The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Ayodhya hearing : What Archaeological Survey of India ASI actually found below Babri Mosque and Ram Janmbhoomi disputed site

अयोध्या में खुदाई में क्या मिला था, जिसका ज़िक्र सुप्रीम कोर्ट ने भी कर दिया

ASI को नीचे मस्जिद के सबूत मिले थे या मंदिर के?

Advertisement
Img The Lallantop
बाबरी मस्जिद (पीटीआई) और ASI की खुदाई में मिले खम्भों का आधार (साभार : सुप्रिया वर्मा/Huffington Post)
pic
सिद्धांत मोहन
15 अक्तूबर 2019 (Updated: 9 नवंबर 2019, 06:51 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
अयोध्या का मामला. फैसला आ गया है. फैसले में ज़िक्र आया ASI की खुदाई का.
इस सुनवाई में हिन्दू और मुस्लिम पक्ष तो अपने दावे दे रहे थे, विवादित स्थान पर अपना दावा पेश कर रहे थे. लेकिन सुनवाई में एक नाम बार-बार आ रहा था. Archaeological Survey of India यानी ASI का. ASI की खुदाई का ज़िक्र किया जा रहा था.
सुनवाई के समय देखने को मिला कि हिन्दू पक्ष दलील दे रहा है कि ASI की रिपोर्ट कहती है कि ध्वस्त कर दिए गए बाबरी मस्जिद के नीचे जो अवशेष मिले हैं, वो राम मंदिर के अवशेष हैं. वहीं सुनवाई के एक मौके पर मुस्लिम पक्ष में अदालत में ये बयान दे दिया कि पुरातत्त्व विज्ञान यानी Archaeology कोई असल विज्ञान नहीं है. बाद में मुस्लिम पक्ष ने अपने इस बयान को वापिस ले लिया. कहा कि Archaeology विज्ञान है.
लेकिन क्या है ASI की पूरी कहानी? क्या किया ASI ने अयोध्या में, जिसके बाद मामला इतना बड़ा हो गया?
ARCHAEOLOGICAL_SURVEY_OF_INDIA_-_GOA

ASI मतलब भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग. भारत सरकार के अधीन है. और अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है. पहले अंग्रेज़ काम करते थे, अब भारतीय काम करते हैं. साल 1992 में बाबरी मस्जिद का विध्वंस कारसेवकों ने किया. कहना था कि राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनायी गयी थी. विध्वंस के बाद अदालती कार्यवाही शुरू हुई. और जब मामला गया इलाहाबाद हाईकोर्ट, तो हाईकोर्ट ने ASI से कहा कि वे विवादित स्थल की खुदाई करें.
मई 2003. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश के बाद ASI ने खुदाई शुरू की. इस टीम को डॉ. बी.आर. मणि हेड कर रहे थे. खबरों के मुताबिक़, लगभग दो महीनों तक ASI ने इस जगह की खुदाई की. 131 मजदूरों की टीमें लगीं. 11 जून को ASI ने अंतरिम रिपोर्ट जारी की और अगस्त 2003 में ASI ने हाईकोर्ट में 574 पेज की फाइनल रिपोर्ट सौंपी. खुदाई में बहुत सारे तथ्य और बहुत सारी चीज़ें मिलीं, जिनका ज़िक्र बार-बार इस केस की सुनवाई के दौरान लोगों के बीच आता रहा है. क्या है वे चीज़ें?
# खम्भों के आधार. मतलब खम्भों का निचला हिस्सा. कच्ची ईंटों से बना हुआ. खुदाई में सभी खम्भे एक कतार में मिले थे. एक दूसरे से लगभग 3.5 मीटर दूर. जिस समय ASI ने इन खम्भों का ज़िक्र किया, विश्व हिन्दू परिषद् की बांछें खिल गयीं. तब आउटलुक में प्रकाशित संदीपन देब की रिपोर्ट बताती है कि ASI ने जब ये खम्भे सामने रखे तो विहिप के लोगों का पहला क्लेम था कि ये राम मंदिर के अवशेष हैं. हालांकि ASI ने अपनी रिपोर्ट में मंदिर-मस्जिद का ज़िक्र नहीं किया था, सिर्फ जो चीज़ें मिली थीं, उनका ही उल्लेख किया था.
लेकिन विहिप ने खम्भों पर अपना दावा क्यों ठोंका? क्योंकि 1975 में एक अलग उद्देश्य से की गयी खुदाई में तब ASI के डायरेक्टर जनरल बीबी लाल ने दावा किया था, वो भी RSS की मैगजीन "मंथन" में, कि खुदाई में खम्भे मिले हैं. संघ की पत्रिका में छपे लेख से विहिप के दावे को बल मिला. आगे चलकर मस्जिद गिरी. लेकिन मस्जिद गिरने के एक साल बाद यानी 1993 में पुरातत्त्ववेत्ता डी मंडल ने एक पेपर लिखकर ये दावा किया कि सभी खम्भे अलग-अलग कालों के हैं. सभी किसी एक समय में नहीं बनाए गए हैं; सभी एक साथ नहीं अवस्थित थे और सभी खम्भे नहीं थे, बल्कि कुछ दीवारों के अवशेष भी थे.
ASI Ayodhya Pillar Base

इस वजह से खम्भों पर अब भी स्थिति बहुत साफ़ नहीं हो सकी है. लेकिन खम्भों के मिलने से एक बात मान ली गयी गयी है कि
# दो क़ब्रें मिलीं. खुदाई के शुरूआती दिनों में ही. इन क़ब्रों को देखकर ये साफ़ नहीं किया जा सकता था कि क़ब्रें हिन्दुओं की थी, या मुस्लिमों की. लेकिन मुस्लिम पक्ष ने ये कहा कि क़ब्र इस बात की गवाही देते हैं कि पहले भी इस इलाके में मुल्सिम आबादी रहती थी, वहीं हिन्दू पक्ष ने भी अपना दावा ठोंका. कहा कि अयोध्या में पहले अंगीरा, मारकंडे, नारद, रामानंद, शांडिल्य जैसे कई संतों को मृत्यु के बाद दफनाया गया था. हिन्दू पक्ष ने कहा कि हो सकता है कि ये उनकी क़ब्रें हों. इसके अलावा सतह से महज़ 8 इंच नीचे ASI को तीन कंकाल भी मिले. इन कंकालों पर दोनों ही पक्षों ने कोई स्पष्ट राय नहीं दी, लेकिन कई लोगों का ये कहना रहा कि 1992 के विध्वंस में मलबा गिर जाने की वजह से इन लोगों की मौत हो गयी थी.
# खुदाई के दौरान राम चबूतरे के नीचे पलस्तर किया हुआ चबूतरा मिला था. पत्थर का बना था. 21 गुना 7 फीट. इससे 3.5 फीट की ऊंचाई पर 4.75 गुना 4.75 फीट की ऊंचाई पर दूसरा चबूतरा मिला. इस पर सीढ़ियां थीं, जो नीचे की ओर जाती थीं. इसे भी हिन्दू पक्षकारों - खासकर विश्व हिन्दू परिषद् - ने अपने दावे को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया. लेकिन इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने 2003 में ही हिन्दुस्तान में एक लेख लिखा और कहा कि अगर इस चबूतरे पर पलस्तर था, तो ये चबूतरा भारत में मुग़लकाल के पहले का नहीं हो सकता है. क्योंकि जब मुग़ल भारत में आए, पलस्तर की टेक्नीक साथ लेकर आए थे.
पलस्तर किया गया चबूतरा (बीबी लाल की रिपोर्ट)
पलस्तर किया गया चबूतरा (बीबी लाल की रिपोर्ट)

# कई छोटी-छोटी चीज़ें मिलीं. कई छोटे-बड़े पत्थर मिले. इन पर कुछ न कुछ अंकित था. विश्व हिन्दू परिषद् ने कहा कि ये हिन्दू स्थापना का एक और प्रमाण है. इसके अलावा कुछ बर्तन, अकबर के काल के कुछ सिक्के, ताम्बे की मुहरें जिस पर पेड़ और मोर बने हुए थे, नक्काशी किये हुए पत्थरों के टुकड़े, टेराकोटा के तराशे पत्थर जो मानव और पशु आकृतियों की तरह लगते थे, और भी बहुत सारी चीज़ें मिलीं.
इन चीज़ों के आधार पर एक नया संघर्ष शुरू हुआ. रीसर्च करने वालों समेत मुस्लिम पक्षकारों का कहना था कि ध्वस्त बाबरी मस्जिद के नीचे एक बड़ी रिहाईश हुआ करती थी. ये भी दावा था कि इस रिहाईश में बड़ी संख्या में मुस्लिम रहवासी थे. वहीं हिन्दू पक्ष और समर्थकों ने हरेक खोज पर ये तर्क दिया कि ये राम मंदिर के अवशेष हैं. जिस समय ASI खनन कर रही थी, उस समय केंद्र में भाजपा की सरकार थी. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री और बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुख्य आरोपी मुरली मनोहर जोशी मानव संसाधन विकास मंत्री थे. ASI तो संस्कृति मंत्रालय के अधीन आता है, लेकिन उस समय मुरली मनोहर जोशी पर ये आरोप लगाए गए कि वे इतिहास का पुनर्लेखन कर रहे हैं. ASI की टीम पर ये आरोप लगाए गए कि टीम मुरली मनोहर जोशी के दबाव में काम कर रही है, जिससे मंदिर की पुष्टि का मार्ग पूरा हो सके.

लेकिन ASI ने रिपोर्ट के बड़े हिस्से में इस बात का ज़िक्र नहीं किया था कि खुदाई में मिली चीज़ें मंदिर की थीं या नहीं. केवल मिली चीज़ों का ब्यौरा शामिल था. फिर भी ASI की रिपोर्ट पर सवाल क्यों उठाए गए थे? 2003 में ही मुस्लिम पक्ष सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड ने ASI की रिपोर्ट के बारे में कहा कि रिपोर्ट अस्पष्ट है और कई पॉइंट्स पर खुद का ही विरोध करती है.
ASI की ही रिपोर्ट के आधार को बनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2010 में अपना निर्णय सुनाया. पूरे भूभाग को तीन पक्षों - रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़े और सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड - के बीच बराबर-बराबर बांट दिया था. इसके बाद दो पुरातत्त्व वैज्ञानिकों, सुप्रिया वर्मा और जया मेनन, ने पत्रिका Economic and Political Weekly में एक लेख लिखा. लेख का शीर्षक : Was There a Temple under the Babri Masjid? Reading the Archaeological 'Evidence'
सुप्रिया वर्मा और जाया मेनन का लेख.
सुप्रिया वर्मा और जया मेनन का लेख.

इस लेख में कई साक्ष्यों के ज़रिये ये बात उठाई गयी कि ASI ने अपनी खुदाई में सही तरीके का पालन नहीं किया. कहा कि ASI की खुदाई को देखकर लग रहा था कि वैज्ञानिकों के दिमाग में पहले से ही कुछ चल रहा था. समाचार वेबसाइट Huffington post से बातचीत में सुप्रिया वर्मा ने कहा कि जिन चीज़ों को ASI ने खम्भों के रूप में चिन्हित किया है, वे दरअसल ईंटें थीं, जिनके बीच कीचड़ भर गया था.
खुदाई में एक दीवार भी मिली थी, जो पश्चिम दिशा की ओर मौजूद थी. सुप्रिया वर्मा ने कहा कि ये मस्जिदों में मिलने वाली दीवार थी, जिसके सामने अक्सर नमाज़ अदा की जाती है. साथ ही वहां से बरामद अन्य चीज़ों के बारे में सुप्रिया वर्मा ने कहा कि वे चीज़ें खुदाई में नहीं मिली थीं, बल्कि मस्जिद में मौजूद थीं, जो मस्जिद के गिरने के बाद ज़मींदोज़ हो गयी थीं.
ये बात तो है कि ASI ने अपनी रिपोर्ट में मंदिर होने का उल्लेख नहीं किया, लेकिन बकौल सुप्रिया वर्मा, रिपोर्ट ने निष्कर्ष में ASI ने कहा कि मस्जिद के नीचे मिले हिस्से मंदिर के थे. उन्होंने Huffington Post से बातचीत में कहा,
"रिपोर्ट के निष्कर्ष में उन्होंने किसी नाम का उल्लेख नहीं किया है. लेकिन आखिरी पैराग्राफ में उन्होंने लिखा है कि पश्चिमी दिशा की दीवार, खम्भों के अवशेषों और खुदाई में मिली चीज़ों से ये पता चलता है कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक मंदिर मौजूद था. सच में, तीन लाइनों में ये बात लिखी हुई है."
लेकिन ये ASI द्वारा पहली खुदाई नहीं थी
इसके पहले चार मौकों पर ASI ने अयोध्या के इस स्थान की खुदाई की थी. ASI के पहले निदेशक एलेग्जेंडर कनिंघम ने 1862-63 में अयोध्या का सबसे पहला सर्वे किया. इसके बाद अलोइस फ्यूरर ने 1889-91 में अगला सर्वे किया. प्रोफ़ेसर एके नारायण ने 1969-70 में तीसरी मर्तबा खुदाई की. इसके बाद 1975 में बीबी लाल ने चौथी बार और आखिरी बार 2003 में.
A Disputed Mosque - A Historical Inquiry

ASI की कई रिपोर्ट में इस बात का ज़िक्र आया है कि सिर्फ एक बार में मस्जिद का निर्माण नहीं किया जा सकता था. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर संजय श्रीवास्तव ने इस मसले पर किताब A Disputed Mosque : A Historical Inquiry लिखी है. फ्रंटलाइन में अपने लेख में संजय श्रीवास्तव ने लिखा कि मस्जिद के आधार से लगकर पानी बह रहा था. इस वजह से तीन मंजिल में मस्जिद का निर्माण किया गया. पहली मंजिल बनाई गयी, जो संभवतः कई बार गिर गयी. पहली मंज़िल स्थापित हो जाने के बाद दो मंजिलों का निर्माण किया गया. ऐसे देखें तो राम मंदिर को तोड़कर सीधे-सीधे बाबरी मस्जिद का निर्माण कर देना बहुत मुश्किल था. क्योंकि किताबों और लेखों में बताया गया है कि नींव ही कमज़ोर थी. इतनी आसानी से कुछ बनाया नहीं जा सकता था.
इस मामले का ख़ात्मा, ऐसा कहा जा सकता है, कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से होगा. कल यानी 16 अक्टूबर को सुनवाई पूरी और एक महीने बाद, नवंबर के बीच में, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का कार्यकाल पूरा होने के पहले ही इस मामले में फैसला आ जाएगा.


लल्लनटॉप वीडियो : मुस्लिम पार्टी के वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से ज़रूरी सवाल किये हैं

Advertisement