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महान भारतीय क्रिकेटर कोच बना, खिलाड़ी को थप्पड़ मारा और नौकरी गंवा दी

संजय मांजरेकर का अपनी किताब में सुनाया किस्सा.

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फोटो - thelallantop
आगे आप जो बेहद मजेदार किस्से पढ़ेंगे, वो हमने पढ़े हैं संजय मांजरेकर की किताब में. ये संजय की ऑटाबायोग्राफी है. टाइटल है इम्परफेक्ट. इसे हार्पर कॉलिन्स ने छापा है. हमें लगता है कि सब क्रिकेटरों को उनके क्रिकेटर पिता का फायदा मिलता है. ये किताब पढ़ने से पहले मुझे संजय मांजरेकर के बारे में भी यही लगता था. आखिर वह भारत के शुरुआती टेस्ट स्टार विजय मांजरेकर के बेटे थे. विजय ने भारत के लिए 53 टेस्ट खेले थे. मगर सच्चाई ये है कि विजय ने अपने बेटे के खेल में कभी ज्यादा दिलचस्पी ही नहीं ली. खुद संजय भी पिता से दूर ही रहते थे. एक रोज पिता ने कहा, "आज तुम्हारे साथ मैं भी नेट्स पर चलूंगा." उस रोज संजय पूरी दोपहर घर के ऊपर की दुछत्ती में छिपे रहे. विजय का जब निधन हुआ तब संजय महज 18 साल के थे. उस वक्त तक उनका रणजी डेब्यू भी नहीं हुआ था. हालांकि विजय को भरोसा था कि बेटा एक दिन टीम इंडिया के लिए खेलेगा. वह कहते थे, इसकी टेक्नीक मुझसे भी ज्यादा अच्छी है. बकौल संजय, मैं अपने पिता से बहुत डरता था. संजय, उनकी दो बहनें और मां, सब डरते थे. क्रिकेट छोड़ने के बाद विजय मांजरेकर को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या करें. एक नौकरी थी, जिसमें उनका  दिल नहीं लगता था. तब क्रिकेटर्स को बहुत पैसे नहीं मिलते थे. आर्थिक सुरक्षा के लिए नौकरी जरूरी थी. इन सबके चलते विजय लगातार चिड़चिड़े होते गए. घर में कई बार हाथापाई भी की. दाद देनी होगी संजय मांजरेकर की. उन्होंने पूरी ईमानदारी से अपनी किताब में ये सब उघाड़ कर रख दिया. संजय लिखते हैं कि जब हम ड्राइव कर रहे होते थे, तब सबसे ज्यादा डरते थे. विजय ने अपना ड्राइविंग लाइसेंस लंदन में हासिल किया था. वह नियमों के बहुत पाबंद थे. जब भी कोई हाईबीम लाइट किए होता या गलत कट मारता, विजय गुस्सा जाते. ओवरटेक करते. और फिर कार से निकालते एक मुड़ा हुआ औजार. सरियानुमा. दोनों तरफ से मुड़ा. असल काम, एक कुंदा स्टेयरिंग व्हील पर फंसाओ और दूसरा, क्लच या गेयर पर और गाड़ी लॉक हो जाती थी. पर विजय इसे धमकाने के काम लाते. कई बार दोनों तरफ से झगड़ा और लात घूंसा शुरू हो जाता. संजय समेत पूरा परिवार डरा हुआ कार में बैठा रहता. sanjay manjrekar imperfect विजय मांजरेकर के क्रूर जोक्स परिवार से दूर क्रिकेट के बीच विजय मांजरेकर अपने क्रूर मगर असर जुमलों के लिए मशहूर थे. एक क्रिकेटर इसका खूब शिकार हुए. उनका नाम. चेतन चौहान. अमरोहा से कई बार सांसद रहे. एक बार चेतन चौहान कुछ सलाह लेने विजय मांजरेकर के पास पहुंचे. पूछा, सर मेरी बैटिंग में क्या खराबी है. विजय का जवाब था, खराबी तुम्हारी बैटिंग में नहीं, सेलेक्टर्स में है, जिन्होंने तुम्हें टीम में लिया. ऐसे ही एक बार विपक्षी टीम के बल्लेबाज ने उनसे मैच के दौरान पूछा, क्या मैं अपना बैट बदल सकता हूं. विजय बोले, हां हां जरूर बदलिए और बैट के साथ साथ अपना बैटिंग स्टाइल भी बदलिए. कोच ने प्लेयर को तमाचा जड़ दिया विजय मांजरेकर अपने इसी टैंपर के चलते कोच की नौकरी भी नहीं कर पाए. एक बार वह इंग्लैंड गए थे. अंडर 19 की टीम लेकर. बतौर मैनेजर और कोच. उस दौरान उन्होंने एक प्लेयर को डांटते हुए तमाचा जड़ दिया. प्लेयर ने इसका बुरा नहीं माना. वह कोच सर को बहुत मानता था. मगर मीडिया ने विजय को नहीं बख्शा. बीसीसीआई को उन्हें रुखसत करना पड़ा. छाता मैन संजय विजय मांजरेकर दो कमरों वाले घर में रहते थे. दादर में. मगर इससे उनकी यारियों पर कोई असर नहीं पड़ता था. अक्सर कई बडे़ और महान प्लेयर उनके यहां खाने पर आते. और इस दौरान संजय का काम होता, छाता मैन बनने का. जब ये प्लेयर कार से उतरते तो उन्हें देखने सैकड़ों की भीड़ लग जाती. सुनील गावस्कर, रोहन कन्हाई सरीखों का तब भी जलवा था. तो संजय छाता लेकर सड़क पर इंतजार करते. और फिर उनका काम होता, अपने गेस्ट के सामने इस तरह से छाता रखना कि कोई उन्हें देख पहचान न पाए. मां की नौकरी से घर चला विजय मांजरेकर अपनी कॉरपोरेट नौकरी से उकता गए. उनकी तबीयत भी दुरुस्त नहीं रहती थी. वह घर बैठ गए. और तब घर चलाने की जिम्मेदारी आई उनकी पत्नी रेखा पर. गजब की बेमेल मगर प्यार में पड़ी जोड़ी. जब विजय आजाद मैदान में प्रैक्टिस करते थे, तब रेखा अपने ऑफिस जाती थीं. बतौर टाइपिस्ट काम करने. विजय, खालिस उद्दंड़ मराठी बतियाने वाले क्रिकेटर. रेखा, दक्षिण भारत से आईं, अपने काम में बेहद व्यवस्थित. फिर दोनों में प्यार और विवाह हुआ. विजय के घर बैठने पर रेखा ने टाइपिस्ट का काम फिर शुरू किया. फिर उन्होंने शॉर्ट हैंड भी सीखी और तरक्की करती गईं. संजय लिखते हैं, कि मां ने ही घर संभाला-संवारा. इसलिए उनकी कमी ज्यादा अखरती है.

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