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काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अब अफगानिस्तान क्रिकेट का क्या होगा?

क्रिकेट पर क्या सोचता है तालिबान?

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Taliban- AP
अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा जमा लिया है. तालिबान अब अपने हिसाब से नियम कानून बनाएगा. और जो नियम तोड़ेगा, उसे गोलियों से भून दिया जाएगा. जैसा अब तक करते आए हैं. लोग जान बचाने और बेहतर भविष्य की खोज में पलायन कर रहे हैं. काबुल एयरपोर्ट के साथ-साथ पूरे देश में हर जगह अफरा-तफरी वाला माहौल है. राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर जा चुके हैं. आम जनता हर हाल में देश छोड़ने की कोशिश कर रही है. जाने पर मजबूर है. देश भर में अराजकता का माहौल है. खून-खराबा, बच्चे-बूढ़े और औरतों की हत्या तो आम बात है. हजारों-लाखों निर्दोष लोग मारे गए हैं. अफगानी लोगों का भविष्य कैसा होगा? ये तालिबान तय करेगा. और शायद अफगानिस्तान क्रिकेट का भी. जी हां, बड़ा सवाल ये है कि अफगानिस्तान क्रिकेट का क्या होगा? आगे अक्टूबर के महीने में T20 विश्वकप खेला जाना है. बीते डेढ़ दशक में अफगानी टीम ने सबसे ज्यादा इम्प्रूव किया है. श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी टीमों को हरा चुकी ये टीम भारत जैसी मजबूत टीम को भी टक्कर देने का माद्दा रखती है. T20 विश्वकप में भारत, पाकिस्तान और न्यूजीलैंड के साथ अफगानिस्तान को ग्रुप बी में जगह मिली है. राशिद खान टीम की अगुवाई करेंगे. # तालिबान और क्रिकेट तालिबान का रवैया क्रिकेट के प्रति कैसा रहता है ये तो देखने वाली बात होगी. लेकिन अभी तक की बात करें तो तालिबान के लड़ाकों को क्रिकेट खूब पसंद है. वे कई जगह राशिद खान को अपना पसंदीदा क्रिकेटर भी बताते देखे गए हैं. और क्रिकेट में अफगानिस्तान की जीत का जश्न भी मनाते हैं. कहने वाले यह भी कहते हैं कि तालिबान खेलों में सिर्फ क्रिकेट को ही पसंद करता है. और वो इसलिए, क्योंकि इस खेल में खिलाड़ी पूरे कपड़े पहनते हैं. तालिबान को फुटबॉल से आपत्ति है. क्योंकि इसमें प्लेयर्स छोटे कपड़े पहनते हैं और ये बात तालिबान के गले नहीं उतरती. मशहूर जर्नलिस्ट और लेखक तिमेरी मुरारी ने 'द तालिबान क्रिकेट क्लब' नाम की एक किताब लिखी है. जिसमें उन्होंने तालिबान और क्रिकेट का जिक्र किया है. साल 2013 में मिड-डे की पत्रकार फियोना फर्नांडेज के साथ बातचीत के दौरान तिमेरी मुरारी ने तालिबान को लेकर बड़ा खुलासा किया था. उन्होंने बातचीत के दौरान कहा,
'साल 2000 में जब मैंने पढ़ा कि तालिबान क्रिकेट को प्रमोट कर रहा है. तो यह मेरे लिए ये सपने जैसा था, कि कैसे निर्दोषों पर जुल्म करने वाला एक संगठन, जिसे क्रिकेट के बारे में कुछ पता नहीं है, वो अफगानिस्तान क्रिकेट को आगे लाना चाहता है. तालिबान ने इससे पहले गानों से लेकर मूवीज और हर तरह के खेलों पर बैन लगा दिया था. लेकिन क्रिकेट पर नहीं.'
# अफगान क्रिकेट का इतिहास अफगानिस्तान में क्रिकेट की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी. बाद में 'फादर ऑफ अफगान क्रिकेट' कहे जाने वाले ताज मलूक खान ने पेशावर के काचा गारी शरणार्थी कैंप के बाहर ही अफगान क्रिकेट क्लब बनाया. 90 के दशक तक आते-आते छोटे-छोटे झुंड में जब लोगों की अफगानिस्तान में वापसी हुई, तो वे क्रिकेट भी साथ लेकर गए. अभी भी अफगानिस्तान टीम में कई क्रिकेटर ऐसे मिल जाएंगे, जिन्होंने अपना बचपन पाकिस्तान के शरणार्थी कैंपों में बिताया. और तालिबानी कैंप में रहकर क्रिकेट खेलना भी सीखा. अफगानिस्तान के पूर्व कप्तान असगर अफगान, करीम सादिक ऐसे बड़े उदाहरण हैं. # राशिद के फैन करीम सादिक, अफगानिस्तान टीम के पूर्व ओपनर बल्लेबाज हैं. दो साल पहले पूर्वी अफगानिस्तान के तालिबान के कब्जे वाले इलाके में गए थे जहां तालिबानी लड़ाकों ने उन्हें घेर लिया था. क्रिकेट और पसंदीदा खिलाड़ियों के बारे में पूछने लगे. कंधे पर राइफल लटकाए तालिबानी लड़ाकों में क्रिकेट को लेकर गजब का जुनून था. एक वीडियो भी वायरल हुआ था. जिसमें तालिबान के एक लड़ाके को राशिद खान की तारीफ करते हुए देखा गया था. उन्होंने कहा था,
'मुझे सभी खिलाड़ी पसंद हैं. लेकिन राशिद खान सबसे ज्यादा. उनकी गेंदबाजी कमाल की है.'
रॉयटर्स में छपे एक लेख में भी इसका जिक्र किया गया था. मुल्ला बदरुद्दीन. तालिबान का एक कमांडर. बदरुद्दीन ने रॉयटर्स से बातचीत के दौरान क्रिकेट को लेकर अपनी राय रखी थी. उसने कहा था,
'जब अफगानिस्तान किसी टीम के साथ खेलती है. तो हमलोग रेडियो पर बड़े मजे से सुनते हैं. और सोशल मीडिया पर स्कोर भी चेक करते रहते हैं. फेसबुक पर भी लाइव अपडेट्स मिलते रहते हैं. मुझे क्रिकेट बेहद पसंद है.'
बहरहाल, अब जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा जमा ही लिया है. तो आने वाले दिनों में पता चल ही जाएगा कि क्रिकेट के प्रति उनका रवैया बदलता है या फिर इसी तरह सपोर्ट करते रहेंगे. और अफगानिस्तान  टीम की जीत पर जश्न मनाते रहेंगे. जैसा अब तक करते आए हैं.