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किरायेदार स्कैम का काटा पानी भी नहीं मांग पाता, आपको पता है ये होता क्या है?

आपके दरवाजे पर दस्तक होती है. पुलिस से लेकर बैंक और दूसरी एजेंसियां आपसे आपके किरायेदार के बारे में पूछती हैं. तब जाकर आपको पता चलता है कि आपके साथ तो बहुत बड़ा स्कैम हो गया है. मार्केट में एक नया स्कैम आया है, जिसका नाम है किरायेदार स्कैम.

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किरायेदार वाला स्कैम (सांकेतिक फोटो)

आप एक मकान मालिक हैं और अच्छा सा किरायेदार तलाश रहे. ऐसा किरायेदार जो मन का किराया दे, तीन महीने का सिक्योरिटी डिपॉजिट भी पे करे और घर भी साफ-सुथरा रखे. एकदम ऐसे ही होता है. आप जितना किराया मांगते हैं उतने पर हामी भर देता है. तीन की जगह छह महीने का डिपॉजिट भी देता है. बिना हो-हल्ले के आपके घर में रहता है. लेकिन एक दिन अचानक से वो घर खाली कर देता है और सिक्योरिटी डिपॉजिट लेने भी नहीं आता. आप सोचते हैं चलो कोई नई. सानु की. अपना तो फायदा ही हुआ. मगर कुछ महीने बाद

आपके दरवाजे पर दस्तक होती है. पुलिस से लेकर बैंक और दूसरी एजेंसियां आपसे, आपके उस किरायेदार के बारे में पूछती हैं. तब जाकर आपको पता चलता है कि आपके साथ तो बहुत बड़ा स्कैम  (GST and loan scam) हो गया है. नया स्कैम जिसका नाम है किरायेदार स्कैम.

बड़े फ्रॉड के लिए किराये के घर का इस्तेमाल

ऊपर लिखी बातों से शायद आपको स्कैम का तरीका समझ नहीं आया होगा. असल में ऐसा ही है क्योंकि इस तरीके में कोई फर्जीवाड़ा मकान मालिक के साथ नहीं बल्कि उसके घर के साथ होता है. मन का किराया दिया जाता है और तगड़ा सिक्योरिटी डिपॉजिट भी. रेंट एग्रीमेंट भी बनवाया जाता है और पहचान से जुड़े सारे दस्तावेज भी दिए जाते हैं. सब होता है बस नहीं होता तो पुलिस वेरीफिकेशन. जब भी मकान मालिक इसकी बात करता है तो किसी ना किसी बहाने से उसको टाला जाता है. मना नहीं सिर्फ टाला जाता है. आज करवा लेंगे या कल. चूंकि मन का किराया और मोटा डिपॉजिट मिलता है तो मकान मालिक भी आलस खा जाते हैं.

किरायेदार घोटाला होता क्या है? (सांकेतिक तस्वीर)

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इतने बीच में होता है खेला. रेंट एग्रीमेंट के दम पर जीएसटी फर्म ओपन की जाती है. बड़े लोन लिए जाते हैं या फिर साइबर फ्रॉड और दूसरे क्राइम के लिए उस पते का इस्तेमाल होता है. वाईफाई कनेक्शन से लेकर फोन का बिल भी उसी पते का बना दिया जाता है.

आपको तब पता चलता है जब आपके घर पुलिस से लेकर दुनिया भर की एजेंसिया आ धमकती हैं. अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि जो दस्तावेज आपके पास होते हैं वो फर्जी होते हैं. रेंट एग्रीमेंट जिसके नाम पर उसका कोई पता ठिकाना नहीं होता. क्योंकि आपने पुलिस वेरीफिकेशन नहीं करवाया तो आप भी संदेह के घेरे में होते हैं. लीगल पचड़े अलग. किरायेदारों की जानकारी के लिए आपका फोन घनघनाता रहता है. आप जब-तब पुलिस स्टेशन के चक्कर लगाते रहते हैं. हाल ही में 15000 करोड़ के ऐसे ही एक स्कैम में नोएडा पुलिस ने कारोबारी को गिरफ़्तार किया है.  

हो सकता है कि आप लीगल पचड़े से बाहर निकल भी जाएं मगर उस मानसिक प्रताड़ना का क्या जो आप उसके बाद भी झेलते हैं. बच कर रहिए क्योंकि ऐसा आजकल खूब हो रहा. किरायेदार रखने से पहले हर कानूनी प्रॉसेस का पालन कीजिए तब तक ताले की चाबी अपने पास रखिए.

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