हुआ तो भीतर कोई करंट बहेगा ही नहीं. इसी स्किन इफ़ेक्ट के चलते बिजली का तार एक मोटा तार न होकर पतले-पतले तारों का गुच्छा होता है. क्यूंकि जितने ज़्यादा तार होंगे उतनी ज़्यादा स्किन या बाहरी त्वचा और उतनी ज़्यादा करंट एक जगह से दूसरी जगह फ्लो हो पाएगी.
हाई वोल्टेज वायर
हाई वोल्टेज वायर

एक इंट्रेस्टिंग चीज़ और है. आपने देखा होगा कि हाई वोल्टेज के मोटे-मोटे तारों में भी ढेर सारे तार रस्सी या स्प्रिंग की तरह मुड़ते हुए आगे बढ़ते हैं. ढेर सारे तार क्यूं होते हैं ये तो अब आप जान गए – स्किन इफ़ेक्ट के चलते, लेकिन ये स्प्रिंग या रस्सी की सर्पाकार तरह एक दूसरे से घूमते हुए क्यूं चलते हैं सीधे सीधे क्यूं नहीं?
इसका उत्तर है ‘चुंबकीय क्षेत्र’.
देखिए जब एसी बहती है तो उसके चारों ओर मैग्नेटिक फील्ड का गोल घेरा बन जाता है. और इस मैग्नेटिक फील्ड की दिशा करेंट की दिशा पर निर्भर है. यदि एसी की एक तार आपकी नाक की सीध में आगे की तरफ जा रही है तो उसके चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र ‘क्लॉक-वाइज़’ यानी घड़ी की दिशा में बनेगा.
अब घर में आने वाली बिजली में तो इस मैग्नेटिक फील्ड से कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ता (फिर भी आप देखेंगे तो लाल और हरे तार एक दूसरे से सर्पाकार तरीके से लिपटे रहते हैं) लेकिन हाई वोल्टेज में इस चुंबकीय क्षेत्र के चलते आवाज़ से लेकर गर्मी और करेंट में हानि तक कई नुकसान हो सकते हैं.
करेंट की दिशा से ही मैग्नेटिक फील्ड की दिशा तय होती है.
करेंट की दिशा से ही मैग्नेटिक फील्ड की दिशा तय होती है.

हाई वोल्टेज वायर में यदि तार सीधा होगा तो ये चुंबकीय क्षेत्र इकट्ठा होते होते बहुत ज़्यादा हो जाएगा. लेकिन तार को स्पाइरल या सर्पाकार तरीके से घुमा देने पर करंट का रास्ता बदलते रहेगा. फलतः मैग्नेटिक फील्ड का रास्ता भी बदलते रहेगा और तार के एक भाग का मैग्नेटिक फील्ड दूसरे भाग के मैग्नेटिक फील्ड को शून्य करता हुआ चलेगा.


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