सायना नेहवाल (Saina Nehwal) इंडियन बैडमिंटन की पोस्टर गर्ल हैं. सायना वर्ल्ड नंबर वन रहने वाली पहली इंडियन भी हैं. साल 2003 में सिर्फ 13 साल की उम्र में इंडियन सर्किट में अपना सिक्का जमा चुकी थीं. इतनी कम उम्र में सीनियर सिंगल्स खेलने वाली सायना ने जब पहली बार चायनीज प्लेयर्स को देखा तो शॉक्ड रह गईं. उन्हें समझ में आया कि वर्ल्ड नंबर-1 का क्या मतलब होता है. ये बातें खुद सायना ने लल्लनटॉप के साथ इंटरव्यू के दौरान बताईं.
'वो मशीन की तरह...', सायना ने सुनाई ओलंपिक्स में चाइनीज प्लेयर्स के खौफ की कहानी
साल 2003 में सिर्फ 13 साल की उम्र में इंडियन सर्किट में अपना सिक्का जमा चुकी थीं. इतनी कम उम्र में सीनियर सिंगल्स खेलने वाली सायना ने जब पहली बार चाइनीज प्लेयर्स को देखा तो शॉक्ड रह गईं. उन्होंने चाइनीज प्लेयर्स से मुकाबले को लेकर बड़ी बात कही है.

सायना ने लल्लनटॉप के प्रोग्राम ‘गेस्ट इन द न्यूजरूम’ (Guest in the Newsroom) में बताया,
2003 में उबर कप में मैं भी इंटरनेशनल टीम में थी. लेकिन सिंगल्स में अपर्णा पोपट दीदी खेल रही थीं. क्योंकि वो मुझसे आगे थीं. तब पता चला कि वर्ल्ड नंबर-1 क्या होता है? चाइनीज और कोरियन सीनियर लेवल पर क्या होते हैं.
ये पूछने पर कि उन्हें देखकर क्या लगा? सायना ने बताया,
वो बिल्कुल मशीन की तरह होते हैं. वो क्यों ऐसे बनते हैं. क्योंकि जैसे हमारे यहां क्रिकेट इतना पॉपुलर है. इतना बड़ा स्पोर्ट है. आज हमारे पास ऐसे प्लेयर्स हैं जिनसे सब सीखते हैं कि चैंपियन कैसे बनें. अब ऐसा चाइना का था. वो इतने सालों से जीत रहे हैं. एक सिस्टम बन गया था. उनके जो कोच हैं या तो ओलंपिक्स चैंपियन रहेंगे या वर्ल्ड चैंपियन रहेंगे. इसलिए उनको आता है कि कैसे उनको चैंपियन बनाएं. ये सालों से होता आ रहा है. इसलिए हम उनको मशीन्स बोल सकते हैं क्योंकि उन्हें चैंपियन बनाना आता है.
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अपने यहां ये काम किस तरह से पुलेला गोपीचंद ने किया? इस सवाल के जवाब में सायना ने बताया,
सायना की अचीवमेंट्सप्रकाश पादुकोण सर के बाद एक लंबा गैप आ गया था. गोपी सर ने 2003 में ऑल इंग्लैंड जीतने के बाद ये डिसाइड किया उन्हें कोचिंग करनी है. उन्हें पता था कि कैसे इंटरनेशनल स्टेज पर चैंपियन बनना है. गोपी सर घुटनों में प्रॉब्लम के कारण कोच बन गए. उन्हें एक अच्छा ग्रुप मिल गया. 6-7 लोगों का जिनमें मैं भी शामिल थी.
बैडमिंटन में पहला ओलंपिक्स मेडल जीतने वाली सायना करोड़ों इंडियन के लिए प्रेरणा हैं. 2012 के लंदन ओलंपिक्स में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीतकर एक राह बनाई. जिस पर आगे चलकर पीवी सिंधू ने भी दो मेडल जीते. सायना ने वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी दो मेडल जीते हैं. साथ ही उबर कप में भी मेडल जीतने वाली टीम का हिस्सा रही हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स में सायना ने सबसे ज्यादा पांच मेडल्स जीते हैं. इनमें तीन गोल्ड मेडल हैं. वहीं एशियन गेम्स में भी उन्होंने दो मेडल जीते हैं.
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