पहली महिला, जो वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट की जज बनने जा रही हैं
इंदु मल्होत्रा पहले फैसला सुनाने के लिए कहती थीं, अब खुद फैसले करेंगी.
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इंदु मल्होत्रा पहली ऐसी महिला हैं, जो हाई कोर्ट में जज बने बिना ही सुप्रीम कोर्ट में जज बनाई गई हैं.
परिवार में सब लोग वकील हैं

इंदु के पिता भी वकील थे. उनके बड़े भाई और बड़ी बहन भी वकील हैं.
1956 में इंदु का जन्म बेंगलुरु में हुआ था. उनके पिता ओम प्राकाश मल्होत्रा भी सुप्रीम कोर्ट में वकील थे. उन्होंने औद्योगिक विवादों पर बने कानूनों पर किताब भी लिखी थी. इंदु के बड़े भाई और बड़ी बहन भी वकील हैं. अपनी पढ़ाई के लिए इंदु भी पिता के साथ दिल्ली चली आईं. उन्होंने शुरुआती पढ़ाई कॉर्मल कॉन्वेंट स्कूल से की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस में ग्रैजुएशन और फिर मास्टर डिग्री हासिल की. डीयू के ही मिरांडा हाउस और विवेकानंद कॉलेज में इंदु ने कुछ दिनों तक लेक्चचर के रूप में काम किया. 1979 में उन्होंने पढ़ाना छोड़ दिया और लॉ में एडमिशन ले लिया. 1982 में उनका लॉ पूरा हो गया और फिर 1983 में वो वकालत के पेशे में उतर आईं. इसी साल उन्होंने दिल्ली बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन करवाया और वकालत करने लगीं. पांच साल के अंदर ही इंदु ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने के लिए होने वाली परीक्षा Advocate-on-Record में पहला स्थान हासिल किया. 26 नवंबर को देश का संविधान दिवस होता है. 1988 में 26 नवंबर को इंदु को मुकेश गोस्वामी मेमोरियल अवॉर्ड दिया गया.
किताब भी लिख चुकी हैं

इंदु मल्होत्रा ने अपने पिता के कानून पर जो राय थी, उसके आधार पर किताब लिखी है.
इंदु ने मध्यस्थता (arbitration) करने वाले कानूनों में विशेषता हासिल की और इससे संबंधित किताबें भी लिखीं. उन्होंने 2014 में ‘The Law and Practice of Arbitration and Conciliation, 2014’नाम की किताब लिखी है, जो अप्रैल 2014 में छपी थी. इसके अलावा उन्हें अलग-अलग तरीकों के घरेलू और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मामलों में मध्यस्थता करने का भी अनुभव है. उनकी इसी काबिलियत को देखते हुए केंद्र सरकार ने भारत में मध्यस्थता तंत्र के संस्थानीकरण की समीक्षा करने के लिए उन्हें कानून और न्याय मंत्रालय में उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) का सदस्य बनाया था. हाल ही में वो उस दस सदस्यीय समिति की सदस्य थीं. इसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस बी.एन. श्रीकृष्णा थे, जिसके जिम्मे काम था मध्यस्थता तंत्र के संस्थानीकरण की समीक्षा करना और उसके लिए सुझाव देना. अगस्त 2017 में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी. इसमें मध्यस्थता को बढ़ावा देने के लिए एक समिति बनाने की सिफारिश की गई थी.
एनजीओ का भी हिस्सा हैं

इंदु मल्होत्रा सेव लाइफ फाउंडेशन की ट्रस्टी हैं.
देश में इंदु के नाम की चर्चा सबसे पहले 2007 में तब हुई थी, जब केंद्र सरकार ने उन्हें अगस्त 2007 में सुप्रीम कोर्ट में बतौर वरिष्ठ वकील नियुक्त किया था. वो आजादी के बाद देश की दूसरी ऐसी महिला थीं, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर नियुक्त किया गया था. उनसे पहले 1977 में सरकार ने लीला सेठ को सुप्रीम कोर्ट का वकील बनाया था, जो चर्चित लेखक विक्रम सेठ की मां थीं. इंदु एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) Save Life Foundation की ट्रस्टी भी हैं. यही एनजीओ था, जिसने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि सड़क हादसे में घायल होने वालों की मदद करने वालों को परेशान न करने के लिए कानून बनाया जाए. नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय कोर्ट ने उन्हें दहेज कानून की समीक्षा करने वाले मामले में एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) बनाया था. दो जजों की बेंच ने फैसला दिया था कि दहेज उत्पीड़न के मामले में गिरफ्तारी तभी हो सकती है, जब किसी जिले की परिवार कल्याण समिति गिरफ्तारी के लिए राजी हो जाए. इंदु को इसी कानून की समीक्षा के लिए नियुक्त किया गया था.
1989 में सुप्रीम कोर्ट को मिली थी पहली महिला जज

जस्टिस फातिमा बीवी (बाएं) पहली महिला जज थीं, जबकि जस्टिस आर भानुमति फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में इकलौती महिला जज हैं.
जस्टिस फातिमा बीवी पहली ऐसी महिला थीं, जो सुप्रीम कोर्ट में जज बनी थीं. 1989 में उन्हें नियुक्त किया गया था. उनके बाद जस्टिस सुजाता वी मनोहर, जस्टिस रुमा पाल, जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई सुप्रीम कोर्ट की जज बनीं. फिलहाल जस्टिस आर भानुमति सुप्रीम कोर्ट की इकलौती महिला जज हैं. इंदु अब सातवीं महिला होंगी, जो सुप्रीम कोर्ट में जज बनेंगी.
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