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'मकड़ी' कैमरा, बोलती गेंद, अमिताभ बच्चन के 'बग्गी बाबा', IPL का मजा बढ़ाती हैं ये तकनीकें

आपने कभी सोचा IPL में 360 डिग्री का मज़ा कैसे आता है? BuggyQam को खिलाड़ियों के पीछू-पीछू भागना पड़ता है. Spidercam हवा से मकड़ी की तरह झूलता है. गेंद तक ने 'स्मार्ट' होकर बात करनी शुरू कर दी है.

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आईपीएल में कई कमाल तकनीक इस्तेमाल होती हैं (तस्वीर साभार: इंडिया टुडे/ Quidich)

होली का त्योहार भले खत्म होने को है मगर देश में एक और त्योहार का रंग धीरे-धीरे चढ़ने लगा है - IPL 2024, जो 22 मार्च 2024 से स्टार्ट हो चुका है. IPL दुनिया-जहान में क्रिकेट का सबसे बड़ा टूर्नामेंट है. बड़ा टूर्नामेंट मतलब बड़ी पहुंच और करोड़ों दर्शक. ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि इसमें तकनीक भी खूब इस्तेमाल होती होगी. कैमरे से लेकर साउंड तक और ग्राउंड से लेकर ड्रेसिंग रूम तक कई सारे जबरदस्त उपकरण इस्तेमाल होते होंगे.

आज बात ऐसी ही कुछ कमाल तकनीकों की जो IPL का मजा 360 डिग्री बढ़ा देती हैं. बात BuggyQam की जो खिलाड़ियों के पीछू-पीछू भागता है. बात ‘बात’ करने वाली स्मार्ट बॉल की, और ‘नो बॉल’ वाले सेंसर की. सारी तकनीकें जानकर एक-बारगी आपका मन भी गेंद-बल्ला थामने का हो जाएगा.

360 डिग्री कैमरा

बॉल गोल और क्रिकेट स्टेडियम भी गोल-गोल, तो भला कैमरा कैसे गोल नहीं होगा. इसलिए IPL में इस्तेमाल होता है 360 डिग्री कैमरा. कोई कैमरा कितना भी झन्नाट हो, पूरे 360 डिग्री दिखाना उसके बस की बात नहीं. इसीलिए ढेर सारे कैमरों की तस्वीर-वीडियो को रीयल टाइम में जोड़कर एक 360 डिग्री पिक्चर या वीडियो बनाया जाता है. 

एक IPL मैच के दौरान स्टेडियम में औसतन 100 से भी ज्यादा हाई रेजोल्यूशन कैमरे लगाए जाते हैं. इनमें हवा में लटका Spidercam भी शामिल है. ये सब अलग-अलग एंगल से मैच को रिकॉर्ड करते हैं और पलक झपकते ही इनकी फीड को जोड़कर आपके सामने ऐसा वीडियो पेश किया जाता है, जिसमें बैटर ने शॉट मारा तो शॉट के साथ उसके पैरों का मूवमेंट भी देखा जा सकता है. ऊपर-नीचे, दायें-बायें हर तरफ से गेम देखने पर ऐसी फीलिंग आती है कि मानो अपन पिच के पास ही बैठे हों. IPL में साल 2021 से ही इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है.

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BuggyQam

वैसे तो ये एक रिमोट से चलने वाला कैमरा है जो पहियों के ऊपर फिट होता है, मगर ये दिखता बग्गी जैसा है. इसलिए इसका नाम बग्गी कैम पड़ गया. इस कैमरे का काम खिलाड़ियों के आगे-पीछू जाकर हर गतिविधि को रिकॉर्ड करना होता है. चलते मैच में कैमरामैन भले पिच के पास जाकर खिलाड़ियों की गप-शप नहीं सुन सकता, लेकिन बग्गी बाबा के साथ ऐसा कुछ नहीं. जब गेम चल रहा होता है तो ये महाशय बाउंड्री के पार दर्शकों से लेकर बॉल बॉय तक को कैमरे में कैद करते नजर आ जाते हैं. एचडी वीडियो रिकॉर्ड करने वाले ये कैमरे 25 किलो के अल्ले-पल्ले होते हैं. Quidich नाम की कंपनी IPL में इनका कामकाज देखती है. सोनी टीवी के फेमस शो कौन बनेगा करोड़पति में बच्चन साब भी इनसे अक्सर बतियाते नजर आते हैं.

तस्वीर साभार: Quidich
Smart बॉल

IPL के मुकाबलों में इस्तेमाल होने वाली KOOKABURRA बॉल महज चमड़े से बने हुए दो खोके नहीं है. ये बॉल समय के साथ बहुत स्मार्ट हो गई है. इसके अंदर कई तरह की चिप और सेंसर लगे होते हैं जो खेल के दौरान बहुत बारीक डिटेल्स को कैप्चर करते हैं. मसलन बॉल की तेजी और स्पिन होने का एंगल. प्री-बाउंस से लेकर पोस्ट-बाउंस का डेटा भी ये बॉल कैप्चर करती है. KOOKABURRA ने अपनी गेंद में तकनीक के इस्तेमाल के लिए SportCor से हाथ मिलाया है. कंपनी के मुताबिक अब बॉल भी बात करेगी.

For the first time, the ball will talk.

दिल खोलकर दिखाती स्मार्ट बॉल- KOOKABURRA
नो बॉल - अब कोई चकल्लस नहीं

क्रिकेट में ‘नो बॉल’ का कॉल हमेशा से सरदर्द रहा है. कभी नो बॉल दिए जाने पर और कभी नहीं दिए जाने पर विवाद होता है. साल 2001 का इंग्लैंड-पाकिस्तान टेस्ट मैच कौन भूल सकता है जिसमें पाकिस्तान के ऑफ स्पिनर Saqlain Mushtaq की गेंद पर Dominic Cork आउट हो गए थे. ये एक फ्रन्ट फुट नो बॉल थी जिसे अंपायर David Shepherd देख नहीं पाए थे. 

खेल में ऐसे कई मौके आए जब नो बॉल ने गेम ही बदल दिया. परेशान आईसीसी ने इसका माकूल इलाज निकाला और साल 2020 के Women's T20 World Cup में फ्रन्ट-फुट नो बॉल के लिए सेंसर का इस्तेमाल किया. पैर क्रीज से बाहर होने पर सीधे तीसरे अंपायर को खबर लगती थी. जो फील्ड अंपायर चूक भी गए तो तीसरा अंपायर कानों में गुनगुना देता था. आज यही तकनीक IPL में इस्तेमाल होती है. इसका सबसे बड़ा फायदा DRS के टाइम भी मिलता है. नो बॉल चेक करने का झंझट ही नहीं होता. सीधे कैमरे और साउंड पर फोकस होता है.

और भी तकनीकें हैं. जैसे,

Led Stump bails/smart bails, साल 2012 में ऑस्ट्रेलिया के एक मैकेनिकल इंजीनियर की तकनीक जो बॉल के विकेट पर हल्के से भी टच होने पर लाइट जला देती है.

HawkEye, साल 2001 में ब्रिटेन के डॉक्टर पॉल हॉकिंस की डेवलप की हुई तकनीक जिससे अलग-अलग कैमरों से पिच पर बॉल की गतिविधियों को पकड़ा जाता है.

स्क्रीन के पीछे यही वे तकनीकें हैं जो खेल देखने और खेलने का मजा बढ़ाती हैं.

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