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‘गायब हो जाती हैं वेबसाइट्स!’ साइबर ठगों का नया जुगाड़ - डिस्पोज़ेबल डोमेन्स

अभी तलक तो फर्जी वेबसाइट बनाकर या असली वेबसाइट को कॉपी करके फर्जीवाड़े होते थे. मगर अब डिस्पोज़ेबल डोमेन्स (disposable domain) के सहारे कांड किया जा रहा है. बिना देरी किये इसे डिस्पोज करते हैं.

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साइबर ठगी का नया तरीका

साइबर ठग इस बार वाकई कुछ नया लेकर आए हैं. ठगी के नए-नए तरीके निकालना तो इनका काम है ही मगर इस बार ठगी करके गायब होने का तरीका भी निकाल लाए हैं. एकदम डिस्पोज़ेबल आइटम के जैसे. ये वाला ठगी का तरीका इतना खतरनाक है कि सरकारी साइबर एजेंसी ने भी इसको लेकर आगाह किया है. तरीके का नाम है डिस्पोज़ेबल डोमेन्स (disposable domain).

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मतलब फर्जी वेबसाइट का अपग्रेड वर्जन. अभी तलक तो फर्जी वेबसाइट बनाकर या असली वेबसाइट को कॉपी करके फर्जीवाड़े होते थे मगर अब डिस्पोज़ेबल डोमेन्स (disposable domain)के सहारे कांड किया जा रहा है. बिना देरी किये इसे डिस्पोज करते हैं.

क्या है डिस्पोज़ेबल डोमेन्स

डिस्पोज़ेबल डोमेन्स मतलब ऐसी वेबसाइट्स जो कुछ ही घंटों के लिए बनाई जाती हैं और फिर गायब हो जाती हैं. आपको लगेगा ऐसा भी होता है क्या? होता है जनाब तभी तो CyberDost I4C इसको लेकर आगाह कर रहा है. ये क्या होती है उसके लिए जरा डोमेन को समझ लीजिए.

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डोमेन मतलब डिजिटल दुनिया में पता है एक डोमेन. वेबसाइट से लेकर ईमेल के साथ यही नत्थी होता है. जैसे suryakant.mishra@lallantop.com में lallantop.com डोमेन हुआ. google.com या meta.com भी डोमेन हुए. घर का पता जरूर है मगर इसके लिए किराया देना होता है. मतलब ये डोमेन जिस सर्वर पर चलता है वो इसकी एक फीस लेते हैं. माने हर वेबसाइट या ईमेल एड्रैस किराया देकर यहां रहता है.

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ये डोमेन आपको 1 साल के लिए कम से कम लेना पड़ता है. पता है आप कहोगे तो फिर ये डिस्पोज़ेबल डोमेन्स कहां से आ गया. बताते हैं-बताते हैं. मगर पहले ये जान लीजिए कि ऐसे डोमेन करते क्या हैं. ऐसे डोमेन या वेबसाइट्स पासवर्ड चुराने से लेकर मालवेयर इंस्टाल करने का काम करते हैं. इसके लिए फर्जी शॉपिंग साइट्स और ऑफर्स का सहारा लिया जाता है. बताने की जरूरत नहीं कि इसमें लिस्ट हुए प्रोडक्ट के रेट कैसे होते होंगे.

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अब ये डिस्पोज़ेबल डोमेन्स बनते कैसे हैं. दरअसल इनको पहली बार एक्टिव करने के बाद फिर से तभी एक्टिव किया जाता है जब इनके खत्म होने का टाइम होता है. मसलन एक साल से कुछ दिन या कुछ घंटे पहले. कई बार तो इनके बंद होने का बाद भी इनका इस्तेमाल होता है. दरअसल हर डोमेन को साल खत्म होने के बाद भी 40 दिन का ग्रेस पीरियड मिलता है. इसके बाद ही वो पूरी तरह से बंद होता है.

इसी का फायदा ठग उठाते हैं. जो फंस गया वो धंस गया. ये वेबसाइट कांड करके डिजिटल डस्ट बिन में गायब हो जाती है. इसे ढूंढना तकरीबन नामुमकिन है. मगर आप इस ठगी से बच सकते हैं.

# डोमेन पर नजर डालिए. जैसे कुछ अजीब है मसलन .clik, .buzz. .like

# स्पेलिंग की गलती ऐसे डोमेन में बड़ी कॉमन है जैसे google की जगह gogla

#  इसमें लिस्ट प्रोडक्ट का बेहद सस्ता होना भी एक बड़ा संकेत है.

सावधानी रखें. यही बचाव है. 

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