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पेशाब में ये बदलाव दिखें तो जांच करा लें, प्रोस्टेट में कैंसर भी हो सकता है

अमूमन जब भी शरीर के किसी हिस्से में कोई गांठ बनती है, तो शक की सुई कैंसर पर घूम जाती है. लेकिन क्या प्रोस्टेट में बनने वाली हर गांठ से कैंसर हो सकता है? चलिए डॉक्टर से समझते हैं.

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प्रोस्टेट ग्लैंड पेशाब की थैली के ठीक नीचे होती है (फोटो: Freepik)
8 अगस्त 2025 (Published: 03:42 PM IST)
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आदमियों में अखरोट के आकार का एक ग्लैंड यानी ग्रंथि होती है. नाम- प्रोस्टेट ग्लैंड. इसका काम- सीमन यानी वीर्य बनाना. ये ग्रंथि पेशाब की थैली के ठीक नीचे होती है. कभी-कभी इस प्रोस्टेट ग्लैंड में गांठ बन जाती है. इसे मेडिकल भाषा में ‘प्रोस्टेट नोड्यूल’ (Prostate Nodule) कहते हैं. प्रोस्टेट में गांठ का पता आमतौर पर खुद से नहीं चलता. इसके लक्षण अक्सर पेशाब से जुड़े होते हैं. ये गांठ कई वजहों से बन सकती है. जैसे प्रोस्टेट में पथरी. प्रोस्टेटाइटिस, जिसमें प्रोस्टेट ग्रंथि में सूजन आ जाती है. कैंसर की वजह से भी प्रोस्टेट में गांठ हो सकती है.

अमूमन जब भी शरीर के किसी हिस्से में कोई गांठ बनती है, तो शक की सुई कैंसर पर घूम जाती है. लेकिन क्या प्रोस्टेट में बनने वाली हर गांठ से कैंसर हो सकता है? चलिए डॉक्टर से समझते हैं. 

प्रोस्टेट में गांठ का पता कैसे चलता है? 

ये हमें बताया डॉक्टर अरुण कुमार गोयल ने. 

dr arun kumar goyal
डॉ. अरुण कुमार गोयल, चेयरमैन, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, एंड्रोमेडा कैंसर हॉस्पिटल

प्रोस्टेट में गांठ का पता लोगों को खुद से नहीं लगता. उन्हें पेशाब से जुड़ी तकलीफें होना शुरू हो जाती हैं. जैसे पेशाब पास करने में दिक्कत होने लगती है. रात में बार-बार पेशाब के लिए उठना पड़ता है. दिन में कई बार पेशाब के लिए जाना पड़ता है. पेशाब करते हुए जलन और पेशाब में खून भी आ सकता है. इन लक्षणों को लोअर यूरिनरी ट्रैक्ट सिम्पटम्स कहा जाता है. जब डॉक्टर इन लक्षणों से जुड़ी जांचें करते हैं. खासकर प्रोस्टेट का रेक्टल एग्ज़ामिनेशन (प्रोस्टेट की जांच) या अल्ट्रासाउंड. तब पता चलता है कि प्रोस्टेट ग्लैंड में कोई गांठ है.

क्या प्रोस्टेट में गांठ यानी कैंसर?

- प्रोस्टेट में गांठ का मतलब कैंसर नहीं होता

- प्रोस्टेट में होने वाली ज़्यादातर गांठें कैंसर की नहीं होतीं

- लेकिन कभी-कभी गांठ कैंसर वाली हो भी सकती है

- इसलिए प्रोस्टेट में गांठ होने पर डॉक्टर आगे कुछ और जांचें करते हैं

पक्के तौर पर कैसे पता चलेगा कि प्रोस्टेट में गांठ कैंसर वाली है या नहीं?

प्रोस्टेट की गांठ कैंसर वाली है या नहीं, ये जांचने के लिए कुछ ज़रूरी टेस्ट किए जाते हैं. सबसे पहले ब्लड टेस्ट PSA होता है यानी प्रोस्टेट-स्पेसिफिक एंटीजन टेस्ट. टोटल PSA और फ्री PSA से अंदाज़ा लगता है कि कैंसर की संभावना कम है या ज़्यादा. इसके बाद प्रोस्टेट का मल्टी-पैरामीट्रिक MRI किया जाता है. इस MRI की रिपोर्ट में PI-RADS कैटेगरी बताई जाती है. अगर PI-RADS कैटेगरी 4 या 5 आती है, तो कैंसर की संभावना ज़्यादा मानी जाती है. 

prostate nodule
प्रोस्टेट में गांठ कई वजहों से बन सकती है (फोटो: Freepik)

जब PSA और MRI के आधार पर प्रोस्टेट में कैंसर का शक बढ़ जाता है, तब बायोप्सी की जाती है. प्रोस्टेट की बायोप्सी आमतौर पर अल्ट्रासाउंड की मदद से की जाती है. इसमें प्रोस्टेट के दोनों हिस्सों से मिलाकर करीब 12 सैंपल लिए जाते हैं. इसमें गांठ से भी सैंपल लिए जाते हैं. इन सैंपल्स की जांच पैथोलॉजिस्ट करते हैं. फिर रिपोर्ट में बताया जाता है कि 12 में से कितने सैंपल में कैंसर है या नहीं. अगर कैंसर है तो कितना हिस्सा कैंसर से प्रभावित है और उसका ग्रेड क्या है. इन्हीं के आधार पर कंफर्म किया जाता है कि प्रोस्टेट कैंसर है या नहीं. अगर कैंसर है तो देखा जाता है कि वो तेज़ बढ़ने वाला है या धीरे. फिर डॉक्टरों की टीम मिलकर तय करती है कि इलाज क्या और कैसे किया जाए.

बचाव और इलाज 

जो कैंसर बहुत शुरुआती स्टेज और लो-ग्रेड के होते हैं. उसमें आमतौर पर कोई एक्टिव इलाज न करके, सिर्फ फॉलोअप किया जाता है. इस प्रक्रिया को एक्टिव सर्विलांस कहते हैं. अगर ट्यूमर के फैलने या बढ़ने का चांस होता है, तब सर्जरी या रेडियोथेरेपी की जाती है. इसमें रेडिकल प्रोस्टेटेक्टॉमी या रेडिकल रेडियोथेरेपी शामिल हैं. ये प्रोस्टेटेक्टॉमी रोबोटिक, लैप्रोस्कोपिक, या ओपन तकनीक से की जा सकती हैं. रेडियोथेरेपी आजकल इमेज-गाइडेड मॉडर्न टेक्नोलॉजी से दी जाती है. इनसे प्रोस्टेट कैंसर के शुरुआती स्टेज में ठीक होने का ज़्यादा चांस रहता है.

अगर बीमारी थोड़ी बढ़ी हुई स्टेज में है, तो पहले हॉर्मोनल ट्रीटमेंट दिया जाता है. फिर उसके बाद रेडियोथेरेपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. अगर बीमारी स्टेज 4 में पहुंच चुकी है, तो इलाज का तरीका बदल जाता है. स्टेज 4 में कीमोथेरेपी, हॉर्मोनल थेरेपी और कभी-कभी रेडियोथेरेपी दी जाती है. ये लोकल ट्यूमर या हड्डियों में फैली बीमारी (बोनी डिज़ीज़) को कंट्रोल करने में मदद करती है. पर स्टेज 4 में भी मरीज़ को लंबी और बेहतर ज़िंदगी मिल सकती है.

प्रोस्टेट कैंसर को पूरी तरह रोकने का कोई पक्का तरीका नहीं है. इसलिए बीमारी का जल्दी पता लगाना सबसे ज़रूरी होता है. 50 साल से ज़्यादा उम्र के पुरुषों को कुछ समय पर PSA टेस्ट कराना चाहिए. अगर 50 की उम्र के बाद पेशाब से जुड़ी कोई भी दिक्कत हो, तो उसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए. समय रहते जांच करानी चाहिए, ताकि प्रोस्टेट कैंसर का जल्दी पता लगाकर बेहतर इलाज किया जा सके.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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