क्या है साइरस मिस्त्री की मौत की असली वजह?
हादसे के दौरान गाड़ी डॉ अनाहिता पंडोले चला रही थीं और साइरस मिस्त्री पिछली सीट पर बैठे थे.

बीते कुछ महीनों में महामारी का ताप खत्म सा हो गया है. ज़िंदगी और बाज़ार दोनों पटरी पर लौटते नज़र आ रहे हैं. लेकिन क्या हो अगर हम बताएं कि कोविड की पहली लहर जितनी बड़ी आफत हर साल भारत पर टूटती है. लोगों की जानें लेती है, जो मरते नहीं, उनकी ज़िंदगियां तबाह कर देती है. लेकिन इसकी तरफ हमारा ध्यान न के बराबर जाता है. हम बात कर रहे हैं सड़क हादसों की. भारत में हर साल औसतन डेढ़ लाख भी से भी ज़्यादा लोगों की जान सड़क हादसों में चली जाती है. आप तक ये खबर पहुंच ही गई होगी कि 4 सितंबर के रोज़ टाटा सन्स के पूर्व प्रमुख साइरस मिस्त्री की मौत एक सड़क हादसे में हो गई. साइरस के बगल में जहांगीर पंडोले बैठे थे, जो KPMG ग्लोबल स्ट्रैटजी ग्रुप के डायरेक्टर थे. उनकी जान भी चली गई. सड़क हादसों में किसी की जान चले जाना भारत में इतना आम है कि इसपर चर्चा न के बराबर होती है. लेकिन उद्योग जगत की दो-दो बड़ी हस्तियों की अकाल मृत्यु के बाद कुछ देर के लिए ही सही, रोड सेफ्टी पर बात होने लगी. लेकिन इस बहस का दायरा सीट बेल्ट और एयर बैग वाली बहस तक सीमित रहा.
4 सितंबर के रोज़ NH 48 पर सूर्या नदी के पुल पर जो हादसा हुआ, उसने लोगों को कई स्तरों पर प्रभावित किया. गाड़ी में टाटा संस के पूर्व प्रमुख साइरस मिस्त्री के अलावा KPMG के जहांगीर पंडोले बैठे थे. गाड़ी चला रही थीं मुंबई की नामी गायनाकॉलोजिस्ट डॉ अनाहिता पंडोले. उनके बगल में बैठे थे उनके पति डारियस पंडोले. डारियस टाटा ग्लोबल बेवरेजेज़ लिमिटेड के बोर्ड पर रहे हैं. जब साइरस मिस्त्री टाटा ग्रुप से अलग हुए, तो डारियस ने भी अपना पद छोड़ दिया. फिलहाल मुंबई के आर्थिक जगत में बड़ा नाम हैं, PE & Equity AIFs-JM Financial नाम की कंपनी के डायरेक्टर और सीईओ हैं.
ये चारों गुजरात के वलसाड में पड़ने वाले उदवाड़ा गए थे. उदवाड़ा में पारसी समुदाय का मुख्य फायर टेंपल है. साइरस मिस्त्री के परिवार ने कुछ साल पहले इस मंदिर का पुनर्विकास करवाया था. उदवाड़ा की इस यात्रा का संबंध भी एक दुखद घटना से ही था. बीते दिनों जहांगीर और डारियस ने अपने पिता को खो दिया था. उनके लिए उदवाड़ा फायर टेंपल में एक प्रार्थना रखी गई थी. क्योंकि मिस्त्री परिवार और पंडोले परिवार के बीच घनिष्ठ संबंध हैं, साइरस भी पंडोले परिवार के साथ प्रार्थना के लिए गए.
4 सितंबर की दोपहर ये चारों मर्सिडीज़ GLC नाम की कार से मुंबई लौट रहे थे. ये एक SUV है. दोपहर सवा तीन बजे के करीब गाड़ी पालघर में चारोटी के पास थी. अचानक गाड़ी रोड डिवाइडर से टकराई और बेकाबू हो गई. इसके बाद गाड़ी सूर्या नदी के पुल के पास एक दीवार से टकरा गई. मर्सिडीज़ एक लग्ज़री ब्रैंड है और इसकी गाड़ियां अपेक्षाकृत सुरक्षित मानी जाती हैं. इसीलिए इस बात को लेकर बड़ा आश्चर्य जताया गया कि साइसर मिस्त्री और जहांगीर पंडोले की मौत हो गई, वो भी तब, जब वो पीछे बैठे हुए थे.
शुरुआती जानकारी ये है कि गाड़ी चला रहीं अनाहिता पंडोले और उनके बगल में बैठे डारियस पंडोले ने सीट बेल्ट लगाया था. इसीलिए भिड़ंत के वक्त उनकी ओर लगे एयर बैग्स खुले. इन दोनों को गंभीर चोटें आई हैं, लेकिन प्राण नहीं गए. इनका इलाज चल रहा है. जबकि पुलिस के मुताबिक पीछे बैठे साइरस और जहांगीर ने सीट बेल्ट नहीं लगाया था. इसीलिए एयरबैग्स नहीं खुले. और वो हादसे के बाद अगली और पिछली सीट के बीच फंस गए.
दरअसल अहमदाबाद से मुंबई की दिशा वाली सड़क, सूर्या नदी के ठीक पहले तीन लेन से दो लेन की हो जाती है. इसीलिए बायीं ओर चल रहे वाहनों को पुल से थोड़ा पहले गाड़ी को हल्के से दायीं ओर करना होता है. शुरुआती जांच के मुताबिक गाड़ी की रफ्तार ज़्यादा थी और संभवतः अनाहिता गाड़ी को दायीं तरफ नहीं कर पाईं जिसके चलते गाड़ी डिवाइडर से टकराई. पुलिस का कहना है कि हादसे वाली जगह ब्लैक स्पॉट नहीं मानी जाती. माने इस जगह पर ऐसे हादसों का इतिहास नहीं है. फिर भी महाराष्ट्र सरकार ने हादसे की विस्तृत जांच के आदेश दे दिए हैं.
जांच का नतीजा आने में अभी वक्त है. लेकिन एक बात को हम अभी से रेखांकित कर देना चाहते हैं- सीट बेल्ट ज़रूर पहनें. चाहे आप कार में सामने की ओर बैठे हों, या फिर पीछे. हमारी आम समझ कहती है कि हादसे के वक्त कार में सामने बैठे लोगों को तो खतरा होता है, लेकिन पीछे बैठे लोग सुरक्षित होते हैं. ये आपकी भूल है. आपने गाड़ियों की सेफ्टी रेटिंग के बारे में सुना होगा. इन रेटिंग्स को जारी करने से पहले गाड़ी को नियंत्रित माहौल में अलग-अलग तरह से भिड़ाकर देखा जाता है. ताकि समझ में आए कि अंदर बैठे लोगों पर कैसा असर होगा. इसे आम भाषा में कहा जाता है क्रैश टेस्ट. ऐसा ही एक वीडियो पिछले चौबीस घंटों से सोशल मीडिया पर वायरल है. जिसमें पीछे बैठे लोग भी सीधी टक्कर में बुरी तरह ज़ख्मी हो जाते हैं, अगर उन्होंने सीट बेल्ट नहीं लगाया हो.
एक बात को गांठ बांधकर रख लीजिए. आपकी गाड़ी कितनी भी महंगी हो, उसमें कितने भी एयर बैग लगे हों, वो आपको सीमित सुरक्षा ही दे सकते हैं. आपने गाड़ी पर लिखा देखा होगा - SRS Airbags. यहां SRS का मतलब है सप्लिमेंट्री रिस्ट्रेंट सिस्टम. रिस्ट्रेंट सिस्टम आपको हादसे के वक्त सीट पर थामे रहता है. स्पिलिमेंट्री का अर्थ हुआ सहयोगी. तो एयरबैग दूसरे नंबर पर आते हैं. प्राइमरी रिस्ट्रेंट, माने मुख्य सुरक्षा उपकरण सीट बेल्ट ही है. क्रैश टेस्ट वाले वीडियो में भी आप साफ देख सकते हैं, जिस पुतले ने सीट बेल्ट पहना हुआ है. वो भिडंत के बाद भी सीट पर ही रहा, और विंडशील्ड से नहीं टकराया.
4 दिसंबर 2021 को केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में भारत में चार पहिया वाहनों को और सुरक्षित बनाने के लिए एयर बैग्स की संख्या बढ़ाने पर ज़ोर दिया था. एयर बैग्स यकीनन सुरक्षा बढ़ाते हैं. लेकिन सीट बेल्ट के बिना वो उलटा असर भी कर सकते हैं. जी हां. कैसे, हम बताते हैं. हादसे में हमें चोट इसीलिए आती है कि जिस रफ्तार में गाड़ी चल रही होती है, उसी रफ्तार में हमारा शरीर भी चल रहा होता है. भिड़ंत के वक्त गाड़ी तो तुरंत अपना आवेग खो देती है, लेकिन शरीर ऐसा नहीं कर पाता. तब चोट लगती है. संभव है कि सारी चोटें बाहर से नज़र न आएं. ज़ोरदार झटके से शरीर के अंदर खून रिस सकता है. अंगों को अंदरूनी चोट पहुंच सकती है. साइरस मिस्त्री और जहांगीर पंडोले की मृत्यु का शुरुआती कारण इन्हीं अंदरूनी चोटों को माना गया है.
हादसे में जब एयर बैग्स खुलते हैं, तो वो गाड़ी की ठोस सतह और हमारे बीच एक गुब्बारा बना देते हैं. और धीरे धीरे इनकी हवा कम होती है. तो शरीर का आवेग धीरे धीरे घटता है और चोट कम लगती है. लेकिन यहां एक राइडर है. एयर बैग धमाके के साथ खुलते हैं. और अगर ज़्यादा रफ्तार में आप एयर बैग्स से भी टकरा जाएं, तो वो ऐसा ही होगा कि आप एक ठोस सतह से टकराए हैं. ऐसे में गरदन टूट जाना तो बहुत आम है. इसीलिए ये ज़रूरी है कि एयर बैग और आपके बीच भी कुछ हो. और यही चीज़ है सीट बेल्ट.
आपने कार में सामने वाली सीट के सामने बना वो चिह्न ज़रूर देखा होगा, जिसमें एक छोटा बच्चा बास्केट या सीट में बैठा होता है, और उसपर क्रॉस बना होता है. इसका मतलब ये होता है कि छोटे बच्चों को उनकी सीट सहित सामने वाली सीटों पर न बैठाएं. क्योंकि एयरबैग का धमाका बच्चों की सीट को गाड़ी के अंदर उछाल सकता है, बच्चे को गंभीर चोट आ सकती है. इसीलिए छोटे बच्चों की सीट को हमेशा पिछली सीट पर लगाना चाहिए. भारत में गाड़ियां क्रमशः सुरक्षित होती जाएंगी. एयर बैग्स दो से चार और चार से छह हो जाएंगे. लेकिन आगे और पीछे की सीटों पर लगा सीट बेल्ट तो अभी भी है. अगर जान प्यारी हो, तो इनका इस्तेमाल ज़रूर करें.
हमने शुरुआत में आपको बताया था कि सड़क हादसे भारत के लिए किसी महामारी की तरह हैं. हमने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो NCRB द्वारा जारी की गई ''Accidental Deaths & Suicides in India 2021'' रिपोर्ट देखी. इसके मुताबिक 2021 में कुल 4 लाख 3 हज़ार 116 सड़क हादसे रिकॉर्ड किये गए. सबसे ज़्यादा सड़क हादसे वाले राज्यों की लिस्ट पर गौर कीजिए -
1. तमिल नाडु - 55 हज़ार 682
2. मध्यप्रदेश - 48 हज़ार 219
3. कर्नाटक - 34 हज़ार 647
4. उत्तर प्रदेश - 33 हज़ार 711
5. केरल - 32 हज़ार 759
आम समझ कहती है कि जहां हादसे ज़्यादा, वहां मौतें भी ज़्यादा होंगी. लेकिन जब हम हादसे वाली सूची का मिलान मृतकों वाली सूची से करते हैं, तो तस्वीर बदलने लगती है.
भारत में सड़क हादसों में मृत्यु
1. उत्तर प्रदेश - 21 हज़ार 792
2. तमिल नाडु - 15 हज़ार 384
3. महाराष्ट्र - 13 हज़ार 911
4. मध्यप्रदेश - 12 हज़ार 480
5. राजस्थान - 10 हज़ार 43
देखा आपने, कुल हादसों की संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश चौथे नंबर पर है, लेकिन मौतों के मामले में नंबर 1 है. तमिल नाडु में उत्तर प्रदेश की तुलना में 22 हज़ार हादसे ज़्यादा हुए. फिर भी UP में तकरीबन 6 हज़ार 400 लोग ज़्यादा मारे गए. यही बात महाराष्ट्र और राजस्थान पर भी लागू होती है, जो हादसों की संख्या में भले पीछे हों, लेकिन मौतों के मामलों में आगे. इन आंकड़ों को संबंधित राज्यों के स्वास्थ्य ढांचे पर टिप्पणी की तरह पेश कर दिया जाता है. लेकिन बात इतनी सीधी भी नहीं है. रैंकिंग भ्रम पैदा कर सकती है. क्योंकि सड़क हादसों में मृत्यु का कारण सिर्फ एक ही नहीं होता. अनेक बातों का प्रभाव पड़ता है. जैसे
1. चालक किस तरह की गाड़ी पर सवार था या थी? कार या दूसरे चार पहिया वाहन अपेक्षाकृत सुरक्षित होते हैं. हादसों में एक कवच का काम करते हैं. लेकिन टू वीलर पर चलने वालों के पास ये सुरक्षा नहीं होती. साल 2021 में मरने वाले 44.5 फीसदी लोग टू वीलर पर ही सवार थे. तो जहां टू वीलर ज़्यादा होंगे, वहां मौतें ज़्यादा हो सकती हैं. NCRB का ही डेटा बताता है कि साल 2021 में तमिल नाडु में 8 हज़ार 259 लोगों की मौत टू वीलर पर चलते हुए हुई. जबकि यूपी में इस तरह 7 हज़ार 429 लोग मारे गए. देखिये, यहां रैंकिंग फिर बदल गई. इसीलिए हमने कहा था कि आंकड़ों को लेकर सतर्कता बरतने की आवश्यकता है.
2. दूसरा कारक है भूगोल और मौसम. NCRB की रिपोर्ट बताती है कि मिज़ोरम जैसे पहाड़ी इलाकों में हादसे तो कम होते हैं, लेकिन यहां एक दूसरा पैटर्न देखने को मिला. यहां मृतकों की संख्या ज़ख्मी लोगों से ज़्यादा थी. इसका मतलब जो हादसे हो रहे थे, उनमें से ज़्यादातर प्राणघातक थे. घुमावदार रास्तों के अलावा जहां ठंड में कोहरा पड़ता है, वहां विज़िबिलिटी कम होने के चलते हादसे होते हैं.
3. तीसरा कारक है सड़कों के आसपास बसाहट. NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक हादसों की बड़ी संख्या ऐसी जगहों से रिपोर्ट हुई थी, जहां सड़क घनी आबादी के बीच से गुज़रती है. या फिर सड़क पर स्कूल या कॉलेज जैसे प्रतिष्ठान हैं.
एक बुलेटिन में सड़क हादसों के तमाम कारकों और उपायों को समेटना मुश्किल काम है. हमने यहां प्रमुख बिंदुओं को ही छुआ है. लेकिन इतनी बात स्थापित हैं कि सड़क हादसे शून्य नहीं हो सकते. सीट बेल्ट, एयर बैग्स, हेलमेट दस्तानों आदि से चोट को कम किया जा सकता है. तब भी कुछ मामले ऐसे होंगे, जिन्हें आपात चिकित्सा की ज़रूरत पड़ेगी. और तब ज़रूरत पड़ेगी ट्रॉमा सेंटर की. हमने इस विषय में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान AIIMS में भारत के पहले लेवल 1 ट्रॉमा सेंटर की शुरुआत से जुड़े रहे डॉ अमित गुप्ता से बात की.
डॉ गुप्ता ने हमें बताया कि ट्रॉमा केयर के लिए डॉक्टर्स और नर्सों को एक खास तरह की ट्रेनिंग की आवश्यकता पड़ती है. एक सामान्य सा उदाहरण लीजिए. छोटी सी सर्जरी से पहले डॉक्टर आपसे कितने सवाल पूछता है. ट्रॉमा सर्जन के पास हादसों के मरीज़ बेहद गंभीर स्थिति में आते हैं, और उन्हें तुरंत इलाज की ज़रूरत होती है. विस्तृत जांच की मोहलत नहीं होती. ऐसे में MS इन ट्रॉमा जैसे कोर्सेज़ की ज़रूरत है, जो कि पूरे देश में चलाए जा सकते हैं. AIIMS ने इसका कोर्स तैयार कर लिया है. सरकार ने इसे नोटिफाई भी कर दिया है. लेकिन देश भर के मेडिकल कॉलेजेज़ में इसे लागू करने में कोताही बरती जा रही है. क्योंकि हमें ये समस्या उतनी बड़ी नहीं लगती. लेकिन जैसा कि हमने शुरुआत में बताया, सड़क हादसे आपके लिए भले आम हों, लेकिन ये हर साल कोरोना की पहली लहर की तरह ही हम पर वार कर रहे हैं. और इन मौतों को हम बड़ी आसानी से टाल भी सकते हैं.
मृत्यु सिर्फ एक व्यक्ति का जीवन ही समाप्त नहीं करती. आस-पास के लोगों का जीवन भी हमेशा हमेशा के लिए बदल देती है. ज़िंदगी से प्यार कीजिए. गाड़ी धीरे चलाइए, सीट बेल्ट पहनिए और अपनी सरकारों से मांग कीजिए कि स्वास्थ्य ढांचों को बेहतर करने के लिए गंभीर कदमों की सिर्फ बात ही न हो. उनपर अमल भी हो.
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