ये जो अजीब से नंबर आते हैं न टीवी स्क्रीन में, वो ऐंवेई नहीं हैं
वजह 'टेक्निकल' नहीं 'रोचक' है!
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फोटो - thelallantop
इस पूरी पोस्ट में केवल एक टेक्निकल शब्द यूज़ हुआ है और वो भी लेख की पहली ही लाइन में - कंडीशनल एक्सेस सिस्टम.
अब ये क्या होता है वो जानने के लिए थोड़ा समय को रिवाईंड करके दूरदर्शन के दिन याद किए जाएं.
वो एंटीना हिला कर चित्रहार देखने वाला नास्टैल्जिक मोमेंट तो न जाने कितनी ही फिल्मों, नॉवेलों और सीरियलों में भुनाया जा चुका है. तो उसे रिपीट करके कोई फायदा नहीं. लेकिन जो बात इंपोर्टेंट है वो ये कि उस वक्त टीवी देखने के लिए एक्को पैसा नहीं देना पड़ता था. मतलब टीवी खरीद लिया, एंटीना खरीद लिया, हो गया काम! (ओह हां, स्टेबलाईज़र भी तो.)# दूरदर्शन
बहरहाल, फिर आया केबल टीवी का दौर. जिनके पास पैसे थे और जिनके पापा को अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता नहीं थी वो सब पैसा देकर अपने घर में 'केबल' लगवा लेते थे और हम जैसे निम्न मध्यमवर्गीय बच्चे उन केबल्स में कंटिया. (ये कंटिया वाला नास्टैल्जिया शायद अभी तक किसी भी मूवी में नहीं कैश हुआ है.) एक बात हमेशा याद रखिए जो चीज़ फ्री में मिलती है उसमें कोई सिक्यूरिटी नहीं होती लेकिन जो चीज़ पैसे देकर मिले उसमें सिक्यूरिटी होना बहुत ज़रुरी है. क्यूं? वो इसलिए कि जिसने पैसे न दिए हों वो लोग भी लंगर न छक लें. तो केबल के ज़माने में तो सिक्यूरिटी इस बात से ही मेंटेन कर ली जाती थी कि तार जितने ऊपर से ले जाए जाएं उतना अच्छा.# केबल टीवी
लेकिन फिर मध्यमवर्गीय पर कहर बन के आई डिश. बहरहाल, हमने भी हिम्मत नहीं हारी, पापा की छतरी से लेकर मम्मी के कूकर तक सब यूज़ किया. मगर सिग्नल नहीं आया तो नहीं आया. हमने फिर भी हिम्मत नहीं हारी. अन्ताक्षरी और बेवाच के कितने ही एपिसोड मिस हो गए थे. हम खरीद लाए एक डिश. उस वक्त यू ट्यूब तो होता नहीं था तो खुद ही जुगाड़ करके जैसे तैसे उसे टीवी से जोड़ा. और तब हुआ चमत्कार! चमत्कार ये कि अच्छा खासा दूरदर्शन और डीडी मेट्रो आना भी बंद हो गया. हमाये पल्ले ही न पड़ा कि गलती किसकी, कहां हुई भूल. तब जाकर मुझे मेरे दोस्त के पापा ने कंडीशनल एक्सेस सिस्टम के बारे में बताया. दोस्त के पापा इंजीनियर नहीं, केबल ऑपरेटर थे. उन्होंने कहा कि जितने भी जुगाड़ लगा लो जब तक मैं नहीं चाहूंगा डिश नहीं चलेगा. अब चूंकि वो इंजीनियर नहीं केबल ऑपरेटर थे तो उनकी ही बात को जस का तक आपको बता रहा हूं, यदि आप मेरा स्मृति दोष वाला 'भू.चू.ले.दे.' माफ़ करें तो -# डिश टीवी
'देखो ये जो टीवी वाले हैं न ये जब सिग्नल भेजते हैं तो उसमें ताला भी लगा देते हैं. यानी अब तुम सिग्नल रिसीव कर भी लो तो भी बिना चाबी के वो खुलेगा नहीं. और टी.वी. में आएगा - झिलमिल सितारों का आंगन. और इस ताले की चाबी वो किसी-किसी को देते हैं. किसी-किसी को का मतलब -उनको, जो चाबी के लिए पैसे देते हैं. और इस ताले-चाबी वाले पूरे झाम को कहते हैं - कंडीशनल एक्सेस सिस्टम. शुद्ध हिंदी में कहें तो सशर्त प्रवेश प्रणाली. और हमारी वाली हिंदी में कहें तो - पैसा फेंक तमाशा... आई मीन बेवाच देख.'खैर, इन सब के बीच एक चीज़ जो समझ में आई वो ये कि चोरी करना पाप है और नदी किनारे सांप है और खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे और नाच न आवे आंगन टेढ़ा.
बहरहाल ग्रेजुएशन के दिन चल रहे थे और कौन बनेगा करोड़पति सुपर हिट हो चुका था. घर में पापा ने अंततः डिश लगवा दिया था. एक दिन देखा कि टीवी में अजीब से नंबर आ रहे हैं. गौर किया तो पता चला कि रोज़ ही आते हैं, थोड़ी थोड़ी देर में. लगा कोई लॉटरी का नंबर है. सारे नंबर नोट करके केबल वाले अंकल के पास ले गए. उनसे कहा इनको कहां पर जमा करना है? अंकल ने बताया# लॉटरी वाले नंबर
देखो, तुम्हें कंडीशनल एक्सेस सिस्टम के बारे में तो बताया ही था मैंने - यानी केवल वो ही इस प्रोग्राम को देख सकते हैं जो पैसे देते हैं. लेकिन लोगों ने इसका भी तोड़ ढूंढ लिया. वो प्रोग्राम की रिकॉर्डिंग करते हैं और लोगों को औने पौने दामों में बेच देते हैं. क्रिकेट और नई मूवीज़ के दाम तो औने पौने से कुछ ज़्यादा ही होते हैं. अब हमें ये कैसे पता चले कि रिकॉर्डिंग कहां से हुई है? इसलिए ही टीवी स्क्रीन में एक नंबर फ्लैश होता है. यही जो तुम नोट करके लाए हो.अब ये नंबर हर शहर, हर घर के लिए अलग-अलग होता है. तो इस तरह रिकॉर्डिंग में हमें वो नंबर भी दिख जाता है. और 'नंबर' पता चला, तो 'पता' पता चला. सिंपल!उस दिन के बाद से जिस काली धारी वाले नंबर से मैं चिढ़ता था उसके प्रति मेरे मन में इज्ज़त पैदा हो गई. बहरहाल अब केबल और डिश का भी दौर जा रहा है और डिजिटल टीवी का दौर आ रहा है. देखना ये है कि इस दौर में चोरी कैसे होती है और सिक्यूरिटी कैसे. पिछले सभी राउंड्स में कांटे की टक्कर रही थी देखें अब टॉम और जैरी में से इस 'नेटफ्लिक्स' और 'हॉटस्टार' वाले राउंड फोर में कौन जीतता है?
तो 'रिविज़न' भी कर लेते हैं ताकि 'कन्फ्यूज़न' न रहे -# अंततः
टीवी में दिखने वाला यह कोड ज़्यादातर एक काली पट्टी पर सफेद फॉन्ट से लिखा होता है. लेकिन कभी कभी यह पीली पट्टी पर काले से और ऐसे ही कई अलग अलग रंगों से भी दिख सकता है. हर टीवी के लिए एक यूनिक कोड किसी एल्गोरिथम के चलते स्वतः जनरेट होता है. वो, जैसे किसी किसी वेबसाइट में लॉग इन करते वक्त कैप्चा या ओ टी पी खुद जनरेट होते हैं वैसे ही. यह पायरेसी रोकने के लिए कारगर साबित होता है. क्यूंकि यदि किसी ने चोरी करने के उद्देश्य से टीवी शो रिकॉर्ड किए होंगे तो ये कोड भी रिकॉर्ड हो जाएंगे. फिर चोर को इन कोड्स इन नंबर्स की मदद से आसानी से ट्रैक किया जा सकता है.
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